Thursday 26 March 2015

छत्तीसगढ़ राज्य विरुध्द गुरुचरण सिंह मुण्डा धारा 302 भादसं

 
न्यायालय: सत्र न्यायाधीश, दुर्ग जिला दुर्ग (छत्तीसगढ़)
 (पीठासीन न्यायाधीशः नीलम चंद सांखला)

 सत्र प्रकरण क्रमांक 79/2014
 संस्थापन दिनांक 25-04-2014.
छत्तीसगढ़ राज्य,
व्दारा- पुलिस थाना नेवई,
जिला-दुर्ग (छत्तीसगढ़)                                                                            अभियोजन
वि रु ध्द
अजय मुण्डा उर्फ गुरुचरण सिंह
मुण्डा, आत्मज मान सिंह मुण्डा,
आयु लगभग 20 वर्ष, साकिन-
सराईकेला बोरबिल थाना
सराईकेला बोरबिल, जिला
चाईबासा (झारखंड)
हाल मुकाम-एच.एस.सी.एलकालोनी
स्टेशन मड़ौदा मोतीलाल
ठेकेदार के मकान के पीछे, थाना
नेवई, जिला दुर्ग (छत्तीसगढ़)                                                                 अभियुक्त
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श्री वेन्सेस्लास टोप्पो, तत्कालीन न्या.मजि.प्र.श्रे., दुर्ग व्दारा आ.प्र.क्र. 1929/2014 राज्य वि. अजय मुण्डा उर्फ गुरुचरण सिंह मुण्डा, अपराध अंतर्गत धारा 302 भारतीय दण्ड संहिता को दिनांक 16/04/2014 को
सत्र न्यायालय में उपार्पित किए जाने से उद्भूत सत्र प्रकरण.
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राज्य की ओर से श्री सुदर्शन महलवार, लोक अभियोजकअभियुक्त (अभिरक्षा में) की ओर से श्री प्रवीण वैष्णव, अधिवक्ता.
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नि र्ण य
 (आज दिनांक 25 मार्च सन् 2015 को घोषित)
01. ऊपर नामित अभियुक्त के विरुध्द धारा 302 भारतीय दण्ड संहिता, 1860 के अधीन दण्डनीय अपराध का आरोप है । 
02. प्रकरण में सिर्फ यह अविवादित तथ्य है कि, मृतक रामप्रसाद अपने पिता मानसिंह के साथ एच.एस.सी.एल.कालोनी, मड़ौदा, थाना नेवई, जिला दुर्ग (छ.ग.) में रहता था और अभियुक्त जुनवानी में
रहता था जो कभी-कभी इनके घर आना-जाना करता था 
03. संक्षिप्त में अभियोजन वृतान्त निम्नानुसार है:-
(I) लखन मुण्डा (अ.सा.नं.3) एच.एस.सी.एल. कालोनी, स्टेशन मड़ौदा, मोतीलाल ठेकेदार के घर के पीछे, थाना नेवई में रहता है  और रोजी मजदूरी का काम करता है । उसके बड़े भाई मान सिंह के दो लड़कों में से बड़ा लड़का रामप्रसाद मुण्डा, मान सिंह के साथ रहता था और छोटा लड़का अजय उर्फ गुरुचरण सिंह मुण्डा (अभियुक्त) बाहर रहता था, कभी-कभी आते-जाते रहता था । दिनांक 22-12-2013 को अजय उर्फ गुरुचरण सिंह मुण्डा (अभियुक्त) करीब 06.00 बजे शाम रामप्रसाद के घर आया तो रामप्रसाद के यह कहने पर कि बहुत दिन बाद आये हो कितना पैसा कमा कर लाये हो दो, दोनों के बीच झगड़ा-विवाद होने लगा । उसके बाद अजय उर्फ गुरुचरण सिंह मुण्डा उस समय वहां से चला गया और रात्रि के करीब 10 बजे पुनः आया तो रामप्रसाद ने लकड़ी के फट्टा से अजय उर्फ गुरुचरण सिंह मुण्डा को मार दिया तो गुस्से में आकर अजय उर्फ गुरुचरण सिंह ने भी लकड़ी के फट्टा से रामप्रसाद के सिर में मार दिया, जिससे रामप्रसाद गिर गया तो और उसे फट्टा से मारने लगा, वह बेहोश हो गया तो मोहल्ले के लोगों की मदद से रामप्रसाद मुण्डा को 108 वाहन से जिला अस्पताल, दुर्ग ले जाकर भर्ती किये, जहां डॉक्टर एस.के.फटिंग, चिकित्साधिकारी (अ.सा.नं.8) ने रात्रि 11 बजकर 45 मिनट पर उसका उपचार कर प्रदर्श पी-15 की रिपोर्ट दिया । आहत रामप्रसाद को आपात वार्ड में इमरजेंसी में भर्ती कराया गया। आहत रामप्रसाद के आगे की जांच एवं उपचार के निर्देश दिये गये। आहत के सिर पर ग ंभीर रुप से घातक चोटें थी, जो किसी कड़े एवं भोथरे  वस्तु से कारित की गई थी । दिनांक 23-12-2013 को ही रात्रि 00.40 बजे रामप्रसाद का परीक्षण कर उसकी मृत्यु की घोषणा कर उसके शव को शव परीक्षण हेतु मरच्युरी भेजा गया । डॉक्टर एस.के.फटिग व्दारा रामप्रसाद के मृत्यु की सूचना की पर्ची प्रदर्श पी-16 वार्ड ब्वाय, सोनूराम बंजारे (अ.सा.नं.9) को दी गई, जिसने उसे थाना दुर्ग में ले जाकर पेश किया, जिसके आधार पर थाना दुर्ग में प्रदर्श पी-16 ए का मर्ग इंटीमेशन प्रधान आरक्षक, रम्महन लाल ठाकुर (अ.सा.नं.10) ने दर्ज किया ।
(II) दिनांक 23-12-2013 को प्रदर्श पी-16 ए की मर्ग सूचना प्राप्त होने पर आर.डी.नेताम, सहायक उपनिरीक्षक, पुलिस थाना नेवई (अ.सा.नं.12) जिला चिकित्सालय, दुर्ग के मरच्युरी जाकर मृतक के शव का पंचनामा करने बाबत् साक्षियों को प्रदर्श पी-05 की नोटिस दिया और उनकी उपस्थिति में प्रदर्श पी-06 का नक्शा पंचायतनामा तैयार किया और प्रदर्श पी-02 की देहाती नालिसी दर्ज किया और मृतक के शव को आरक्षक पुनेश साहू के माध्यम से शव परीक्षा आवेदन प्रदर्श पी-13 के साथ शव परीक्षण हेतु जिला चिकित्सालय, दुर्ग भेजा, और इस हेतु आरक्षक पुनेश साहू को प्रदर्श पी-18 का कर्तव्य प्रमाण-पत्र दिया । डॅाक्टर एन.सी.राय, चिकित्साधिकारी (अ.सा.नं.15) ने मृतक रामप्रसाद के शव का परीक्षण कर प्रदर्श  पी-13 ए की रिपोर्ट दिया । उनके मतानुसार
मृत्यु का कारण सिर पर आई सांघातिक चोटें थी और मृत्यु का प्रकार हत्यात्मक हो सकता था। शव परीक्षण उपरान्त पुनेश कुमार साहू, आरक्षक (अ.सा.नं.7) ने मृतक के शव को अन्त्येष्टि हेतु उसके परिजन को प्रदर्श
पी-08 के व्दारा सुपुर्द किया आ ैर चिकित्सक व्दारा दिये गये सीलबंद पैकेट, जिसमें मृतक के कपड़े इत्यादि थे, को प्रदर्श  पी-14 के व्दारा थाने में जब्त कराया ।
(III) आर.डी.नेताम, सहायक उपनिरीक्षक, पुलिस थाना नेवई (अ.सा.नं.12) थाना नेवई वापस आकर थाना दुर्ग से प्राप्त बिना नंबरी मर्ग इंटीमेशन प्रदर्श पी-16 ए को मर्ग क्रमांक 56/2013, प्रदर्श पी-19 के रुप में नंबरी किया और थाना नेवई में अपराध क्रमांक 305/2013 का प्रथम सूचना प्रतिवेदन प्रदर्श पी-20 दर्ज किया और संक्षिप्त शव परीक्षण प्रतिवेदन देने हेतु संबंधित चिकित्सक को प्रदर्श  पी-21 की तहरीर लिखा।
(IV) बी.एल.साहू, सहायक उपनिरीक्षक (अ.सा.नं.13) को उपरोक्त अपराध क्रमांक 305/2013 की डायरी विवेचना हेतु प्राप्त होने पर वे घटनास्थल जाकर साक्षी से पूछताछ कर उसकी उपस्थिति में प्रदर्श पी-03 का नज़री नक्शा तैयार किये । दिनांक 23-12-2013 को अजय उर्फ गुरुचरण सिंह मुण्डा को साक्षियों की उपस्थिति में अभिरक्षा में लेकर उससे पूछताछ कर उसका मेमोरेंण्डम कथन प्रदर्श पी-09 लेखबध्द किया, जिसमें उसने घर मे रखे लकड़ी के फट्टा को उठाकर मृतक रामप्रसाद को सिर मे मारना और उस लकड़ी के फट्टे को घर में छुपाकर रखने तथा चलकर बरामद कराने की बात बतायी । मेमोरेण्डम कथन प्रदर्श पी-09 के आधार पर घटना स्थल जाकर अभियुक्त व्दारा अपने घर के अंदर से निकालकर देने पर एक लकड़ी का फट्टा साक्षियों की उपस्थिति में जब्ती पत्र प्रदर्श पी-10 के अनुसार जब्त किया । बी.एल.साहू, सहायक उपनिरीक्षक (अ.सा.नं.13) ने घटनास्थल से सादी मिट्टी, खून आलूदा मिट्टी और एक फटा-पुराना कपड़ा, जिसमें खून सरीखे दाग लगे थे, जब्ती पत्र प्रदर्श पी-11 के अनुसार जब्त किया और अभियुक्त के विरुध्द प्रथम दृष्टया अपराध प्रमाणित पाये जाने पर अभियुक्त को गिरफ्तारी पंचनामा प्रदर्श पी-22 के व्दारा गिरफ्तार किया और उसके गिरफ्तारी की सूचना उसके परिजन को प्रदर्श पी-23 के व्दारा दी और विवेचना के दौरान साक्षियों के कथन उनके बताये अनुसार दर्ज किया ।
(V) एम.बी.पटेल, निरीक्षक (अ.सा.नं.14) को अपराध क्रमांक 305/2013 की डायरी विवेचना हेतु प्राप्त होने पर उन्होंने, मृतक रामप्रसाद के शव का पोस्टमार्टम करने वाले चिकित्सक से क्वेरी आवेदन प्रदर्श  पी-25 के व्दारा 03 बिन्दुओं पर क्वेरी किया, जिसका उत्तर उन्हें संबंधित चिकित्सक से प्राप्त हुआ । इन्होंने जब्तशुदा वस्तुओं को पुलिस अधीक्षक, दुर्ग के ज्ञापन प्रदर्श पी-26 के व्दारा रासायनिक परीक्षण हेतु राज्य न्यायालयिक विज्ञान प्रयोगशाला, रायपुर भिजवाया, जहां से बाद में प्रदर्श  पी-24 की रिपोर्ट प्राप्त हुई, जिसके अनुसार खून आलूदा मिट्टी, पुराना छीटदार कपड़ा, मृतक के कपड़े स्वेटर, कमीज, फुलपेन्ट में रक्त पाया गया तथा खून आलूदा मिट्टी और पुराना छीटदार कपड़ा पर मानव रक्त पाया गया ।
(VI)  डॅाक्टर अनिल अग्रवाल, वरिष्ठ चिकित्साधिकारी (असा.नं..11) ने दिनांक 23-12-2013 को अभियुक्त का परीक्षण कर प्रदर्श पी-17 की रिपोर्ट दिया । पटवारी, डी.के.साहू (अ.सा.नं..4) से घटना स्थल का नक्शा प्रदर्श पी-04 तैयार करवाया गया और अनुसंधान पूर्ण होने के उपरान्त अभियुक्त के विरुध्द भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 302 के तहत अभियोग-पत्र न्या.मजि.प्र.श्रे., दुर्ग के न्यायालय में पेश किया गया, जहां से प्रकरण सत्र न्यायालय द्वारा विचारण योग्य होने से सत्र न्यायालय को उपार्पित किया गया ।
04. अभियुक्त ने धारा 302 भारतीय दण्ड संहिता के अंतर्गत दंडनीय अपराध के आरोप को अस्वीकार कर विचारण का दावा किया । अभियोजन ने अपने पक्ष समर्थन मेंकुल 15 साक्षियों का परीक्षण कराया है। अभियोजन साक्षियों के परीक्षण के उपरान्त धारा 313 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत अभियुक्त का परीक्षण किया गया तथा उसे प्रतिरक्षा में प्रवेश कराया गया । प्रतिरक्षा में अभियुक्त व्दारा किसी बचाव साक्षी का परीक्षण नहीं कराया गया है ।
05. प्रकरण मेंअभिनिर्धारण हेतु निम्नलिखित विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं:-
(1) क्या मृतक रामप्रसाद की हत्यात्मक मृत्यु हुई है ?
(2) क्या अभियुक्त अजय मुण्डा उर्फ गुरुचरण सिंह मुण्डा ने साशय अथवा जानते हुए मृतक रामप्रसाद को लकड़ी के फट्टा से उसके सिर मेंमारकर उसकी मृत्यु कारित कर हत्या किया ?
विचारणीय प्रश्न क्रमांक-01-
06. लखन मुण्डा (अ.सा.नं.3) ने अपने साक्ष्य में कहा है कि प्रदर्श  पी-02 की सूचना उसने पुलिस थाने में दर्ज करायी थी और  उसे प्रदर्श  पी-05 की नोटिस देकर उसके समक्ष पुलिस ने प्रदर्श  पी-06 का नक्शा पंचायतनामा तैयार किया था । मानसिंह यादव (अ.सा.नं.5) ने भी अपने साक्ष्य में कहा है कि उसे प्रदर्श पी-05 की नोटिस देकर उसके समक्ष पुलिस ने प्रदर्श पी-06 का नक्शा पंचायतनामा तैयार किया था । आर.डी.नेताम, सहायक उपनिरीक्षक (अ.सा.नं..12) ने अपने साक्ष्य में कहा है कि मृतक के शव का पंचनामा करने बाबत् उसने पंचों को प्रदर्श पी-05 की नोटिस दिया था और  उनकी उपस्थिति में प्रदर्श  पी-06 का नक्शा पंचायतनामा तैयार किया था । इस साक्षी के अनुसार पंचों ने यह राय दी थी कि मृतक के सिर से, कान से खून निकल रहा है, मृतक की मौत सिर मेंचोट लगने से होना प्रतीत होता है तथा पंचों ने मृत्यु का सही कारण जानने के लिए शव का पोस्टमार्टम कराये जाने की सलाह दी थी।
07. डॅाक्टर एस.के.फटिंग , चिकित्साधिकारी (अ.सा.नं..8) ने अपने साक्ष्य मेंकहा है कि, दिनांक 22.12.2013 को रात्रि 11 बजकर 45 मिनट पर राम प्रसाद, उम्र 32 वर्ष, पुरूष, पिता श्री मान सिंह, निवासी स्टेशन मड़ौदा को इस हिस्ट्री के साथ कि भाई के साथ झगड़ा हुआ है और भाई ने मारा है; यह बात उसके चाचा लखन और बहन कुंती ने बताया था, उनके समक्ष मुलाहिजा हेतु आरक्षक किरतू राम क्रमांक 176 थाना दुर्ग द्वारा लाया गया था । उन्होंने परीक्षण पर पाया कि आहत राम प्रसाद मूर्च्छित अवस्था में था । उसकी स्थिति अत्यन्त नाजुक थी। आहत की नब्ज अत्यन्त धीरे -धीरे चल रही थी । ब्लड प्रेशर 60 सिस्टोलिक था। श्वसन तंत्र मेंक्रेप्ट्स एण्ड कन्डक्टेड साउण्ड सुनाई दे रहे थे । हृदय गति धीमी सुनाई दे रही थी । आहत पूर्ण रूप से मूर्च्छित था । उन्होंने आहत के शरीर पर निम्नलिखित चोटें पाई थी:-
 (1) एक लेसरेटेड वूण्ड बॉयी ऑख के भौंह के पास था, जिसका आकार 02 ग 1/2 ग 1/4 सें.मी. था, जिससे रक्तस्राव हो रहा था ।
 (2) नाक तथा मुह से भी रक्तस्राव हो रहा था ।
 (3) बॉयी ऑख काली पड़ गयी थी जिसमेंरक्त भरा हुआ था ।
 (4) बॉये कान से रक्तस्राव हो रहा था ।
आहत राम प्रसाद को आपात वार्ड में इमरजेंसी में भर्ती कराया गया था। आहत राम प्रसाद के आगे की जॉच एवं उपचार के निर्देश दिये गये थे । आहत के सिर पर गंभीर   रूप से घातक चोटें थीं । आहत को आई चोटें किसी कड़े एवं भोथरे  वस्तु से कारित की गयी थी और उनके परीक्षण करने के समय से छः घंटे के भीतर की थी । इस संबंध मेंउनकी रिपोर्ट प्रदर्श  पी-15 है जिसके अ से अ भाग पर उनके हस्ताक्षर हैं । दिनांक 23.12.2013 को ही रात्रि 12.40 बजे आहत राम प्रसाद का परीक्षण कर उसकी मृत्यु की घोषणा कर उसके शव को शव परीक्षण के लिये मरच्युरी भेजा गया था जिसके संबंध में सूचना की पर्ची  प्रदर्श  पी-16 है जिसके अ से अ भाग पर उनके हस्ताक्षर हैं ।
08. आर.डी.नेताम, सहायक उपनिरीक्षक (अ.सा.नं..12) का कहना है कि उन्होंने मृतक के शव को आरक्षक पुनेश साहू, क्रमांक 1481 के माध्यम से जिला चिकित्सालय, दुर्ग शव परीक्षा आवेदन प्रदर्श  पी-13 के साथ शव परीक्षण हेतु भेजा था । उक्त साक्ष्य का समर्थन पुनेश कुमार साहू, आरक्षक (अ.सा.नं.7) ने भी अपने साक्ष्य में किया है ।
09. डॉक्टर एन.सी.राय, चिकित्साधिकारी (अ.सा.नं..15) ने अपने साक्ष्य में कहा है कि, दिनांक 23.12.2013 को दोपहर बारह बजे आरक्षक पुनेश क्रमांक 1481 थाना नेवई के द्वारा रामप्रसाद पिता मानसिंह मुण्डा, उम्र 30 वर्ष, निवासी-मरौदा, थाना नेवई के शव को पोस्टमार्टम के लिये लाया गया था जिसे मानसिंह यादव-पड़ोसी, लखन मुण्डा-चाचा व आरक्षक पुनेश साहू के द्वारा पहचान किया गया था । इन्होंने शव के बाह्य परीक्षण मेंपाया कि शरीर ठ ंडा था । अकड़न मौजूद थी । ऑख व मुह बंद था व जीभ अंदर थी । बाह्य चोटें मौजूद थीं। डायफ्रॉम एवं नाक के दोनों छिद्रों से खून बहा हुआ था। यह एक औसत कदकाठी का युवा था। इन्होंने शव के आंतरिक परीक्षण मेंपाया कि फेफड़े व छाती के अन्य अंग कंजेस्टेड थे । हृदय के दोनों ओर थोड़ी मात्रा मेंरक्त भरा था । पेट खाली था व लीवर, स्प्लीन, किडनी कंजेस्टेड थे और  निम्नानुसार चोटें पाई थी:-
1. शव के कान व नाक से खून बहा हुआ था जो कि सिर के  आधार की फ्रेक्चर की निशानी है ।
2. सिर पर एक कुचला हुआ घाव था जो कि 03 से.मी. ग 01 सें.  मी. ग 0.5 सें.मी. था ।
3. एक हीमेटोमा (रक्त का जमाव) ब्रेन के अंदर था जिसका साइज  06 सें.मी. ग 05 सें.मी. ग 02 सें.मी. था और  यह बॉयें पेराइटल  व सिर के सामने के हिस्से में था । ये सभी चोटें मृत्यु पूर्व की थीं। इनके मतानुसार मृत्यु का कारण सिर पर आई संघातिक चोटें थीं । शव को फ्रीजर मेंरखा गया था, इसलिये मृत्यु का सही समय बताना संभव नहीं था । इनके अभिमत मेंमृत्यु का प्रकार हत्यात्मक हो सकता है । इनकी रिपोर्ट प्रदर्श पी-13 ए है जिसके अ से अ भाग पर इनके हस्ताक्षर हैं ।
10. उपरोक्त साक्षियों के उपरोक्त बिन्दु पर दिये गये कथन मेंऐसी कोई बात नर्हीं आइ है, जिसके कारण उनके व्दारा उक्त बिन्दु पर दिये गये कथन पर अविश्वास किया जा सके । डॉक्टर एन.सी.राय, चिकित्साधिकारी (अ.सा.नं..15) के मतानुसार मृत्यु का कारण सिर पर आई संघातिक चोटें थीं । इनके अभिमत में मृत्यु का प्रकार हत्यात्मक हो सकता है । जिस व्यक्ति का पोस्टमार्टम किया गया, वह मृतक रामप्रसाद का शव था, इस बिन्दु पर कोई विवाद नहीं है। इससे अभियोजन की इस कहानी को बल मिलता है कि दिनांक 23-12-2013 को मृतक की मृत्यु हुई और मृतक की मृत्यु का कारण सिर पर आई संघातिक चोटें थी, या दूसरे शब्दों में ऐसा कहा जा सकता है कि घटना दिनांक को रामप्रसाद का किसी व्यक्ति व्दारा वध करने के कारण मृत्यु हुई ।
विचारणीय प्रश्न क्रमांक-02-
11. अभियोजन की ओर से तर्क के दौरान कहा गया है कि उन्होंने उनका मामला साबित किया है । दूसरी ओर  अभियुक्त के विव्दान अधिवक्ता ने लिखित तर्क पेश कर कहा है कि इस प्रकरण में अभियोजन चक्षदर्शी साक्षियों की साक्ष्य से अथवा परिस्थितिजन्य साक्ष्य से अपना मामला सिध्द करने मेंपूरी तरह असफल रहा है, अतः अभियुक्त को दोषमुक्त किया जाना चाहिए ।
12. अभियोजन की कहानी के अनुसार इस प्रकरण के साक्षी सोमारी बाई मुण्डा (अ.सा.नं..1), सनत यादव (अ.सा.नं..6) और लखन मुण्डा (अ.सा.नं..3) चक्षुदर्शी  साक्षी होने से महत्वपूर्ण साक्षी हैं ।
13. सोमारी बाई मुण्डा (अ.सा.नं.1) को अभियोजन पक्ष ने पक्षविद्रोही साक्षी घोषित कर विस्तारपूर्वक प्रश्न पूछे हैं । इस साक्षी के पूरे कथन को पढने से यह पता चलता है कि यह साक्षी बदल-बदल कर कथन दी है । सोमारी बाई मुण्डा (अ.सा.नं..1) ने उसके कथन में पहले यह कही है कि उसके लड़के रामप्रसाद एवं अभियुक्त गुरुचरण उर्फ अजय मुण्डा का झगड़ा हुआ था । यह साक्षी अपने कथन के पैरा-05 में कहती है कि दोनों के बीच पिता के इलाज को लेकर वाद-विवाद हुआ था । फिर उसने मृतक और अभियुक्त, जो दोनों र्भाइ  हैं, उन्हें समझाकर बाहर भेज दिया था । उसके बाद साक्षी अपने कथन के पैरा-06 मेंयह कहती है कि शाम के बाद रात को पुनः अभियुक्त और मृतक के बीच झगड़ा हुआ था और इसी पैरा में आगे यह साक्षी कहती है कि उस समय वह हाजिर नहीं थी । यह साक्षी अपने कथन के पैरा-03 में यह कहती है कि अभियुक्त ने उससे कहा था कि उसे मृतक ने मारा था इसलिए उसने भी मृतक को सिर मेंमार दिया था । बाद में यह साक्षी प्रतिपरीक्षण की कंडिका-07 मेंयह कहती है कि उसके सामने कोई घटना घटित नहीं हुई है और उसने पुलिस को कोई बयान भी नहीं दिया था और उसे घटना की कोई जानकारी भी नहीं है । ऐसी दशा में इस महत्वपूर्ण साक्षी के कथन में एकरुपता नहीं होने से और बदल-बदल कर कथन करने से इस साक्षी के इस कथन पर विश्वास नहीं किया जा सकता कि अभियुक्त ने उसे कहा था कि वह गुस्से में था और  उसने मृतक को मार दिया था। चूंकि अभियोजन की कहानी के अनुसार यह साक्षी चक्षुदर्शी साक्षी है और इसी के सामने घटना घटित हुई थी, किन्तु इसने ऐसा कथन नहीं की है और यह भी कही है कि उसने पुलिस को कोई बयान भी नहीं दी थी ।
14. इस प्रकरण के महत्वपूर्ण साक्षी लखन मुण्डा (अ.सा.नं.3), जिसे अभियोजन ने चक्षुदर्शी साक्षी बताया है, को भी अभियोजन ने पक्षविद्रोही साक्षी घोषित कर विस्तारपूर्वक प्रश्न किये हैं । यह साक्षी अपने कथन के पैरा-03 मेंयह कहता है कि घटना दिनांक को शाम को करीब सात बजे वह, उसकी भाभी सोमारी बाई तथा उसकी भतीजी कुंती बाई, गोवर्ध न के यहां खाना खाने के लिए गये थे और रात करीब नौ-दस बजे अभियुक्त और मृतक के बीच झगड़ा हुआ था । उसने रामप्रसाद के सिर पर चोट देखी थी। फिर उसे अस्पताल ले जाया गया था, जहां उपचार के दौरान उसकी मृत्यु हो गई । इस साक्षी ने अपने कथन के पैरा-07 में अभियोजन के इस सुझाव को गलत बताया है कि जब वह मान सिंह के घर पहुंचा तब आरोपी और मृतक के बीच मारपीट हो रहा था । प्रतिपरीक्षण की कंडिका-09 में यह साक्षी कहता है कि उसने घटना को उसकी आंखों से नहीं देखा था, घटना कैसे घटी उसे नहीं मालूम और उसने जो प्रथम सूचना प्रतिवेदन लिखाया है उसे पुलिस वाले पढ़कर नहीं सुनाये थे और उसने सिर्फ उसमें अंगूठा निशानी लगा दिया था । यह साक्षी कहता है कि पुलिस वाले आये थे और उसे यही बताया था कि उन लोगों ने नक्शा बनाया है हस्ताक्षर कर दो, इसलिए उसने हस्ताक्षर कर दिया था। इस साक्षी ने भी उसके कथन मेंघटना के समय मौके पर उपस्थित होने और  उसके सामने मारपीट होने की बात को इंकार किया है।
15. इस प्रकरण के महत्वपूर्ण चक्षुदर्शी साक्षी सनत यादव (अ.सा नं.6) को भी अभियोजन पक्ष ने पक्षविद्रोही साक्षी घोषित कर विस्तारपूर्वक प्रश्न किये हैं, किन्तु इस साक्षी ने भी अभियोजन की कहानी का समर्थन नहीं किया है और  अपने कथन की कंडिका-04 में यह कहा है कि उसने पुलिस को प्रदर्श पी-12 का बयान नहीं दिया था । इस साक्षी ने अपने कथन की कंडिका-03 में अभियोजन के इस सुझाव को गलत बताया है कि जब वह आवाज सुनकर मौके पर गया तो देखा कि अभियुक्त, मृतक को मार रहा था ।
16. अभिलेख मेंजितने भी चक्षुदर्शी साक्षी हैं, उनमेंसे किसी भी साक्षी ने ऐसा स्पष्ट कथन नहीं किया है कि उनके सामने अभियुक्त ने मृतक को मारा था।
17. अब इस प्रकरण में जो परिस्थितिजन्य साक्ष्य है, उस पर विचार करेंगे ।
18. बी.एल.साहू, सहायक उपनिरीक्षक (अ.सा.नं..13) ने उसके कथन में कहा है कि जब उसे इस प्रकरण की डायरी विवेचना के लिए मिली, तब उसने दिनांक 23-12-2013 को अभियुक्त को अभिरक्षा में लेकर उसका मेमोरेण्डम कथन प्रदर्श पी-09 लेखबध्द किया था और मेमोरेण्डम कथन के आधार पर गवाहों के समक्ष अभियुक्त से जब्ती पत्र
प्रदर्श  पी-10 के अनुसार एक लकड़ी का फट्टा जब्त किया था ।
19. मेमोरेण्डम और जब्ती पत्र का अवलोकन किया गया । मेमोरेण्डम और जब्ती पत्र के गवाह नुरुल इस्माइल खान तथा मान सिंग यादव (अ.सा.नं.5) हैं । मान सिंग यादव (अ.सा.नं..5) ने अभियोजन की कहानी का समर्थन नहीं किया है और  उसे पक्षविद्रोही साक्षी घोषित कर इस साक्षी से जब अभियोजन ने विस्तारपूर्वक प्रश्न किये, तब भी इस साक्षी ने अभियुक्त के मेमोरेण्डम कथन के आधार पर जब्ती किए जाने की बात को गलत बताया है । अन्य दूसरे गवाह नुरुल इस्माइल खान का कथन नहीं कराया गया है ।
20. विवेचक के अनुसार उसने जब्तशुदा फट्टे को रासायनिक परीक्षण हेतु भेजा था और रासायनिक परीक्षण प्रतिवेदन प्रदर्श  पी-24 प्राप्त हुई है । उक्त प्रतिवेदन मेंअभियोजन व्दारा प्रेषित अभियुक्त से जब्तशुदा फट्टा आर्टिकल ‘‘ ई ‘‘ पर रक्त नहीं पाया गया है । विवेचक के कथन का समर्थ न स्वतंत्र साक्षी ने मेमोरेण्डम और जब्ती के संबंध में नहीं किया है तथा जब्तशुदा फट्टे पर रक्त नहीं पाया गया है । इसलिए अभियुक्त की निशानदेही पर फट्टे की जब्ती को अभियोजन ने साबित किया है, यह नहीं माना जा सकता ।
21. अभियोजन ने उनके तर्क के दौरान कहा है कि इस प्रकरण मेंअभियुक्त के सिर पर भी चोट थी, किन्तु अभियुक्त ने उसका कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है इसलिए उसके संबंध मेंविपरीत उपधारणा की जानी चाहिए । मृतक और अभियुक्त की मां सोमारी बाई मुण्डा (अ.सा.नं. 1) के अनुसार रात्रि के घटना के पूर्व भी अभियुक्त और  मृतक के बीच झगड़ा हुआ था, तब वह समझायी थी । ऐसी दशा मेंपरिस्थितियों की अन्य कोई कड़ी न होने से यदि अभियुक्त के सिर पर चोट के निशान थे और अभिलेख मेंघटना के पहले भी लड़ाई-झगड़े की बात आई थी, तब यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि उसके सिर पर चोट होने मात्र से ही अभियुक्त ने मृतक को मारा हो । अभियोजन ने उनके तर्क के समर्थन मेंढाल सिंह देवांगन बनाम छत्तीसगढ़ राज्य, 2013 (4) सी.जी.एल.जे. 433 (डी.बी.) के न्यायिक निर्ण य का अवलम्ब लिया है । अध्ययन करने पर अवलंबित न्यायिक निर्णय के प्रकरण की परिस्थितियां इस प्रकरण की परिस्थितियों से भिन्न पायी जाती है, इस कारण उक्त न्यायिक निर्णय का लाभ अभियोजन को प्राप्त नहीं होना पाया जाता है ।
22. अभियोजन की ओर से तर्क के दौरान यह कहा गया है कि, डॅाक्टर एस.के.फटिंग (अ.सा.नं..8) ने आहत/मृतक का जो डॅाक्टरी परीक्षण किया था, जिसकी रिपोर्ट प्रदर्श  पी-15 तैयार की गई थी, उसमें डॅाक्टर ने यह लिखा है कि आहत को उसके र्भाइ  ने मारा है, यह बात उसके चाचा लखन और  बहन कुन्ती ने बताया था । डॅाक्टर एक स्वतंत्र साक्षी है, इसलिए उसके उक्त साक्ष्य पर अविश्वास न किया जाकर अभियुक्त के विरुध्द विपरीत उपधारणा की जानी चाहिए । अभिलेख के अवलोकन से ये दोनों ही साक्षी लखन मुण्डा (अ.सा.नं..3) और कुन्ती बाई मुण्डा (असा.नं.2) ने उनके कथन मेंअभियुक्त व्दारा मृतक को मारने की बात डॅाक्टर को बताने की बात नहीं कही है । इसलिए डॅाक्टर एस.के.फटिंग  (अ.सा.नं..8) के इस कथन को कि मृतक को अभियुक्त ने मारा था, यह बात लखन और कुन्ती ने बतायी थी, साक्ष्य में ग्राह्य नहीं किया जा सकता ।
23. पूर्व मेंकी गई विस्तृत विवेचन के फलस्वरुप अभियोजन ने यह तो साबित किया है कि मृतक की हत्या की गई है, किन्तु अभियोजन चक्षुदर्शी  साक्षियों की साक्ष्य से अथवा परिस्थितिजन्य साक्ष्य से यह साबित करने में असफल रहा है, जिसका सिर्फ एक ही निष्कर्ष निकलता हो कि उक्त हत्या सिर्फ अभियुक्त ने की हो ।
24. फलस्वरुप अभियुक्त को भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 302 के अपराध के आरोप से संदेह का लाभ देकर दोषमुक्त किया जाता है ।
25. अभियुक्त अभिरक्षा मेंहै । उसके जेल वारंट मेंयह नोट लगाई जावे कि यदि अन्य किसी प्रकरण मेंउसकी आवश्यकता न हो तो उसे तत्काल इस प्रकरण मेंरिहा किया जावे ।
26. अभियुक्त व्दारा अभिरक्षा में बितायी गई अवधि का गणना-पत्रक तैयार किया जावे, जो निर्णय का अंग होगा ।
27. प्रकरण मेंजब्तशुदा सम्पत्तियां-सादी मिट्टी, खून आलूदा मिट्टी, खून आलूदा एक फटा-पुराना छीटदार कपड़ा, मृतक रामप्रसाद के कपड़े-स्वेटर, कमीज, फुलपेंट और लकड़ी का फट्टा मूल्यहीन होने से, अपील न होने की दशा मेंअपील अवधि बाद नष्ट कर दी जॉंए । अपील होने पर माननीय अपीलीय न्यायालय के आदेशानुसार उनका निराकरण किया जा सकेगा ।
28. निर्णय की एक-एक सत्य प्रतिलिपि जिला दण्डाधिकारी, दुर्ग और लोक अभियोजक, दुर्ग को सूचनार्थ प्रदान की जावे ।
दुर्ग, दिनांक 25-03-2015.

(नीलम चंद सांखला)
 सत्र न्यायाधीश, दुर्ग
 (छत्तीसगढ़) 

Friday 20 March 2015

हेमचंद अग्रवाल विरूद्ध श्रीमती नर्मदा बेन

 
व्यवहार वाद क्रमांक-12बी/2013 
वादी का यह अभिवचन है कि प्रतिवादीगण के पति व पिता स्व. डी.एचसोलंकी का वादी के साथ घरू एवं करीबी संबंध रहा है। जिसके कारण प्रतिवादी के संबंध भी मधुर रहे हैं। मृतक डी.एच.सोलंकी पोस्ट ऑफिस के अभिकर्ता भी थे। वादी ने मृतक से पोस्ट ऑफिस में रकम मृतक के माध्यम से जमा करवाते थे एवं म्याद अवधि पर निकलवाने का कार्य भी मृतक से करवाते रहे हैं। उक्त संव्यवहार प्रतिवादी क्र.-01 के साथ भी वादी ने किया है, जिसके कारण उन्हें भी मृतक के कार्यकलापों की पूर्ण जानकारी है। मृतक श्री डी.एच. का जो भी लेनदेन हुआ है, उसकी जानकारी है कि घरू आवश्यकता पड़ने पर मृतक वादी से ही रकम की पूर्ति किया करते थे। मृतक ने उक्त संव्यवहार के कारण दिनांक 05/10/01 को वादी के पक्ष में रकम वापस करने की मंशा रखते हुए एक चेक क्र.-061799 ट्राईजक्शन भिलाई का वादी को दिये थे। वादी के द्वारा रकम निकासी हेतु अपने इलाहाबाद बैंक के खाते में चेक को जमा करवाया जहां पर रकम भुगतान योग्य न पाते हुए चेक को वादी को प्रतिवेदन के साथ वापस किया गया।
 


Wednesday 18 March 2015

गणेश सिंह विरूद्ध छ.ग. शासन (जमानत प्रकरण)

 
प्रतिलिपि - ऋषि कुमार बर्मन, द्वितीय अपर सत्र न्यायाधीश, दुर्ग के जमानत आवेदन पत्र क्रमांक-220/2015, गणेश सिंह विरूद्ध छ0ग0 शासन, द्वाराः- थाना प्रभारी, थाना भिलाईनगर, जिला दुर्ग के अपराध क्रं.- 74/2015 में दिनांक-13/03/2015 को पारित किया गया। 
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पुनश्चः- 
13.03.15 
यह जमानत आवेदन पत्र श्रीमान् जिला सत्र न्यायाधीश, दुर्ग के न्यायालय से इस न्यायालय को विधिवत् सुनवाई एवं निराकरण हेतु अधीनस्थ न्यायालय के रिमांड पत्र एवं  केश डायरी सहित अन्तरण पर प्राप्त हुआ है । 
आवेदक/अभियुक्त गणेश सिंह द्वारा श्री डी.के. वैद्य अधिवक्ता उपस्थित। राज्य की ओर से श्री एन.पी. यदु अति. लोक अभियोजक उपस्थित। 
आवेदक/अभियुक्त की ओर से प्रस्तुत जमानत आवेदन पत्र अन्तर्गत पर उभयपक्षों के तर्क सुने गये। 
आवेदक की ओर से प्रस्तुत जमानत आवेदन पत्र संक्षेप में इस प्रकार है कि आवेदक/अभियुक्त छ.ग. इन्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी भिलाई-3, जिला दुर्ग कालेज में बी.ई. द्वितीय वर्ष में तृतीय एवं चतुर्थ सेमेस्टर (कम्प्यूटर साईन्स एंड इंजीनियरिंग ब्रांच) का नियमित छात्र है। आवेदक/अभियुक्त दि. 02.03.2015 को कोचिंग क्लासेस के लिये पदुमनगर भिलाई से सेक्टर-8 भिलाईनगर अपने मोटरसायकल से जा रहा था तभी पुलिस द्वारा वाहन चेकिंग के दौरान कागजात नही होने से उसे थाने ले जाने पर कहा सुनी हो जाने से पुलिस द्वारा उसे फसाने के लिए झूठा मामला बनाया गया है। 
 आवेदक/अभियुक्त दि. 03.03.2015 से अभिरक्षा में है। आवेदक/अभियुक्त एक छात्र है और वह 21 वर्ष का है, जिसके अत्यधिक दिनों तक अभिरक्षा में निरूद्ध रहने से उसके मन मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। आवेदक/अभियुक्त जमानत पर सशर्ता रिहा होना चाहता है। 
आवेदक/अभियुक्त ने अपने जमानत आवेदन पत्र के कंडिका 3 में इस तथ्य की घोषणा की है कि यह प्रथम जमानत आवेदन है, किसी अन्य सत्र न्यायालय अथवा माननीय उच्च न्यायालय में जमानत आवेदन पत्र लंबित नहीं है और न ही निरस्त हुआ है, जिसके समर्थन में आवेदक/अभियुक्त के पिता बालमिकी सिंह द्वारा शपथ पत्र भी प्रस्तुत किया गया है, अतः उसे जमानत पर रिहा किया जावे। 
आवेदक/अभियुक्त के अधिवक्ता ने आवेदन में दर्शाये अनुसार तर्क प्रस्तुत करते हुये  आवेदक/अभियुक्त को जमानत पर रिहा किये  जाने का निवे दन किया। लोक अभियोजक ने जमानत आवेदन का विरोध करते हुये निरस्त किये  जाने का निवेदन किया है। 
उभयपक्ष के प्रस्तुत तर्क के परिप्रेक्ष्य में अधिनस्थ न्यायालय के रिमांड प्रपत्र और थाना भिलाई नगर के केश डायरी के अवलोकन से आवेदक/अभियुक्त की ओर से न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, दुर्ग के समक्ष प्रस्तुत आवेदक अंतर्गत धारा 437 द.प्र.स. दि. 03.03.2015 को खारिज हुई है। तत्पश्चात आज दिनांक को आवेदक/अभियुक्त की ओर से जमानत पर छोडे़ जाने हेतु प्रस्तुत आवेदन को खारिज किये जाने के फलस्वरूप आवेदन प्रस्तुत किया गया है। 
थाना भिलाई नगर में दर्ज अप. क्र. 74/15 धारा 379 भा.द.सं. के अपराध का अभियोजन है। आवेदक/अभियुक्त छ.ग. इन्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी भिलाई-3, जिला दुर्ग कालेज में बी.ई. द्वितीय वर्ष में तृतीय एवं चतुर्थ सेमेस्टर (कम्प्यूटर साईन्स एंड इंजीनियरिंग ब्रांच) का नियमित छात्र है, जिस संबंध में आवेदक/अभियुक्त की ओर से डायरेक्टर छततीसगढ़ इन्टीट्यूट आफ मैंनेजमेंट एंड टेक्नोलाजी, भिलाई-3 के द्वारा प्रदत्त प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया गया है। अभियुक्त दि. 03.03.2015 से अभिरक्षा में है। प्रकरण में अभियोग पत्र प्रस्तुती पश्चात विचारण में समय लगने की संभावना से इंकार नही किया जा सकता। अतः उपरोक्त तथ्य एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए आवेदक/अभियुक्त की ओर से प्रस्तुत जमानत आवेदन पत्र को सशर्ता स्वीकार किया जाता है:- 
1. आवेदक/अभियुक्त द्वारा 5,000/- (अक्षरी पांच हजार रूपये) की सक्षम प्रतिभूति एवं इतनी ही राशि का व्यक्तिगत बंधपत्र निम्न न्यायालय के सन्तुष्टि योग्य पेश किया जावेगा। 
2. आवेदक/अभियुक्त विचारण न्यायालय में विचारण की प्रत्येक कार्यवाही में नियमित रूप से उपस्थित होता रहेगा। 
3. आवेदक/अभियुक्त द्वारा अभियोजन साक्षियों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित नहीं किया जावेगा । 
4. आवेदक/अभियुक्त पुनः इस प्रकार के अपराध में संलिप्त नहीं रहेगा। अन्य किसी अपराध में संलिप्त पाये  जाने पर जमानत आदेश स्वतः निरस्त माना जावेगा। 
अतः उपरोक्त शर्तो  का परिपालन किये जाने पर आवेदक/अभियुक्त गणेश सिेह को जमानत पर रिहा किया जावे । 
आदेश की प्रति सहित रिमांड प्रपत्र संबंधित अधीनस्थ न्यायालय को वापिस भेजी जावे। 
आदेश की प्रति सहित केश डायरी संबंधित थाने को लौटायी जावे। 
प्रकरण समाप्त । 
इस जमानत प्रकरण का परिणाम दर्ज कर अभिलेखागार में जमा किया जावे। 

(ऋषि कुमार बर्मन
द्वितीय अपर सत्र न्यायाधीश, 
दुर्ग (छ0ग0)

Tuesday 17 March 2015

छत्तीसगढ़राज्य विरूद्ध शशि साहू

 
सत्र प्रकरण क्रमांक-284/2013 
अभियोजन का मामला इस प्रकार है कि दिनांक 28/05/1993 को प्रार्थी हीरा सिंह, जो उत्तम टॉकीज, खुर्सीपार में असिस्टेंट मैंनेजर का कार्य करता था, रात करीब 11.00 बजे स्कूटर से अपने घर जा रहा था, रास्ते में हथखोज के उत्तर तालाब के पास, रोड़ पर बड़े-बड़े पत्थर रखे होने से वह अपनी स्कूटर खड़ी कर पत्थर हटाने लगा। उसी समय एक व्यक्ति ने आकर उसके साथ गाली गलौज करते हुए चाकू दिखाया। उसी समय अन्य अभियुक्तगण भी आ गए तथा उसके साथ हाथ मुक्के से मारपीट करने लगे। अभियुक्तगण द्वारा प्रार्थी के गले में पहने हुए सोने की चेन, घड़ी, अंगूठी तथा नगदी रकम 950/-रूपये (नौ सौ पचास रूपये) लूट लिये गये और वहां से भाग गए। प्रार्थी द्वारा घटना की रिपोर्ट पुलिस थाना-पुरानी भिलाई मे दर्ज करायी गयी। अपराध दर्ज कर पुलिस द्वारा जांच के दौरान अभियुक्त कमल उर्फ देवकुमार को पकड़कर उससे पूछताछ की गयी। जिसके द्वारा अपराध में अशोक, आनंद तथा शशि साहू की सहभागिता भी बतायी गयी। उसकी निशानदेही पर लूटी गयी संपत्ति सोने की चेन व अंगूठी को भगवती उपाध्याय के आधिपत्य से बरामद किया गया। अभियुक्त भगवती के विरूद्ध धारा-411 भा.दं.सं.का अपराध पाया गया।
 

रितेश कुमार साहू विरूद्ध रोशन यादव उर्फ राजू यादव व अन्‍य

 
मोटर दुर्घटदावा प्रकरण क्रं.- 23/2015 
आवेदक का दावा संक्षेप में इस प्रकार है कि आवेदक रितेश कुमार साहू घटना दिनांक 23-9-2010 को अपने मित्र मनोज रूप सिंह एवं विनोद आदि के साथ अनावेदक क्रमांक 1 की टाटा मैजिक सी.जी./07-टी/1799 में बैठकर दुर्ग से राजनांदगांव की ओर जा रहा था, तभी गायत्री ट्रांसपोर्ट के निकट अनावेदक क्रमांक 1 ने उक्त वाहन को तेज गति से एवं लापरवाहीपूर्वक चलाकर रोड़ के डिवाईडर से टकरा दिया, जिससे वाहन पलट गया और आवेदक को गंभीर चोंट उसके दांहिने हाथ, बांयें कोहनी के नीचे तक कुचल गया तथा हड्डी में कम्नियूकटेड फ्रैक्चर व शरीर के अन्य भागों में भी फ्रैक्चर आ गया, तब आवेदक को घटना स्थल से जिला अस्पताल राजनांदगांव ले जाया गया, जहॉं आवेदक का प्राथमिक उपचार किया गया और आवेदक को उचित ईलाज हेतु पं. जवाहरलाल नेहरू चिकित्सालय एवं अनुसंधान केन्द्र सेक्टर 9 भिलाई में भेजा गया, वहॉं उसकी बांह का आपरेश किया गया, किन्तु डॉक्टरों ने उसके हाथ की गंभीर हालत को देखकर उसके दांहिने हाथ को काटने की बात कही, तब आवेदक कालडा सर्जरी इंस्टीट्यूट रायपुर में भर्ती किया गया, जहॉं वह दिनांक 23-9-2010 से दिनांक 25-10-2010 तक भर्ती रहा। आवेदक ने रामकृष्ण अस्पताल रायपुर में भी ईलाज कराया है।

Monday 16 March 2015

छत्तीसगढ़ राज्य विरुध्द अभिजीत दास गुप्ता (धारा 302 भादस, 1860 )

 
 न्यायालय: सत्र न्यायाधीश, दुर्ग जिला दुर्ग (छत्तीसगढ़)
 (पीठासीन न्यायाधीशः नीलम चंद सांखला)

सत्र प्रकरण क्रमांक 07/2014.
संस्थापन दिनांक 08-01-2014.
छत्तीसगढ़ राज्य,
व्दारा- पुलिस थाना भिर्लाइ नगर,
जिला-दुर्ग (छत्तीसगढ़)                                               ......... अभियोजन

वि रु ध्द

अभिजीत दास गुप्ता आत्मज
परिमल दास गुप्ता, आयु लगभग
45 वर्ष, साकिन-सेक्टर-06,
सड़क नंबर 79, मकान नंबर
1-बी, भिर्लाइ नगर, जिला दुर्ग
(छत्तीसगढ़)                                                                  ........ अभियुक्त

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श्री आनंदप्रकाश दीक्षित, तत्कालीन न्या.मजि.प्र.श्रे., दुर्ग व्दारा आ.प्र.क्र. 487/2013 राज्य वि. अभिजीत दास गुप्ता, अपराध अंतर्गत धारा 302 भारतीय दण्ड संहिता को दिनांक 02/01/2014 को सत्र न्यायालय में उपार्पित किए जाने से उद्भूत सत्र प्रकरण.
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राज्य की ओर से श्री सुदर्शन महलवार, लोक अभियोजकअभियुक्त (अभिरक्षा में) की ओर से श्री शब्बीर अहमद, अधिवक्ता.
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नि र्ण य
(आज दिनांक 11 मार्च सन् 2015 को घोषित)
01. ऊपर नामित अभियुक्त के विरुध्द धारा 302 भारतीय दण्ड संहिता, 1860 के अधीन दण्डनीय अपराध का आरोप है ।
02. प्रकरण में सिर्फ यह अविवादित तथ्य है कि, प्रार्थिया सुनीता दास गुप्ता ने पुलिस के समक्ष प्रदर्श पी-05 की लिखित सूचना दी थी ।
03. संक्षिप्त में अभियोजन वृतान्त निम्नानुसार है:-
(I) प्रकरण की प्रार्थिया श्रीमती सुनीता दास गुप्ता ने थाना भिलाईनगर में उपस्थित होकर प्रथम सूचना प्रतिवेदन दर्ज करने हेतु प्रदर्श पी-05 का लिखित आवेदन दिनांकित 29-09-2013 दिया कि वह एक शिक्षिका है, जो अपने पति एवं बच्‍चे सहित अपनी मां श्रीमती अंजली पाल के निवास सेक्टर-06, सड़क नंबर 79, मकान नंबर 1-बी भिलाईनगर में रहती है । दिनांक 29-09-2013 को स्कूल के बच्चों को लेकर महराज रविशंकर प्रसाद जी के राजनांदगांव आगमन पर उनके प्रोग्राम पर गई थी, घर में उसकी मां अकेली थी कि लगभग 04.15 बजे शाम को पड़ोस के वर्षा ने फोन के माध्यम से इसे सूचना दिया कि आपकी मम्मी पलंग के नीचे गिरी पड़ी है खून काफी निकल कर बहा है और वह बात नहीं कर रही है । सूचना पाकर वह घटना स्थल पर आई और देखी कि इसकी मम्मी खून से लथपथ थी, पांव में रस्सी फंसा हुआ था, नीचे परदे का पाइप दबा था, चेहरा दीवान के नीचे होने से स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा था । श्रीमती अंजली पाल की मृत्यु हो चुकी थी । प्रार्थिया ने अपने आवेदन में यह भी लेख किया कि उसकी मम्मी की हत्या की गई है जिसके सिर के तरफ से खून फर्श पर बिखरा पड़ा था । उसकी मम्मी की हत्या इसके पति अभिजीत दास गुप्ता किया होगा, क्योंकि अभिजीत दास गुप्ता, इसे और इसकी मम्मी को मारता-पीटता रहता था एवं कहता था कि तुम लोगों को जिन्दा नहीं छोड़ूंगा जिसकी रिपोर्ट उसने थाना भिलाईनगर में की थी, जिस पर से इसके पति के विरुध्द कार्यवाही हुई थी और वह जेल भी गया था, इस कारण इससे और इसकी मां पर और अधिक गुस्सा रखता था ।
(II) इस रिपोर्ट के आधार पर एम.बी.पटेल, पुलिस निरीक्षक(अ.सा.नं.12) ने अभियुक्त के विरुध्द धारा 302 भारतीय दण्ड संहिता के अपराध का प्रथम सूचना प्रतिवेदन प्रदर्श पी-06 दर्ज किया और उसके उपरान्त प्रदर्श पी-07 का मर्ग सूचना दर्ज किया । जिला अस्पताल, दुर्ग की मरच्युरी में जाकर मृतका अंजली पाल के शव का पंचनामा करने बाबत् पंचों को प्रदर्श पी-08 की नोटिस दी और पंचों की उपस्थिति में प्रदर्श पी-09 का नक्शा पंचायतनामा तैयार किया । पंचों ने मृत्यु का सही कारण जानने के लिए शव का पोस्टमार्टम कराने की सलाह दी थी, इसलिए मृतका के शव को प्रदर्श पी-03 के शव परीक्षा आवेदन के साथ आरक्षक जितेन्द्र सिंह के माध्यम से शव परीक्षण हेतु जिला चिकित्सालय, दुर्ग भेजा और इस हेतु आरक्षक जितेन्द्र कुमार को प्रदर्श पी-17 का कर्तव्य प्रमाण-पत्र दिया गया । डॉक्टर विपिन जैन, चिकित्साधिकारी (असा.नं.01) ने शव का परीक्षण कर प्रदर्श पी-01 की रिपोर्ट दिया और बाद में प्रदर्श पी-02 की क्वेरी रिपोर्ट दिया । जितेन्द्र सिंग कुशवाहा, आरक्षक (अ.सा.नं.2) ने चिकित्सक व्दारा दिये गये सीलबंद पैकेट को जब्ती पत्र प्रदर्श पी-04 के व्दारा थाना प्रभारी, भिलाईनगर से जब्त कराया । 
(III) एम.बी.पटेल, पुलिस निरीक्षक (अ.सा.नं.12) ने साक्षी सुनीता की उपस्थिति में उसके बताये अनुसार घटना स्थल का नज़री नक्शा प्रदर्श  पी-10 तैयार किया और दिनांक 30-09-2013 को अभियुक्त को अपनी अभिरक्षा में लेकर साक्षियों की उपस्थिति में उससे पूछताछ कर उसका मेमोरेण्डम कथन प्रदर्श पी-12 दर्ज किया, जिसमें अभियुक्त ने घटना में प्रयुक्त डंडे को घटनास्थल के किचन में छुपाकर रखने तथा बरामद करा देने की बात बतायी थी । उक्त मेमोरेण्डम के आधार पर साक्षियों की उपस्थिति में घटनास्थल के किचन से अभियुक्त व्दारा निकलकर देने पर एक बेत का डंडा जब्ती पत्र प्रदर्श पी-13 के अनुसार जब्त किया । अभियुक्त अभिजीत दास गुप्ता घटना के समय जो मटमैला रंग का फुलपेंट पहना था उसे साक्षियों की उपस्थिति में जब्ती पत्र प्रदर्श पी-14 के व्दारा जब्त किया । घटनास्थल से खून लगे सीमेंट रेत वाली मिट्टी तथा सादी मिट्टी जब्ती पत्र प्रदर्श पी-15 के अनुसार जब्त किया। घटना के समय मृतका जिन कपड़ों को पहने हुई थी उन्हें जब्ती पत्र प्रदर्श पी-04 के अनुसार जब्त किया । अभियुक्त के विरुध्द आरोप प्रमाणित पाये जाने पर उसे गिरफ्तारी पंचनामा प्रदर्श पी-16 के व्दारा गिरफ्तार किया और उसके गिरफ्तारी की सूचना प्रदर्श  पी-16 ए उसके परिजन को दी। गिरफ्तारी के पश्चात् अभियुक्त को डॅाक्टरी मुलाहिजा हेतु जिला चिकित्सालय, दुर्ग भेजा गया, जहां डॅाक्टर आर.डी.शर्मा  ने उसका मुलाहिजा कर प्रदर्श पी-14-ए की रिपोर्ट दिया ।
(IV) भरतलाल साहू, उपनिरीक्षक (अ.सा.नं.9) ने प्रकरण में जब्त सादी मिट्टी, आरोपी के कपड़े, तथा मृतका के कपड़े इत्यादि सम्पत्ति को प्रदर्श पी-12 के आवेदन के साथ और अपराध में प्रयुक्त डंडा को प्रदर्श पी-13 ए के आवेदन के साथ मुख्य चिकित्सा अधिकारी, दुर्ग को परीक्षण हेतु प्रेषित किया और साक्षी गणेश तिवारी का बयान दर्ज किया । राजेश कुमार साहू, निरीक्षक पुलिस (अ.सा.नं.7) ने विवेचना के दौरान श्रीमती वर्षा गोस्वामी का कथन दर्ज किया था ।
(V) एम.बी.पटेल, पुलिस निरीक्षक (अ.सा.नं.12) ने विवेचना के दौरान साक्षी सुनीता दास, किरण कुमार साहू, राखल चन्द्रपाल, सुनील शर्मा के कथन उनके बताये अनुसार दर्ज किया । जब्तशुदा वस्तुओं को पुलिस अधीक्षक, दुर्ग के ज्ञापन प्रदर्श पी-18 के व्दारा रासायनिक परीक्षण हेतु राज्य न्यायालयिक विज्ञान प्रयोगशाला, रायपुर भिजवाया, जहां से प्रदर्श पी-19 की पावती प्राप्त हुई और बाद में प्रदर्श पी-20 की रिपोर्ट प्राप्त हुई। घटना स्थल का फोटोग्राफ प्रदर्श पी-21 और अभियुक्त के
विरुध्द पूर्व में किये गये प्रतिबंधात्मक कार्यवाही का इस्तगासा प्रदर्श पी-22 प्रकरण में संलग्न किया गया ।
(VI) पटवारी भीखमचन्द मेश्राम  (अ.सा.नं.8) से घटना स्थल का नक्शा प्रदर्श पी-11 तैयार करवाया गया और अनुसंधान पूर्ण  होने के उपरान्त अभियुक्त के विरुध्द भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 302 के तहत अभियोग-पत्र न्या.मजि.प्र.श्रे., दुर्ग के न्यायालय में पेश किया गया, जहां से प्रकरण सत्र न्यायालय द्वारा विचारण योग्य होने से सत्र न्यायालय को उपार्पित किया गया ।
04. अभियुक्त ने धारा 302 भारतीय दण्ड संहिता के अंतर्गत दंडनीय अपराध के आरोप को अस्वीकार कर विचारण का दावा किया । अभियोजन ने अपने पक्ष समर्थन में कुल 12 साक्षियों का परीक्षण कराया है। अभियोजन साक्षियों के परीक्षण के उपरान्त धारा 313 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत अभियुक्त का परीक्षण किया गया तथा उसे प्रतिरक्षा में प्रवेश कराया गया । प्रतिरक्षा में अभियुक्त व्दारा किसी बचाव साक्षी का परीक्षण नहीं कराया गया है ।
05. प्रकरण में अभिनिर्धारण हेतु निम्नलिखित विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं:-
(1) क्या श्रीमती अंजली पाल की हत्यात्मक मृत्यु हुई है ?
(2) क्या अभियुक्त अभिजीत दास गुप्ता ने साशय अथवा जानते हुए मृतका श्रीमती अंजली पाल को डंडा से मारकर उसकी मृत्यु कारित कर हत्या किया ?
विचारणीय प्रश्न क्रमांक-01:
06. सुनीता दास गुप्ता (अ.सा.नं.1) के अनुसार उसने अपनी मां अंजली पाल की हत्या अभियुक्त व्दारा कर दिए जाने की शंका जाहिर करते हुए उसकी मृत्यु की लिखित सूचना प्रदर्श पी-05 भिलाईनगर थाने में दी थी, जिसके आधार पर थाना भिलाईनगर में प्रदर्श पी-06 का प्रथम सूचना प्रतिवेदन दर्ज किया गया था और प्रदर्श पी-07 की मृत्यु की सूचना दर्ज की गई थी । उक्त साक्ष्य का समर्थ न करते हुए एम.बी.पटेल, पुलिस निरीक्षक (अ.सा.नं.12) ने कहा है कि उसने दिनांक 29-09-2013 को प्रार्थि या सुनीता दास गुप्ता की लिखित सूचना प्रदर्श  पी-05 पर से आरोपी अभिजीत दास गुप्ता के विरुध्द धारा 302 भारतीय दण्ड संहिता के अपराध का प्रथम सूचना रिपोर्ट प्रदर्श पी-06 दर्ज किया था और उसके उपरान्त श्रीमती अंजली पाल पत्नी जे.पी.पाल की आरोपी व्दारा हत्या किये जाने की मर्ग सूचना प्रदर्श पी-07 प्रार्थिया सुनीता दास के बताये अनुसार दर्ज की थी । फिर जिला अस्पताल, दुर्ग की मरच्युरी में जाकर मृतका अंजली पाल के शव का पंचनामा करने बाबत् पंचों को प्रदर्श  पी-08 की नोटिस दी और पंचों की उपस्थिति में प्रदर्श पी-09 का नक्शा पंचायतनामा तैयार किया । पंचों ने मृत्यु का सही कारण जानने के लिए शव का पोस्टमार्टम कराने की सलाह दी थी, इसलिए मृतका के शव को प्रदर्श पी-03 के शव परीक्षा आवेदन के साथ आरक्षक जितेन्द्र सिंह के माध्यम से शव परीक्षण हेतु जिला चिकित्सालय, दुर्ग भेजा और इस हेतु आरक्षक जितेन्द्र कुमार को प्रदर्श पी-17 का कर्तव्य प्रमाण-पत्र दिया था।
07. डॉक्टर विपिन जैन, चिकित्साधिकारी (अ.सा.नं.01) के अनुसार शासकीय जिला चिकित्सालय दुर्ग में दिनांक 01.10.2013 को सुबह 11 बजकर 40 मिनट पर थाना भिलाई नगर के आरक्षक जितेन्द्र सिंह, क्रमांक 134 के द्वारा मृतका अंजलि पाल धर्मपत्नी जे.जी. पाल, उम्र 65 वर्ष, जाति कायस्थ, निवासी-क्वार्टर नम्‍बर 79, स्ट्रीट नंबर 1बी, सेक्टर-6, भिर्लाइ  का शव परीक्षा आवेदन उनके समक्ष प्रस्तुत किया गया। उसी दिनांक 01.10.2013 को ही शव की पहचान कराने के पश्चात् दोपहर 01.00 बजे वह एवं उनके वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. अखिलेश यादव द्वारा संयुक्त रूप से पोस्टमार्टम प्रारम्भ किया गया ।
(I) शव का बाह्य परीक्षण करने पर उन्होंने पाया कि शव परीक्षण टेबल पर एक 65 वर्षीय प्रौढ महिला का शव मौजूद था । शव पर अकड़न मौजूद नहीं थी । नाखून पेल थे, चेहरे एवं खोपड़ी पर जमा हुआ खून मौजूद था । मृतका के कपड़े साड़ी, ब्लाउज एवं पेटीकोट पर खून मौजूद थे । कपड़ों को पृथक कर सुरक्षित किया गया । मृतका की दोनों ऑखें बंद थी  एवं मुॅह बंद था । पेट फूला हुआ था । दोनों पैर एवं जॉघ एवं बाह्य जननेन्द्री स्वस्थ थीं । अनेक इन्साइज्ड वूण्ड जिनकी संख्या छः थी, जिनमें से पॉच खोपड़ी पर मौजूद थे और एक माथे पर मौजूद था । परीक्षण में निम्नलिखित चोटें पाई गई:-
1. 02 ग 0.5 सें.मी. आकार का इन्साइज्ड वूण्ड माथे पर  मौजूद था।
2. 04 ग 14 सें.मी.  आकार का इन्साइज्ड वूण्ड बॉये पेराइटल  एरिया पर मौजूद था ।
3. 02 ग 0.5 सें.मी.  आकार का इन्साइज्ड वूण्ड खोपड़ी पर  बीचोंबीच मौजूद था ।
4. 02 ग 0.5 सें.मी. आकार का इन्साइज्ड वूण्ड दाहिने  पेराइटल बोन पर मौजूद था ।
5. 02 ग 0.5 सें.मी. आकार का इन्साइज्ड वूण्ड दाहिने  पेराइटल प्रामिनेन्स पर मौजूद था ।
6. 02 ग 0.5 सें.मी. आकार का इन्साइज्ड वूण्ड राइट  टेम्पोरल बोन पर मौजूद था ।
7. शव के पूरी दाहिनी भुजा एवं अग भुजा पर अनेक स्थानों पर नीले रंग का दाग (कन्ट्यूजन मार्क) मौजूद था ।
8. दाढ़ी पर 04 ग 02 सें.मी. आकार का कन्ट्यूजन मौजूद  था जिसका रंग लाल एवं भूरा था ।
9. बॉयी कलाई पर विकृति एवं एब्नार्मल मोबिलिटी मौजूद थी जो कि रेडियस एवं अल्ना बोन के टूटने की वजह से  हुई थी । छाती में दाहिनी ओर स्तन के नीचे  0.2 ग 06  सें.मी.  आकार का कन्ट्यू जन मार्क लाल-भूरे रंग का  मौजूद था ।
(II) शव का आंतरिक परीक्षण करने पर पाये कि, खोपड़ी की चमड़ी के अंदर के भाग में जमा हुआ खून मौजूद था । सिल्ली दाहिने टेम्पोरल एरिया पर फटी हुई थी एवं पेल थी। खोपड़ी के अंदर सबड्यूरल एवं इण्ट्राड्यू रल हीमेटोमा मौजूद था । ब्रेन पेल था । सारी पसलियॉ टूटी हुई थीं एवं टूटी हुई पसलियों के नुकीले हिस्से फेफड़े को भेद दिये थे । वक्षगुहा में जमा हुआ खून मौजूद था । फुफ्फुस, कंठ, श्वासनली एवं दोनों फेफड़े पेल थे । हृदय की झिल्ली पेल थी । हृदय के दाहिने ओर के चेम्बर में जमा खून मौजूद था तथा बॉया चेम्बर खाली था । वृहदवाहिका में जमा हुआ खून मौजूद था । पर्दा, ऑतों की झिल्ली पेल थीं । भोजन नली की म्यूकोसा भी पेल थी । भोजन की थैली में अधपचा भोजन एवं द्रव मौजूद था जिसका वजन करीब 400 से 600 मि.ली. था । छोटी ऑत में द्रव एवं गैस मौजूद थे । बड़ी ऑत के अंतिम सिरे में मल मौजूद था । यकृत, प्लीहा एवं गुर्दा सामान्य आकार के थे जिन्हें काटकर देखने पर पेल पाये गये थे । भीतरी एवं बाहरी जननेन्द्रियॉ सामान्य थी ।
(III) मृतका के राइट टेम्पोरल बोन, लेफ्ट रेडियस एवं अल्ना बोन फ्रेक्चर थी । रिपोर्ट में बतलाई गई सारी चोटें मृत्यु के पूर्व की थीं । मृतका के शरीर पर मौजूद खून से सने कपड़े, सफेद रंग की साड़ी, सफेद रंग का पेटीकोट एवं पीले कलर का ब्लाउज को सुरक्षित कर सीलपैक कर सबंधित आरक्षक को सौंप दिया था । 
(IV) उनके मतानुसार मृत्यु का कारण अत्यधिक रक्तस्राव से उत्पन्न शॉक था जो कि सिर एवं छाती के चोटों के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुआ था । शव परीक्षण एवं मृत्यु के बीच का अंतराल नहीं दिया जा सका क्योंकि शव को डीफ्रीजर में लम्बे समय तक फ्रीज किया गया था । उनकी शव परीक्षण रिपोर्ट प्रदर्श पी-1 है जिसके अ से अ भाग पर उनके तथा ब से ब भाग पर उनके सहयोगी चिकित्सक डॉ. अखिलेश यादव के हस्ताक्षर हैं जिसे वे पहचानते हैं। इन्होंने शव परीक्षण प्रतिवेदन में मृत्यु की प्रकृति के बारे में उल्लेख नहीं किया था। लोक अभियोजक द्वारा पूछे जाने पर साक्षी का कहना है कि मृत्यु की प्रकृति हत्यात्मक थी।
08. उपरोक्त साक्षियों के उपरोक्त बिन्दु पर दिये गये कथन में ऐसी कोई बात नहीं आई है, जिसके कारण उनके व्दारा उक्त बिन्दु पर दिये गये कथन पर अविश्वास किया जा सके । डॉक्टर विपिन जैन, चिकित्साधिकारी (अ.सा.नं.01) व्दारा मृतका की मृत्यु का कारण अत्यधिक रक्तस्राव से उत्पन्न शॉक होना बताया गया है, जो कि सिर एवं छाती के चोटों के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुआ था और मृत्यु की प्रकृति हत्यात्मक होना बताया है । जिस व्यक्ति का पोस्टमार्टम किया गया, वह मृतका अंजली पाल का शव था, इस बिन्दु पर कोई विवाद नहीं है। इससे अभियोजन की इस कहानी को बल मिलता है कि घटना दिनांक 29-09-2013 को मृतका की मृत्यु हुई और मृतका की मृत्यु का कारण अत्यधिक रक्तस्राव से उत्पन्न शॉक था, जो कि सिर एवं छाती के चोटों के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुआ था, या दूसरे शब्दों में ऐसा कहा जा सकता है कि घटना दिनांक को अंजली पाल का किसी व्यक्ति व्दारा वध करने के कारण मृत्यु हुई ।
विचारणीय प्रश्न क्रमांक-02:
09. अभियोजन की ओर से तर्क के दौरान कहा गया है कि उन्होंने उनका मामला साबित किया है । दूसरी ओर अभियुक्त के विव्दान अधिवक्ता ने लिखित तर्क पेश कर कहा है कि इस प्रकरण में प्रत्यक्षदर्शी साक्षी कोई नहीं है और जो परिस्थितिजन्य साक्ष्य अभियोजन ने पेश किये हैं, वह ग्राह्य किए जाने योग्य नहीं हैं, पूरा मामला शंका पर आधारित है, इसलिए अभियुक्त को दोषमुक्त किया जाना चाहिए ।
10. अभिलेख में जितने भी साक्षी उपलब्ध हैं, उसमें महत्वपूर्ण साक्षी अभियुक्त की पत्नी सुनीता दास गुप्ता (अ.सा.नं.3) ने उसके कथन में कही है कि घटना के समय के कुछ दिन पूर्व 16 जुलाई को उसने आरोपी के विरुध्द शिकायत की थी जिससे आरोपी उसके साथ मारपीट करता था, उसे जान से मारने की धमकी देता था । फिर उसने इस बात की थाने में रिपोर्ट लिखायी थी और उसके बाद वे लोग अलग रहने लगे थे । इस साक्षी ने उसके कथन में आगे कहा है कि अभियुक्त, उसकी मां (मृतका) के साथ भी मारपीट करता था । घटना दिनांक 29-09-2013 को वह, श्री श्री रविशंकर जी के कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए राजनांदगांव गई थी, तब करीब 04.30 बजे वर्षा  गोस्वामी (अ.सा.नं.4), जो उसकी पड़ोसन है, का फोन आया था कि उसकी मां अंजलि पाल पलंग से गिर गयी है और खून से लथपथ पड़ी है । वह आकर देखी तो उसकी मां गिरी पड़ी थी, सिर में चोट थी और किसी ने उसकी हत्या कर दी थी। यह साक्षी आगे कहती है कि अभियुक्त, उससे पैसे की मांग करता था, तंग करता था और अभियुक्त ने एक-दो बार उसकी मां के साथ भी मारपीट किया था । अभियुक्त ने उसकी मां की हत्या कर दी ऐसी उसे शंका थी, इसलिए उसने थाने में लिखित रिपोर्ट प्रदर्श पी-05 लिखायी थी, जिसके आधार पर थाने में प्रदर्श पी-06 की रिपोर्ट लेखबध्द की गई थी और सुनीता दास गुप्ता की मर्ग सूचना के आधार पर प्रदर्श पी-07 का मर्ग सूचना पंजीबध्द किया गया था ।
11. विवेचक एम.बी.पटेल (अ.सा.नं.12) ने उसके कथन में कहा है कि उसने दिनांक 29-09-2013 को प्रार्थिया सुनीता दास गुप्ता की लिखित सूचना प्रदर्श  पी-05 पर से आरोपी अभिजीत दास गुप्ता के विरुध्द धारा 302 भारतीय दण्ड संहिता का अपराध पंजीबध्द कर प्रथम सूचना प्रतिवेदन प्रदर्श पी-06 और मर्ग इंटीमेशन प्रदर्श पी-07 लेखबध्द किया था ।
12. प्रदर्श पी-05, 06 और 07 का अवलोकन किया गया और अभिलेख में जितने भी साक्ष्य हैं, उनका सूक्ष्मता से अध्ययन किया गया, जिससे यह पाया जाता है कि इस प्रकरण में किसी भी साक्षी ने यह नहीं कहा है कि उन्होंने अभियुक्त को घटना कारित करते देखा हो तथा सुनीता दास गुप्ता ने शंका के आधार पर रिपोर्ट लिखाना व्यक्त की है। ऐसी दशा में अब इस प्रकरण में जो परिस्थितिजन्य साक्ष्य है, उस पर विस्तृत रुप से विवेचन करेंगे ।
13. पारिस्थितिक साक्ष्य के संबंध में न्याय दृष्टान्त (सुजय सेन विरुध्द वेस्ट बंगाल राज्य), 2007 (2) एम.पी.वीकली नोट्स (89) सु.को. तथा (मुल्कराज एवं अन्य विरुध्द हरियाणा राज्य), ए.आईआर. 1996 सु.को. 2868 तथा (मध्यप्रदेश राज्य विरुध्द संजय राय), 2005 (1) जे.एल.जे. 411 (सु.को.) तथा (श्रीमती रत्तानी विरुध्द हिमाचल प्रदेश राज्य), 1993 (2) एम. पी. वीकली नोट्स (109) सु.को. के न्यायिक निर्णय अवलोकनीय हैं । पारिस्थितिक साक्ष्य के संबंध में उपरोक्त उल्लिखित न्याय दृष्टान्त के न्यायिक निर्ण यों में यह अभिनिश्चय लिया गया है कि, पारिस्थितिक साक्ष्य पर आधारित प्रकरण में अभियोजन को जिन परिस्थितियों की ऋंखला, जिनके आधार पर आरोपी को आरोपित अपराध की संलिप्तता में अनिवार्यतः सम्बध्द करती हों, को सिध्द किया जाना आवश्यक है और यह निश्चयात्मक होना चाहिए।  ऋंखलापूर्ण और अभियुक्त की दोषिता की प्रकल्पना से भिन्न किसी प्रकल्पना के स्पष्टीकरण के अयोग्य होना चाहिए ।
14. परिस्थितियों की एक कड़ी में यदि अभियुक्त की पत्नी सुनीता दास गुप्ता (अ.सा.नं.3) के कथन पर गौर किया जाए तो अभियुक्त और उसके बीच विवाद था, अभियुक्त उसकी मां के साथ मारपीट करता था, इसलिए अभियुक्त का उसकी मां को मारने का एक हेतुक था ।
15. अब परिस्थितियों की एक अन्य कड़ी, कि क्या अभियुक्त को मृतका के घर उसकी मृत्यु के पूर्व आखिरी बार जाते हुए देखा गया ? 
इस बिन्दु पर अभियोजन ने जो साक्ष्य पेश किया है, उस पर विवेचन करेगे ।
16. वर्षा गोस्वामी (अ.सा.नं.4) ने उसके कथन में कहा है कि वह घटना दिनांक को मृतका की पुत्री के कहने पर चूंकि मृतका घर में अकेली थी, दोपहर को 02 बजकर 10 मिनट पर मृतका को खाना देकर आई थी । उस वक्त मृतका स्वस्थ थी । बाद में साढे चार बजे जब वह चाय लेकर गई उस वक्त अंजलि पाल पलंग पर नहीं थी जमीन पर लेटी थी और खून से लथपथ थी, जिसे देखकर वह घबरा गई थी, फिर वह बाहर आ गई और पड़ोस के लोगों को घटना के बारे  में बतायी थी और सुनीता को फोन की थी । 
17. गणेश प्रसाद तिवारी (अ.सा.नं.6), जिसे अभियोजन ने पक्षविद्रोही साक्षी घोषित कर विस्तारपूर्वक प्रश्न किये हैं, ने उसके कथन की कंडिका-04 और 05 में कहा है कि वह घटना दिनांक को उसके घर के पास दुकान में बैठा था, तब दोपहर लगभग 03 बजे अभियुक्त अभिजीत दास, अंजलि पाल जिस मकान में मरी थी उस मकान में गया था । यह साक्षी फिर मुख्य परीक्षण की कंडिका-04 में यह कहा है कि उसने पुलिस को कोई बयान नहीं दिया था और पुलिस वाले उसका बयान लिख लिये थे। फिर यही साक्षी कंडिका-06 में यह कहता है कि अभिजीत दास के अलावा मृतका के घर में कौन-का ैन गये थे, उसे नहीं मालूम और वह नहीं बता सकता कि अभियुक्त के अलावा भी अन्य कोई व्यक्ति गया था या नहीं । फिर यह साक्षी प्रतिपरीक्षण में अपने पूर्व में दिये गये कथन को बदलते हुए यह कहा है कि ‘‘ यह बात सही है कि उसने अभियुक्त को अंजलि पाल के घर जाते हुए नहीं देखा ‘‘ । इस साक्षी के पूरे  कथन को पढ़ने से ऐसा पता चलता है कि यह साक्षी बदल-बदल कर कथन किया है, पुलिस को कथन नहीं देना व्यक्त किया है और इस साक्षी के उक्त कथन का किसी भी साक्षी ने उक्त बिन्दु पर समर्थन नहीं किया है । इसलिए इस साक्षी का यह कथन कि वह अभियुक्त को घटना दिनांक को 03 बजे मृतका के घर जाते हुए देखा था, कतई विश्वसनीय नहीं माना जा सकता ।
18. अब परिस्थिति की एक अन्य कड़ी में अभियुक्त के मेमोरेण्डम बयान के आधार पर चाकू की जब्ती के संबंध में जो साक्ष्य उपलब्ध है, उस पर विवेचन करेंगे ।
19. विवेचक एम.बी.पटेल (अ.सा.नं.12) ने उसके कथन में कहा है कि उसने दिनांक 30-09-2013 को आरोपी अभिजीत दास गुप्ता को अपनी अभिरक्षा में लेकर साक्षियों की उपस्थिति में उससे पूछताछ कर उसका म ेमोर ेण्डम कथन प्रदर्श पी-12 लेखबध्द किया था तब उसने घटना में प्रयुक्त डंडे को घटनास्थल के किचन में छुपाकर रखने तथा बरामद करा देने की बात बतायी थी । फिर अभियुक्त की निशानदेही पर साक्षियों के समक्ष एक बेत का डंडा जब्तीपत्र प्रदर्श पी-13 के अनुसार जब्त किया था । इस साक्षी के उक्त कथन का मुख्य रुप से समर्थन मेमोर ेण्डम और जब्ती के साक्षी किरण कुमार साहू (अ.सा.नं.5) ने किया है और पैरा 06 में कहा है कि अभियुक्त से पुलिस वालों ने पूछताछ की थी तब अभियुक्त की निशानदेही पर डंडा बरामद किया गया था ।
20. विवेचक के अनुसार उसने उक्त डंडे को डॅाक्टर के पास क्वेरी के लिए भेजा था, तब डॅाक्टर ने डंडे में जो रक्त जैसे धब्बे थे उसकी जांच हेतु रासायनिक परीक्षण की सलाह दी थी । इस आधार पर डंडे को रासायनिक परीक्षण हेतु भेजा गया था । रासायनिक परीक्षण प्रतिवेदन प्रदर्श  पी-20 में डंडा जिस पर आर्टिकल ‘‘ डी ‘‘ मार्क किया गया है, उसमें मानव रक्त नहीं पाये गये तथा अभियोजन की जैसी कहानी है उसके अनुसार डॅाक्टर विपिन जैन (अ.सा.नं.1) के कथन के अनुसार मृतका को जो चोर्टें आइ  थीं उसमें से चोट क्रमांक 01 से 06 इन्साइज्ड वूण्ड थे, जो सिर पर पेराइटल बोन पर, खोपड़ी पर तथा शरीर के महत्वपूर्ण भाग पर पाये गये थे और इसके अलावा शव के पूरी दाहिनी भुजा एवं अग्र भुजा पर अनेकों स्थान पर कन्ट्यूजन मार्क था और दाढ ़ी पर भी कन्ट्यूजन मार्क  था । इस आधार पर डॅाक्टर ने मृतका को आई चोटें किसी कड़े, भोथरे  एवं धारदार वस्तु से आना बताया था और इस साक्षी ने प्रतिपरीक्षण की कंडिका-15 में यह स्पष्ट रुप से कहा है कि सिर पर आई चोट क्रमांक 01 से 06 किसी धारदार वस्तु से पहुंचाई गई थी और यह साक्षी मुख्य परीक्षण की कंडिका-14 में यह कहता है कि मृतक का शव परीक्षण उसने किया था, मृतका को परीक्षण हेतु भेजे गये डंडे से सिर में आई चोट नहीं आ सकती थी । ऐसी दशा में यदि तर्क के लिए यह मान भी लिया जाए कि अभियुक्त की निशानदेही पर डंडा की जब्ती हुई थी तो उस डंडे में ऐसा मानव रक्त या ब्लड गु्रप नहीं पाया गया है, जो मृतक के ब्लड गु्रप से मेल खाता हो और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सिर पर्र आइ  चोट के कारण ही मृतका की मृत्यु हुई और डॉक्टर ने सिर पर आई चोट को इन्साइज्ड वूण्ड अर्थात् धारदार हथियार से आना बताया है, तथा डंडा एक धारदार हथियार नहीं है और अभियोजन ने धारदार हथियार अभियुक्त की निशानदेही पर न तो जब्त किया है और न ही यह बताया है कि किस धारदार हथियार से मृतका को चोट पहुंचाई गई थी और उक्त धारदार हथियार को अभियुक्त ने किसी अन्य तरीके से नष्ट कर दिया। ऐसी दशा में अभियोजन की जो एक महत्वपूर्ण  कड़ी है कि डंडे से आई चोट से मृतका की मृत्यु हुई, इस कड़ी को साबित करने में अभियोजन पूरी तरह से असफल रहा है । इस संबंध में न्याय दृष्टान्त अमर लाल बनाम मध्यप्रदेश राज्य, 2007 (1) ए एन जे (एम.पी.) 274, दुकालू एवं अन्य बनाम मध्यप्रदेश राज्य (अब छत्तीसगढ़), 2012 (2) सी.जी.एल.जे. 615 (डी.बी.) और चमार सिंह एवं अन्य बनाम छत्तीसगढ़ राज्य, 2012 (1) सी.जी.एल.जे. 126 (डी.बी.) अवलोकनीय हैं ।
21. परिस्थिति की एक अन्य कड़ी में अभियोजन ने अभियुक्त के कपड़े पर जो रक्त पाये गये हैं, उसके संबंध में जो साक्ष्य पेश किया है, उस पर विवेचन कर ेंगे । विवेचक एम.बी.पटेल (अ.सा.नं.12) ने उसके कथन के पैरा 09 में कहा है कि उसने अभिजीत दास गुप्ता से घटना के समय पहने एक मटमैला रंग का फुलपेंट साक्षियों की उपस्थिति में जब्ती पत्र प्रदर्श पी-14 के अनुसार जब्त किया था और उक्त कपड़े को डॅाक्टर की सलाह पर रासायनिक परीक्षण हेतु भेजा गया था । रासायनिक परीक्षण प्रतिवेदन प्रदर्श  पी-20 में आरोपी के फुलपेंट आर्टिकल ‘‘ सी ‘‘ पर रक्त पाया गया है, किन्तु रक्त का गु्रप क्या था, यह अभियोजन ने साबित नहीं किया है और न ही यह साबित किया है कि कपड़े में जो रक्त गु्रप था वह मृतका के रक्त गु्रप से मेल खाता था । इसलिए मात्र कपड़े पर रक्त पाये जाने के आधार पर ही अभियुक्त को दोषी करार नहीं दिया जा सकता ।
22. पूर्व में की गई विस्तृत विवेचन से अभियोजन ने यह तो साबित किया है कि श्रीमती अंजली पाल की हत्यात्मक मृत्यु हुई थी, किन्तु इस प्रकरण में अभियुक्त के विरुध्द ऐसा कोई भी प्रत्यक्ष या परिस्थितिजन्य साक्ष्य नहीं है, जिससे यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि अभियुक्त ने ही साशय अथवा जानते हुए मृतका श्रीमती अंजली पाल को डंडा से मारकर उसकी मृत्यु कारित कर हत्या किया ।
23. फलस्वरुप अभियोजन, अभियुक्त के विरुध्द भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 302 के अपराध के आरोप को प्रमाणित करने में पूर्ण तः असफल रहा है, अतः अभियुक्त को भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 302 के अपराध के आरोप से संदेह का लाभ देकर दोषमुक्त किया जाता है ।
24. अभियुक्त अभिरक्षा में है । यदि अन्य किसी प्रकरण में उसकी आवश्यकता न हो तो उसे इस प्रकरण में तत्काल रिहा किए जाने की टीप उसके जेल वारंट में अंकित की जावे ।
25. अभियुक्त व्दारा अभिरक्षा में बितायी गई अवधि का गणना-पत्रक तैयार कर प्रकरण में संलग्न किया जावे ।
26. प्रकरण में जब्तशुदा सम्पत्तियां- खून आलूदा मिट्टी (सीमेंट रेत), सादी मिट्टी (सीमेंट रेत), मटमैला रंग का एक फुलपेंट, एक बेत का डंडा, एक सफेद रंग की साड़ी, पीला रंग का ब्लाऊज, सफेद रंग का पेटीकोट मूल्यहीन होने से, अपील न होने की दशा में अपील अवधि बाद नष्ट कर दी जॉंए । अपील होने पर माननीय अपीलीय न्यायालय के आदेशानुसार उनका निराकरण किया जा सकेगा । 
27. इस प्रकरण में दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 357-क (3) एवं छत्तीसगढ़ शासन व्दारा जो ‘‘ पीड़ित क्षतिपूर्ति योजना-2011 ‘‘ लागू किया गया है, वह छत्तीसगढ़ राजपत्र असाधारण दिनांक 03 अगस्त 2011 में प्रकाशित हुआ है, के प्रावधान के तहत पीड़ित व्यक्ति को क्षतिपूर्ति दिलाया जाना है, किन्तु इस प्रकरण के तथ्य एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए किसी व्यक्ति को किसी प्रकार की कोई क्षतिपूर्ति नहीं दिलाई जा रही है ।
28. निर्णय की एक-एक सत्य प्रतिलिपि जिला दण्डाधिकारी, दुर्ग और लोक अभियोजक, दुर्ग को सूचनार्थ प्रदान की जावे ।
दुर्ग, दिनांक 11-03-2015.
सही/-
(नीलम चंद सांखला)
सत्र न्यायाधीश, दुर्ग
 (छत्तीसगढ)

न्यायालयः सत्र न्यायाधीश, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

 (पीठासीन न्यायाधीश: नीलम चंद सांखला )
 सत्र प्रकरण क्रमांक 07/2014.
छत्तीसगढ़ राज्य बनाम अभिजीत दास गुप्ता.
 अभिरक्षा अवधि का गणना-पत्रक

01. अभियुक्त का नाम: अभिजीत दास गुप्ता
02. पिता का नाम: परिमल दास गुप्ता,
03. जाति: ......
04. उम्र: लगभग 45 वर्ष
05. पता: साकिन-सेक्टर-06, सड़क  नंबर 79, मकान नम्‍बर 1-बी,  भिलाईनगर, जिला दुर्ग  (छत्तीसगढ )
06. अभियुक्त की गिरफ्तारी दिनांक 30-09-2013 की शाम का दिनांक 17.45 बजे
07. पुलिस अभिरक्षा की अवधि: दिनांक 30-09-2013 की शाम 17.45 बजे पुलिस व्दारा गिरफ्तार करने से लेकर दिनांक 01-10-2013 को न्यायालय में न्यायिक रिमाण्ड हेतु पेश करने तक, 01 दिन
08. न्यायिक अभिरक्षा की अवधि: दिनांक 01-10-2013 से दिनांक 11-03-2015 तक, 526 दिन ( 01 वर्ष, 05
माह, 10 दिन)
09. कुल अभिरक्षा अवधि: 01$ 526 दिन त्र 527 दिन ( 01 वर्ष, 05 माह, 11 दिन)
स्थानः दुर्ग (छ.ग.) दिनांक 11-03-2015.
सही/-
(नीलम चंद सांखला)
 सत्र न्यायाधीश, दुर्ग
 (छत्तीसगढ)
न्‍याय निर्णय ई कोर्ट्स से प्राप्‍त 

छत्तीसगढ़ राज्य विरूद्व मनोज कुमार (धारा 376, एवं 506 भाग-दो)

 
अभियोजन-कथा संक्षेप में इस प्रकार है - कि-पीडिता/अभियोक्त्रिी अ.सा.क्र.-1 के द्वारा प्र0पी 1 के अनुसार दिनांक 18/03/2014 को आरोपी के विरूद्ध इस आशय की रिपोर्ट दर्ज करवाई गई कि दिनांक 26/03/2014 के शाम करीब 5 बजे जब अभियोक्त्री शोैच से अकेले घर वापस आ रही थी एवं उसके काका ससुर कल्याण के खेत के पास आई उसी समय आरोपी पीछे से आया एवं उसे जमीन पर पटक दिया तथा जबर्दस्ती उसके साथ बलात्कार किया। बहुत चिल्लाने व छुडाने का प्रयास करने भी मौके पर कोई नहीं आया। घटना के दौरान आरोपी के द्वारा इस आशय की धमकी दी गई कि घटना की जानकारी किसी को देने पर वह अभियोक्त्री के बच्चे व अभियोक्त्री को जान से मार डालेगा। पश्चात में अभियोक्त्री अपनी सास धर्मिन बाई अ0सा0 3 तथा अपने पति सत्यवीर खुटियारे अ0सा0 2 को घटना की जानकारी दी एवं प्र0पी 1 के अनुसार रिपोर्ट दर्ज कराई।

Saturday 14 March 2015

महादेव महार वर्सेस तपन सरकार

 
समाचारों के अनुसार 11 फरवरी 2005 की सुबह महादेव महार पिता भादु महार 36 वर्ष जिम जाने के लिए घर से निकला था। इस दौरान वह सुबह 6:28 बजे सुभाष चौक सुपेला में अपने साथी धनजी के घर पहुंचा। धनजी ट्रेकसूट पहनने के लिए घर के भीतर घूस गया। इस बीच गैंगस्टर तपन सरकार सहित डेढ़ दर्जन लोगों ने उसे घेर लिया और गोली, चाकू, खुखरी व दांव से उस पर ताबड़ तोड़ वारकर उसकी हत्या कर दी।आरोपियों ने महादेव को पांच गोली मारने के अलावा उसके सिर, शरीर के अन्य भागों में धारदार हथियार से भी कई बार किए थे।वारदात को अंजाम देने आरोपी चार मोटर सायकल व एक मिनीडोर में वहां पहुंचे थे।खून की होली खेलने के बाद आरोपी वहां से भाग खड़े हुए। विवेचना में यह बात सामने आई थी कि आरोपियों ने 10-11 फरवरी 2005 की दरम्यिानी रात टेलीफोन पर बातचीत कर घटना का षडयंत्र रचा था।इसके बाद चंद्रा-मौर्या टाकीज सामने वाली गली में एकत्रित होकर हथियार बांटे थे।
 महादेव महार हत्याकांड दुर्ग-भिलाई में चल रहे गैंगवार की एक परिणति थी। घटना के ट्विनसिटी में कई दिनों तक सनसनी फैली रही। वहीं महीनों तक इस घटना की चर्चा यहां होती रही। प्रकरण में आरोपी बनाए गए अनिल शुक्ला उसी दिन पुलिस के हत्थे चढ़ गया था। वहीं अन्य आरोपी एक के बाद एक गिरफ्तार होते रहे और जमानत पर रिहा भी होते रहे। लेकिन कई आरोपी ऐसे भी है जो गिरफ्तार होने के बाद बाहरी दुनिया की तस्वीर तक नहीं देख पाए। वारदात के बाद कई आरोपी महीनों तक फरार रहे। इनमें कुछबिलासपुर, कोरबा व जबलपुर में पनाह लिए हुए थे।कुछ गोवा व केरल तक भी घूम आये। यह मामला पुलिस के लिए भी एक बड़ी चुनौती थी और इसे सुलझाने पुलिस ने भी अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी।
 महादेव हत्याकांड में पुलिस ने कुल 37 लोगों को आरोपी बनाया था। इनमें 18 पर हत्या का आरोप था।इन आरोपियों में एक की मौत हो चुकी है।तीन फरार है।13 को आज सजा हुई है। शेषदोषमुक्त करार दिए गए है।प्रकरण में अभियोजन ने कुल 82 साक्षियों की सूची न्यायालय में पेश किया था।इनमें 77 गवाहों के बयान 400 पृष्ठ में दर्ज किए गए।पुलिस ने प्रकरण के संबंध में 256 दस्तावेजी साक्ष्य जुटाएं थे।विचारण के दौरान अभियोजन पक्ष की ओर से आरोपियों से कुल 747 प्रश्न पुछे गए।जिस पर बचाव पक्ष की ओर से 144 तर्क प्रस्तुत किए गए। प्रकरण में अभियोजन साक्षी तारकेश्वर व चंदन साव ने मुख्य परीक्षण में अभियोजन का सर्मथन किया था। लेकिन प्रतिपरीक्षण में दोनों पक्ष द्रोही हो गए थे। पुलिस द्वारा प्रस्तुत बेलेस्टिक रिपोर्ट में मृतक के शरीर में लगी गोली व आरोपियों से बरामद पिस्तोल के बारूद में समानता होने की पुष्टि हुई। यही प्रकरण में सजा का आधार भी बना। न्यायालय ने अपना फैसला कुल 211 पृष्ठों में सुनाया। यह है न्यायालयीन मजबुन
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गैंगस्टर महादेव महार हत्याकांड फैसला (क्र. 1 से 10)

 
1- आरोपीगण बच्चा उर्फ जायद, प्रभाष सिंह, विनोद बिहारी, सत्येन माधवन, मंगल सिंह, तपन सरकार, पिताम्बर साहू, रंजीत सिंह, शैलेन्द्र सिंह ठाकुर, बिज्जू उर्फ महेश, छोटू उर्फ कृष्णा राजपूत, बॉबी उर्फ विद्युत चौधरी, जयदीप सिंह, गुल्लू उर्फ अरविंद श्रीवास्तव, अनिल शुक्ला, राजू खंजर, मुजीबुद्दीन पर भा0दं0सं0 की धारा 120 बी, 148, 302/149, 307/149 एवं 3 (2) (5) अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 एवं आरोपी सत्येन माधवन, मंगलसिंह, तपन सरकार, रंजीत सिंह, शैलेन्द्र सिंह ठाकुर, प्रभाष सिंह एवं बॉबी उर्फ विद्युत चौधरी पर आयुध अधिनियम की धारा 25-27 के तहत यह आरोप है कि उन्होंने दिनांक 11/2/2005 को उक्तानुसार पांच या पांच से अधिक व्यक्तियों का अवैध जमाव इस उद्देश्य से गठित किया कि मृतक महादेव महार की हत्या करें, एवं उक्त उद्देश्य को अग्रसर करते हुये उक्त सभी आरोपियों ने घातक आयुध माउजर, कट्टा, पिस्टल, तलवार, नारियल काटने का दांव और डण्डे से प्रातः 6.35 बजे उसकी हत्या कारित की। शेष आरोपीगण पर भा0दं0सं0 की धारा 212, 216 के तहत यह आरोप है कि उन्होंने महादेव की हत्या के उपरान्त उक्त आरोपियों को बचाने के लिये उनकी सहायता की।
2- इस प्रकरण में विवादित नही है कि प्रकरण के लम्बन के दौरान आरोपी गोविन्द विश्वकर्मा की मृत्यु हो गयी, एवं शेष आरोपी शहजाद, पी0 प्रीतिश एवं गया उड़िया उर्फ जयचंद प्रधान अभी भी फरार है। इस प्रकरण में कुल 82 साक्षियों का साक्ष्य कुल 400 पृष्ठों में प्रस्तुत किया गया है, कुल 256 दस्तावेज में प्रदर्श अंकित हुआ है, इसी प्रकार आरोपीगण से दं0प्र0सं0 की धारा 313 के तहत 747 प्रश्न पुछे गये हैं। जबकि उभयपक्ष की ओर से कुल 144 पेज का लिखित तर्क प्रस्तुत किये गये हैं।
3- संक्षेप में अभियोजन का मामला इस प्रकार है कि- 
(i) घटना दिनांक 11/2/2005 को प्रातः मृतक महादेव महार सुभाष चौक स्थित अपने निवास से सुभाष चौक आया था और अपने साथियों से बातचीत करते हुये खड़ा था। उस समय अ0सा07 चंदन साव, अ0सा08 प्रशांत उर्फ गुड्डा व अ0सा09 गिरवर साहू वही पर खड़े थे एवं मृत साक्षी संतोष के पिता अ0सा01 तारकेश्वर सिंह से बातचीत कर रहे थे। उसी समय मिनीडोर क्रमांक सी.जी.07 टी-0736 एवं दो बिना नम्बर की बाइक में आरोपीगण आये एवं उन्होंने मृतक महादेव को गाली देते हुये मारने के लिये दौड़े। तब मृत आरोपी गोविन्द विश्वकर्मा ने आरोपी महादेव के सिर में खुखरी से मारा, जिससे महादेव गिर गया। उसी समय आरोपी तपन, मंगल, प्रभाष, सत्येन माधवन ने अपने-अपने कट्टे व पिस्टल से आरोपी के उपर फायर किये, जिससे मृतक महादेव के सिर में चोट आयी। उस समय आरोपीगण ने कड़े भोथरे और धारदार हथियार से मृतक महादेव के साथ मारपीट की। उक्त मारपीट से महादेव के शरीर में कुल 21 चोटें आयी। उसके बाद आरोपीगण अपने-अपने वाहनों से भाग गये, जो चार माह से दो साल तक फरार रहे। विवेचना में यह पाया गया कि आरोपीगण एवं मृतक एवं उसके साथियों के मध्य आपराधिक गतिविधि एवं शराब के व्यावसायिक ठेके को लेकर आपसी प्रतिस्पर्धा थी, जिससे परिणति मृतक महादेव की हत्या से हुई।
(ii) उक्त घटना के तुरन्त बाद अ0सा08 प्रशांत उर्फ गुड्डा उर्फ संतोष शर्मा नामक व्यक्ति ने घटना दिनांक 11/2/2005 की सूचना टेलीफोन से थाना सुपेला में यह कहकर दी कि महादेव महार की हत्या आरोपी तपन एवं उसके साथियों ने कर दी गयी है, जिसे थाना सुपेला के प्रधान आरक्षक अ0सा060 सुभाष सिंह मण्डावी ने रोजनामचा सान्हा क्रमांक 874 में तत्काल दर्ज किया, जिसकी मूल सान्हा प्रदर्श पी 128 है, जिसकी छाया प्रति प्रदर्श पी 128 सी है। सान्हा दर्ज करते ही थाना सुपेला में पदस्थ नाईट आफिसर तात्कालीन उपनिरीक्षक अ0सा069 अनिता सागर घटनास्थल सुभाष चौक गयी। अ0सा069 अनिता सागर ने तत्काल घटनास्थल पर पहुंचकर सूचनाकर्ता प्रशान्त उर्फ गुड्डा उर्फ संतोष शर्मा की सूचना के आधार पर मर्ग सूचना प्रदर्श पी 138 दर्ज की। उन्होंने प्रार्थी प्रशांत उर्फ गुड्डा उर्फ संतोष शर्मा के बताये अनुसार घटनास्थल पर ही प्रातः 7.05 बजे आरोपी तपन सरकार, मंगल सिंह, सत्येन माधवन, जयदीप, प्रभाषसिंह, गोविन्द विश्वकर्मा, बच्चा, अनिल शुक्ला, राजू खंजर, गुल्लू उर्फ अरविंद श्रीवास्तव, बॉबी उर्फ विद्युत चौधरी एवं अन्य लोग एवं विनोद बिहारी के विरूद्ध शून्य पर नालिशी दर्ज की है, जो प्रदर्श पी 15 है। अ0सा069 अनिता सागर को सूचनाकर्ता प्रशांत उर्फ गुड्डा उर्फ संतोष शर्मा ने शून्य की नालिशी में यह भी बताया कि घटनास्थल पर अभियोजन साक्षी गिरवर, चंदन, लिंगा राजू आदि भी उपस्थित थे। शून्य की नालिशी को आरक्षक परमजीत सिंह क्रमांक 498 ने देहाती नालिशी थाना सुपेला में लाकर प्रस्तुत किया जिसे थाना सुपेला के सहायक उपनिरीक्षक अ0सा066 जे0पी0चन्द्राकर ने अपराध क्रमांक 141/05 में प्रथम सूचना पत्र दर्ज किया जो प्रदर्श पी 76 है। उन्होंने आरक्षक परमजीत सिंह द्वारा प्रस्तुत करने पर शून्य पर दर्ज मर्ग इन्टीमेशन के आधार पर असल मर्ग क्रमांक 09/2005 दर्ज किया जो प्रदर्श पी 139 है। इसी दौरान घटनास्थल पर थाना प्रभारी सुपेला अ0सा077 राकेश भट्ठ आये।
(iii) अ0सा077 राकेश भट्ठ ने गवाहों को प्रदर्श पी 1 की सूचना देकर मृतक महादेव महार के शव का पंचनामा किया। पंचनामा की कार्यवाही प्रदर्श पी 2 है। उन्होंने पोस्टमार्टम फार्म प्रदर्श पी 35 भरकर मृतक महादेव महार के शव को पोस्टमार्टम के लिये जिला अस्पताल दुर्ग प्रेषित करवाया, जिसे प्रधान आरक्षक अ0सा015 होलसिंह भुवाल जिला अस्पताल लेकर गये। तब महादेव महार के शव का परीक्षण जिला चिकित्सालय दुर्ग के मेडिकल आफिसर अ0सा010 डॉ0 जे0पी0मेश्राम ने किया। अ0सा010 डॉ0 जे0पी0मेश्राम ने मृतक महादेव महार के शरीर में कुल 21 घाव पाये। उन्होंने मृतक के शरीर में पाये गये कपड़ों का भी परीक्षण किया और उसके पश्चात अ0सा010 जे0पी0मेश्राम ने मृतक की मृत्यु शॉक और हेमरेज के कारण होना बताया और यह भी पाया कि सभी चोटें एन्टीमार्टम थी, जिसके संबंध में उनकी रिपोर्ट प्रदर्श पी 34 है। उन्होंने अपने सहयोगी चिकित्सक डॉ0 एम.सी. महनोत के साथ मृतक के शव का परीक्षण किया था। अ0सा010 जे0पी0मेश्राम ने मृतक के टी.शर्ट में एक बुलेट भी पायी। उन्होंने मृतक के कपड़ों का परीक्षण किया। उन्होंने मृतक के कपड़ों को सील पैक करके रासायनिक परीक्षण हेतु अ0सा015 आरक्षक होलसिंह के सुपुर्द किया। उन्होंने मृतक के विसरा को संग्रहित कर उसे भी आरक्षक होलसिंह के सुपुर्द किया।
(iv) अ0सा015 होल सिंह ने अ0सा010 जे0पी0मेश्राम द्वारा दिये गये पोस्टमार्टम रिपोर्ट, मृतक के कपड़े व मृतक के विसरा को थाने में लाकर प्रस्तुत किया, जिसे तात्कालीन नगर पुलिस अधीक्षक अ0सा076 आर0के0राय ने गवाह आनंद पनिका एवं शिव के समक्ष जप्त किया, जिसकी जप्ती पत्रक प्रदर्श पी 9 है। अ0सा077 राकेश भट्ठ ने घटनास्थल पर पहुंचकर दिनांक 11/2/2005 को ही संतोष शर्मा उर्फ प्रशांत उर्फ गुड्डा की निशानदेही पर घटनास्थल का नजरी नक्शा तैयार किया, जो प्रदर्श पी 225 है। उन्होंने दिनांक 11/2/2005 को ही खुन आलुदा मिट्टी और सादी मिट्टी प्रदर्श पी 5 के अनुसार जप्त की। तत्कालीन नगर पुलिस अधीक्षक अ0सा076 आर.के.राय ने मृतक के भाई सदवन महार के प्रस्तुत करने पर मृतक का जाति प्रमाण पत्र जप्त किया।
(v) प्रकरण की शेष विवेचना अ0सा076 आर.के.राय एवं अ0सा077 राकेश भट्ठ द्वारा की गयी है। अ0सा076 आर.के.राय ने प्रदर्श पी 58 के जप्ती पत्रक के अनुसार प्रेमचंद श्रीवास्तव नामक व्यक्ति से एक मोबाइल फोन की जप्ती किये। उन्होंने आरोपी नरेन्द्र कुमार दुबे, आरोपी बिहारी उर्फ विनोद बिहारी सिंह, आरोपी शैलेन्द्र ठाकुर, राजू खंजर, आरोपी मजीबुद्दीन, आरोपी प्रभाष कुमार सिंह, आरोपी तपन सरकार, आरोपी पंकज सिंह, आरोपी एस.सैथिल्य, आरोपी चुम्मन लाल देशमुख, आरोपी सुशील कुमार राठी, आरोपी विद्युत चौधरी, आरोपी मंगल सिंह, आरोपी बिज्जू उर्फ महेश, आरोपी बच्चा उर्फ अब्दुल जायद, आरोपी संजय सिंह राजपूत का बयान मेमोरेण्डम धारा 27 साक्ष्य अधिनियम लेखबद्ध किया और उक्त बयान मेमोरेण्डम के आधार पर उक्त आरोपीगण द्वारा बताये गये स्थान से मोबाइल फोन, सिम, क्वालिस गाड़ी क्रमांक सी.जी.07/2393, चाकू, कट्टा, कारतूस, खोखा, 303 बोर का कट्टा, 303 बोर का नौ कारतुस, बटनदार चाकू, नारियल कांटने का दांव, मोबाइल फोन, मोबाइल फोन की सिम, हीरोहोण्डा मोटर सायकल, इंडिका कार, हीरोहोण्डा पैशन, लोहे का कट्टा, 315 बोर के कारतूस का खाली खोखा आदि की जप्ती किये। उन्होंने उक्त आरोपीगण को गिरफ्तार किये। अ0सा076 आर0के0राय ने दिनांक 17/8/2005 को केन्द्रीय न्यायालयीक विज्ञान प्रयोगशाला, चण्डीगढ़ प्रदर्श पी 134 ए का प्रतिवेदन सहित खाली कारतुस, मृतक महादेव महार की शरीर से निकली बुलेट, महादेव की त्वचा, तीन देशी कट्टा 315 बोर के, एक खाली खोखा परीक्षण के लिये प्रेषित किया।
(vi) अ0सा076 आर.के.राय ने दिनांक 27/9/2005 को प्रदर्श पी 135 ए/सी के जरिये 9 एमएम पिस्टल व एक 9 एमएम कारतूस का खोखा, दो 315 बोर का कट्टा और 315 बोर के नौ नग जिंदा कारतुस, 315 बोर का कारतुस का खोखा परीक्षण हेतु केन्द्रीय न्यायालयीक विज्ञान प्रयोगशाला, चण्डीगढ़ प्रेषित किया। अ0सा076 आर. के.राय ने जिला दण्डाधिकारी, दुर्ग को प्रदर्श पी 96 का पत्र अभिलिखित कर आरोपी तपन सरकार, प्रभाष सिंह और सत्येन माधवन को आयुध अधिनियम के तहत अभियोजित करने की स्वीकृति मांगी। यह पत्र प्रदर्श पी 96 है। इसी प्रकार उन्होंने जिला दण्डाधिकारी दुर्ग से आरोपी शैलेन्द्र ठाकुर और मंगल सिंह के विरूद्ध आयुध अधिनियम के तहत अभियोजन हेतु प्रदर्श पी 119 का पत्र लिखकर अनुमति मांगी, जो उन्हें प्रदर्श पी 120 के माध्यम से प्राप्त हुई। अ0सा076 आर.के.राय ने दिनांक 10/4/2005 को कॉमर्शियल मैनेजर रिलायंस को पत्र लिखकर ग्यारह मोबाइल नम्बरों के लिये जमा कराये गये आवेदन पत्र एवं दस्तावेजों की प्रति मांगी, जिसके संबंध में उनका पत्र प्रदर्श पी 161 है। तब टेलीकॉम कम्पनी से आरोपियों से जप्त मोबाइल की कॉल डिटेल्स की जो जानकारी प्राप्त हुई वह 45 पन्नों में हैं, जो प्रदर्श पी 162 से 206, प्रदर्श पी 129 से प्रदर्श पी 132 (ए से आई) प्रदर्श पी 207 से 211 है। उन्होंने आइडिया कम्पनी से आरोपी के मोबाइल फोन की कॉल डिटेल्स की जानकारी चाही, जिसके संबंध में उनका पत्र प्रदर्श पी 78 है। तब आइडिया कम्पनी से जो जानकारी प्राप्त हुई वह प्रदर्श पी 79 से प्रदर्श पी 88 है। अ0सा076 आर.के.राय ने प्रकरण में जप्तशुदा सम्पत्ति को परीक्षण हेतु राज्य न्यायालयीक विज्ञान प्रयोगशाला प्रदर्श पी 212 का पत्र अभिलिखित कर प्रेषित किया। उन्होंने केन्द्रीय न्यायालयीक विज्ञान प्रयोगशाला भी सामग्री परीक्षण हेतु भेजी। एफएसएल रायपुर से जो परीक्षण रिपोर्ट प्राप्त हुई वह प्रदर्श पी 218 है जो तीन पन्नों मे हैं। कलकत्ता स्थित प्रयोगशाला से सिरोलॉजिस्ट की रिपोर्ट प्राप्त हुई जो प्रदर्श पी 220 है। एफएसएल रायपुर से प्राप्त परीक्षण रिपोर्ट प्रदर्श पी 221 है।
(vii) अ0सा076 आर.के.राय ने विवेचना के दौरान साक्षी प्रशांत उर्फ गुड्डू उर्फ संतोष, साक्षी तारकेश्वर सिंह एवं साक्षी धनजी उर्फ संतोष, साक्षी गिरवर साहू, साक्षी लिंगा राजू, साक्षी पी. राजकुमार, साक्षी राजेन्द्र सिंह भदोरिया, साक्षी हनुमान सिंह, साक्षी केशव चौधरी, साक्षी मुरली, साक्षी अतुल बोरकर एवं साक्षी मनोज थॉमस का पूरक बयान लेखबद्ध किया।
(viii) अ0सा077 राकेश भट्ठ ने दिनांक 25/5/2005 को न्यायिक मजिस्टेंट प्रथम श्रेणी, बलौदा बाजार को प्रदर्श पी 226 का आवेदन प्रस्तुत कर जेल में बंद आरोपी पिताम्बर तथा छोटू उर्फ कृष्णा की पहचान की कार्यवाही हेतु अनुमति प्राप्त की। तब नायब तहसीलदार अ0सा057 शिवकुमार तिवारी ने आरोपी पिताम्बर एवं आरोपी छोटू उर्फ कृष्णा की पहचान की कार्यवाही निष्पादित किया, जिससे संबंधित दस्तावेज प्रदर्श पी 16, प्रदर्श पी 28 व प्रदर्श पी 123 है। अ0सा052 यामिनी पाण्डे गुप्ता ने आरोपी शैलेन्द्र ठाकुर की पहचान की कार्यवाही प्रदर्श पी 17 निष्पादित करवायी। अ0सा077 राकेश भट्ठ ने आरोपी बिहारी उर्फ विनोद बिहारी से एक सफेद लाइनिंग की शर्ट और एक बटन वाला चाकू जप्ती पत्रक प्रदर्श पी 41 के अनुसार जप्त किया। उन्होंने आरोपी सत्येन्द्र माधवन का बयान मेमोरेण्डम प्रदर्श पी 71 गवाहों के समक्ष लेखबद्ध किया। उन्होंने आरोपी सत्येन माधवन के बयान मेमोरेण्डम के आधार पर एक देशी कटटा 315 बोर का जिसके अंदर बैरल में एक कारतूस खोखा फंसा हुआ, खोखे के पेन्दे में 8 एमएमकेएफ लिखा हुआ, जमीन के गढढे से निकालकर पेश करने पर जप्ती पत्रक प्रदर्श पी 72 के अनुसार जप्त किया। उन्होंने आरोपी सत्येन्द्र माधवन से एक हीरोहोण्डा प्लेजर एवं सेम्संग कंपनी का मोबाइल सेट व सिम व चार्जर की जप्ती प्रदर्श पी 73 के अनुसार किया। उन्होंने आरोपी छोटू उर्फ कृष्णा, आरोपी पिताम्बर साहू, आरोपी रंजीत सिंह, आरोपी मंगल सिंह, आरोपी तोरई पांडियन का बयान मेमोरेण्डम क्रमशः प्रदर्श पी 100, प्रदर्श पी 101, प्रदर्श पी 102 एवं प्रदर्श पी 11 लेखबद्ध किया। उन्होंने उक्त आरोपियों के बयान मेमोरेण्डम के आधार पर तीन लोहे का दांव, एक लोहे का नाईन एमएम का पिस्टल, नौ एमएम कारतूस का खोखा जिसके पीतल के पेन्दे में केएफ 95 एमएमटूएल लिखा है, को जप्त किया। उन्होने आरोपी सत्येन माधवन, तपन सरकार, विनोद बिहारी, गोविन्द विश्वकर्मा, मंगल सिंह, अरविंद गुल्लू श्रीवास्तव, राजू खंजर, बॉबी उर्फ विद्युत चौधरी, जयदीप सिंह, प्रभाषसिंह, जे.जे.राव का आपराधिक रिकार्ड प्रदर्श पी 244 से प्रदर्श पी 254 संकलित किया।
(ix) थाना सुपेला के तात्कालीन उपनिरीक्षक अ0सा075 जे0एल0साहू ने दिनांक 11/8/2005 को व्ही.लक्ष्मणराव से एक टीवीएस सुजुकी क्रमांक सीजी.07जेड.आर./0193 जप्ती पत्र प्रदर्श पी 146 के अनुसार जप्त किया। उन्होंने आरोपी राजू खंजर के बयान मेमोरेण्डम प्रदर्श पी 44 के आधार पर उनके द्वारा निकाल कर पेश करने पर एक नीले रंग की बनियान, एक लोहे का दांव जप्ती पत्र प्रदर्श पी 45 के अनुसार जप्त किया। उन्होंने आरोपी मुजीबुद्दीन के बयान मेमोरेण्डम प्रदर्श पी 48 में उल्लेखित स्थान से उनके द्वारा निकालकर पेश करने पर एक बांस की लाठी और दो सिम जप्ती पत्र प्रदर्श पी 49 के अनुसार जप्त किया। उन्होंने आरोपी चुम्मन के पेश करने पर जप्ती पत्र प्रदर्श पी 90 के अनुसार एक पल्सर मोटर सायकल बिना नम्बर की जप्ती पत्रक प्रदर्श पी 90 के अनुसार जप्त किया। उन्होंने आरोपी चुम्मन से ही एक नोकिया कम्पनी का मोबाइल सेट तथा युटीआई बैंक में जमा रकम की तीन परची तथा आईसीआईसीआई बैंक मे जमा करने की परची को जप्ती पत्रक प्रदर्श पी 91 के अनुसार जप्त किया। उन्होंने आरोपी छोटू उर्फ कृष्णा से एक नारियल कांटने का दांव, आरोपी पिताम्बर से एक नारियल कांटने का लोहे का दांव, आरोपी रंजीत सिंह से यामाहा मोटर सायकल, आरोपी सुशील कुमार से इण्डिका कार क्र0 सी.जी.04 बी.0216, एक नोकिया मोबाइल फोन, आरोपी बच्चा उर्फ अब्दुल जायद से बटनदार लोहे का चाकू, एक सैमसंग रिलायंस कम्पनी का सफेद रंग का मोबाइल फोन, आरोपी संजय सिंह से सिल्वर रंग का मोबाइल फोन, आरोपी तोरई पांडियन से एक टोयेटा क्वालिस क्रमांक सीजी07 जेड0डी.9900 एवं उसके दस्तावेज जप्त किये।
(x) थाना सुपेला के तात्कालीन सहायक उपनिरीक्षक अ0सा074 महादेव तिवारी ने आरोपी नरेन्द्र दुबे से एक नोकिया मोबाइल फोन मॉडल नं0 3310 एवं आरोपी एस. सैथिल्य से एक स्कार्पियों गाड़ी क्रमांक सी.जी.12 डी/0189 को जप्त किया। दुर्ग क्राइम ब्रांच के अ0सा071 राजीव शर्मा ने दिनांक 24/7/2005 को देवरी थाने में आरोपी तपन सरकार के आधिपत्य से एक टोयटा क्वालिस वाहन क्र0पी.बी.46 सी/4318 एवं उसके दस्तावेज जप्त किये। थाना सुपेला के तात्कालीन प्रधान आरक्षक अ0सा068 हृदयलाल बंजारे ने साक्षी रामदास का बयान प्रदर्श पी 119 लेखबद्ध किया। थाना सुपेला के तात्कालीन उपनिरीक्षक अ0सा067 प्रकाश सोनी ने दिनाक 10/5/2005 को आरोपी विद्युत चौधरी से एक लोहे की खुखरी एवं नोकिया कम्पनी के दो मोबाइल फोन जप्ती पत्र प्रदर्श पी 139 के अनुसार जप्त किया। थाना सुपेला के तात्कालीन सहायक उपनिरीक्षक अ0सा066 जे0पी. चन्द्राकर ने प्रदर्श पी 76 का प्रथम सूचना पत्र एवं प्रदर्श पी 139 का मर्ग इन्टीमेशन लेखबद्ध किया।
(xi) थाना सुपेला के तात्कालीन आरक्षक अ0सा062 नेमन साहू ने अपराध क्रमांक 141/05 के प्रथम सूचना पत्र की कार्बन प्रति को दिनांक 12/2/2005 को न्यायालय में लाकर प्रस्तुत किया, जिसकी पावती प्रदर्श पी 131 है।
(xii ) इस प्रकरण में साक्षी संतोष उर्फ गुडडा उर्फ प्रशांत शर्मा, साक्षी चंदन साव, गिरवर साहू, साक्षी लिंगा एवं साक्षी संतोष उर्फ धनजी ने तात्कालीन न्यायिक मजिस्टेंट प्रथम श्रेणी, दुर्ग अ0सा059 रामजीवन देवांगन के समक्ष उपस्थित होकर दं0प्र0सं0 की धारा 164 के तहत स्वयं का कथन लेखबद्ध किये जाने का निवेदन किया। तब अ0सा059 श्री रामजीवन देवांगन ने उक्त साक्षियों का दं0प्र0सं0 की धारा 164 के तहत क्रमशः प्रदर्श पी 18, प्रदर्श पी 22, प्रदर्श पी 23, प्रदर्श पी 26, प्रदर्श पी 126 का कथन लेखबद्ध किया है।
(xiii) आरोपियों से जप्त फायर्ड रायफल के खाली खोखा, पिस्टल के कारतूस, रायफल का बुलेट, मृतक की चमड़ी के टूकड़े, देशी कट्टा आदि का रासायनिक परीक्षण केन्द्रीय न्यायिक विज्ञान प्रयोगशाला, चण्डीगढ़ के कनिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी अ0सा063 डॉ0 पी0 सिद्दम्बरी ने किया, जिन्होंने परीक्षण उपरान्त प्रदर्श पी 134, प्रदर्श पी 135 का परीक्षण प्रतिवेदन प्रेषित किया।
(xiv) उक्त अनुसार विवेचना कर नगर पुलिस अधीक्षक अ0सा076 आर0के0राय ने सर्वप्रथम प्रथम आठ आरोपी के विरूद्ध अभियोग पत्र क्रमांक 269/2005 दिनांक 9/5/2005 को प्रस्तुत किया, जो इस न्यायालय में विशेष सत्र प्रकरण 25/2005 के रूप में पंजीबद्ध किया गया। उसके पश्चात आरोपी क्रमांक 9 से 19 के विरूद्ध अभियोग पत्र दिनांक 2/8/2005 को प्रस्तुत किया गया। उस समय अभियोग पत्र में 17 आरोपियों को फरार दर्शाया गया। उसके पश्चात 6 आरोपियों ने विशेष न्यायालय के समक्ष आत्मसमपर्ण किया गया जिन्हें विधिवत गिरफ्तारी की अनुमति लेकर आरोपी के रूप में संयोजित किया गया। अन्य चार आरोपी मंगलसिंह, महेश उर्फ बिज्जू यदू, शैलेन्द्र ठाकुर, बच्चा उर्फ अब्दुल जायद को गिरफ्तार कर आरोपी के रूप में संयोजित किया गया। इस प्रकरण के विवेचकगणों ने आरोपीगण के आपराधिक षडयंत्र को प्रमाणित करने के लिये आरोपीगण के मोबाइल फोन के कॉल डिटेल्स प्रदर्श पी 162 से प्रदर्श पी 206 एवं प्रदर्श पी 129 से प्रदर्श पी 132 ए से आई संकलित किया। अभियोजन के अनुसार आरोपीगण घटना दिनांक 11/2/2005 के एक दिन पहले अर्थात् 10/2/2005 से 11/2/2005 की सुबह तक आपस में मोबाइल टेलीफोन से बात कर मृतक की हत्या का आपराधिक षडयंत्र किये। विवेचना के दौरान ही आरोपी गोविन्द विश्वकर्मा पुलिस एनकाउण्टर में मारा गया। अतः स्पष्ट है कि वर्तमान में शहजाद, पी. प्रीतिश एवं गया उड़िया उर्फ जयचंद प्रधान अभी भी फरार है।
(xv) अभियोग पत्र प्रस्तुत किये जाने के उपरान्त न्यायिक मजिस्टेंट प्रथम श्रेणी, दुर्ग ने प्रकरण को इस न्यायालय में उपार्पित किया, जो विशेष सत्र प्रकरण क्रमांक 25/2005 के रूप में पंजीबद्ध हुआ। बाद में शेष आरोपीगण के विरूद्ध प्रस्तुत अभियोग पत्र को पूर्व पीठासीन अधिकारी द्वारा विशेष सत्र प्रकरण क्रमांक 47/2005 के रूप में पंजीबद्ध किया। चुंकि दोनों विशेष सत्र प्रकरण एक ही घटना से संबंधित थे, इसलिये पूर्व पीठासीन अधिकारी के दं0प्र0सं0 की धारा 220 के आदेश के अनुसार दोनो विशेष प्रकरणों को एक प्रकरण के रूप में समाहित किया गया, जो विशेष सत्र प्रकरण क्रमांक 47/05 है जिसमें समस्त कार्यवाही की गयी है।
4-  अभियोग पत्र प्रस्तुति के उपरान्त आरोपी बच्चा उर्फ जायद, प्रभाष सिंह, विनोद बिहारी, सत्येन माधवन, मंगल सिंह, तपन सरकार, पिताम्बर साहू, रंजीत सिंह, शैलेन्द्र सिंह ठाकुर, बिज्जु उर्फ महेश, छोटू उर्फ कृष्णा राजपूत, बॉबी उर्फ विद्युत चौधरी, जयदीप सिंह, गुल्लू उर्फ अरविंद श्रीवास्तव, अनिल शुक्ला, राजू खंजर, मुजीबुद्दीन को भा0दं0सं0 की धारा 120 बी, 148, 302/149, 307/149 एवं अनुसूचित जाति जनजाति (अत्याचार निवारण अधि0) 1989 की धारा 3 (2)(5) व आरोपी प्रभाष सिंह, सत्येन माधवन, मंगल सिंह, तपन सरकार, बॉबी उर्फ विद्युत चौधरी, रंजीत सिंह एवं शैलेन्द्र सिंह ठाकुर को 25-27 आर्म्स एक्ट एवं शेष आरोपीगण को भा0दं0सं0 की धारा 212, 216 से दण्डनीय आरोप विरचित कर सुनाये व समझाया गया, तब आरोपीगण ने अपराध अस्वीकार करते हुये निर्दोष होने का अभिवचन किया है।
5- आरोपीगण को आरोप अधिरोपित करने के उपरान्त अभियोजन द्वारा 77 साक्षियों का साक्ष्य प्रस्तुत किया गया एवं कुल 254 दस्तावेजों में प्रदर्श अंकित किया गया। अभियोजन द्वारा प्रस्तुत साक्षी अ0सा01 तारकेश्वर सिंग, अ0सा02 केशवप्रसाद चौबे, अ0सा03 प्रशांत कुमार, अ0सा04 शिव साहू, अ0सा05 लिंगाराजू, अ0सा06 मुरली, अ0सा07 चंदन साव, अ0सा08 प्रशांत शर्मा उर्फ गुड्डा उर्फ संतोष शर्मा, अ0सा09 गिरवर साहू, अ0सा010 डॉ0 जे0पी0मेश्राम, अ0सा011 अशोक कुमार, अ0सा012 मोहन निषाद, अ0सा013 सत्यनारायण कौशिक, अ0सा014 मनोज साहू, अ0सा015 होलसिंह भुवाल, अ0सा016 प्रदीप ताम्रकार, अ0सा017 गणेश कुमार देवदास, अ0सा018 राजेश कुमार, अ0सा09 आनंद दास, अ0सा020 पी0राजकुमार, अ0सा021 आनंद साहू, अ0सा022 नूर मोहम्मद, अ0सा023 राजेन्द्र सिंह, अ0सा024 परमजीत सिंह, अ0सा025 दयाशंकर पाण्डेय, अ0सा026 दीपक, अ0सा027 श्यामकुमार साहू, अ0सा028 लवकुमार कौशिक, अ0सा029 छन्नूलाल निर्मलकर, अ0सा030 राजकुमार, अ0सा031 अवतार सिंह, अ0सा032 नरेश वर्मा, अ0सा033 मंगलदास, अ0सा034 तारकेश्वर, अ0सा035 सदवन महार, अ0सा036 गोपी, अ0सा037 अतुल बोरकर, अ0सा038 विद्यापति यादव, अ0सा039 प्रेम, अ0सा040 मनोज थामस, अ0सा041 ईश्वरलाल गेन्डे, अ0सा042 गंगाराम यादव, अ0सा043 अजयसिंह भदौरिया, अ0सा044 डॉ0 राजेश गुप्ता, अ0सा045 धीरज शर्मा, अ0सा046 गुरजीत सिंह, अ0सा047 विमलेश कुमार, अ0सा048 ए0के0शुक्ला, अ0सा049 मो0 फारूख, अ0सा050 शेख हफीज, अ0सा051 मनीष कुमार, अ0सा052 श्रीमती यामिनी पाण्डे गुप्ता, अ0सा053 रामदास, अ0सा054 अरूण कुमार निर्मलकर, अ0सा055 प्रीतम निर्मलकर, अ0सा056 अशोक कुमार निर्मलकर, अ0सा057 शिवकुमार तिवारी, अ0सा058 भार्गव शर्मा, अ0सा059 श्री रामजीवन देवांगन, अ0सा060 सुभाष सिंह मण्डावी, अ0सा061 अनिल वर्मा, अ0सा062 नेमन साहू, अ0सा063 डॉ0 पी0 सिद्दम्बरी, अ0सा064 दलबीर सिंह, अ0सा065 ददनसिंह (प्रधान आरक्षक), अ0सा066 जे0पी0चन्द्राकर (सेवानिवृत्त सहायक उपनिरीक्षक), 20 अ0सा067 प्रकाश सोनी (निरीक्षक), अ0सा068 हृदयलाल बंजारे (सहायक उपनिरीक्षक), अ0सा069 अनिता सागर (निरीक्षक), अ0सा070 हनुमान सिंह यादव, अ0सा071 राजीव शर्मा (निरीक्षक), अ0सा072 शिवकुमार गोड़, अ0सा073 ऐनकसिंह ध्रुव, अ0सा074 महादेव तिवारी (सेवानिवृत्त उपनिरीक्षक), अ0सा075 जे0एल0साहू (उपनिरीक्षक), अ0सा076 आर0के0राय (रिटायर अति0 पुलिस अधीक्षक), एवं अ0सा077 राकेश भट्ठ (नगर पुलिस अधीक्षक) है।
6- दं0प्र0सं0 की धारा 313 के तहत आरोपीगण का कथन लिया गया। तब उन्होंने स्वयं को निर्दोष होने एवं झूठा फंसाने का कथन किया है। आरोपी बॉबी उर्फ विद्युत चौधरी ने यह अभिवाक लिया कि घाटना दिनांक 11/2/2005 को वह विवाह समारोह में शामिल होने बरेली (उत्तरप्रदेश) गया था। इस अभिवाक के समर्थन में आरोपी विद्युत चौधरी ने प्रतिरक्षा साक्षी संजीव बंसल, अर्चना चौधरी का साक्ष्य प्रस्तुत किया। जबकि आरोपी अनिल शुक्ला और रंजीत सिंह की ओर से प्रतिरक्षा साक्ष्य के रूप में कतिपय दस्तावेज प्रस्तुत किये गये हैं, एवं आरोपी विनोद सिंह उर्फ विनोद बिहारी ने घटना के समय जबलपुर शहर में अपने साले की दशगात्र के कार्यक्रम में उपस्थित होने के तथ्य को प्रमाणित करने हेतु प्रतिरक्षा साक्षी के रूप में अपने ससुर धूपनारायण सिंह का साक्ष्य प्रस्तुत किया है। आरोपी तपन सरकार एवं सत्येन माधवन ने प्रतिरक्षा साक्षी क्रमांक 1 जितेन्द्र वर्मा का साक्ष्य प्रस्तुत किया है।
7- उक्त स्थिति में इस न्यायालय के समक्ष प्रमुख रूप से अवधारणीय प्रश्न यह है कि क्या अभियोजन युक्तियुक्त शंका से परे यह प्रमाणित करने में सफल हुआ है कि:-
1- क्या महादेव महार की मृत्यु दिनांक 11/02/2005 मानवघाती या हत्यात्मक प्रकृति की थी ?
2- क्या आरोपी बच्चा उर्फ जायद, प्रभाष सिंह, विनोद बिहारी, सत्येन माधवन, मंगल सिंह, तपन सरकार, पिताम्बर साहू, रंजीत सिंह, शैलेन्द्र सिंह ठाकुर, बिज्जू उर्फ महेश, छोटू उर्फ कृष्णा राजपूत, बॉबी उर्फ विद्युत चौधरी, जयदीप सिंह, गुल्लू उर्फ अरविंद श्रीवास्तव, अनिल शुक्ला, राजू खंजर, मुजीबुद्दीन ने -
2(1)- दिनांक 11/2/2005 को प्रातः 5 बजे या उसके पूर्व मृतक महादेव महार की हत्या करने के लिये आपस में सहमत होकर योजना तैयार कर आपराधिक षडयंत्र किये?
2(2)- दिनांक 11/2/2005 को 6.20 बजे या उसके लगभग स्थान सुभाष चौक सुपेला में महादेव महार की हत्या करने के सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करते हुये पांच या पांच से अधिक व्यक्तियों का अवैध जमाव गठित किये और क्या उक्त अवैध जमाव का सदस्य होते हुये उसके सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने के लिये घातक आयुध कट्टा, पिस्तौल, गंडासा, चाकू, लाठी जिससे मृत्यु कारित किया जाना संभाव्य है, से सुसज्जित होकर बलवा का अपराध कारित किये ?
2(3)- उक्त दिनांक समय व स्थान में मृतक महादेव महार की साशय या यह जानते हुये कि घातक आयुध कट्टा, पिस्तौल, गंडासा, दांव, चाकू, लाठी आदि से उसके साथ मारपीट किये जाने से उसकी मृत्यु हो सकती है, उसे मारपीट कर सिर में गोली चलाकर, उसकी मृत्यु कारित कर उसकी हत्या का अपराध कारित किये ?
विकल्प में उक्त दिनांक समय व स्थान मे विधि विरूद्ध जमाव का सदस्य रहते हुये, जमाव के सामान्य उद्देश्य मृतक महादेव महार की हत्या करने को अग्रसर करते हुये साशय व यह जानते हुये कि घातक आयुध कट्टा, पिस्तौल, गंडासा, दांव, चाकू, लाठी आदि से उसके साथ मारपीट किये जाने से उसकी मृत्यु हो सकती है, उसे मारपीट कर सिर में गोली चलाकर, उसकी मृत्यु कारित कर उसकी हत्या का अपराध कारित किये ?
2(4)- उक्त दिनांक समय व स्थान में आप अनुसूचित जाति या जनजाति के सदस्य न होते हुये अनुसूचित जाति के व्यक्ति मृतक महादेव महार की हत्या उसके अनुसूचित जाति होने के आधार पर कारित किये ?
2(5)- उक्त दिनांक समय व स्थान में उक्तानुसार विधि विरूद्ध जमाव, जिसका सामान्य उद्देश्य मृतक महादेव महार की हत्या करना तथा मृतक महादेव महार की हत्या के समय साशय व यह जानते हुये कि ऐसी परिस्थितियों में उक्त संतोष उर्फ गुड्डा, गिरवर, चंदन की ओर कट्टा व पिस्तौल से फायर किये जिससे संतोष, गिरवर या चंदन की मृत्यु हो जाती तो आप हत्या के दोषी होते?
आरोपी प्रभाष सिंह, सत्येन माधवन, मंगल सिंह, तपन सरकार, शैलेन्द्र ठाकुर, रंजीत सिंह व बॉबी उर्फ विद्युत चौधरी के संबंध में:-
3- क्या दिनांक 11/2/2005 को 6.25 बजे या उसके लगभग स्थान सुभाष चौक सुपेला में एवं उसके पश्चात अपने अवैध आधिपत्य में बिना किसी वैध अधिकार के आरोपी तपन ने कट्टा, 315 बोर का जिंदा कारतूस, आरोपी शैलेन्द्र ठाकुर ने 303 बोर के दो कट्टे, व 303 बोर का नौ नग जिंदा कारतुस, बटनदार चाकू, आरोपी प्रभाष ने 315 बोर का कट्टा व कारतुस, आरोपी सत्येन्द्र माधवन ने कट्टा, आरोपी मंगल सिंह ने कट्टा व कारतुस, आरोपी विद्युत चौधरी ने कट्टा व  कारतुस तथा आरोपी रंजीत सिंह ने प्रतिबंधित आयुध को रखा था? इस प्रकार आरोपीगण ने आयुध अधिनियम की धारा 27 के तहत दण्डनीय अपराध कारित किया?
4- क्या दिनांक 11/2/2005 को थाना सुपेला के क्षेत्राधिकार में सुभाष चौक में 6 से 6.30 बजे के मध्य प्रातः आरोपी प्रभाष सिंह ने 315 बोर के कट्टे, आरोपी शैलेन्द्र ठाकुर ने 303 बोर के कट्टे, आरोपी तपन सरकार एवं सत्येन माधवन ने देशी कट्टा, आरोपी विद्युत चौधरी ने लोहे की खुखरी, आरोपी मंगल ने एक कट्टा व कारतुस एवं आरोपी रंजीत ने धारा 4 आयुध अधिनियम के उल्लंघन में प्रतिबंधित आयुध को बिना किसी लायसेंस के अपने अवैध आधिपत्य में रखा ? इस प्रकार आरोपीगण ने आयुध अधिनियम की धारा 25 के तहत दण्डनीय अपराध कारित किया?
शेष आरोपीगण के लिये
5- क्या आरोपी जसपाल उर्फ गोल्डी, जे.जे.राव, प्रतापसिंह उर्फ मुन्ना, चुम्मन, संजय सिंह, रवि ठाकुर, फरहान उर्फ इरफान, तोरई पांडियन, रज्जन मियां, सुशील कुमार राठी, बलविंदर सिंह, संतोष साहू, शैलेष सिंह, पंकज सिंह, एस. सैथिल्य व नरेन्द्र दुबे ने दिनांक 11/2/2005 को अथवा उसके पश्चात यह जानते हुये कि आरोपी तपन सरकार, मंगल सिंह, शैलेन्द्र ठाकुर, सत्येन माधवन, जयदीप, प्रभाष सिंह, बच्चा उर्फ जायद, अनिल शुक्ला, गुल्लू श्रीवास्तव, बिहारी उर्फ विनोद बिहारी, मुजीबुद्दीन, राजू खंजर, रंजीत सिंह, छोटू उर्फ कृष्णा, पिताम्बर साहू, गया उड़िया, बिज्जू उर्फ महेश यदू द्वारा हत्या एवं हत्या के प्रयत्न जैसा अपराध कारित किया गया है, उन्हें हत्या एवं हत्या के प्रयत्न के लिये दण्डनीय अपराध के दण्ड से बचाने के आशय से आर्थिक सहायता देकर या अपने घर में संश्रय देकर या वाहन मुहैया कराकर या अन्य रीति से आश्रय देकर भा0दं0सं0 की धारा 212 के दण्डनीय अपराध कारित किये?
6- क्या उक्त दिनांक समय व स्थान पर उक्त आरोपियों को जिन्हें गिरफ्तार किये जाने का आदेश दिया जा चुका था, या जो फरार घोषित किये जा चुके थे, उन्हे गिरफ्तारी से बचाने के आशय से उन्हें संश्रय दिया या छिपाया और क्या ऐसा करके भा0दं0सं0 की धारा 216 के तहत दण्डनीय अपराध कारित किया?
।। अवधारणीय प्रश्न क्रमांक 1 पर सकारण निष्कर्ष ।।
8- इस अवधारणीय प्रश्न के संबंध में आरोपीगण के विद्वान अधिवक्तागण ने अधिक विवाद नही किया है। उन्होने मृतक महादेव महार की हत्या के संबंध में यह प्रतिरक्षा ली है कि मृतक महादेव महार दुर्ग जिले का नामचीन आपराधिक प्रकृति का व्यक्ति था, जिसे उसके दुश्मनों ने घटनास्थल सुभाष चौक के अतिरिक्त कहीं और मारकर उसके शव को सुभाष चौक में लाकर छोड़ दिये हैं। आरोपीगण के उक्त प्रतिरक्षा के संबंध में इस निर्णय में आगे उभयपक्ष के साक्ष्य की विवेचना कर निष्कर्ष दिया जावेगा। जहां तक मृतक महादेव महार की मृत्यु की प्रकृति का प्रश्न है, तो इस संबंध में अ0सा077 राकेश भट्ठ, अ0सा015 होलसिंह भुवाल एवं अ0सा010 डॉ0 जे.पी.मेश्राम का साक्ष्य अवलोकनीय है।
9- अ0सा077 राकेश भट्ठ ने मृतक के शव के पंचनामा की कार्यवाही प्रदर्श पी 2 अभिलिखित किया था, एवं उन्होंने मृतक के शव को पोस्टमार्टम हेतु प्रदर्श पी 33 की तहरीर अभिलिखित कर अ0सा015 होलसिंह भुवाल के माध्यम से जिला चिकित्सालय दुर्ग प्रेषित किया था। तब जिला चिकित्सालय दुर्ग के चिकित्सक अ0सा010 डॉ0 जे.पी.मेश्राम ने मृतक के शव का परीक्षण किया है। अ0सा010 डॉ0 जे.पी.मेश्राम ने मृतक के शव का परीक्षण घटना दिनांक 11/2/2005 को ही एक अन्य चिकित्सक डॉ0 एम0सी0 महनोद के साथ मिलकर किया था। उन्होने मृतक महादेव महार के मृत शरीर में निम्नलिखित चोटें पायी थी:-
फायर आर्म इंजूरी:-
1- फायर आर्म इंजूरी की मार्जिन इंवर्टेड ओवल आकार की थी एवं चोर्ड थी, जिसका साइज .1 से.मी. गुणित 3/4 से.मी. जो बोन डीप थी, जो राईट टेम्पोरल रीजन पर अपर पार्ट अप पिन्ना के 3 से.मी. इन्टीरीयर में थी, जो वुंड आफ एन्टरी थी।
2- मल्टीपल पिन हेड साइज के चारिंग मार्क्स, चमड़ी पर थे, जो 15 से 10 से.मी. चेहरे के बांयी तरफ, मेक्सिला में, फ्रन्टल रीजन में जो लेप्ट पिन्ना के सामने थी, जो लेप्ट साइड फेस को कवर कर रहे थे।
3- फायर आर्म इंजूरी - जो इवोर्टेड मार्जिन की, लेप्ट टेम्पोरल रीजन में 1.5 से.मी. गुणित 1 से.मी. गुणित बोनडीप थी जिसमें ब्रेन मेटर दिख रहा था, जो 4 से.मी. अपर पार्ट आफ पिन्ना के मार्जिन चार्ज में थी, जो वुंड आफ एक्जिट था।
4- लेसरेटेड वुंड 3 से.मी. गुणित 1 से.मी. गुणित थ्रू एण्ड थ्रू लेप्ट उपर ओठ पर।
5- लेसरेटेड वुंड 2 से.मी. गुणित 1 से.मी. गुणित थ्रू एण्ड थ्रू, लोवर लिप के मिडिल पार्ट पर।
6- अपर इनसाइजर टूथ मिसिंग था, साकेट में ब्लड क्लाट था।
7- अपर इनसाइजर टूथ ढीला हो गया था।
8- इनसाइज्ड वुंड 15 से.मी. गुणित 2 से.मी. गुणित बोनडीप, वार्टिकली इन्टा पैराइटल रीजन पर।
9- इनसाइज्ड वुंड 10 से.मी. गुणित 1 से.मी. गुणित बोनडीप वर्टिकली इन्टापैराइटल रीजन पर।
10- इनसाइज्ड वुंड 10 से.मी. गुणित 1.5 से.मी. गुणित 1 से.मी. टांसवर्सिली आक्सीपीटल रीजन के लोवर पार्ट पर।
11- इनसाइज्ड वुंड 6 से.मी. गुणित 1 से.मी. मसल्स डीप टांसर्विली इंजूरी नम्बर 10 के एकदम नीचे।
12- इनसाइज्ड वुंड 3 से.मी. गुणित 1 से.मी. गुणित 1 से.मी., स्केपुला रीजन के लेप्ट अपर पार्ट पर।
13- इनसाइज्ड वुंड 10 से0मी0 गुणित 4 से0मी0 गुणित मसल डीप लेपट लोवर स्केपुला रीजन पर।
14- इनसाइज्ड वुंड 4 से.मी. गुणित 1 से.मी. गुणित 1 से.मी. गुणित राईट स्केपुला रीजन पर अपर पार्ट
में मिडलाईन के समीप।
15- इनसाइज्ड वुंड 12 से.मी. गुणित 4 से.मी. गुणित 2 से.मी., वर्टिकली फोरेसिंक स्पाइन के राइट साईड में।
16- इनसाइज्ड वुंड 8 से.मी. गुणित 3 से.मी. गुणित 2 से.मी. राइट स्केपूलर रीजन पर।
17- इनसाइज्ड वुंड 4 से.मी. गुणित 1 से.मी. फोरेंसिक टवेल्व से एल 1 स्पाइन पर वर्टिकली।
18- इनसाइज्ड वुंड 4 से.मी. गुणित 0.5 से.मी. गुणित 0.5 से.मी. आब्लीकली राइट स्केपुलर रीजन के नीचे।
19- इनसाइज्ड वुंड 4 से.मी. गुणित 1 से.मी. गुणित 1 से.मी. इंजुरी नं0 18 के तीन से.मी. राइट साईड में।
20- इनसाइज्ड वुंड 10 से.मी. गुणित 3 से.मी. गुणित 2 से.मी. लंबर स्पाइन एल 3 से एल 5 के राइट साईड में।
21- इन्साइज्ड वुंड 9 से.मी. गुणित 2 से.मी. गुणित 1 से.मी. राइट इलियक रीजन पर।
इस प्रकार अ0सा010 डॉ0 जे0पी0मेश्राम ने मृतक महादेव महार के शरीर में कुल 21 चोटें पायी थी, जिसमें फायर आर्म इंजूरी भी थी।
10- अ0सा010 डॉ0 जे0पी0मेश्राम ने अपने साक्ष्य की कण्डिका 4 में ही आगे यह भी कथन किया है कि:-
1- उक्त सभी चोटों पर ब्लड क्लाट्स मौजुद थे।
2- बहुत सारे इरेगुलर फ्रेक्चर जो टेम्पोरल, पैराइटल और आक्सीपीटल बोन पर थे।
3- इंजुरी नम्बर 1 व 3 एक दूसरे से कम्युनिकेट कर रही थी, जिसमें ब्रेन मेटर का लेसरेशन दिख रहा था।
4- दो ओवल सेप छिद्र 1 से.मी. डायामीटर के, जो इंजुरी नम्बर 1 से 3 के बीच में जोड़ रहे थे। ब्रेन मेटर का लेसरेशन पैराइटल और आक्सीपीटल रीजन पर था।
5- लेप्ट साईड की 10 वी और 11 वी पसलियां टूटी हुई थी। लेफ्ट साईड में हीमोथोरेक्स मौजुद था।
इस साक्षी ने अपने साक्ष्य की कण्डिका 6 में कथन किया है कि मृतक के शरीर में आयी चोट क्रमांक 1, 2, 3 फायर आर्म से, चोट क्रमांक 4,5,6,7 हार्ड एवं ब्लन्ड आब्जेक्ट से, चोट क्रमांक 8 से 21 हार्ड एवं शार्प आब्जेक्ट से आयी थी। सभी चोटें एन्टीमार्टम नेचर की थी। इस साक्षी ने अपने साक्ष्य की कण्डिका 9 में मृतक की मृत्यु के संबंध में यह अभिमत दिया है कि मृतक की मृत्यु का कारण शॉक और हेमरेज था, जो उपरोक्त बतायी गयी एन्टीमार्टम चोटों के कारण हुआ था, जिसके संबंध में उनकी रिपोर्ट प्रदर्श पी 34 है, जिसके अ से अ भाग पर उनके और ब से ब भाग में उसके साथी चिकित्सक एम.सी.महनोद के हस्ताक्षर है।

गैंगस्टर महादेव महार हत्याकांड फैसला (क्र. 11 से 20)

 
11- इस संबंध में अ0सा010 डॉ0 जे0पी0मेश्राम ने अपने साक्ष्य की कण्डिका 11, 12 में पुलिस कांस्टेबिल हरखराम क्रमांक 1028 द्वारा लायी गयी लाठी और दांव का परीक्षण कर यह व्यक्त किया है कि प्रेषित लाठी से मृतक को आयी चोट क्रमांक 4 से 7 आ सकती है। इसी प्रकार उन्होने यह भी व्यक्त किया है कि प्रेषित दांव से मृतक को आयी चोट क्रमांक 8 से 21 आ सकती है। इस साक्षी ने अपने साक्ष्य में चोट क्रमांक 4 से 21 को गम्भीर प्रकृति की चोट होना भी व्यक्त किया है। इस साक्षी ने अपने साक्ष्य की कण्डिका 12 में यह भी व्यक्त किया है कि प्रेषित दांव से प्राणघातक चोट आना संभव है, जिसके संबंध में उनकी रिपोर्ट क्रमशः प्रदर्श पी 36 एवं 37 है। इस प्रकार अ0सा010 डॉ0जे0पी0मेश्राम ने मृतक का शव परीक्षण कर यह पाया कि मृतक को जो 21 चोटें उसकी मृत्यु के पहले आयी थी, उन्ही 21 चोटों के कारण उसे शॉक और हेमरेज हुआ और परिणाम स्वरूप उसकी मृत्यु हुई। इस प्रकार अ0सा010 डॉ0 जे0पी0मेश्राम के साक्ष्य से यह प्रमाणित होता है कि मृतक की मृत्यु फायर आर्म, हार्ड व ब्लन्ट आब्जेक्ट एवं हार्ड एवं शार्प आब्जेक्ट से कारित की गयी चोटों के कारण हुई थी, जो कि हत्यात्मक प्रकृति की थी।
12- इस अवधारणीय प्रश्न पर निष्कर्ष दिये जाने हेतु मृतक महादेव का शव पंचनामा प्रदर्श पी 2 भी अवलोकनीय है, जिसके साक्षी अ0सा035 सदवन महार भी है। इस प्रदर्श पी 2 के शव पंचनामा में मृतक के सिर में दो जगह धारदार हथियार से चोट आने का और मुंह में चोट का निशान, पूरे मुंह में खुन और सिर के पास काफी खुन पड़े होने का उल्लेख है, जिससे भी यह प्रमाणित होता है कि मृतक की मृत्यु की प्रकृति हत्यात्मक थी। अतः स्पष्ट है कि अभियोजन अवधारणीय प्रश्न क्रमांक 1 को प्रमाणित करने में सफल हुआ है।
अवधारणीय प्रश्न क्रमांक 2 पर सकारण निष्कर्ष
13- इस अवधारणीय प्रश्न पर निष्कर्ष दिये जाने के पूर्व इस प्रकरण में अभियोजन द्वारा प्रस्तुत किये गये साक्ष्य के प्रकार एवं आरोपीगण की प्रतिरक्षाओं का उल्लेख किया जाना आवश्यक है, ताकि इस अवधारणीय प्रश्न पर न्याय की मंशा के अनुरूप निष्कर्ष दिया जा सके। इस प्रकरण में अभियोजन ने उक्त अवधारणीय प्रश्नों को प्रमाणित करने हेतु निम्नानुसार साक्ष्य प्रस्तुत किया है:-
1- मृतक की हत्या के प्रत्यक्षदर्शी साक्षियों का साक्ष्य।
2- प्रकरण के विवेचक द्वारा संकलित दस्तावेज एवं रासायनिक परीक्षण का साक्ष्य।
3- प्रकरण के विवेचक द्वारा संकलित इलेक्ट्निक साक्ष्य।
अब यह न्यायालय उक्तानुसार संकलित किये गये साक्ष्य की क्रमवार विवेचना की ओर अग्रसर हो रहा है।
प्रत्यक्षदर्शी साक्षियों का साक्ष्य
14- प्रत्यक्षदर्शी साक्षी अ0सा01 तारकेश्वर सिंह, अ0सा07 चंदन साव, अ0सा05 लिंगाराजू, अ0सा08 प्रशांत शर्मा एवं अ0सा09 गिरवर साहू के साक्ष्य के संबंध में आरोपीगण की यह प्रतिरक्षा है कि:-
1- उक्त सभी साक्षी पक्षद्राही हुये हैं। उक्त सभी साक्षियों (अ0सा01 को छोडकर) का दं0प्र0सं0 की धारा 164 के तहत कथन न्यायिक मजिस्टेंट प्रथम श्रेणी, दुर्ग के न्यायालय में हुआ था, लेकिन उक्त सभी साक्षियों ने अपने-अपने प्रतिपरीक्षण में यह स्वीकार किया है कि उन्होने घटना नही देखी है, उनके कलमबंद कथन के समय पुलिस वाले न्यायालय के बाहर खड़े थे और पुलिस के दबाव में उन्होंने न्यायिक मजिस्टेंट प्रथम श्रेणी, दुर्ग के न्यायालय में कथन किया था। अ0सा05 लिंगाराजू ने अपने साक्ष्य की कण्डिका 1 व अ0सा07 चंदन साव ने अपने साक्ष्य की कण्डिका 13 में यह भी कथन किया है कि तारकेश्वर सिंह ने उन्हें बताया था कि महादेव की हत्या रात में किसी ने कर दी है। अतः सभी आरोपीगण के विद्वान अधिवक्ताओं की प्रत्यक्षदर्शी साक्षियों के साक्ष्य के संबंध में यही प्रतिरक्षा है कि उक्त पक्षद्रोही साक्षियों के साक्ष्य मे किये गये कथनों के आधार पर आरोपीगण की दोषसिद्धी नही की जा सकती। इस संबंध में अ0सा08 प्रशांत शर्मा के साक्ष्य की कण्डिका 3,5,6,9, अ0सा01 तारकेश्वर सिंह के साक्ष्य की कण्डिका 36, 37, 67 अ0सा05 लिंगाराजू के साक्ष्य की कण्डिका 2, 3, 5 अ0सा07 चंदन साव के साक्ष्य की कण्डिका 12, 13 एवं 14 अ0सा09 गिरवर साहू के साक्ष्य की कण्डिका 4, 7 एवं 8 की ओर न्यायालय का ध्यान आकृष्ठ किया है।
2- द्वितीय प्रतिरक्षा है कि जब उक्त साक्षी पक्षद्राही हो गये है और उन्होने न्यायिक मजिस्टेंट के समक्ष दं0प्र0सं0 की धारा 164 के कथन पुलिस के दबाव में लेखबद्ध करना बताया है, तब उक्त प्रत्यक्षदर्शी साक्षियों के साक्ष्य के दं.प्र.सं. की धारा 164 के तहत लिये गये कथन के आधार पर आरोपीगण की दोषसिद्धी नही की जा सकती। इस संबध में दं0प्र0सं0 की धारा 164 के तहत कथन लेखबद्ध करने वाले न्यायिक मजिस्टेंट अ0सा059 रामजीवन देवांगन के साक्ष्य की कण्डिका 16, 21 में किये गये कथनों के आधार पर भी यह स्पष्ट है कि उक्त साक्षियों को पुलिस लेकर आयी थी, और उन्होने पुलिस के दबाव में कथन किया था।
3- तृतीय प्रतिरक्षा यह है कि दं0प्र0सं0 की धारा 164 के कथन किसी साक्षी के आवेदन/निवेदन पर किसी भी मजिस्टेंट को लेखबद्ध करने की कोई अधिकारिता नही है। अतः इस प्रकरण में दं0प्र0सं0 की धारा 164 के तहत अधिकारिता के अभाव में लिये गये कथन शून्य है। इस संबध में आरोपी तपन सरकार एवं सत्येन माधवन के अधिवक्ता ने माननीय उच्चतम न्यायालय का न्यायदृष्टांत 1999 क्रिमनल लॉ जर्नल 3976, 1990 क्रिमनल लॉ जर्नल पेज क्रमांक 385 (पी एण्ड एच), 2006 क्रिमनल लॉ जर्नल 4813 एवं 1998 (2) एमपीडब्ल्यूएन का न्यायदृष्टांत भी प्रस्तुत किया है।
15- जैसा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 में यह उल्लेखित है कि सर्वोत्तम साक्ष्य वही होता है, जो प्रत्यक्ष हो। इस प्रकरण में जैसा कि उपर उल्लेख किया जा चुका है, कि अभियोजन द्वारा प्रस्तुत अ0सा05 लिंगा राजू, अ0सा07 चंदन साव, अ0सा09 गिरवर साहू ने स्वयं न्यायिक मजिस्टेंट प्रथम श्रेणी, दुर्ग अ0सा059 रामजीवन देवांगन के समक्ष उपस्थित होकर क्रमशः प्रदर्श पी 26, प्रदर्श पी 22, प्रदर्श पी 30 का कथन अभिलिखित करवाया था, जिसमें उन्होंने अभियोजन के मामले की पुष्टि की थी।
16- इस प्रकरण में अभियोजन की कहानी इस प्रकार है कि मृतक महादेव महार की हत्या की घटना को संतोष सिंह उर्फ धनजी, तारकेश्वर सिंह, चंदन साव, गिरवर साहू व लिंगा राजू नामक व्यक्तियों ने देखा था। अर्थात् स्पष्ट है कि अभियोजन ने इस प्रकरण में मृतक महादेव महार की हत्या की घटना को पांच अभियोजन साक्षियों द्वारा देखना बताया है। उक्त पांच अभियोजन साक्षियों में से चार साक्षी संतोष उर्फ धनजी, चंदन साव, गिरवर साहू व लिंगाराजू ने स्वयं दुर्ग न्यायालय के न्यायिक मजिस्टेंट श्री रामजीवन देवांगन (अ0सा059) के समक्ष उपस्थित होकर लिखित आवेदन दिया कि मृतक महादेव महार की हत्या के घटना के संबंध में दं0प्र0सं0 की धारा 164 के तहत उनका कथन लेखबद्ध किया जावे। अतः दुर्ग जिला न्यायालय के तात्कालीन न्यायिक मजिस्टेंट श्री रामजीवन देवांगन (अ0सा059) ने घटना दिनांक 11/2/2005 के छठवे दिन दिनांक 17/2/2005 को उक्त चारों प्रत्यक्षदर्शी साक्षियों का दं0प्र0सं0 की धारा 164 के तहत कथन लेखबद्ध किया गया, जिसमें से संतोष सिंह उर्फ धनजी, साक्षी तारकेश्वर सिंह के पुत्र थे, जिसकी बाद में अन्य आरोपियों द्वारा हत्या कर दी गयी। अभियोजन ने तारकेश्वर सिंह को भी प्रत्यक्षदर्शी साक्षी के रूप में संयोजित किया था, जिसका दं0प्र0सं0 की धारा 161 के तहत कथन लिपिबद्ध किया गया था, जो प्रदर्श डी 1 है।
17- अभियोजन द्वारा उक्त प्रत्यक्षदर्शी साक्षियों को इस न्यायालय में भी साक्षी के रूप में प्रस्तुत किया गया है जो कि अ0सा01 तारकेश्वर सिंह, अ0सा05 लिंगाराजू, अ0सा07 चंदन साव एवं अ0सा09 गिरवर साहू हैं। अतः सर्वप्रथम दं0प्र0सं0 की धारा 164 के तहत अभिलिखित किये गये कथन वाले साक्षी अ0सा05 लिंगाराजू, अ0सा07 चंदन साव, अ0सा09 गिरवर साहू के साक्ष्य का अवलोकन किया गया। अभियोजन द्वारा प्रस्तुत उन तीनों साक्षियों से न्यायालय से अनुमति प्राप्त कर अभियोजन द्वारा सूचक प्रश्न जैसे प्रश्न पूछे गये हैं। अतः यह न्यायालय अब उक्त तीनों साक्षियों के साक्ष्य का पृथक-पृथक विवेचन कर यह निष्कर्ष दिये जाने की ओर अग्रसर हो रही है कि क्या उक्त तीनों साक्षियों का साक्ष्य विश्वसनीय है, अथवा नही है, और यदि विश्वसनीय है तो क्यो ?
अ0सा07 चंदन साव के साक्ष्य की विश्वसनीयता का परीक्षण
18- सर्वप्रथम अ0सा07 चंदन साव के साक्ष्य का अवलोकन किया गया। अ0सा07 चंदन साव ने अपने मुख्य परीक्षण दिनांक 2/8/2007 को दं0प्र0सं0 की धारा 164 के तहत लिये गये सम्पूर्ण कथन का अक्षरशः समर्थन किया है। लेकिन आरोपीगण के विद्वान अधिवक्तागण ने अ0सा07 चंदन साव का उसके मुख्य परीक्षण दिनांक 2/8/2007 को उसका प्रतिपरीक्षण नही किया गया, जिसका कारण आदेश पत्र दिनांक 2/8/2007 के अनुसार यह है कि साक्षी के प्रतिपरीक्षण से उनका बचाव खुल जावेगा। जबकि इसी दिनांक को अ0सा05 लिंगा राजू का परीक्षण व प्रति परीक्षण आरोपीगण के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा किया गया है। बहरहाल, अ0सा07 चंदन साव का प्रतिपरीक्षण उसके मुख्य परीक्षण दिनांक 2/8/2007 के दो माह 9 दिन विशेष प्रकरण क्रमांक 25/2005 एवं 47/2005 बाद दिनांक 11/10/2007 को किया गया। तब अ0सा07 चंदन साव अपने प्रति परीक्षण दिनांक 11/10/2007 में अपने मुख्य परीक्षण में किये गये सम्पूर्ण कथन से मुकर गये एवं उन्होंने यह कथन किया है कि वह मुख्य परीक्षण दिनांक 2/8/2007 को पुलिस के अत्याधिक दबाव में थे। उन्होंने पुलिस के डराने धमकाने से दिनांक 2/8/2007 को पुलिस के बताये अनुसार न्यायालय में असत्य कथन दिया था। वास्तव में उन्होंने महादेव की हत्या होते नही देखा है। महादेव की हत्या किसने की, उसे किसने मारा, वह नही जानता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि अ0सा07 चंदन साव अपने मुख्य परीक्षण में किये गये कथनों को अपने प्रतिपरीक्षण में अस्वीकार कर दिया है। अतः अब यह न्यायालय अ0सा07 चंदन साव के साक्ष्य में किये गये सम्पूर्ण कथन की सूक्ष्म विवेचन कर यह निष्कर्ष दिये जाने हेतु अग्रसर हो रही है कि क्या अ0सा07 चंदन साव के मुख्य परीक्षण में किये गये कथनों पर विश्वास किया जा सकता है?
19- अ0सा07 चंदन साव ने अपने साक्ष्य की कण्डिका 21, 22  में उसे न्यायिक मजिस्टेंट प्रथम श्रेणी, दुर्ग श्री रामजीवन देवांगन (अ0सा059) के न्यायालय में हुये बयान व आदेश पत्रिका की प्रतिलिपि दिखाकर पूछा गया तो उसने प्रदर्श पी 21, 22 व प्रदर्श पी 23 के अ से अ भाग में अपने हस्ताक्षर होना स्वीकार किया है। इस साक्षी को प्रदर्श पी 22 का दं0प्र0सं0 की धारा 164 का बयान पढ़ने दिया गया, तब उसने पढ़कर व्यक्त किया है कि उसने ऐसा ही बयान न्यायिक मजिस्टेंट के न्यायालय में दिया था। लेकिन इस साक्षी का अपने साक्ष्य की कण्डिका 14 एवं 25 में कथन है कि उसे महादेव की हत्या के बाद पुलिस वाले 5-7 दिन तक थाने में रखे थे और उसे एक बयान लिखकर दिये थे, और कहे थे कि ऐसा ही बयान मजिस्टेंट के समक्ष देना है। उसके 5-7 दिन बाद पुलिस वाले उसे न्यायिक मजिस्टेंट देवांगन साहब के न्यायालय में बयान देने के लिये लाये थे और कहे थे कि अगर ऐसा बयान नही दिये तो किसी केस में फंसा देंगे या एनकाउण्टर करवा देंगे। लेकिन प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि अ0सा07 चंदन साव ने पुलिस के दबाव की शिकायत तात्कालीन न्यायिक मजिस्टेंट श्री रामजीवन देवांगन से क्यों नही की । इस संबंध में अ0सा07 चंदन साव ने अपने प्रति परीक्षण की कण्डिका 25 में कथन किया है कि यह कहना सही है कि प्रदर्श पी 23 का आवेदन उसने स्वयं न्यायिक मजिस्टेंट श्री देवांगन के समक्ष प्रस्तुत किया था, लेकिन उसने न्यायिक मजिस्टेंट श्री रामजीवन देवांगन से प्रदर्श पी 22 का कथन करते समय एवं इस न्यायालय में दिनांक 2/8/2007 को बयान देते समय न्यायालय को यह नही बताया कि वह पुलिस दबाव में है।
20- अतः अ0सा07 चंदन साव के प्रतिपरीक्षण में किये गये कथन से यह स्पष्ट होता है कि अ0सा07 चंदन साव ने न तो न्यायिक मजिस्टेंट श्री रामजीवन देवांगन के समक्ष दिनांक 17/2/2005 को और न ही इस न्यायालय के समक्ष दिनांक 2/8/2007 को इस बात की शिकायत की कि वह पुलिस के दबाव में है। जबकि दं0प्र0सं0 की धारा 164 का कथन लेखबद्ध करते समय उसे न्यायिक मजिस्टेंट श्री रामजीवन देवांगन द्वारा यह भली-भांति समझाया गया था कि वह कथन करने के लिये बाध्य नही है, और उसने यह कथन स्वेच्छा से करना है। अतः अ0सा07 चंदन साव के मुख्य परीक्षण में किये गये कथन पर विश्वास करने का प्रथम कारण यह है कि अ0सा07 चंदन साव ने न तो दिनांक 2/8/2007 को इस न्यायालय में और न ही दिनांक 17/2/2005 को न्यायिक मजिस्टेंट के न्यायालय में इस तथ्य की कोई शिकायत नही किया कि वह पुलिस के दबाव में है।

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