Saturday 14 March 2015

गैंगस्टर महादेव महार हत्याकांड फैसला (क्र. 101 से 110)

 

101- अभियोजन द्वारा मोबाइल फोन क्रमांक 98264-29840, 98264-29842, 98264-29846, 98264-29849, 98266-17200, 98264-29847, 98264-29848, 98266-88899 के ग्राहक के ओरिजनल फार्म, व अन्य दस्तावेजों एवं कॉल डिटेल्स को प्रस्तुत किया है। अ0सा058 भार्गव शर्मा ने अपने साक्ष्य की कण्डिका 1 में उन्हें निर्देशित उक्त मोबाइल नम्बरों के ओरिजनल फार्म को प्रदर्श पी 79, प्रदर्श पी 81, 85, प्रदर्श पी 87 अंकित किया गया है। प्रदर्श पी 79, 81, 85 एवं प्रदर्श पी 87 के दस्तावेजों से यह दर्शित होता है कि उक्त फर्म महाराजा ट्रांसपोर्ट कम्पनी के लिये भरे गये थे। प्रदर्श पी 79 एवं 87 के आवेदन पत्र में चस्पा फोटो प्रमाणित नही है। इसी प्रकार अ0सा058 भार्गव शर्मा ने अपने साक्ष्य की कण्डिका 7 और 8 में यह भी स्वीकार किया है कि प्रदर्श पी 79, 81, 85 व 87 में किसके हस्ताक्षर है, उसकी जानकारी उन्हें नही है। अतः ऐसी स्थिति में प्रदर्श पी 79 एवं प्रदर्श पी 87 के दस्तावेजों से आरोपीगण को जोड़ा नही जा सकता है।
102- अ0सा070 हनुमान सिंह यादव महाराजा ट्रांसपोर्ट के प्रोप्राइटर हैं, जिन्होंने अपने साक्ष्य की कण्डिका 1 में कथन किया है कि उन्होंने अप्रेल 2004 में आइडिया कम्पनी से पांच मोबाइल फोन का कनेक्शन लिया था और उसके दस-पन्द्रह दिन बाद और दो मोबाइल का कनेक्शन लिया था। इस साक्षी ने प्रदर्श पी 79, 81 से 86 के फार्म दस्तावेज एवं आवेदन पर ए से ए भाग में अपने हस्ताक्षर को स्वीकार किया है। इस साक्षी का अपने साक्ष्य की कण्डिका 2 में कथन है कि उसने दिनांक 17/5/2004 तक उक्त मोबाइल फोन क्रमांक 98264-29840, 98264-29842, 98264-29846, 98264-29847, 98264-29848, 98264-29849, 98266-17200, 98266-88899 का उपयोग किया और उसके बाद मोबाइल कनेक्शन बंद करने के लिये आवेदन दिया था। उसके बार-बार कहने से उक्त मोबाइल फोन बंद नही किया गया और आइडिया कम्पनी से पेमेण्ट के लिये फोन आना जारी रहा। तब उन्होंने अपने अधिवक्ता श्री अमर चोपड़ा के माध्यम से आइडिया कम्पनी को नोटिस भेजा । इस प्रकार अ0सा070 हनुमान सिंह यादव के साक्ष्य से ही यह प्रमाणित है कि उक्त प्रथम सात मोबाइल फोन के नम्बर अ0सा070 हनुमान सिंह यादव की कम्पनी को आबंटित थे।
103- अभियोजन द्वारा उक्त मोबाइल क्रमांकों को आरोपी तपन सरकार, विनोद बिहारी, जयदीप, शैलेन्द्र सिंह, अरविंद सिंह का बताया जा रहा है। लेकिन इस संबंध में कोई भी दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत नही किया गया है। इस संबंध में अ0सा070 हनुमान सिंह यादव ने अपने साक्ष्य में कथन किया है कि उन्होंने उक्त सातों मोबाइल क्रमांक को शराब ठेके के गद्दीदारों के पास छोड़ा था। उन्हें मोबाइल फोन के इस्तेमाल करने वाले व्यक्तियों के नाम की जानकारी आइडिया कम्पनी की ओर से बिल पेमेण्ट के भुगतान के लिये फोन करने वाले लोगों से हुई थी। लेकिन उसे यह जानकारी नही है कि आरोपी तपन सरकार, विनोद बिहारी, जयदीप, शैलेष सिंह, अरविंद सिंह किस मोबाइल फोन नम्बर का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस प्रकार अ0सा070 हनुमान सिंह ने मात्र सुनी सुनाई बातो के आधार पर उक्त मोबाइल क्रमांकों को आरोपीगण द्वारा उपयोग करना बताया गया है, जो अनुश्रूत साक्ष्य होने के कारण साक्ष्य के रूप में ग्राह्य नही है। अभियोजन द्वारा आइडिया कम्पनी के ऐसे किसी भी अधिकारी को साक्षी के रूप में प्रस्तुत नही किया गया है, जो यह प्रमाणित कर सके कि उक्त मोबाइल फोन उक्त आरोपियों द्वारा उपयोग किया जा रहा था।
104- इस प्रकरण में अ0सा061 अनिल वर्मा एक महत्वपूर्ण साक्षी है। अ0सा061 अनिल वर्मा के साक्ष्य के अनुसार वे 18 मार्च 2004 से रिलायंस कम्युनिकेशन कम्पनी में नोडल अधिकारी के पद पर रायपुर में कार्यरत हैं। इस साक्षी ने मोबाइल कनेक्शन क्रमांक 07883110190 के धारक द्वारा मोबाइल कनेक्शन हेतु प्रस्तुत आवेदन की प्रति को प्रदर्श पी 129 अंकित किया है एवं व्यक्त किया है कि मंगलसिंह के नाम से उक्त मोबाइल कनेक्शन जारी किया गया था जिसका परिवर्तित मोबाइल नम्बर 9329010190 हो गया। इस साक्षी ने उक्त मोबाइल क्रमांक के कॉल डिटेल्स को अपने कम्पनी के सर्वर से निकालने का कथन किया है जो प्रदर्श पी 130 ए,बी,सी है जिसके अ से अ भाग में उनके हस्ताक्षर है और ए से ए भाग में कम्पनी की सील है। इसी प्रकार अ0सा061 अनिल वर्मा ने मोबाइल कनेक्शन क्रमांक 07883338553 को रामबगस नामक व्यक्ति को आबंटित होने का कथन किया है जिसके आवेदन की प्रति प्रदर्श पी 131 है जो 2005 में बदलकर 9302838553 हो गया। उसके कॉल की डिटेल्स प्रदर्श पी 132 ए से आई है जिसके अ से अ भाग पर उसक हस्ताक्षर है और ए से ए भाग पर कम्पनी की सील है।
105- अ0सा061 अनिल वर्मा ने अपने साक्ष्य की कण्डिका 6 में स्वीकार किया है कि प्रदर्श पी 129 में न तो मंगल सिंह के पिता का नाम अंकित है और न ही मंगल सिंह की फोटो लगी है। प्रदर्श पी 129 में ब से ब भाग और स से स भाग पर किसके हस्ताक्षर है, वह नही जानता। इस साक्षी ने अपने साक्ष्य की कण्डिका 11 में स्वीकार किया है कि यह कहना सही है कि प्रदर्श पी 129, 131, 130 ए एवं सी तथा प्रदर्श पी 132 ए एवं आई, में उसके हस्ताक्षर है, लेकिन प्रदर्श पी 130 बी, प्रदर्श पी 132 बी से एच के दस्तावेजों में न तो कम्पनी के हस्ताक्षर है और न ही कम्पनी की सील लगी है। यह कहना सही है कि कॉल डिटेल दस्तावेजों के शीर्ष में कम्पनी का नाम, लोबो, कम्प्युटर का नम्बर, कॉल डिटेल्स निकालने वाले व्यक्ति का नाम अंकित नही है और न ही इस संबंध में कोई प्रमाण पत्र अंकित किया गया है। यह सही है कि उक्त कॉल डिटेल में विशिष्ट रूप से अथेन्टिसिटी सर्टिफिकेट अंकित नही है।
106- इस प्रकार अ0सा061 अनिल वर्मा के उक्त साक्ष्य से यह स्पष्ट होता है कि उपरोक्त कॉल डिटेल्स के दस्तावेजों के शीर्ष में (1) कम्पनी का नाम एवं लोबो (2) कम्प्युटर का नम्बर (3) कॉल डिटेल्स निकालने वाले व्यक्ति का नाम (4) किसी के डिजीटल या इलेक्ट्रानकि हस्ताक्षर नही है (5) प्रदर्श पी 30 बी और प्रदर्श पी 132 बी से एच में न तो हस्ताक्षर है और न ही सील है। अतः ऐसी स्थिति में जबकि धारा 65 (2)(ख) का पालन नही किया गया है, उक्त विसंगतियों को देखते हुये प्रस्तुत कॉल डिटेल्स प्रदर्श पी 130 ए, बी, सी, प्रदर्श पी 131 एवं प्रदर्श पी 132 ए से आई साक्ष्य के रूप में ग्राह्य नही है और उसके आधार पर आरोपियों को जोड़ा नही जा सकता है।
107- भा0दं0सं0 की धारा 212, 216 के अपराध के प्रमाणीकरण हेतु अभियोजन द्वारा अ0सा03 प्रशांत कुमार, अ0सा020 पी0राजकुमार एवं अ0सा032 नरेश वर्मा का साक्ष्य प्रस्तुत किया गया है। अ0सा03 प्रशांत कुमार ने अपने साक्ष्य की कण्डिका 2 में कथन किया है कि मैकेनिक का नाम गुल्लू श्रीवास्तव था या नही, उसे नही मालुम। इस साक्षी ने अपने पुलिस बयान प्रदर्श पी 8 के अ से अ, ब से ब एवं स से स भाग को पुलिस को नही देना बताया है। इसी प्रकार अ0सा020 पी0 राजकुमार ने अपने साक्ष्य की कण्डिका 2 में कथन किया है कि आरोपी एस. सैथिल्य ने उसे कोई सामान रखने नही दिया था, वह अभियुक्तगण को देखकर नही बता सकता कि कौन-कौन अभियुक्त उसके होटल में आते हैं। इस साक्षी ने अपने साक्ष्य की कण्डिका 5 में शैलेष सिंह द्वारा 35,000/-रुपये लाकर देने और उसे आरोपी एस.सैथिल्य को देने के तथ्य को गलत होने का कथन किया है। इस साक्षी ने आरोपी गुल्लू श्रीवास्तव और आरोपी तपन के बैग को लाने के तथ्य को भी गलत होने का कथन किया है। इसी प्रकार अ0सा032 नरेश वर्मा ने अपने साक्ष्य में स्कार्पियों वाहन अतुल बोरकर नामक व्यक्ति को विक्रय किये जाने का कथन किया है, लेकिन अ0सा032 नरेश वर्मा के साक्ष्य में किये गये कथन से अभियोजन को कोई फायदा नही होता है। अतः उक्त विवेचन से स्पष्ट है कि अभियोजन प्रस्तुत साक्ष्य के माध्यम से न तो आपराधिक षडयंत्र के अपराध को प्रमाणित कर पाया है और न ही भा0दं0सं0 की धारा 212, 216 के अपराध को प्रमाणित कर पाया है।
108- इस प्रकरण में विशेष लोक अभियोजक श्री शर्मा ने आपराधिक षडयंत्र को प्रमाणित करने हेतु आरोपीगण के बयान मेमोरेण्डम के अवलम्ब लिये जाने का तर्क प्रस्तुत किया है। इस संबंध में उन्होंने माननीय उच्चतम न्यायालय का न्यायदृष्टांत अनुज कुमार गुप्ता उर्फ सेठी गुप्ता बनाम बिहार राज्य एआईआर 2013 (एससी) 3013 प्रस्तुत किया है, और व्यक्त किया है कि बयान मेमोरेण्डम में वे तथ्य जो अपराध की स्वीकृति से संबंधित नही है, जैसे आरोपीगण के आपस का संबंध, अपराध का हेतुक आदि आरोपीगण के बयान मेमोरेण्डम से साबित माना जा सकता है। लेकिन इस न्यायालय का यह निष्कर्ष है कि विशेष लोक अभियोजक का उक्त तर्क स्वीकार योग्य नही है, क्योंकि माननीय उच्चतम न्यायालय ने अन्तरसिंह बनाम स्टेट आफ राजस्थान एआईआर 2004 एससी पेज क्रमांक 2865 में माननीय उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायदृष्टांत एआईआर 1978 एससी 1511, (2001) 9 एससीसी 362 एआईआर1947 पीसी 67, एआईआर 1963 एससी 1113, एआईआर 1976 एससी 483 का अवलम्ब लेते हुये साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 की विभिन्न आवश्यकताओं को इस प्रकार सारांशित (summed up) किया था -
(1) The fact of which evidence is sought to be given must be relevant to the issue. It must be borne in mind that the provision has nothing to do with the question of relevancy. The relevancy of the fact discovered must be established according to the prescriptions relating to relevancy of other evidence connecting it with the crime in order to make the fact discovered admissible. (2) The fact must have been discovered. (3) The discovery must have been in consequence of some information received from the accused and not by the accused’s own act. (4) The person giving the information must be accused of any offence. (5) He must be in the custody of a police officer. (6) The discovery of a fact in consequence of information received from an accused in custody must be deposed to. (7)Thereupon only that portion of the information which relates distinctly or strictly to the fact discovered can be proved. The rest is inadmissible.” 
जिसका अवलम्ब माननीय उच्चतम न्यायालय ने न्यायदृष्टांत चन्द्रप्रकाश विरूद्ध राजस्थान राज्य 2014 क्रिमनल लॉ जर्नल पेज क्रमांक 2884 में भी लिया था, जिसका उल्लेख इस न्यायालय द्वारा अ0सा077 राकेश भट्ठ के साक्ष्य की कण्डिका 7 में भी किया गया है। अतः माननीय उच्चतम न्यायालय के उक्त न्यायदृष्टांत में सारांशित विधि को दृष्टिगत रखते हुये अभियोजन का यह तर्क स्वीकार योग्य नही है कि आरोपीगण के बयान मेमोरेण्डम के आधार पर आपराधिक षडयंत्र का अपराध प्रमाणित होता है।
प्रकरण के विवेचक द्वारा संकलित दस्तावेज एवं रासायनिक परीक्षण का साक्ष्य 
मेमोरेण्डम एवं जप्ती का साक्ष्य
109- इस प्रकरण में प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्य है तो प्रत्यक्षदर्शी साक्षियों के साक्ष्य की पुष्टि आरोपीगण के बयान मेमोरेण्डम, एफ.एस.एल. रिपोर्ट, सेरोलॉजिस्ट की रिपोर्ट एवं सी.एफ.एस.एल. की रिपोर्ट से होती है। आरोपीगण के बयान मेमोरेण्डम एवं बयान मेमोरेण्डम के आधार पर की गयी जप्ती, एफ.एस.एल. रिपोर्ट, सेरोलॉजिस्ट रिपोर्ट एवं सी.एफ.एस.एल. रिपोर्ट के संबंध में आरोपीगण की निम्न प्रतिरक्षाएं हैं:-
1- आरोपीगण के बयान मेमोरेण्डम को स्वतंत्र साक्षियों ने प्रमाणित नहीं किया है। अतः मात्र विवेचक के साक्ष्य के आधार पर आरोपीगण के बयान मेमोरेण्डम को प्रमाणित नहीं माना जा सकता है। इस संबंध में आरोपी तपन सरकार एवं सत्यन माधवन के विद्वान अधिवक्ता ने न्यायदृष्टांत 1997 (1), एम.पी.डब्ल्यू.एन. 57, 2014, कि. लॉ.जन. 142 पटना एवं 1978 (1) एम.पी.डब्ल्यू.एन. 264, 1994 क्रि,लॉ.जन. 3602 का पैरा-24, 1998 क्रि.लॉ. रिपोर्टर, एम.पी.-22, 1995, क्रि.लॉ.जन. 3992 एस.सी. प्रस्तुत करते हुए यह तर्क किया है कि आरोपीगण का बयान मेमोरेण्डम प्रमाणित नहीं है।
2- आरोपीगण के अनुसार आरोपीगण के बयान मेमोरेण्डम के आधार पर की गयी जप्ती की वस्तुओं को मौके पर सीलबंद नहीं किया गया है और इस तथ्य का भी कोई साक्ष्य नहीं है कि उन्हें मालखाने में सुरक्षित रखा गया था। इस संबंध में आरोपीगण के विद्वान अधिवक्ता ने अ.सा. 76, आर0के0 राय (विवेचना अधिकारी) के साक्ष्य की कंडिका 97 की ओर न्यायालय का ध्यान आकृष्ट किया है, जिसमें अ.सा.76 आर0के0 राय ने यह कथन किया है कि यह कहना सही है कि जप्तशुदा आयुध तथ अन्य वस्तुएं जप्ती दिनांक से एफ.एस.एल. एवं सी.एफ.एस.एल. भेजे जाने तक कहां एवं किस हाल में रखी थी, इस संबंध में कोई दस्तावेज अभियोगपत्र में संलग्न नहीं है।
3- प्रदर्श पी 4, 9, 72, 54, 55, 112, 43 के जप्तीपत्र तथा माल एक्सपर्ट को भेजने के फार्म प्रदर्श पी 223, एक्सपर्ट को भेजने के पुलिस अधीक्षक के ज्ञापन प्रदर्श पी 134-ए, 135-ए एवं सी.एफ.एस.एल. की रिपोर्ट प्रदर्श पी 134, 135 में जप्तशुदा सामान का हुलिया के उल्लेख में महत्वपूर्ण भिन्नता है, जिससे यह प्रगट होता है कि जप्तशुदा सामान में हेरा-फेरी की गयी थी ।
4- इसी प्रकार प्रदर्श पी 134-ए, 135-ए, 223, 134, 135 में वस्तुओं का भिन्न-भिन्न विवरण दर्शित करता है कि वस्तुओं से छेड़छाड़ की गयी है और प्रतिस्थापना की गयी है।
5- परिशिष्ट-ए से यह प्रगट होता है कि जप्ती के समय सीलबंद डिब्बा होता है और सी.एफ.एस.एल. में डिब्बे की जगह बोतल बन जाता है। इसी प्रकार अपराध विवरण फार्म प्रदर्श पी 225 में खोखा का हुलिया या पहचान का चिन्ह अंकित नहीं है। इसी प्रकार मृतक की चमड़ी डॉक्टर के अनुसार तीन सीलबंद बरनियों में भेजी जाती है, किंतु माल भेजने के फार्म प्रदर्श पी 223 में एक ही डिब्बे में चारों चीज पैक होना दर्शायी गयी है।
6- जप्तीपत्रकों की प्रतिलिपियां न्यायालय में प्रेषित नहीं की गयी है।
7- सी.एफ.एस.एल. के वैज्ञानिक अ.सा.63 डॉ.पी. सिद्म्बरी के साक्ष्य की कंडिका-2 (2)(3) के अनुसार जो सील अंकित है, वह सिविज सर्जन, एम.पी., दुर्ग की सील है, जबकि वर्ष 2000 में छ.ग. का निर्माण हो गया है। अतः सी.एफ.एस.एल. में सिविल सर्जन, एम.पी. दुर्ग की सील पाए जाने से अभियोजन का संपूर्ण प्रकरण संदेहास्पद हो जाता है।
8- जप्त वस्तुओं पर आरोपीगण के हस्ताक्षर नहीं लिए गए है।
9- जप्त सामान थाने में लाए जाने या थाने से बाहर निकालने का रो.सा. में प्रविष्टि किए जाने का प्रावधान है, लेकिन ऐसा कोई रो.सा. प्रस्तुत नहीं किया गया है। अतः आरोपीगण के विद्वान अधिवक्तागण ने यह व्यक्त किया है कि आरोपीगण के बयान मेमोरेण्डम पर की गयी बरामदगी एवं प्रस्तुत राज्य न्यायालयिकविज्ञान प्रयोगशाला की रिपोर्ट एवं सीएफएसएल चंडीगढ़ की रिपोर्ट के आधार पर आरोपीगण की दोषसिद्धि नहीं की जा सकती है।
110- आरोपीगण द्वारा प्रस्तुत उक्त प्रतिरक्षाओं पर विचार किया गया । सर्वप्रथम इस प्रतिरक्षा का निराकरण किया जा रहा है कि क्या विवेचक के साक्ष्य के आधार पर बयान मेमोरेण्डम की कार्यवाही को प्रमाणित माना जा सकता है ?  इस संबंध में यह स्थापित विधि है कि यदि आरोपीगण पर अभियोजित अपराध में संलिप्तता के प्रमाणीकरण हेतु कोई भी साक्ष्य उपलब्ध नहीं है, तब ऐसी स्थिति में मात्र विवेचक के साक्ष्य के आधार पर आरोपीगण की दोषसिद्धि नहीं की जा सकती है। लेकिन इस प्रकरण में जैसा की इस निर्णय के ऊपर विवेचित किया जा चुका है कि इस प्रकरण में घटना के प्रत्यक्षदर्शी साक्षी हैं और उन्होंने अपने-अपने प्रत्यक्ष साक्ष्य में इस तथ्य को प्रमाणित किया है कि आरोपीगण ने पिस्टल, कट्टा, चाकू, कटार आदि से मृतक महादेव महार की हत्या की है। तब ऐसी स्थिति में यदि विवेचक का साक्ष्य विश्वास के योग्य है तो उस विश्वसनीय साक्ष्य के आधार पर आरोपीगण के बयान मेमोरेण्डम एवं बयान मेमोरेण्डम के आधार पर की गयी जप्ती को विश्वास योग्य माना जा सकता है। इस संबंध में माननीय उच्चतम न्यायालय का न्यायदृष्टांत 2010 लॉज. (एस.सी.)-10-94 की कंडिका 25, मधु उर्फ मधुरांथा एवं एक अन्य बनाम कनार्टक राज्य एआइआर 2014 सुप्रीम कोर्ट 394 का पैरा 11 अवलोकनीय है। अतः अब यह न्यायालय आरोपीगण के बयान मेमोरेण्डम एंवं उसके आधार पर की गयी जप्ती के साक्ष्य की विवेचना की ओर अग्रसर हो रही है।

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