Saturday 14 March 2015

गैंगस्टर महादेव महार हत्याकांड फैसला (क्र. 151 से 160)

 

151- अ.सा.76 आर0के0 राय ने प्रदर्श पी 213 के माध्यम से घटना स्थल से जप्त दो खाली कारतूस, मृतक की चमड़ी, आरोपी सत्यन माधवन से अंडरब्रिज के खंभे के पास भूमि के अंदर से जप्त किया गया देसी कट्टा, जिसके बैरल के अंदर एक कारतूस खोखा फंसा हुआ था, आरोपी प्रभाष सिंह से जप्त लोहे का कट्टा और खाली खोखा और आरोपी तपन सरकार से जप्त लोहे का कट्टा व जिंदा कारतूस को परीक्षण हेतु प्रेषित किया था, जिसके संबंध में अ.सा.63 डॉ. पी.सिद्दम्बरी ने प्रदर्श पी 134 का प्रतिवेदन दिया है। अतः इस प्रदर्श पी 134 के प्रतिवेदन से निम्न तथ्य प्रमाणित होते हैं:-
1- आरोपी तपन से जप्त कट्टा ए-3 का मिलान घटना स्थल से जप्त फायर्ड खोखा सी-01 से होता है।
2- आरोपी सत्यन माधवन से जप्त क्टा ए-1 का मिलान कट्टे में फंसा खोखा सी-3 एवं घटना स्थल से जप्त फायर्ड गोली बी-1 से होता है।
3- आरोपी प्रभाष से जप्त कट्टा ए-2 का मिलान घटना स्थल से जप्त फायर्ड गोली बी-2 से होता है। साथ ही उसके घर में कब्जे से जप्त सी-4 खोखा से भी होता है। बैलेस्टिक एक्सपर्ट द्वारा स्पष्ट अभिमत दिया गया है कि उपरोक्त वर्णित अनुसार ही जप्त कट्टे से मिलान की गयी खोखा एवं गोलियां फायर किया गया है, अन्य किसी हथियार से नहीं। यह जांच प्रतिवेदन वैज्ञानिक आधार लिए हुए है और अभिमत निष्कर्षात्मक है।
4- पी.एम. में जप्त गोली बी-3, ए-1, ए-2, ए-3 से लोड होता है एवं फायर भी होता है।
152- अ.सा.63 डॉ.पी.सिद्दम्बरी ने आरोपी मंगल सिंह से जप्त कट्टे, 9 एमएम कारतूस व आरोपी शैलेन्द्र ठाकुर से जप्त लोहे का कट्टा 303 बोर का, एक खोखा आर्टिकल ए-6, 303 बोर का कट्टा एवं 303 बोर के 09 नग जिंदा कारतूस का परीक्षण कर प्रतिवेदन प्रदर्श पी 135 का प्रतिवेदन दिया था। अ.सा.63 डॉ. पी.सिद्दम्बरी ने आरोपी शैलेन्द्र ठाकुर से जप्त दो कट्टा आर्टिकल ए-5, ए-6 को कार्यरत अवस्था में पाया था और यह भी पाया था कि उससे .303 के कारतूस का फायर किया जा सकता है। उन्होंने यह भी पाया था कि आरोपी मंगल सिंह से जप्त 9एमएम के कट्टा आर्टिकल ए-4 और कारतूस आर्टिकल सी-5 में से कट्टा कार्यरत अवस्था में था और उससे कारतूस आर्टिकल सी-5 का फायर किया जा सकता था ।
153- अब यह न्यायालय आरोपीगण की प्रतिरक्षाओं पर विचार करने की ओर अग्रसर हो रहा है, जो इस न्यायालय की कंडिका 109 में उल्लेखित है।
प्रतिरक्षा क्रमांक 3 व 4
154- प्रदर्श पी 4, पी 9, पी 72, पी 54, पी 55, पी 112, पी 43, पी 223, पी 134-ए, पी 135-ए, सी.एफ.एस.एल. की रिपोर्ट प्रदर्श पी 134, पी 135, पी 225 का अवलोकन किया गया । यह बात सही है कि उक्त दस्तावेजों में घटना स्थल से जप्त खाली कारतूस व कारतूस के हुलिए का अलग-अलग तरीके से उल्लेख किया गाय है, लेकिन यह भी सही है कि जहां प्रदर्श पी 4, पी 9, पी 54, पी 55 अ.सा.76 आर.के. राय द्वारा निष्पादित किया गया है तो वहीं प्रदर्श पी 72 अ.सा.77 राकेश भट्टे प्रदर्श पी 135-ए पुलिस उपमहानिरीक्षक व प्रदर्श पी 223 अ.सा.77 राकेश भट्ट द्वारा निष्पादित किया गया है। अतः जहां उक्त दस्तावेजों को भिन्न-भिन्न व्यक्तियों द्वारा निष्पादित किया गया है, वहां जप्तशुदा संपत्ति, खाली कारतूस के खोखे, लोहे के कट्टे, बटनदार चाकू आदि के हुलिए में थोड़ा-बहुत फर्क आना स्वाभाविक है। इसके अतिरिक्त आरोपी सत्यन माधवन एवं आरोपी तपन सरकार के विद्वान अधिवक्ता ने उक्त दस्तावेजों में उक्त संपत्तियों के हुलिए में आए अंतर के संबंध में अ.सा.76 आर0के0 राय एवं अ.सा.77 राकेश भट्टे से कोई प्रश्न नहीं किया है। अतः ऐसे प्रश्नों के अभाव में उक्त मानवीय त्रुटियों के कारण आयी विभिन्नता से यह निष्कर्ष नहीं दिया जा सकता है कि जप्तशुदा सामानों के हुलियों में भिन्नता होने के कारण जप्तशुदा वस्तुओं में छेड़छाड़ की गयी है।
प्रतिरक्षा क्रमांक-5
155- जहां तक सीलबंद डिब्बे का सी.एफ.एस.एल. में बोतल (बोतल इस प्रकरण में अ0सा065 पी. सिद्दम्बरी ने अपने साक्ष्य में प्लास्टिक की बोतल ही उल्लेखित किया है), बन जाने का प्रश्न है, तो यह भी मानवीय अवलोकन की त्रुटि हो सकती है, क्योंकि आजकल प्लास्टिक की बोतल भी उपलब्ध होती है, जिसे कोई व्यक्ति डिब्बा कहता है और कोई व्यक्ति उसे बोतल भी कह सकता है । जहां तक अपराध विवरण फार्म प्रदर्श पी 225 में खोखे का हुलिया या पहचान चिन्ह का प्रश्न है तो प्रदर्श पी 225 अ.सा.77 राकेश भट्ट द्वारा निर्मित घटना स्थल का नजरी नक्शा है, उसमें खोखे के हुलिए या पहचान चिन्ह को अंकित करने की आवश्यकता ही नहीं है। इसी प्रकार जहां तक माल भेजने के फार्म प्रदर्श पी 223 का प्रश्न है तो प्रदर्श पी 223 में एक ही डिब्बे में भेजने का कोई उल्लेख नहीं है, बल्कि प्रदर्श पी 223 माल भेजने का फार्म है, जो केंद्रीय न्यायालयिक विज्ञान प्रयोगशाला, चंडीगढ़ को प्रेषित किया गया है, उसमें भेजे गए 9 एमएम के पिस्टल कारतूस, 303 बोर के लोहे के कट्टे, 315 बोर के 09 नग, 303 बोर के 06 नग और 9 एमएम के तीन नग कारतूस टेस्ट फायर हेतु तथा दो खाली कारतूस के खोखे 8 एमएम केएफ लिखा हुआ और इसी प्रकार सभी संपत्तियों का उल्लेख है जो केंद्रीय न्यायालयिक विज्ञान प्रयोगशाला के वैज्ञानिक अधिकारी अ.सा.63 डॉ. पी.सिद्दम्बरी ने अपने साक्ष्य में प्राप्त होना बताया है। इन सब के अतिरिक्त आरोपीगण के विद्वान अधिवक्ता ने इस प्रतिरक्षा के संबंध में भी विवेचकगण से कोई प्रश्न नहीं किया है। अतः आरोपीगण की यह प्रतिरक्षा प्रकरण में निर्मित किए गए प्रदर्श पी 225 व पी 223 के दस्तावेजों से प्रतिकूल है।
प्रतिरक्षा क्रमांक -6
156- जप्तीपत्रकों की प्रतिलिपियों को न्यायालय में भेजने का कोई प्रावधान नहीं है और इस संबंध में आरोपीगण के विद्वान अधिवक्ता ने कोई प्रावधान अपने अंतिम तर्क के स्तर पर भी प्रस्तुत नहीं किया है।
प्रतिरक्षा क्रमांक-7
157- अ.सा.63 डॉ.पी.सिद्दम्बरी की साक्ष्य की कंडिका-2 (2)(3) के अनुसार उन्होंने पार्सल नं. 3 पर प्लास्टिक की बोतल में **CIVIL SURGEON, M.P. DURG" की सील होना पाया था । इस संबंध में अ.सा.10 डॉ. जे.पी.मेश्राम ने अपने साक्ष्य की कंडिका 8 (3) में कथन किया है कि उन्होंने सील करके सभी सैम्पल पुलिस कॉस्टेबल पुलिस कांस्टेबल होलसिंह नं. 891 पुलिस थाना सुपेला को दिया था । लेकिन इस साक्षी के प्रतिपरीक्षण में आरोपीगण के अधिवक्ता ने इस आशय का कोई भी प्रश्न नहीं पूछा है कि उन्होंने प्रेषित वस्तुओं में “CIVIL SURGEON, M.P. DURG" की सील लगायी थी या कोई और सील लगायी थी और यदि लगायी थी तो क्यों लगायी थी। चूंकि इस आशय का कोई प्रश्न नहीं पूछा गया है, अतः ऐसी स्थिति में आरोपीगण की यह प्रतिरक्षा स्वीकार नहीं की जा सकती है। यदि किसी विवादित बिन्दु के संबंध में कोई प्रश्न प्रतिपरीक्षण में नही पुछा गया है तो उस बिन्दु पर अविश्वास नही किया जा सकता है, इस संबंध में माननीय छ0ग0 उच्च न्यायालय का न्यायदृष्टांत 2009 (2) सीजीएलजे (सीजी) पेज क्रमांक 183 अवलोकनीय है।
प्रतिरक्षा क्रमांक-8, 9
158- जहां तक जप्त आयुधों पर आरोपीगण के हस्ताक्षर नहीं लिए जाने का संबंध है, तो इस संबंध में आरोपीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा अ.सा.76 आर0के0 राय से बार-बार यही प्रश्न किए जाने पर इस न्यायालय द्वारा अ.सा.76 के साक्ष्य की कंडिका 59 में आरोपीगण के अधिवक्ता को यह निर्देश दिया गया था कि वे जप्त वस्तुओं में आरोपी के हस्ताक्षर होने के संबंध में प्रावधान या नियम तर्क के समय प्रस्तुत करें। लेकिन उन्होंने ऐसा कोई भी प्रावधान या नियम अंतिम तर्क के स्तर पर प्रस्तुत नहीं किया है। उन्होंने माननीय उच्चतम न्यायालय का जो न्यायदृष्टांत 1995, क्रि.लॉ.जन. 3992 एस.सी. प्रस्तुत किया है, वह जप्तीपत्र एवं मेमोरेण्डम में आरोपी के हस्ताक्षर लिए जाने के संबंध में है, न कि आयुधों में आरोपी के हस्ताक्षर लिए जाने के संबंध में ।
159- जहां तक जप्त संपत्ति थाने में लाए जाने या थाने से बाहर निकालने के संबंध में रो.सा. में प्रविष्टि किए जाने के संबंध में दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए जाने का प्रश्न है तो इस प्रकरण में प्रत्यक्षदर्शी साक्षियों के साक्ष्य, एफ.एस.एल. रिपोर्ट, बैलेस्टिक एक्सपर्ट की रिपोर्ट को दृष्टिगत रखते हुए संबंधित रोजनामचा प्रस्तुत नहीं किए जाने का कोई प्रतिकूल प्रभाव इस प्रकरण में नहीं पड़ता है।
160- अतः उक्त विवेचन से स्पष्ट है कि मेमोरेण्डम, मेमोरेण्डम के आधार पर की गयी जप्ती, घटना स्थल से जप्त खाली खोखे, कारतूस, एफ.एस.एल. रिपोर्ट, बैलेस्टिक एक्सपर्ट की रिपोर्ट के संबंध में आरोपीगण के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा उठायी गयी प्रतिरक्षाएं उक्त सूक्ष्म विवेचन के उपरांत स्वीकार योग्य नहीं है। अतः अस्वीकार की जाती है। अभियोजन यह प्रमाणित करने में सफल हुआ है कि घटना स्थल से जप्त कारतूस व खोखे, आरोपी तपन सरकार, आरोपी सत्यन माधवन एवं आरोपी प्रभाष सिंह से जप्त कट्टे से चलाए गए थे । अभियोजन यह भी प्रमाणित करने में सफल हुआ है कि अन्य आरोपियों से जप्त आयुध भी मृतक महादेव महार की हत्या के अपराध में प्रयुक्त हुए हैं ।

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