192- इस प्रकरण में आरोपी तपन सरकार के विरूद्ध यह एक परिस्थिति है कि घटना के बाद वह फरार हो गया था। इस संबंध में अ0सा071 राजीव शर्मा का साक्ष्य अवलोकनीय है, जिससे यह दर्शित होता है कि आरोपी तपन सरकार घटना दिनांक 11/2/2005 के बाद फरार हो गया था और उसने अ0सा071 राजीव शर्मा ने दिनांक 24/7/2005 को देवरी थाना के सामने टोयटा क्वालिस वाहन क्रमांक पी.बी. 46 सी, 4318 सहित गिरफ्तार किया था और थाना सुपेला के सुपुर्द किया था। आरोपी तपन का फरार होना माननीय उच्चतम न्यायालय के न्यायदृष्टांत श्यामलाल घोष बनाम स्टेट आफ वेस्ट बंगाल 2012 क्रिमनल लॉ जर्नल 3825 के पैरा 41 के अनुसार एक महत्वपूर्ण परिस्थिति है जो उसके अपराध कारित किये जाने की ओर इंगित करती है।
आरोपीगण तपन सरकार, सत्येन माधवन, बॉबी उर्फ विद्युत चौधरी, विनोद बिहारी, अनिल शुक्ला द्वारा प्रस्तुत प्रतिरक्षा साक्ष्य
193- आरोपी तपन सरकार और सत्येन माधवन की ओर से प्रतिरक्षा साक्षी क्रमांक 1 जितेन्द्र वर्मा का साक्ष्य प्रस्तुत किया गया है, जिन्होंने अपने साक्ष्य की कण्डिका 1 में कथन किया है कि वे 9-10 वर्ष पहले सुबह 5 बजे मार्निंग वॉक के लिये निकले थे, तब 5.30 बजे सुभाष चौक पहुंचे तो मृतक महादेव अचेत अवस्था में पड़ा था, तब वे उसे हिला-डुलाकर देखे तो ऐसा लगा कि उसकी मृत्यु हो गयी है। तब वे थाना सुपेला गये, उन्होंने महिला पुलिस अधिकारी को बताया कि सुभाष चौक में महादेव खुन से लथपथ पड़ा है और उसके बाद वे बच्चों को स्कुल छोड़ने चले गये। जब बच्चों को स्कुल छोड़कर 8.15-8.30 बजे के मध्य पुनः सुभाष चौक आये तो देखे कि वहां बहुत भीड़ लगी थी, तब उन्होंने महिला पुलिस अधिकारी को बताया कि वे ही थाना आये थे, तो महिला पुलिस अधिकारी ने उससे कहा कि अब तुम्हारा कोई काम नही है, अब तुम जा सकते हो। इस प्रकार अ0सा01 जितेन्द्र वर्मा ने अपने साक्ष्य में यह प्रमाणित करने का असफल प्रयास किये हैं कि घटना समय 6.28 के पहले ही मृतक महादेव को उसने मृत अवस्था में देखा था। इस प्रकरण में आरोपी सत्येन माधवन और तपन सरकार की पूरे अभियोजन साक्ष्य के दौरान यह प्रतिरक्षा रखी जाती रही कि मृतक महादेव की हत्या का समय प्रातः 3 से 4 बजे के बीच का है। लेकिन उन्होंने प्रतिरक्षा साक्षी क्रमांक 1 जितेन्द्र वर्मा का जो साक्ष्य प्रस्तुत किया है, उसकी कण्डिका 3 के अनुसार घटना दिनांक 11/2/2005 को वह अपने घर से 3 से 4 बजे के बीच नही निकला था। अतः स्पष्ट है कि प्रतिरक्षा साक्षी क्रमांक 1 जितेन्द्र वर्मा ने प्रातः 3 से 4 बजे के मध्य मृतक महादेव महार के शव को देखे जाने के तथ्य की पुष्टि नही की है। जहां तक इस प्रकरण में घटना समय 6.28 बजे के पहले मृतक के शव को सुभाष चौक में देखे जाने का प्रश्न है, तो इस संबंध में इस साक्षी ने अपने साक्ष्य की कण्डिका 5 में कथन किया है कि उसने महादेव के शव को 5.30 बजे सुभाष चौक में देखने का कथन पहली बार न्यायालय में किया है। उसने पुलिस के किसी वरिष्ठ अधिकारी को भी उक्त बात नही बतायी थी। ऐसी स्थिति में जबकि इस प्रकरण में अभियोजन ने अकाट्य एवं ठोस साक्ष्य के माध्यम से मृतक महादेव महार की मृत्यु का समय प्रातः 6.28 बजे प्रमाणित किया है, तब प्रतिरक्षा साक्षी क्रमांक 1 जितेन्द्र वर्मा के साक्ष्य पर विश्वास नही किया जा सकता है, क्योंकि प्रतिरक्षा साक्षी क्रमांक 1 जितेन्द्र वर्मा ने आरोपीगण की इस प्रतिरक्षा की पुष्टि नही की है कि उसने मृतक के शव को प्रातः 3 से 4 बजे के मध्य देखा था। इसके अतिरिक्त प्रतिरक्षा साक्षी क्रमांक 1 जितेन्द्र वर्मा ने मृतक के शव को 5.30 बजे सुभाष चौक में देखे जाने के बारे में न तो किसी पुलिस अधिकारी से शिकायत की है और न ही न्यायालय में कोई शिकायत की है।
194- आरोपी विद्युत चौधरी ने प्रतिरक्षा साक्षी क्रमांक 2 संजीव बंसल एवं प्रतिरक्षा साक्षी क्रमांक 3 श्रीमती अर्चना चौधरी का साक्ष्य प्रस्तुत किया है। इनके साक्ष्य के अनुसार प्रतिरक्षा साक्षी क्रमांक 3 अर्चना चौधरी आरोपी विद्युत चौधरी की पत्नि है, जबकि प्रतिरक्षा साक्षी क्रमांक 2 संजीव बंसल आरोपी विद्युत चौधरी की पत्नि का मित्र है। प्रतिरक्षा साक्षी क्रमांक 2 संजीव बंसल और प्रतिरक्षा साक्षी क्रमांक 3 अर्चना चौधरी के साक्ष्य के अनुसार वे लोग घटना दिनांक 11/2/2005 के दो दिन पहले अर्थात् 9/2/2005 को समता एक्सप्रेस से एक साथ दिनांक 10/2/2005 को दिल्ली पहुंचे थे, और दिल्ली में श्रीमती मंजुला अग्रवाल के घर रूके थे, और उसके बाद दिनांक 11/2/2005 को सुबह 6-6.30 बजे वे लोग बस पकड़कर बरेली गये थे। उसके बाद विवाह समारोह में शामिल हुये, और दिनांक 12/2/2005 को आरोपी विद्युत चौधरी और उसकी पत्नि अर्चना चौधरी वैष्णव देवी के दर्शन के लिये जम्मु चले गये थे। दिनांक 11/2/2005 को हुये विवाह में आरोपी विद्युत चौधरी अपनी पत्नि अर्चना चौधरी, दुल्हन प्रियंका और उसके पति विकास के साथ फोटो भी खिचाये थे। प्रतिरक्षा साक्षी क्रमांक 3 अर्चना चौधरी ने अपने साक्ष्य के समर्थन में आधार कार्ड की प्रति प्रदर्श डी 6, छाया प्रति प्रदर्श डी सी 6, विवाह का निमंत्रण कार्ड प्रदर्श डी 7, महासमुंद से दिल्ली की यात्रा का टिकिट प्रदर्श डी 8 और दिल्ली से जम्मुतवी की यात्रा का टिकिट प्रदर्श डी 9 और माता वैष्णव देवी की यात्रा परची प्रदर्श डी 10 को प्रस्तुत किया है।
195- इस प्रकार आरोपी विद्युत चौधरी ने इस न्यायालय के समक्ष ‘‘अन्यंत्र उपस्थिती की प्रतिरक्षा ली है।‘‘ लेकिन उन्होंने प्रकरण में जो प्रतिरक्षा साक्ष्य प्रस्तुत किया है, उसमें प्रदर्श डी 8 और प्रदर्श डी 9 की टिकिट से आरोपी विद्युत चौधरी ने ही यात्रा की थी, यह तथ्य प्रमाणित नही होता है। जहां तक फोटो क्रमांक 1 और 2 का प्रश्न है तो उसकी निगेटिव प्रस्तुत नही की गयी है। इसके अतिरिक्त अ0सा01 तारकेश्वर सिंह एवं अ0सा07 चंदन साव दोनों ने ही अपने-अपने साक्ष्य एवं दं0प्र0सं0 की धारा 164 के कथन में आरोपी विद्युत चौधरी उर्फ बॉबी उर्फ बेनी का नाम लिया है। अतः ऐसी स्थिति में जबकि अभियोजन आरोपी विद्युत चौधरी की सहभागिता मृतक महादेव महार की हत्या के अपराध से जोड़ने में सफल हुआ है, तब आरोप विद्युत चौधरी द्वारा प्रस्तुत उक्त प्रतिरक्षा साक्ष्य के आधार पर यह निष्कर्ष नही दिया जा सकता है कि आरोपी विद्युत चौधरी घटना दिनांक 11/2/2005 को प्रातः 6.28 बजे ट्रेन समता एक्सप्रेस में सफर कर रहा था। इस संबंध में माननीय उच्चतम न्यायालय का न्यायदृष्टांत पांडुरग चन्द्रकांत म्हात्रे एवं अन्य विरूद्ध स्टेट आफ महाराष्टं के पैरा 60 मे माननीय उच्चतम न्यायालय ने यह अवलोकित किया है कि:-
60.In what we have already discussed above, we see no merit in the plea of alibi set up by A-2. The plea of alibi set up by A-2 was not even accepted by the trial court. The presence of A-2 in the incident is established. He has been identified holding the iron bar. The prosecution witnesses have given specific involvement of A-2 in the incident. On the basis of the deposition of some of the eye-witnesses, the evidence of DW-1 cannot be said to have been wrongly rejected by trial court as well as by High Court. In cross-examination, DW-1 admitted that there was no Supervisor at night on that date. Insofar as, document Article-8 is concerned, suffice it to observe that original document was not produced and name and designation of the officer who is said to have signed the said certificate was not disclosed nor the person who issued the certificate was produced. As a matter of fact, plea of alibi has not at all been probabilised by A-2 much less proved.196- जहां तक आरोपी विनोद सिंह उर्फ विनोद बिहारी की प्रतिरक्षा साक्ष्य का प्रश्न है तो उन्होंने प्रतिरक्षा साक्षी क्रमांक 4 धूपनारायण सिंह का साक्ष्य प्रस्तुत किया है, जो आरोपी विनोद सिंह उर्फ विनोद बिहारी के ससुर हैं, जिन्होंने अपने साक्ष्य में कथन किया है कि आरोपी विनोद सिंह उर्फ विनोद बिहारी उनके पुत्र के मृत्यु कार्यक्रम में शामिल होने जबलपुर आये थे। ऐसी स्थिति में जबकि आरोपी विनोद सिंह के विरूद्ध अभियोजित अपराध की संलिप्तता के संबंध में कोई समाधानपूर्ण साक्ष्य नही है, तब प्रतिरक्षा साक्षी क्रमांक 4 धूपनारायण सिंह के साक्ष्य पर अविश्वास किये जाने का कोई कारण इस न्यायालय के समक्ष नही है।
197- जहां तक आरोपी अनिल शुक्ला द्वारा प्रस्तुत अपराध क्रमांक 21/05 के प्रथम सूचना पत्र एवं अन्य दस्तावेजों की सत्य प्रतिलिपि का प्रश्न है, तो उससे कोई फर्क अभियोजन के साक्ष्य पर नही पड़ता है। यह नही माना जा सकता कि अ0सा07 चंदन साव ने अपराध क्रमांक 21/05 में आरोपी अनिल शुक्ला के बयान के कारण उसे झूठा फंसाया है।
आरोपीगण के अधिवक्तागण द्वारा प्रस्तुत न्यायदृष्टांत
198- आरोपीगण के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा माननीय मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के निम्न न्यायदृष्टांत प्रस्तुत किये गये हैं:-
प्रथम सूचना पत्र के संबध में:- (1) 1997 (2) एमपीडब्ल्युएन नोट क्रमांक 5, (2) 1990 जे.एल.जे. 772, (3) 1997 (2) एमपीडब्ल्युएन 222, (4) 1998 (2) एमपीडब्ल्युएन 219. लेकिन इस प्रकरण में प्रथम सूचना पत्र दर्ज करने वाले पुलिस अधिकारी ने प्रथम सूचना पत्र दर्ज करने से इंकार नही किया है और न ही अ0सा08 प्रशांत उर्फ गुड्डा उर्फ संतोष शर्मा से इस संबंध में कोई प्रश्न भी नही पुछा गया है कि उसने थाना सुपेला में अपराध की सूचना दी थी या नही दी थी। माननीय उच्चतम न्यायालय का न्यायदृष्टांत:- थानेदार सिंह विरूद्ध म0प्र0 राज्य 2002 (1) क्रिमनल लॉ जर्नल पेज क्रमांक 254:- इस न्यायदृष्टांत में प्रथम सूचना पत्र दर्ज करने के समय और दिनांक को लेकर संदेह था। इसी प्रकार इस न्यायदृष्टांत में प्रथम सूचना पत्र को घटना के एक दिन छोड़कर दूसरे दिन दिनांक 21/5/1982 को प्रेषित किया गया था। जबकि इस प्रकरण में घटना के दिन दिनांक 11/2/2005 को लगभग 3 घण्टे 40 मिनट के अंदर दर्ज कर लिया गया था।
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