Saturday 14 March 2015

गैंगस्टर महादेव महार हत्याकांड फैसला (क्र. 61 से 70)

 

61- अतः दं0प्र0सं0 की धारा 164, पक्षद्रोही साक्षियों के साक्ष्य एवं मुख्यपरीक्षण के कथनों को प्रतिपरीक्षण में मुकर जाने की स्थिति में अभिनिर्धारित एवं अवलोकित उक्त विधि (इस निर्णय की कण्डिका 43) को दृष्टिगत रखते हुये स्पष्ट है कि इस प्रकरण में अ0सा01 तारकेश्वर सिंह के साक्ष्य दिनांक 17/6/2006, अ0सा07 चंदन साव के मुख्यपरीक्षण दिनांक 2/8/2007 का अवलम्ब उक्त विवेचन अनुसार लिया जा सकता है, क्योंकि अ0सा07 चंदन साव ने अपने मुख्य परीक्षण में वही कथन किया है जो उसने न्यायिक मजिस्टेंट अ0सा059 रामजीवन देवांगन के समक्ष किया था।
62- अ0सा07 चंदन साव के साक्ष्य में आरोपी बॉबी उर्फ विद्युत चौधरी, छोटू उर्फ कृष्णा, पिताम्बर साहू , तपन सरकार, मंगल सिंह, प्रभाष सिंह, राजू खंजर, अनिल शुक्ला, बिज्जू उर्फ महेश, सत्येन माधवन, शैलेन्द्र ठाकुर, बच्चा उर्फ अब्दुल जायद व रंजीत सिंह का नाम मृतक महादेव महार की हत्या के अपराध के संबंध में है। जबकि अ0सा01 तारकेश्वर सिंह ने अपने साक्ष्य में आरोपी प्रभाष सिंह, मंगलसिंह, तपन, सत्येन, गुल्लू श्रीवास्तव, बेनी चौधरी, बच्चा और अन्य आठ-दस व्यक्तियों का घटनास्थल पर आने का कथन किया है और आरोपी तपन, सत्येन माधवन, मंगल द्वारा पिस्टल से फायर करना बताया है।
63- जबकि अ0सा07 चंदन साव के दं0प्र0सं0 की धारा 164 के तहत अभिलिखित किये गये कथन प्रदर्श पी 22 में यह उल्लेखित है कि -
‘‘बाईक से विद्युत चौधरी नीचे उतरा, बाकी तीन लोग और बाईक में थे, जिनका नाम नही जानता, देखने से पहचान जाउंगा। मिनीडोर से तपन सरकार, बिहारी, सत्येन माधवन, प्रभाष, गोल्डी, विश्वकर्मा, मंगलसिंह, राजू खंजर, गुल्लू श्रीवास्तव, जयदीप, बच्चा उर्फ अब्दुल जायद, अनिल शुक्ला आदि लोग नीचे उतरे। ................. उसी समय तपन सरकार, बिहारी, प्रभाष (लिपिकीय त्रुटि के कारण प्रभात टाइप हुआ है), सत्येन (लिपिकीय त्रुटि के कारण सत्येन्द्र टाइप हुआ है), पांचों लोग गोली मारे, और बाकी लोग डण्डा, तलवार और नारियल काटने के औजार से महादेव को मारपीट किये। उसके बाद हम लोगों की तरफ वे लोग फायर करने लगे।‘‘
64- अ0सा07 चंदन साव ने बाईक से उतरने वाले तीन आरोपियों को देखने से पहचान जाउंगा, का कथन किया है। इस तीन आरोपी के संबंध में अ0सा07 चंदन साव ने अपने साक्ष्य की कण्डिका 2 में कथन किया है कि एक बाईक से बॉबी उर्फ विद्युत चौधरी, छोटू उर्फ कृष्णा और दूसरी बाईक से पिताम्बर उतरा। अतः स्पष्ट है कि अ0सा07 चंदन साव ने न्यायालय में आरोपी छोटू उर्फ कृष्णा एवं आरोपी पिताम्बर की पहचान की है। आरोपियों की न्यायालय में पहचान सारभूत साक्ष्य होती है, जबकि विवेचना के दौरान धारा 9 साक्ष्य अधिनियम के तहत की गयी कार्यवाही समर्थनकारी साक्ष्य होती है। इस संबंध में माननीय उच्चतम न्यायालय का न्यायदृष्टांतAmit Singh Bhikam Singh Thakur v. State of Maharashtra 2007 (57) ACC 595  अवलोकनीय है जिसमें माननीय उच्चतम न्यायालय ने यह अवलोकित किया था किः-
"The identification parades belong to the stage of  investigation, and there is no provision in the Code, which obliges the investigating agency to hold or confers a right upon the accused to claim a test identification parade. They do not constitute substantive evidence and these parades areessentially governed by Section 162 of the Code. Failure to hold identification parade would notmake inadmissible the evidence of identification in Court. The weight to be attached to such identification should be a matter for the Courts of fact. In appropriate cases, it may accept the evidence of identification even without insisting on corroboration. 
65- अ0सा07 चंदन साव के न्यायालयीन कथन में आरोपी विनोद बिहारी, आरोपी गुल्लू श्रीवास्तव एवं आरोपी जयदीप का नाम नही है। अ0सा01 तारकेश्वर सिह के साक्ष्य की कण्डिका 1 में आरोपी विनोद बिहारी एवं आरोपी जयदीप का नाम नही है। वैसे भी अ0सा01 तारकेश्वर सिंह के साक्ष्य दिनांक 27/4/2006 को आरोपी जयदीप एवं आरोपी अरविंद श्रीवास्तव उर्फ गुल्लू गिरफ्तार नही हुये थे, अतः अ0सा01 तारकेश्वर सिंह का साक्ष्य दिनांक 27/4/2006 आरोपी जयदीप एवं आरोपी अरविंद श्रीवास्तव उर्फ गुल्लू के संबंध में साक्ष्य के रूप में ग्राह्य नही किया जा सकता। जब आरोपी जयदीप एवं आरोपी अरविंद श्रीवास्तव उर्फ गुल्लू गिरफ्तार हुये, तब अ0सा01 तारकेश्वर सिंह को पुनः साक्ष्य हेतु आहुत किया गया एवं उनका साक्ष्य दिनांक 01/8/2008, 17/10/2008, व 24/11/2008 को पूर्ण हुआ, लेकिन अ0सा01 तारकेश्वर सिंह अपने साक्ष्य दिनांक 01/8/2008, 17/10/2008 एवं 24/11/2008 में आरोपी जयदीप एवं आरोपी अरविंद श्रीवास्तव उर्फ गुल्लू की सहभागिता को प्रमाणित नही किये और अपने मुख्यपरीक्षण में किये गये कथनों से मुकर गये। अ0सा07 चंदन साव के मुख्यपरीक्षण में आरोपी जयदीप एवं आरोपी अरविंद श्रीवास्तव उर्फ गुल्लू श्रीवास्तव का नाम उल्लेखित नही है। अतः स्पष्ट है कि अ0सा01 तारकेश्वर सिंह एवं अ0सा07 चंदन साव के साक्ष्य में आरोपी जयदीप एवं आरोपी अरविंद श्रीवास्तव के विरूद्ध कुछ भी नही है।
66- जहां तक आरोपी मुजीबुद्दीन व आरोपी रंजीत सिंह का प्रश्न है तो अ0सा07 चंदन साव ने दं0प्र0सं0 की धारा 164 के तहत लिये गये कथन में आरोपी मुजीबुद्दीन का नाम अभियोजित अपराध में संलिप्तता के संबंध में नही लिया है। आरोपी मुजीबुद्दीन का नाम अ0सा07 चंदन साव ने अपने साक्ष्य में भी नही लिया है । आरोपी मुजीबुद्दीन की पहचान की कार्यवाही भी नही करवायी गयी है। अतः आरोपी मुजीबुद्दीन को मात्र उससे प्रदर्श पी 48 के बयान मेमोरेण्डम के आधार पर जप्ती पत्र प्रदर्श पी 49 के अनुसार जप्त लाठी में रक्त पाये जाने मात्र के आधार पर दोषसिद्ध नही किया जा सकता है। जहां तक आरोपी रंजीत सिंह का प्रश्न है तो अ0सा07 चंदन साव ने न्यायालय में आरोपी रंजीत सिंह का चैम्पियन मिनीडोर से अन्य आरोपियों के साथ उतरने का कथन किया है और यह भी व्यक्त किया है कि आरोपी रंजीत अन्य आरोपियों के साथ उसकी ओर दौड़ा था। अतः ऐसी स्थिति में आरोपी रंजीत सिंह की मृतक महादेव महार की हत्या के अपराध में सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करते हुये सहभागिता प्रमाणित होती है।
आरोपी पिताम्बर एवं आरोपी छोटू उर्फ कृष्णा की पहचान की कार्यवाही
67- यद्यपि दोनों आरोपियों की पहचान न्यायालय में की गई है, इसलिये पहचान की कार्यवाही की विवेचना की आवश्यकता नही है, लेकिन फिर समर्थनकारी साक्ष्य के लिये पहचान की कार्यवाही की विवेचना की जा रही है। अ0सा07 चंदन साव ने अपने मुख्य परीक्षण की कण्डिका 2 में बाइक से उतरने वाले तीन आरोपियों का नाम छोटू उर्फ कृष्णा, गोल्डी व पिताम्बर बताया है। लेकिन दं0प्र0सं0 की धारा 164 के तहत लिये गये बयान प्रदर्श पी 22 में इस साक्षी का कथन है कि बाइक से आरोपी विद्युत चौधरी के अतिरिक्त तीन लोग और उतरे, जिनका नाम वह नही जानता है, देखने से पहचान जायेगा। इस प्रकरण में तात्कालीन तहसीलदार अ0सा057 शिवकुमार तिवारी ने दिनांक 30/5/2005 को बलौदा बाजार उपजेल में 11.30 बजे से 01.00 बजे के मध्य आरोपी पिताम्बर एवं आरोपी छोटू उर्फ कृष्णा की पहचान की कार्यवाही साक्षी संतोष उर्फ गुड्डा से करवायी थी। अतः अ0सा057 शिवकुमार तिवारी के साक्ष्य एवं उनके द्वारा कराये गये पहचान पत्र प्रदर्श पी 16 एवं प्रदर्श पी 28 का अवलोकन किया गया। इस संबंध में आरोपीगण की यह प्रतिरक्षा है कि उनका नाम एफआईआर एवं दं0प्र0सं0 की धारा 164 में नही है, अतः उन्हें दोषसिद्ध नही किया जा सकता है। लेकिन अ0सा07 चंदन साव ने अपने साक्ष्य में आरोपी पिताम्बर एवं छोटू उर्फ कृष्णा की पहचान की है। अतः ऐसी स्थिति में आरोपीगण की उक्त प्रतिरक्षा स्वीकार योग्य नही है।
68- प्रदर्श पी 16 की पहचान की कार्यवाही का साक्षी अ0सा08 प्रशांत शर्मा उर्फ गुड्डा उर्फ संतोष शर्मा वल्द श्री विष्णुप्रसाद शर्मा, कांटेंक्टर कालोनी है। अ0सा08 प्रशांत शर्मा ने अपने साक्ष्य की कण्डिका 3 में इस तथ्य की पुष्टि की है कि उसे कुछ मुलजिमों को देखकर पहचानने के लिये बलौदा बाजार और रायपुर जेल ले जाया गया था। इस साक्षी ने प्रदर्श पी 16 के अ से अ भाग पर और ब से ब भाग पर अपने हस्ताक्षर होना स्वीकार किया है। लेकिन इस साक्षी का कथन है कि उसने किसी भी आरोपी को नही पहचाना था।
69- इसी प्रकार प्रदर्श पी 28 की पहचान की कार्यवाही का साक्षी अ0सा09 गिरवर साहू है, जिसने अपने साक्ष्य की कण्डिका 2 के अंतिम लाईन में यह स्वीकार किया है कि उसे पहचान की कार्यवाही हेतु बलौदा बाजार जेल लेकर गये थे, जिसके प्रदर्श पी 28 के अ से अ एवं ब से ब भाग पर उसके हस्ताक्षर है। यद्यपि इस साक्षी ने भी अपने साक्ष्य में आरोपी पिताम्बर एवं आरोपी छोटू उर्फ कृष्णा को नही पहचानने का कथन किया है, लेकिन अ0सा057 शिवकुमार तिवारी बलौदा बाजार में कार्यपालक दण्डाधिकारी के पद पर पदस्थ थे, अर्थात् वे लोकसेवक थे, एवं लोकसेवकों के कृत्य के संबंध में साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 के तहत यह उपधारणा की जा सकती है कि न्यायिक और पदीय कार्य नियमित रूप से सम्पादित किये गये हैं। अ0सा057 शिवकुमार तिवारी से आरोपीगण की कोई रंजिश नही है, और न ही वे आरोपी पिताम्बर एवं आरोपी छोटू उर्फ कृष्णा को जानते हैं। अ0सा057 शिवकुमार तिवारी ने अपने साक्ष्य की कण्डिका 1, 2, 13, 14 में कथन किया है कि उन्होंने आरोपी पिताम्बर एवं आरोपी छोटू उर्फ कृष्णा के समान अन्य व्यक्तियों को मिलाकर पहचान की कार्यवाही निष्पादित किये थे। उन्होंने उन व्यक्तियों को गले से नीचे कम्बल से ढंका था। उन्होंने दोनों आरोपियों की पहचान की कार्यवाही अलग-अलग करवायी थी। यह कहना गलत है कि पहचान की कार्यवाही के समय पुलिस वाले उपस्थित थे। उन्होंने पहचानकर्ता से यह पुछा था कि उन्होंने उन व्यक्तियों को पहचान के पूर्व पुलिस द्वारा दिखाया गया था, तो उन्होंने बताया था कि उन्हें नही दिखाया गया है। उक्त दोनों साक्षियों द्वारा पहचान की कार्यवाही अ0सा01 तारकेश्वर सिंह एवं अ0सा07 चंदन साव के साक्ष्य में किये गये कथन के समर्थन में प्रयुक्त की जा सकती है। अतः अ0सा057 शिवकुमार तिवारी द्वारा निष्पादित पहचान पत्र प्रदर्श पी 16 और प्रदर्श पी 28 में ऐसी कोई अनियमितता या अवैधानिकता भी दर्शित नही होती है, जिसके कारण उनके साक्ष्य पर किये गये कथन पर अविश्वास किया जावे।
आरोपी बिज्जू उर्फ महेश यादव के संबंध में
70-  अ0सा07 चंदन साव ने अपने साक्ष्य की कण्डिका 2 में दूसरे पृष्ठ में आरोपी बिज्जू का नाम लेकर कहा है कि वह अन्य आरोपी के साथ उनकी ओर दौड़ा। इसके अतिरिक्त उसके पहले उसके साक्ष्य की कण्डिका 1 में भी आरोपी बिज्जू का नाम लिया है। जहां तक आरोपी बिज्जू उर्फ महेश का प्रश्न है तो इस संबंध में आरोपी बिज्जू उर्फ महेश ने दं0प्र0सं0 की धारा 313 के तहत लिये गये कथन में अपना नाम महेश उर्फ बिज्जू ही बताया है। अतः ऐसी स्थिति में यह स्पष्ट है कि अ0सा07 चंदन साव ने अपने साक्ष्य में केवल ‘‘बिज्जू‘‘ कहा है तो वह आरोपी महेश उर्फ बिज्जू के संबंध में ही कहा है। इस संबंध में आरोपी बिज्जू उर्फ महेश की यह प्रतिरक्षा है कि उसका नाम अ0सा07 चंदन साव के दं0प्र0सं0 की धारा 164 के बयान में नही है। यह सही भी है कि धारा 164 के बयान में आरोपी बिज्जू उर्फ महेश का नाम चंदन साव ने नही लिया है।

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