अनुराग दास वैष्णव आ. राधा कृष्ण दास विरूद्ध राधाकृष्ण दास आ. स्व. मनोहर दास
न्यायालय षष्ठम अपर जिला न्यायाधीश , दुर्ग, जिला दुर्ग(छ.ग.)
(पीठासीन अधिकारी-कु. संघपुष्पा भतपहरी)
CSA No. 00072A/2016व्यवहार वाद क्र.-72ए/2016
संस्थित दिनांक -29/04/2016
अनुराग दास वैष्णव आ. राधा कृष्ण दास,
आयु-41 वर्ष, निवासी-वार्ड नं. .-30, मोतीपारा,
स्टेशन रोड़, दुर्ग, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.) .................................वादी
।। विरूद्ध ।।
राधाकृष्ण दास आ. स्व. मनोहर दास, उम्र-73 वर्ष,
निवासी-ऋषभ नगर,
तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.) ...............प्रतिवादी
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वादी द्वारा श्री अभिषेक वैष्णव अधिवक्ता।
प्रतिवादी द्वारा श्री रविशंकर सिंह अधिवक्ता।
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।। आदेश ।।
(आज दिनांक ............. 06/08/2016 .................को पारित)
01. इस आदेश द्वारा वादी की ओर से प्रस्तुत आवेदन अंतर्गत आदेश-39, नियम 01 व 02, व्य.प्र.सं. सहपठित धारा-151 व्य.प्र.सं. I.A.No.-1, दिनांक 29/06/2016, का निराकरण किया जा रहा है।
02. वादी का उपरोक्त आवेदन अंतर्गत आदेश-39, नियम 01 व 02 व्य.प्र.सं. का इस आशय का पेश किया गया है कि- प्रतिवादी अनुसूची ‘अ’ में वर्णित संपत्ति को नुकसान पहुंचा सकता है तथा तहसील कार्यालय में बंटवारा आदि का आवेदन दे सकता है और वादी के शांतिपूर्ण कब्जे में अवरोध उत्पन्न कर सकता है, जिसके लिये उन्हें न्यायालय के अस्थायी निषेधाज्ञा द्वारा निषेधित किया जाना आवश्यक है। वादी के पक्ष में प्रथम दृष्टयां मामला, सुविधा का संतुलन व अपूर्णीय क्षति के तीनों स्वर्णिम सिद्धांत वादी के पक्ष में है। क्योंकि वादी वादभूमि के कब्जे में है। अतः वादी के अस्थायी निषेधाज्ञा का आवेदन पत्र स्वीकार कर वाद के निराकरण तक प्रतिवादी को अनुसूची-अ में वर्णित संपत्ति में वाद के निराकरण तक वादी के शांतिपूर्ण कब्जे में दखल अंदाजी करने से रोक मनाही किया जावे तथा चूंकि मौखिक बंटवारा हुआ है, इसलिये वाद के निराकरण तक अनुसूची अ में वर्णित संपत्ति को वाद के निराकरण तक प्रतिवादी को किसी अन्य को हस्तांतरण करने, सौदा करने से अस्थायी निषेधाज्ञा द्वारा रोक मनाही किया जावे। समर्थन में वादी अनुराग दास वैष्णव द्वारा निष्पादित शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
03. प्रतिवादी का जवाब है कि वर्तमान में वादग्रस्त संपत्ति के कब्जे में वादी है। प्रकरण में जो दिनांक 23/03/2015 को मौखिक बंटवारा हुआ है, वह वादी और प्रतिवादी के बीच बिना किसी जोर दबाव के अनुसूची ‘अ’ के संपत्ति के संबंध में हुआ था। बंटवारा के समय वादी ने यह वचन दिया था कि प्रतिवादी की देखभाल करेगा, परेतु वह ऐसा नहीं कर रहा है, इसलिये अभी प्रतिवादी ने राजस्व अधिकारी/पटवारी के समक्ष बंटवारा के अनुसार अभिलेख दुरूस्त करने से मना कर दिया है। चूंकि वादग्रस्त संपत्ति मौजा दुर्ग प.ह.नं. -16, रा.नि.मं. दुर्ग स्थित व्यवसायिक भूमि ख.नं. .-1095/33, रकबा-0.020 हेक्टेयर राजस्व अभिलेख में प्रतिवादी के नाम पर है। इसलिये प्रतिवादी उसे अपनी इच्छानुसार किसी को भी विक्रय कर सकता है, जिसे रोकने का वादी को कोई अधिकार नहीं है। वादी के पक्ष में न तो प्रथम दृष्टयां मामला है, ना ही सुविधा का संतुलन है, ना ही उसे कोई अपूर्णीय क्षति हो रही है। अतः वादी का अस्थायी निषेधाज्ञा का आवेदन सव्यय खारिज किया जावे।
04. प्रकरण में निम्नलिखित तीन बिन्दुओं के आधार पर उपरोक्त आवेदन का निराकरण किया जा रहा है-
(I) प्रथम दृष्टयां मामला,
(II) सुविधा का संतुलन,
(III) अपूर्णीय क्षति का मामला।
05. वादी का लिखित तर्क है कि-
(1) वादी एवं प्रतिवादी के बीच दिनांक 23/03/2015 को वादी के निवास स्थान पर अनुसूची अ में दर्शित भूमि का मौखिक विभाजन (Oral Partition) हो गया है। उस विभाजन में वादी को प्रतिवादी के उपर वर्णित मौजा दुर्ग प.ह.नं. .-16 रा.नि.मं. दुर्ग 1, तहसील व जिला-दुर्ग छ.ग. स्थित भूमि ख.नं. -1095/33, रकबा-0.20 हेक्टेयर भूमि, जिसका वर्तमान चर्तुसीमा निम्न प्रकार है-बसंत सिंह की दुकान, दक्षिण में नव निर्मित दुकान, पश्चिम में निस्तारी सड़क, पूर्व में सामने तरफ राजेन्द्र पार्क जाने वाली रोड़ है, जिसका पूर्व विवरण इस वाद पत्र के साथ संलग्न अनुसूची अ में दर्शाया गया है। मौखिक विभाजन/पारिवारिक व्यवस्था में प्रतिवादी से प्राप्त हुआ और इससे वे सहमत भी हुए।
(2) अनुसूची अ में दर्शाये अनुसार मौखिक विभाजन में प्रतिवादी के साथ व्यवसायिक भूमि वादी को प्राप्त होने के कारण वादी ने प्रतिवादी से दिनांक 23/03/2015 को अनुरोध किया हे कि वह मौखिक विभाजन के अनुसार अपना नाम अनुसूची अ के राजस्व अभिलेखों में विलोपित करने का आवेदन पटवारी को देवे व पृथक से वादी का नाम दर्ज करने हेतु सहमति दें, परंतु प्रतिवादी मौखिक बंटवारा से मुकर कर उसने इंकार करते हुए वादी से कहा मुझे पूर्व में हुआ विभाजन मान्य नहीं है, जबकि वादी एवं प्रतिवादी हिन्दू हैं तथा हिन्दू विधि से शासित होते हैं व कानून के अनुसार मौखिक विभाजन भी मान्य है इसी प्रकार प्रतिवादी द्वारा दिनांक 03/2015 को वादी के निवास स्थान पर वादी के पक्ष में अनुसूची अ में वर्णित भूमि का जो मौखिक विभाजन किये हैं वह हिन्दू विधि व कानून के अनुसार मान्य है व सही है।
(3) वाद पत्र के अभिवचनों से स्पष्ट है कि प्रतिवादी अनुसूची अ में वर्णित संपत्ति को नुकसान पहुंचा सकते हैं तथा तहसील कार्यालय में बंटवारा आदि का आवेदन दे सकते हैं और वादी के शान्तिपूर्ण कब्जे में अवरोध उत्पन्न कर सकते हैं जिसके लिये उन्हें न्यायालय के अस्थायी निषेधाज्ञा द्वारा निषेधित किया जाना आवश्यक है। वादी के पक्ष में प्रथम दृष्टयां मामला, सुविधा का संतुलन व अपूर्णीय क्षति के तीनों स्वर्णिम सिद्धांत वादी के पक्ष में है, क्योंकि वादी वादभूमि के कब्जे में है। अतः वादी के अस्थायी निषेधाज्ञा का आवेदन
पत्र स्वीकार कर वाद के निराकरण तक प्रतिवादी को अनुसूची अ में वर्णित संपत्ति में वाद के निराकरण तक वादी के शांतिपूर्ण कब्जे में दखल अंदाजी करने से रोक मनाही किया जावे तथा चूंकि मौखिक बंटवारा हुआ है, इसलिये वाद के निराकरण तक अनुसूची अ में वर्णित संपत्ति को वाद के निराकरण तक प्रतिवादी को किसी अन्य को हस्तांतरण करने, सौदा करने से अस्थायी निषेधाज्ञा द्वारा रोक मनाही किया जावे।
06.. प्रतिवादी का लिखित तर्क है कि- वर्तमान में वादग्रस्त संपत्ति के कब्जे में वादी है। प्रकरण में जो दिनांक 23/03/2015 को मौखिक बंटवारा हुआ है वह वादी और प्रतिवादी के बीच बिना किसी जोर, दबाव के अनुसूची अ के संपत्ति के संबंध में हुआ था। बंटवारा के समय वादी ने यह वचन दिया था कि वह प्रतिवादी की देखभाल करेगा परंतु वह ऐसा नहीं कर रहा है, इसलिये अभी प्रतिवादी ने राजस्व अधिकारी/पटवारी के समक्ष बंटवारा के अनुसार अभिलेख दुरूस्त करने से मना कर दिया है। चूंकि वादग्रस्त संपत्ति मौजा दुर्ग प.ह.नं. -16, रा.नि.मं. दुर्ग स्थित व्यवसायिक भूमि खसरा नं. -1095/33 रकबा 0.020 हेक्टेयर राजस्व अभिलेख में प्रतिवादी के नाम पर है, इसलिये प्रतिवादी उसे अपनी इच्छानुसार किसी को भी विक्रय कर सकता है जिसे रोकने का वादी को कोई अधिकार नहीं है। वादी के पक्ष में न तो प्रथम दृष्टयां मामला है, ना ही सुविधा का संतुलन है, ना ही उसे कोई अपूर्णीय क्षति हो रही है। अतः वादी का अस्थायी निषेधाज्ञा का आवेदन सव्यय खारिज किया जावे।
(I) प्रथम दृष्टयां मामला,
07. यह स्वीकृत तथ्य है कि वादी का पिता प्रतिवादी है। दिनांक 23/03/2015 को मौखिक बंटवारा हुआ और वादी वाद भूमि के कब्जे में है।
08. वादी ने यह दावा प्रतिवादी के विरूद्ध दिनांक 29/09/2016 को मौखिक बंटवारा के आधार पर वादभूमि पर स्वत्व की घोषणा तथा वादभूमि के संबंध में राजस्व अभिलेखों से प्रतिवादी का नाम विलोपित किये जाने की घोषणा एवं अस्थायी निषेधाज्ञा के लिये प्रस्तुत किया है। वादभूमि के संबंध में ऋण पुस्तिका की छायाप्रति पेश की गयी है। जिसमें वादभूमि प्रतिवादी के नाम से दर्ज है। प्रकरण में मुख्य रूप से यह विवादित है कि क्या मौखिक विभाजन दिनांक 213/03/2015 को यह तय/विभाजन हुआ था कि वादी, प्रतिवादी की देखभाल करेगा और वादभूति जो वाद पत्र के साथ संलग्न अनुसूची-‘अ’ में दर्शित भूमि है और जिसके संबंध में ऋण पुस्तिका क्र.-पी.0115619 पेश किया गया है, उसमें बतौर भूमिस्वामी प्रतिवादी का नाम विलोपित करने का आवेदन पटवारी को प्रतिवादी देगा और पृथक से वादी का नाम दर्ज करने हेतु सहमति देगा।
09. विभाजन से यह आशय है कि दो व्यक्तियों के बीच विभाजन या बंटवारा किया गया है। प्रकरण में प्रस्तुत ऋण पुस्तिका के अवलोकन से यह पाया जाता है कि ऋण पुस्तिका में वर्णित भूमि 1095/33 रकबा 0.020 हेक्टेयर भूमि ही दर्ज है और मौखिक विभाजन के अनुसार उपरोक्त संपूर्ण वादभूमि को वादी के नाम से राजस्व अभिलेख में नाम दर्ज कराये जाने के लिये पटवारी को आवेदन देने के लिये मौखिक विभाजन होना बताया गया है। उक्त विभाजन में प्रतिवादी को क्या प्राप्त हुआ के संबंध में वादी ने कोई अभिवचन नहीं किया है। इस संबंध में वह मौन है। प्रतिवादी के जवाब से यह प्रतीत हो रहा है कि वादभूमि के एवज में अथवा विभाजन में उपभयपक्ष के बीच यह तय होना प्रतीत हो रहा है कि वादभूमि को वादी के नाम से राजस्व अभिलेख में दर्ज कराये जाने की कार्यवाही की जायेगी और वादी अपने पिता प्रतिवादी की देखभाल करेेगा। प्रतिवादी ने अपने दावा में एवं उपरोक्त आवेदन में यह कहीं भी अभिवचन नहीं किया है कि वह अपने पिता प्रतिवादी की देखभाल कर रहा है या करेगा या करने को तैयार या तत्पर है।
10. इस प्रकरण में मुख्य रूप से इस बिन्दु पर जांच अपेक्षित है कि ‘‘क्या प्रतिवादी की देखभाल करने की शर्त पर वादी को मौखिक विभाजन के अनुसार वादभूमि का कब्जा दिया गया है?’’ वादभूमि पैतृक संपत्ति है अथवा स्व-अर्जित भूमि है, के संबंध में अभिवचन का अभाव है। अतः प्रकरण में प्रस्तुत एकमात्र ऋण पुस्तिका से यह पाया जाता है कि वादभूमि प्रतिवादी क्र.-01 के नाम से दर्ज है और वह वादभूमि का भूमि स्वामी है, जिस पर वादी पुत्र का कब्जा है।
11. माननीय न्यायदृष्टांत- मेसर्स गुजरात बोटलिंग कंपनी लिमिटेड बनाम कोको कोला कंपनी, 1995 (5) सु.को.के.545: 1995 ए.आई.आर.एस.सी.डब्ल्यू. 3521 सु.को. में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि-‘‘अस्थाई व्यादेश चूंकि संपूर्ण तौर पर साम्यपूर्ण प्रकृति का अनुतोष होता है अतः न्यायालय की अधिकारिता का अवलंब लेने वाले पक्षकार को यह दर्शाना होगा कि उसके भाग पर कोई चूंकि नहीं थी, वह अनुचित नहीं था अथवा असामान्यपूर्ण नहीं था।’’ ‘‘अंतरिम व्यादेश प्राप्त करने वाले पक्षकार का आचरण ईमानदारीपूर्ण व विधिक होना चाहिये।’’
12. प्रतिवादी क्र.-01 की आयु दावा में 73 वर्ष दर्शायी गयी है। वादी के वाद के अनुसार प्रतिवादी ने उसे मौखिक बंटवारा कर वादभूमि को उसे दे दिया है और वादभूमि में वादी का नाम दर्ज कराने के लिये सहमति दिया था। परंतु पटवारी के समक्ष नाम दर्ज कराने के लिये सहमति देने से प्रतिवादी मुकर गया। उभयपक्ष के बीच कोई लिखित बंटवारा नहीं हुआ है। मौखिक बंटवारा के आधार पर यह दावा संस्थित किया गया है। प्रतिवादी वादभूमि का भूमि स्वामी है। उभयपक्ष हिन्दू विधि से शासित हैं। वादी पुत्र अपने पिता प्रतिवादी को मौखिक विभाजन के आधार पर राजस्व अभिलेख अद्यतन शुद्ध करने के लिये दबाव नहीं डाल सकता। मौखिक बंटवारा के अनुसार राजस्व अभिलेख में नाम दर्ज कराने में सहमति नहीं दिये जाने मात्र के आधार पर यह दावा संस्थित किया गया है और प्रतिवादी को कब्जे में अवरोध उत्पन्न करने की मात्र आशंका जतायी गयी है। अतः ऐसी स्थिति में प्रतिवादी पिता भूमि स्वामी के विरूद्ध वादी के पक्ष में प्रथम दृष्टयां मामला होना नहीं पाया जाता है।
(II) सुविधा का संतुलन,
13. प्रतिवादी पिता जिसकी आयु-73 वर्ष है। उसकी देखभाल के दायित्व का निर्वहन किये बिना वादी पुत्र अपने पिता के नाम पर राजस्व अभिलेख में दर्ज वादभूमि को अपने नाम से दर्ज कराने के लिये यह दावा प्रस्तुत किया है। विधि का यह सुस्थापित सिद्धांत है कि हर हक और अधिकार के साथ दायित्व भी जुड़ा रहता है। वादी पुत्र बिना दायित्व का निर्वहन किये बिना हक प्राप्त करना चाहता है। वादभूमि पैतृक संपत्ति होने के संबंध में न तो अभिवचन किया गया है और न ही कोई राजस्व दस्तावेज इस संबंध में प्रस्तुत किया गया है और न ही किसी अन्य व्यक्ति का, समर्थन में कोई शपथ पत्र पेश किया गया है। अतः पिता की संपत्ति पर पुत्र की बजाय पिता का अधिकार सर्वोत्तम होना पाया जाता है। प्रतिवादी पिता वृद्ध व्यक्ति है तथा वादभूमि का भूमिस्वामी है। उसे अपने जीवन यापन के लिये वादभूमि का अपने तरीके से व्ययन करने के लिये अस्थायी निषेधाज्ञा के माध्यम से रोक नहीं लगायी जा सकती। सुविधा का संतुलन वादी के पक्ष में न होकर प्रतिवादी के पक्ष में ज्यादा होना प्रतीत होता है। अतः सुविधा का संतुलन भी वादी के पक्ष में होना नहीं पाया जाता है।
(III) अपूर्णीय क्षति का मामला ,
14. वादी वादभूमि पर काबिज है और वादभूमि के होने वाला लाभ प्राप्त कर रहा है। जबकि दूसरी ओर प्रतिवादी वृद्ध पिता उससे वंचित है। जिसकी देखभाल की जिम्मेदारी का निर्वहन वादी के द्वारा नहीं किया जा रहा है। अतः ऐसी स्थिति में अपूर्णीय क्षति का मामला भी प्रतिवादी के पक्ष में होना पाया जाता है तथा वादी को ऐसी क्षति जिसकी पूर्ति अन्य किसी प्रकार से नहीं की जा सकती हो ऐसा नहीं पाया जाता है। अतः वादी के पक्ष में अपूर्णीय क्षति का मामला होना भी नहीं पाया जाता है।
15. वादी द्वारा प्रस्तुत उपरोक्त आवेदन प्रथम दृष्टयां मामला, सुविधा का संतुलन तथा अपूर्णीय क्षति का मामला नहीं होना पाये जाने पर वादी का उपरोक्त आवेदन अंतर्गत आदेश-39, नियम 01 व 02, व्य.प्र.सं. सहपठित धारा- 151 I.A.No.-1 न्यायहित में अस्वीकार कर निरस्त किया जाता है।
दुर्ग, दिनांक-06/08/2016
मेरे निर्देश पर टंकित
(कु. संघपुष्पा भतपहरी)
षष्ठम अपर जिला न्यायाधीश, दुर्ग. (छ.ग.)