Saturday 27 August 2016

छ.ग.राज्य शासन विरूद्ध रामबहोर सिंह पिता स्व. दामोदर सिंह

समक्ष - विशेष न्यायाधीश, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम बस्तर - स्थान,
जगदलपुर,
(पीठासीन न्यायाधीश-एस.शर्मा  )
विशेष प्रकरण क्र0 - 04/2009
संस्थित दिनांक - 30.06.2009
छ.ग.राज्य शासन,द्वारा
आरक्षी केन्द्र -एंटी करप्शन ब्यूरो,
जगदलपुर
जिला-बस्तर (छ.ग.)  ......................... ................... अभियोजन
 विरूद्
रामबहोर सिंह पिता स्व. दामोदर सिंह,
उम्र-50 वर्ष, पद श्रम निरीक्षक,
कार्यालय-श्रम पदाधिकारी,जगदलपुर,
जिला-बस्तर(छ.ग.)
स्थायी पता ग्राम खरमसेड़ा,
थाना-तहसील-पाटन,
जिला-सतना (म.प्र.) ............. .... .............अभियुक्त
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शासन की ओर से श्री शकील अहमद, लोक अभियोजक ।
आरोपी द्वारा श्री अरूण ठाकुर अधिवक्ता।
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 निर्णय
 (आज दिनांक- 29.09.2014 का घोषित)
01. अभियुक्त राम बहोर पर धारा - 07 एवं 13(1)(डी) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के अंतर्गत आरोप है कि उसने दि.20.08.2007 को श्रम पदाधिकारी कार्यालय,जगदलपुर में, लोक सेवक की हैसियत से श्रम निरीक्षक के पद पर रहते हुये, प्रार्थी उदय सिंह बघेल से मजदूरों की मजदूरी भुगतान के मामले को रफा-दफा करनें की बात कहकर वैध पारिश्रमिक से भिन्न पारितोषण 2000/-रूपये (दो हजार रूपये) की मांग की और उक्त अवैध पारितोषण को अभिप्राप्त कर आपराधिक अवचार किया।

डॉ. अखिलेश यादव आत्मज स्व. जी.आर. यादव विरूद्ध छ.ग. शासन

 
प्रतिलिपि-आदेश दिनांक 04/8/2016 जो कि श्री मंसूर अहमद, प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश के न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश दुर्ग के न्यायालय में जमा.आ.क्र. 995/2016 डॉ. अखिलेश यादव आत्मज स्व. जी.आर. यादव, उम्र करीब 52 वर्ष, निवासी- ई.डब्लू.एस. 405 वैशाली नगर भिलाई, तह. व जिला दुर्ग छ0ग0 विरूद्ध छ0ग0 शासन में पारित किया गया।
चित्र पत्रिका डॉट कॉम से साभार 
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पुुनश्च 04.8.2016
माननीय सत्र न्यायाधीश, दुर्ग के न्यायालय से यह जमानत आवेदन पत्र विधिवत सुनवाई एवं निराकरण हेतु अंतरण पर प्राप्त।
आवेदक/आरोपी की ओर से श्री तेजपाल सिंह अधिवक्ता उपस्थित।
राज्य की ओर से सुश्री फरिहा अमीन, अतिरिक्त लोक अभियोजक उपस्थित।
इस आदेश द्वारा आवेदक/आरोपी डॉ0 अखिलेश यादव द्वारा प्रस्तुत जमानत आवेदन अंतर्गत धारा 439 दं.प्र.सं. का निराकरण किया जा रहा है।
आवेदन के समर्थन में आवेदक/आरोपी के अधिवक्ता ने तर्क प्रस्तुत किया है कि आवेदक/आरोपी दुर्ग जिले का स्थायी निवासी है तथा वरिष्ठ चिकित्सक है । आवेदक का परिवादी से भूमि के लेनदेन का व्यवहारिक वाद था, जिसमें आवेदक का परिवादी से आपसी समझौता हो गया है। आवेदक/अभियुक्त को थाना दुर्ग की पुलिस द्वारा दिनांक 02.08.2016 को गिरफतार कर मुख्य न्यायिक दण्डाधिकारी दुर्ग के समक्ष पेश किया गया जहॉ से उसका जमानत आवेदन निरस्त कर अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया है।
आवेदक/अभियुक्त की आपराधिक पृष्ठभूमि नही है। आवेदक/अभियुक्त हड्डी रोग विशेषज्ञ है, ईलाज करा रहे मरीजों के लिए उसका रहना आवश्यक है। आवेदक/अभियुक्त को पथरी की बीमारी है। सभी शर्तो का पालन करने के लिए तैयार है। अतः उसे जमानत पर रिहा किया जावे।
आवेदक/अभियुक्त की ओर से डॉ. अविनाश शुक्ला ने शपथपत्र प्रस्तुत कर यह बताया है कि यह उसका प्रथम जमानत आवेदन पत्र है, इसके अतिरिक्त किसी भी सत्र न्यायालय या माननीय उच्च न्यायालय में न तो कोई आवेदन पेश किया गया है और न ही निरस्त किया गया है और न ही लम्बित है।
आवेदक/अभियुक्त की ओर से सूची अनुसार दस्तावेज प्रस्तुत करते हुए डॉ. दिलीप रत्नानी के ईलाज की पर्ची प्रस्तुत की गयी है। जिसमें आवेदक/अभियुक्त को सिने में दर्द और जलन की शिकायत होना उल्लेखित है।
राज्य की ओर से सुश्री फरिहा अमीन, अतिरिक्त लोक अभियोजक ने जमानत आवेदन का विरोध किया।
थाना प्रभारी, थाना दुर्ग की ओर से लिखित में प्रतिवेदन प्रस्तुत कर जमानत आवेदन पर आपत्ति व्यक्त की गयी है।
उभय पक्ष का तर्क सुना गया।
प्रार्थी अनिल पाण्डेय ने न्यायालय के समक्ष उपस्थित होकर आवेदक/अभियुक्त से राजीनामा हो जाना व्यक्त करते हुए जमानत पर रिहा किये जाने में कोई आपत्ति नही होना बताया है।
थाना दुर्ग के अपराध क्रमांक 140/13 धारा 406, 419, 420, 467, 468, 471, 120बी भा0दं0सं0 की केसडायरी के अवलोकन से प्रतीत होता है कि प्रार्थी अनिल कुमार पाण्डेय द्वारा प्रस्तुत परिवाद पत्र के आधार पर न्यायिक दण्डाधिकारी प्रथम श्रेणी दुर्ग के द्वारा धारा 156(3) द.प्र.सं. के अंतर्गत प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर अनुसंधान का आदेश देने पर थाना दुर्ग के द्वारा आवेदक/अभियुक्त के विरूद्ध अपराध पंजीबद्ध किया जाकर विवेचना की जा रही है। आवेदक/अभियुक्त के विरूद्ध यह आरोप है कि उसने प्रार्थी अनिल पाण्डेय के साथ अपनी पत्नी श्रीमती रीता यादव के नाम दर्ज भू-खण्ड क्र. 10 रकबा 3.30 वर्गमीटर प्रियदशर्नी परिसर भिलाई स्थित भूमि को प्रार्थी के नाम पंजीयन करने का करार दिनांक 31.07.2009 को किया और प्रार्थी से 9,00,000/-रू. नगद प्राप्त किया। उक्त राशि 2 माह के भीतर न लौटाने पर उक्त भू-खण्ड को जिसका विक्रय मूल्य 17,75,000/-रू. तय किया गया था। उक्त भूमि का पंजीयन प्रार्थी के पक्ष में शेष राशि लेकर करने का इकरार किया। इकरारनामा में आवेदक/अभियुक्त डॉ. अखिलेश यादव एवं उसकी पत्नी रेखा यादव की फोटो चस्पा कर इकरारनामे को नोटरी द्वारा सत्यापित कराया गया। इकरारनामा निष्पादन के समय उक्त भूमि से संबंधित सभी मूल दस्तावेज भी आवेदक/अभियुक्त द्वारा प्रार्थी को सौंपा गया। कुछ समय पश्चात प्रार्थी को यह जानकारी मिली कि जिस महिला को आवेदक/अभियुक्त ने अपनी पत्नी श्रीमती रीता यादव दर्शाते हुए इकरारनामा दिनांक 31.07.2009 निष्पादित किया, वह महिला आवेदक/अभियुक्त की पत्नी नही थी वरन कोई अन्य महिला थी। इस तथ्य की जानकारी मिलने पर आवेदक/अभियुक्त ने प्रार्थी से क्षमा याचना की और पुनः दिनांक 04.08.2009 को एक इकरारनामा निष्पादित कराया। जिसमें पूर्व इकरारनामा का कोई उल्लेख आवेदक/अभियुक्त की सामाजिक प्रतिष्ठा को ध्यान में रखते हुए तथा की गयी क्षमा याचना को देखते हुए नही किया गया। किन्तु उसके पश्चात भी आवेदक/अभियुक्त द्वारा प्रार्थी की राशि वापस नही की गयी और न ही अपनी पत्नी के नाम दर्ज भूमि का पंजीयन कराया। 
तत्पश्चात प्रार्थी के द्वारा पुलिस अधीक्षक को शिकायत करने पर कोई कार्यवाही नही की गयी। तब प्रार्थी के द्वारा न्यायालय के समक्ष परिवाद प्रस्तुत किया गया।
आवेदक/अभियुक्त के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रकरण में प्रार्थी और आवेदक/अभियुक्त के मध्य राजीनामा हो गया है तथा आवेदक/अभियुक्त को पथरी जैसी गंभीर बीमारी है, जिसे देखते हुए उसे जमानत का लाभ दिया जावे।
आवेदक/अभियुक्त एक प्रतिष्ठित डाक्टर है। उसके द्वारा जिस प्रकार अपनी पत्नी के स्थान पर अन्य महिला का फोटो लगाकर इकरारनामा निष्पादित कराया गया, उसे देखते हुए अपराध की गंभीरता और बढ़ जाती है तथा केसडायरी में इकरारनामा दिनांक 31.07.2009 एवं उसके बाद किया गया इकरारनामा दिनांक 04.08.2009 संलग्न है। आवेदक/अभियुक्त के द्वारा बाद में किए गए इकरारनामा में पूर्व इकरारनामा दिनांक 31.07.2009 को न तो निरस्त किया गया है और न ही उसका कोई उल्लेख किया गया है। जिसके कारण इकरारनामा दिनांक 31.07.2009 आज भी कायम है। आवेदक/अभियुक्त पर धारा 406, 419, 420, 467, 468, 471, 120बी भा.द.सं. का आरोप है। जिसमें से धारा 406, 419, 420 भा.द.सं. को छोडकर शेष धाराए अजमानतीय स्वरूप की है, जिसके कारण राजीनामा पर विचार भी नही किया जा सकता। जहॉ तक आवेदक/अभियुक्त के पथरी और अन्य बीमारी से ग्रसित होने का प्रश्न है तो आवेदक/अभियुक्त स्वयं डाक्टर है और जेल में आवेदक/अभियुक्त द्वारा बतायी गयी बीमारी का उचित ईलाज संभव है और यदि वहॉ ईलाज संभव न हो तो जिला अस्पताल अथवा अन्य अस्पताल उपलब्ध है, जहॉ उक्त बीमारी का ईलाज संभव है। जिसके कारण आवेदक/अभियुक्त को जमानत का लाभ दिया जाना उचित प्रतीत नही होता है। परिणाम स्वरूप आवेदक/अभियुक्त प्रस्तुत आवेदन धारा 439 दं0प्र0सं0 निरस्त किया जाता है।
आदेश की प्रति के साथ रिमाण्ड प्रपत्र संबंधित न्यायालय को तथा केसडायरी संबंधित थाने को वापस भेजी जावे।
प्रकरण समाप्त। परिणाम दर्ज कर नियत अवधि में अभिलेखागार में जमा हो।
सही-
(मंसूर अहमद)
प्रथम अपर जिला न्यायाधीश, के न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश दुर्ग छ0ग0
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