महिलाओं के कानूनी अधिकार - 1
- 18 साल की उम्र के बाद लड़की बालिग हो जाती है, बालिग होने के बाद उसे अपनी जिंदगी के फैसले खुद लेने का हक मिल जाता है, कानूनी तौर पर कोई भी व्यक्ति किसी बालिग को उसकी इच्छा के विरूद्ध कुछ भी करने को मजबूर नहीं कर सकता, यहॉं तक कि अभिभावक भी नहीं। बंद रखने, आगे पढ़ने से रोकने या जबरदस्ती शादी करने को मजबूर करने पर इसका विरोध कर सकती है, वह अदालत में इसके विरूद्ध लड़ाई लड़ सकती है। अगर हालत अनुकूल नहीं है तो परिवार से अलग रहने का फैसला ले सकती है।
- पैत्रिक जायदाद में हिन्दू कानून के तहत लड़की और लड़के को बराबर का हक है।
- जरूरी नहीं कि शादी के बाद आप अपना नाम या उपनाम बदले यदि आप चाहें तो विवाहपूर्व का नाम, उपनाम, विवाह के बाद भी जारी रख सकती है।
- अपने वेतन/अपने कमाई पर आपका पूरा हक है, उसे अपनी इच्छानुसार खर्च कर सकती है।
- आप केवल अपने नाम पर बैंक में खाता खोल सकती है, अनपढ़ महिलाएं भी अंगूठा लगाकर अपना खाता खोल सकती है।
- आपको अपनी शादी के समय और बाद में माता-पिता से और ससुराल में मुंह दिखाई के तौर पर जो कुछ भी मिला है वह स्त्री धन है और उस पर आपका पूरा अधिकार है।
- पति के पास जो भी जायदाद है जैसे-खेती की जमीन या घर वगैरह, व पत्नी के या दोनों संयुक्त नाम पर भी रजिस्टर हो सकती है।
- राशन कार्ड पत्नी या पति किसी के भी नाम पर बन सकता है, पति के नाम पर राशनकार्ड बनाना जरूरी नही है।
- स्कूल में बच्चे का दाखिला कराते वक्त मां का नाम भी अभिभावक के रूप में देना आवश्यक है।
- अगर आपको अनचाहा गर्भ ठहर जाये तो आप किसी भी सरकारी अस्पताल में जाकर गर्भपात करा सकती है, 1971 में बने गर्भपात कानून के तहत् कोई भी गैर शादी-शुदा औरत गर्भपात करवा सकती है, गर्भपात कराना औरत का निजी फैसला है, जिसके लिये उसे किसी की इजाजत लेने की जरूरत नहीं है।
- अगर किन्ही कारणों से आपके और आपके पति के बीच कोई मतभेद या विवाद चल रहा है तो भी पति आपको घर से बेदखल नहीं कर सकता। शादी के बाद घर पर आपका भी उतना ही हक है जितना आपके पति का।
- मॉं-पिता का तलाक हो जाने के बाद भी बच्चे का अपने पिता की जायदाद में हक खत्म नहीं होता।
- कानूनी तौर पर बच्चों का असली पालक पिता होता है, मां केवल उनकी देखभाल के लिये है, अगर पिता बच्चों को नहीं देख रहा है तो मॉं अदालत में मुकदमा दायर करके अपने बच्चों की मॉंग कर सकती है।
- कई बार औरत को आदमी छोंड़ देता है, परेशान करता है और खर्चा भी नही देता। जिससे वह और उसके नाबालिक बच्चे एक बेसहारा और मोहताज जिंदगी जीने पर मजबूर हो जाते हैं, ऐसे में कानूनन धारा 125 सी.आर.पी.सी. के तहत आपको अपने पति से गुजारा खर्चा पाने का पूरा हक है।
- 1976 में बने ‘‘समान वेतन कानून‘‘ के तहत स्त्री-पुरूष दोनो को समान कार्य के लिये समान वेतन देने की व्यवस्था की गई है। यह कानून खेत मजदूरों और दूसरे सभी उद्योगों पर लागू होता है, इस कानून के तहत कुछ उद्योगों जैसे- खदानों, फैक्ट्रियों वगैरह में औरतों को रात पाली (नाइट शिफ्ट) में काम कराना मना है, पर इसके अलावा किसी तरह के काम देने में मालिक औरत होने के नाते भेदभाव नहीं कर सकता।
- यदि आपका यौन शोषण हुआ है। तो भय-संकोच या शर्म के कारण आपकी खामोशी अराजक तत्वों के हौसलें और बुलंद कर सकती है, इसलिये आपको इस तरह की कोई घटना होने पर तुरंत उसकी एफ.आई.आर. थाने में दर्ज करानी चाहिए।
- राजस्थान सरकार द्वारा 1987 में सती विरोधी अधिनियम लागू करने के बाद केन्द्रीय सरकार ने भी सती प्रथा की रोकथाम अधिनियम 1987 पास किया है, इस अधिनियम के तहत् सती बनाने वालों को हत्या के अपराध में गिरफ्तार कर कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान है,सती को महिमा मंडित करने के प्रयासों पर सात साल की सजा और 30,000/-रू. तक जुर्माने का प्रावधान है।
- बलात्कार होने के 24 घंटे के भीतर मेडिकल परीक्षण करवा लेना चाहिए। घटना के समय पहने हुए कपड़े को धोये नहीं। डांक्टरी जॉंच के पहले नहायें नही। इससे सबूत मिट सकते है। यदि बलात्कार स्थल से प्राप्त कोई भी सामान, सिगरेट का टुकड़ा, चश्मा, रूमाल, घड़ी आदि पर अपना हाथ न लगायें उसे कपड़े से उठाकर पुलिस को दे दें।
- घटनास्थल की स्थिति ज्यों की त्यों रहने दें। जब तक कि पुलिस जॉंच न हो जाये, क्योंकि वहॉं से वीर्य, खून के धब्बे, बलात्कार के बाल आदि पाये जाने की संभावना रहती है। यदि संभव हो तो बलात्कारी का हुलिया लिख लें। वह देखने में कैसा था, आवाज कैसे थी, कैसे कपड़े पहने थे, उसकी कोई खास आदत या वाक्यों आदि।
- घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के प्रावधान के तहत् घरेलू हिंसा के विरूद्ध महिलाएॅं कड़ी कानूनी कार्यवाही करवा सकती है।
- एफ.आई.आर. की एक प्रति निःशुल्क तौर पर आपको पाने का हक है, इसलिये एक प्रति अवश्य ले लें।
साभार - छत्तीसगढ़ राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण