Saturday 15 October 2016

सूचना का अधिकार अधिनियम-2005

(2005 का अधिनियम संख्यांक-22)

सूचना का अधिकार देश के प्रत्येक नागरिक को प्राप्त है, कोई भी नागरिक किसी भी लोक निकाय से अपने काम की सूचना प्राप्त कर सकता है, इसके अतिरिक्त सभी लोक निकायों को अपने दैनिक कार्य-कलापों के संबंध में आवश्यक सूचनाओं को पढ़कर लोगों को जानकारी के लिए प्रदर्शित करना भी आवश्यक है।
उद्देश्य -
  • पारदर्शी प्रशासन,
  • प्रशासन में उत्तरदायित्व के गुणों का विकास,
  • पूरे देश में समान अधिनियम, समान प्रक्रिया होने के कारण आम जनता आसानी से लाभ उठा सकेगी,
  • सूचना के अधिकार का प्रभावशाली क्रियान्वयन, 
  • लोक प्राधिकरणों में ’’जवाबदेही’’ का निर्धारण
उपयोग कहां-कहां ?
1. अधिकार के तहत आप निर्माण कार्यों का निरीक्षण कर सकते हैं।
2. लोक अधिकारी के पास मौजूद दस्तावेज और अभिलेखों का निरीक्षण कर सकते हैं।
3. दस्तावेज या अभिलेखों की टिप्पणी, उद्वरण या प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्त कर सकते हैं।
4. विकास कार्यों या योजनाओं में लगाई जा रही सामग्री के प्रमाणित नमूने की जानकारी ले सकते हैं।
5. डिस्केट, फ्लापी, टेप, विडियो कैसेट के रूप में या किसी अन्य इलेक्ट्रनिक रूप से भंडारित की गई संसूचनाओं को प्राप्त कर सकते हैं।
जी हां- सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत जानकारी प्राप्त करना आम जनता का अधिकार है।
सूचना किससे मांगी जा सकती है ?
सूचना के अधिकार के तहत लोक प्राधिकरण उन निकायों को कहा जाएगा, जो कानून के तहत स्थापित हुए हैं, जिनके कानून को संसद या विधानमंडल द्वारा बनाया गया हो। इनमें वे निकाय भी शामिल हैं, जिन्हें सरकारी अनुदान प्राप्त हो या ऐसे निकाय जिनका स्वामित्व या नियंत्रण केंद्र या राज्य सरकार द्वारा किया जाता है।
आवेदन किसे कहां देना होगा ?
सूचना प्राप्ति हेतु इच्छुक व्यक्ति लिखित में (हिंदी/अंग्रेजी में) आवेदन विभाग के जन सूचना अधिकारी/सहायक जन सूचना अधिकारी को आवेदन शुल्क 10/- रू. नगद/चालान (जो मुख्यशीर्ष-0070-उपमुख्य शीर्ष 800-अन्य प्राप्तियों में जो लोक प्राधिकारी के नाम देय हो) पोस्टल आर्डर, मनीआर्डर, ज्युडिशियल स्टाम्प के रूप में देय होगा, के साथ स्वतः या डाक द्वारा अथवा इलेक्ट्रानिक माध्यम से प्रस्तुत करेगा। आवेदन प्राप्ति के 30 दिवस के अंदर चाही गई सूचना न मिलने पर अपीलीय अधिकारी के पास आवेदन कर सकता है। प्रथम अपीलीय अधिकारी के निर्णय से संतुष्ट न होने पर द्वितीय अपील 90 दिन के अंदर राज्य सूचना आयोग (मुख्यालय रायपुर) में कर सकता है।
आवश्यक शुल्क, जिनके बिना जानकारी नहीं प्राप्त होगी -
1. आवेदन के साथ 10/- रू. (नगद या चालान से) समुचित रसीद या नान ज्यूडिशियल स्टाम्प या मनीआर्डर।
2. तैयार या प्रतिलिपि किए गए प्रत्येक (ए-3,ए-4 आकार) कागज के लिए दो रूपये प्रति प्रति पृष्ठ या समुचित रसीद या नान ज्यूडिशियल स्टाम्प या मनीआर्डर।
3. संग्रहित जानकारी 100/- रू. प्रतिपेज।
4. बड़े आकार के कागज पर प्रति का वास्तविक या लागत मूल्य।
5. सी.डी. या फ्लापी में सूचना उपलब्ध कराने के लिए पचास रूपये प्रति सी.डी. या फ्लापी।
6. नमूना अथवा मॉडल के लिए वास्तविक या लागत मूल्य।
7. मुद्रित कार्य में सूचना के लिए प्रकाशन की नियत कीमत।
8. अभिलेखों के निरीक्षण के लिए पहले घंटे का 50/- रूपये और उसके पश्चात् प्रत्येक 15 मिनट या उसके भाग के लिए 25/- रू. का शुल्क।
(टीप:- अधिनियम के तहत गरीबी रेखा के नीचे के व्यक्ति से कोई भी फीस नहीं ली जावेगी।)
दंड का प्रावधान
यदि लोक सूचना अधिकारी द्वारा यह किया जावे जैसे:-
1. आवेदन लेने से इंकार करना।
2. समय सीमा के अंदर सूचना न देना।
3. असद्भावपूर्वक सूचना देने का इंकार करना।
4. गलत अपूर्ण या गुमराह करने वाली सूचना जान-बूझकर देना, मांगी गई सूचना को नष्ट करना।
5. किसी अन्य तरीके से सूचना देने में बाधा डालना।
तब सूचना सूचना आयोग ऐसी परिस्थिति उत्पन्न होने पर लोक सूचना अधिकारियों पर रू. 250/- प्रतिदिन से लेकर अधिकतम रू. 25000/- तक दंड का आदेश दे सकता है।
आवेदन कैसे किया जा सकता है ?
  • आवेदक को सूचना प्राप्त करने के लिए आवेदन लिखित में देना होगा। स्वयं द्वारा या डाक द्वारा या इलेक्ट्रानिक माध्यम द्वारा आवेदन किया जा सकता है।
  • आवेदन के साथ सरकार द्वारा निर्धारित शुल्क भी जमा करना होगा, लेकिन गरीबी रेखा से नीचे के आवेदक को कोई शुल्क नहीं देना होगा।
  • किसी प्रकार की बातों की सूचना मांगी जा रही है, उन बातों का विवरण देना आवश्यक होगा, लेकिन आवेदक को यह बताना जरूरी होगा कि वह सूचना क्यों मांग रहा है।

छत्‍तीसगढ़ शासन द्वारा गरीबी रेखा से नीचे व्यक्तियों द्वारा चाही गई जानकारी संबंधी निर्देश -
  • आवेदक द्वारा मांगी गई जानकारी यदि उसके जीवन से संबंधित है, तो वह जानकारी इस प्रारूप में उपलब्ध करायी जाएगी, जिसमें वह मांगी गई है।
  • चाही गई जानकारी यदि स्वयं से संबंधित नहीं है, परंतु यदि जानकारी 50 छायाप्रति पृष्ठों (ए-4 साइज के) या तैयार करने में रूपये 100/- (रूपये एक सौ केवल) के खर्चे में दी जा सकती है।
  • यदि मांगी गई जानकारी 50 छायाप्रति, पृष्ठों से अधिक की है या रूपये 100/- से अधिक खर्च का है तो उक्त धारा 7 (9) के अधीन कारण अभिलिखित कर आवेदक को कार्यालय में अभिलेखों नस्तियों के अवलोकन करने का निवेदन किया जाएगा।

लोक प्राधिकरण की बाध्यताएं:-
  • नागरिकों की सूचना तक पहुंच सुलभ बनाने के लिए अभिलेखों के रखरखाव में सुधार कर उन्हें सूचीबद्ध और यथा योग्य कंप्यूटरीकृत करना होगा।
  • प्रत्येक लोक प्राधिकरण को इन बिंदुओं पर तुरंत सूचना की स्वयं घोषणा करनी होगी।
  • अपने विभाग की विशेषताएं, कर्तव्य और कार्य,
  • अपने अधिकारियों और कर्मचारियों की शक्तियों और कर्तव्य,
  • निर्णय लेने की प्रक्रिया, पर्यवेक्षण और उत्तरदायित्व निश्चित करने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया,
  • अपने कर्तव्यों के पालन के लिए स्वयं द्वारा स्थापित मापदंड.
  • अपने अधिकारी-कर्मचारियों द्वारा अपने कर्तव्यों के निर्वहन के लिए उपयोग किए गए जाने वाले नियम, विनियम, अनुदेश, निर्देशिका अन्य अभिलेख.
  • विभागीय नियंत्रण से उपलब्ध सभी अभिलेखों का विवरण.
  • नीतियों की संरचना और कार्यान्वयन के संबंध में जनता से परामर्श करने के लिए बनायी गई व्यवस्था का विवरण.
  • अपने अधिकारी तथा कर्मचारियों की डायरेक्टरी, उनके मासिक वेतन और अपने विनियमों के मुताबिक दिए जाने वाले पारिश्रमिक का विवरण.
  • अपने कामकाज से संबंधित दो से अधिक सदस्यों वाली सलाहकार बोर्ड, समितियों और परिषदों के बारे में विवरण तथा यह बताना होगा कि क्या उनकी बैठकें जनता के लिए खुली होंगी और क्या उनकी सभा के मिनिट्स तक जनता की पहुंच होगी.
  • सभी योजनाएं, प्रस्तावित खर्च और किए गए विवरण तथा निधियों की आबंटन की रिपोर्ट,
  • सबसिडी कार्यक्रमों के निष्पादन की रीति जिसमें हितग्राहियों के नाम और आबंटित राशि के बारे में विवरण शामिल है.
  • अपने द्वारा दी गई रियायतों, परमिट या प्राधिकारों को पाने वाले व्यक्तियों के नाम.
  • अपने पास इलेक्ट्रानिक रूप में उपलब्ध सूचना का ब्यौरा.
  • अपने लोक सूचना अधिकारियों के नाम, पद आदि का विवरण.
  •  ऐसी अन्य सूचना जो विहित की जाए.

सूचना मिलने की समय सीमा
लोक सुचना अधिकारी से मांगे जाने पर -
या तो 30 दिन के भीतर या आवेदन निरस्त कर देगा सूचना प्रदान कर देगा,   यदि किसी व्यक्ति का आवेदन निरस्त किया  जान या स्वतंत्रता से संबंधित जाता है, तब सूचना अधिकारी कर्तव्य होगा कि वह  48 घंटों के अंदर सूचना उपलब्ध कराना होगा. 
सूचना अधिकारी का यह कर्तव्य होगा कि वह आवेदन निरस्त:निस्‍तारण हो जाने के बाद, आवेदकों को सूचित करे एवं स्पष्ट सीमा भी बताएं जिसके भीतर अपील की अपील कहां की जाएगी। 
  • प्रथम अपीलीय अधिकारी को अपील हेतु समय सीमा 30 दिन 
  • राज्य सूचना आयोग के समक्ष द्वितीय अपील हेतु समय सीमा 90 दिन.
आवेदन निरस्त करने के कारण बताने होंगे
लोक प्राधिकारी द्वारा आवेदक का आवेदन निरस्त किये जाने पर कारण सहित 30 दिनों के भीतर इस सम्बध में आवेदक को सूचित किया जाना आवश्यक है। साथ ही लोक प्राधिकारी अपील के सम्बद्ध में कहां अपील होगी तथा उसकी समय सीमा की जानकारी आवश्यक रूप से आवेदक को बताएगा।

उच्चतम न्यायालय के गिरफ्तारी, हिरासत पूछताछ संबंधित

11 सूत्रीय दिशा निर्देश
डी.के. बसु बनाम स्टेट बैंक ऑफ वेस्ट बंगाल (1197) 1 एस.सी.सी.-216) भारत का संविधान देश का मूल कानून है। इसमें हर व्यक्ति को पुलिस व अन्य शासकीय अभिकरणों द्वारा दुर्व्यवहार से सुरक्षा दी गई है। संविधान के अनुच्छेद 2 में जीवन के निजी स्वतंत्रता का अधिकार सुरक्षित है।
संविधान के अनुच्छेद 22 में गिरफ्तारी और हिरासत से संबंधित अधिकार सुरक्षित हैं।
इन अधिकारों की सुरक्षा के लिए सीधे उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय में जा सकते हैं।
1- बंदी बनाने और पूछताछ का काम करने वाले पुलिस कर्मी के नाम और पद की घोषणा करने वाली पट्टी (टेप) स्पष्ट नजर आनी चाहिए।
2- गिरफ्तारी के समय एक मेमो तैयार करना जरूरी है, जिस पर गिरफ्तारी का समय व दिनांक अंकित किया जावे। इस मेमो पर कम से कम ऐसे गवाह का दस्तखत कराया जाये जो या तो उस क्षेत्र का प्रतिष्ठित नागरिक हो या हिरासत में लिए जा रहे व्यक्ति का हितैषी मित्र अथवा परिजन हो।
3- ऐसे प्रत्येक बंदी को यह अधिकार है कि वह अपनी स्थिति की सूचना अपने मनपसंद शुभचिंतक को (चाहे व कहीं भी रहता हो, पुलिस के जरिये भिजवा दे, अर्थात् बंदी बनाने के समय तैयार किए गए मेमो में गवाह के अलावा भी किसी एक शुभचिंतक को बंदी व्यक्ति को सूचना देना चाहे तो ऐसा कर सकता है।
4- पुलिस द्वारा पकड़ा गया व्यक्ति जिस शुभचिंतक को सूचना देना चाहे वह अगर किसी दूरस्थ नगर या जिले में हो उस संबंधित व्यक्ति की गिरफ्तारी के समय और उसे रखे जाने के जगह की सूचना जिले के विधिक सहायता संगठन और संबंधित क्षेत्र के पुलिस स्टेशन के जरिए, गिरफ्तारी के आठ से बारह घंटे के अंदर, तार से देना (पुलिस के जरिए) जरूरी है।
5-बंदी बनाए गए व्यक्ति को उसके अधिकार का आवश्यक रूप से ज्ञान कराया जाना जरूरी है कि वह अपने शुभचिंतक को (क्र. 3 व 4 के अनुसार) सूचना पहुंचा सकता है।
6-बंदी रखे रखे जाने के स्थान पर केस डायरी में यह दर्ज करना जरूरी है कि बंदी द्वारा बताए गए किस व्यक्ति को उसकी सूचना दी गई और बंदी को किन पुलिस अफसरों की कस्टडी में रखा गया है।
7-अगर व्यक्ति आग्रह करे तो गिरफ्तारी के समय उसका शारीरिक परीक्षण कराया जाना चाहिए, उस समय यदि उसके शरीर पर कोई छोटे या बड़े चोट के निशान हो तो उसका विवरण दर्ज करना जरूरी है, ऐसे निरीक्षण प्रपत्रों (इंस्पेक्शन मेमो) पर पुलिस अधिकारी के साथ बंदी व्यक्ति का भी हस्ताक्षर जरूरी है और उसकी प्रतिलिपि बंदी को भी जाए।
8-पुलिस कस्टडी में रखे गए बंदी का प्रत्येक 48 घंटों में एक बार ऐसे प्राधिकृत डाक्टरी जांच के लिए प्रस्तुत करना जरूरी है, जिसकी स्थापना प्रदेश के स्वास्थ्य लोक सेवा संचालक द्वारा तदाशय के संदर्भ में की गई हो।
9-गिरफ्तारी के मेमो सहित सभी संबंधित प्रपत्रों की प्रतिलिपियां इलाके के दंडाधिकारी के पास (इसके रिकार्ड के लिए) भेजी जानी चाहिए।
10-पूछताछ के दौरान बंदी व्यक्ति को अपने वकील से मिलने की अनुमति देना जरूरी है, हालांकि समूची पूछताछ के दौरान वकील को बैठाए जाने की अनुमति से इसका आशय नहीं है।
11-पुलिस के समस्त जिला व प्रदेश मुख्यालयों में एक ऐसा पुलिस कंट्रोल रूम होना वांछित है, जहां प्रत्येक गिरफ्तारी की सूचना में रखे जाने के स्थान की जानकारी 12 घंटे के अंदर एक ऐसे नोटिस बार्ड पर अंकित की जाए, जिसे कोई भी आसानी से व स्पष्ट रूप से देख सके।  उक्त निर्देश प्रत्येक थाने में स्पष्ट रूप से प्रदर्शित होना अनिवार्य है।  इन निर्देशों का पालन न करने पर संबंधित अधिकारी पर विभागीय कार्यवाही होगी। इनका
पालन न करना उच्चतम न्यायालय की अवमानना होगी, जो कि एक गंभीर अपराध है, जिसके लिए कैद और जुर्माना हो सकता है। शिकायत करने वाले व्यक्ति अवमानना की अर्जी अपने राज्य के उच्च न्यायालय (हाई कोर्ट) में दे सकते हैं।
ऊपर दी गई बातें गिरफ्तार व्यक्ति के अन्य अधिकारों के साथ-साथ होनी चाहिए, जैसे-
1-गिरफ्तारी के समय अपराध बताना जरूरी होगा।
2-गिरफ्तारी के समय जोर जबरदस्ती की मनाही है।
3-गिरफ्तारी के 24 घंटे के अंदर मजिस्ट्रेट के आगे पेश करना जरूरी है।
4-हिरासत में किसी भी बुरे सुलूक की मनाही है।
5-हिरासत में जुर्म कबूल करने के लिए दिया गया बयान अमान्य है।
6-महिला और 15 वर्ष से कम उम्र के बालक को केवल पूछताछ के लिए थाने में नहीं ले जाया जा सकता है। हिरासत में हिंसा, जिसमें मृत्यु भी शामिल है, कानून के शासन को गहरा आघात पहुंचा सकती है।

Category

03 A Explosive Substances Act 149 IPC 295 (a) IPC 302 IPC 304 IPC 307 IPC 34 IPC 354 (3) IPC 399 IPC. 201 IPC 402 IPC 428 IPC 437 IPC 498 (a) IPC 66 IT Act Aanand Math Abhishek Vaishnav Ajay Sahu Ajeet Kumar Rajbhanu Anticipatory bail Arun Thakur Awdhesh Singh Bail CGPSC Chaman Lal Sinha Civil Appeal D.K.Vaidya Dallirajhara Durg H.K.Tiwari HIGH COURT OF CHHATTISGARH Kauhi Lalit Joshi Mandir Trust Motor accident claim News Patan Rajkumar Rastogi Ravi Sharma Ravindra Singh Ravishankar Singh Sarvarakar SC Shantanu Kumar Deshlahare Shayara Bano Smita Ratnavat Temporary injunction Varsha Dongre VHP अजीत कुमार राजभानू अनिल पिल्लई आदेश-41 नियम-01 आनंद प्रकाश दीक्षित आयुध अधिनियम ऋषि कुमार बर्मन एस.के.फरहान एस.के.शर्मा कु.संघपुष्पा भतपहरी छ.ग.टोनही प्रताड़ना निवारण अधिनियम छत्‍तीसगढ़ राज्‍य विधिक सेवा प्राधिकरण जितेन्द्र कुमार जैन डी.एस.राजपूत दंतेवाड़ा दिलीप सुखदेव दुर्ग न्‍यायालय देवा देवांगन नीलम चंद सांखला पंकज कुमार जैन पी. रविन्दर बाबू प्रफुल्ल सोनवानी प्रशान्त बाजपेयी बृजेन्द्र कुमार शास्त्री भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम मुकेश गुप्ता मोटर दुर्घटना दावा राजेश श्रीवास्तव रायपुर रेवा खरे श्री एम.के. खान संतोष वर्मा संतोष शर्मा सत्‍येन्‍द्र कुमार साहू सरल कानूनी शिक्षा सुदर्शन महलवार स्थायी निषेधाज्ञा स्मिता रत्नावत हरे कृष्ण तिवारी