Tuesday 25 October 2016

मानसिक अयोग्यता से पीड़ित व्यक्तियों के अधिकार

मानसिक अस्वस्थ व्यक्ति से आशय है, वह व्यक्ति जिसे मानसिक रूप से अस्वस्थता के कारण चिकित्सा की आवश्यकता है।
  • जहां किसी अवयस्क के अभिभावक की इच्छा है कि उस मानसिक अस्वस्थ अवयस्क को मनोचिकित्सालय में चिकित्सा हेतु भर्ती करवाया जाए वहां वह प्रभारी स्वास्थ्य अधिकारी से इस आशय का निवेदन कर सकता है।
  • प्रत्येक पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी उसके थाने की सीमाओं में स्वछंद विवरण करते हुए मानसिक अस्वस्थ व्यक्ति को अपने संरक्षण में ले सकता है तथा दो घंटे के अंदर निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करेगा।
  • जहां किसी कार्यवाही में मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि कोई मानसिक अस्वस्थ व्यक्ति पर्याप्त साधनों के अभाव में वकील नियुक्त नहीं कर सकता, वहां मजिस्ट्रेट, वकील उपलब्ध कराएगा, जिसका व्यय राज्य वहन करेगा।
  • जहां किसी प्राधिकारी के आदेशानुसार मनोचिकित्सालय में निरूद्ध मानसिक अस्वस्थ्य व्यक्ति उन्मुक्त किया जाता है, वहां प्रभारी स्वास्थ्य अधिकारी यथाशीघ्र उसकी मानसिक व शारीरिक अवस्था की रिपोर्ट संबंधित प्राधिकारी को देगा।
  • जो कोई व्यक्ति विधि के प्रावधानों से अन्यथा किसी मानसिक अस्वस्थ व्यक्ति को निरूद्ध रखता है, वह दो वर्ष तक के कारावास या एक हजार रूपये तक के अर्थदंड से या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
  • जहां कोई मानसिक अस्वस्थ व्यक्ति अपनी देखभाल करने में असमर्थ है, वहां कलेक्टर किसी योग्य व्यक्ति को अभिभावक नियुक्त कर सकेगा।
  • मानसिक अस्वस्थ व्यक्ति को पेंशन, ग्रेच्युटी व अन्य भत्ते सरकार द्वारा दिए जाएंगे।
  • किसी भी मानसिक अस्वस्थ व्यक्ति के साथ क्रूरता या तिरस्कारपूर्ण व्यवहार नहीं किया जाएगा।


मानसिक रोगी (चित्त-विकृत व्यक्ति) के संबंध में विधि में प्रावधान विकृत-चित्त मानव के संबंध में उनके संरक्षण, अधिकार एवं उपयोग एवं उपचार हेतु विधि में प्रावधान किया गया है, जो निम्नानुसार है:-
  • विकृत-चित्त क्या कहता है, क्या करता है, इसका उसे ज्ञान नहीं होता है। अतः वह यह नहीं जानता कि किया जाने वाला कार्य दोषपूर्ण है या विधि के प्रतिकूल है। अतः ऐसे कृत्य जो विकृत-चित्त अव्यवस्था में उसके द्वारा किए जाते हैं, उन्हें धारा 84 भा.दं.वि. के तहत अपवाद मानकर कोई अपराध नहीं होना कहा गया है।
  • धारा 375 भा.दं.वि. में विकृत-चित्त अवस्था के कारण किसी स्त्री की सहमति को सहमति न मानकर उसे स्त्री के साथ किए गए बलात्संग को धारा 376 भा.दं.वि. के तहत दंडनीय बनाया गया है। विधि की यह मंशा है कि ऐसी विकृत महिला उस कार्य की प्रकृति और परिणामों को समझने में असमर्थ है, जिसकी वह सहमति दे रही है। अतः अतः ऐसे विकृत चित्त स्त्री के संरक्षण हेतु उक्त प्रावधान बनाए गए हैं।
  • जो व्यक्ति विकृत-चित्त है और उसके विरूद्ध मजिस्ट्रेट के समक्ष जांच की जा रही है तो विकृत चित्तता के कारण वह अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ होने के कारण धारा 328 दंप्र.सं. के तहत ऐसे व्यक्ति के चित्त-विकृत की जांच के लिए प्रावधान किए गए हैं, जिसमें उस व्यक्ति की जिले के सिविल सर्जन द्वारा अन्य चिकित्सक अधिकारी द्वारा जिसे राज्य सरकार निर्दिष्ट करें, परीक्षा की जावेगी। तत्पश्चात् इस संबंध में उस चिकित्सा अधिकारी का साक्ष्य के रूप में परीक्षण किया जावेगा एवं मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति की चित्त-विकृति के
  • संबंध में निष्कर्ष लिखकर जांच कार्यवाही को रोकेगा।
  • धारा 329 दं.प्र.सं. में चित्त विकृत व्यक्ति के विचारण में मजिस्ट्रेट या सेशन न्यायालय द्वारा चित्त-विकृत के तथ्य के संबंध में जांच किए जाने के एवं चित्त विकृत पाए जाने वाले पर कार्यवाही को रोके जाने का प्रावधान दिया गया है। धारा 330 दं.प्र.सं. में ऐसे चित्त-विकृत को अन्वेषण और विचारण के लंबित रहने तक समुचित देखरेख में छोड़े जाने का प्रावधान है। ऐसा चित्त-विकृत व्यक्ति के स्वस्थ हो जाने पर पुनः जांच या विचारण किये जाने का प्रावधान धारा 331 से 33 दं.प्र.सं. में दिए गए हैं। धारा 334 दं.प्र.संमें चित्त-विकृत के आधार पर दोषमुक्ति के प्रावधान है। इस तरह दं.प्र.सं. का अध्याय 25 विकृत-चित्त आरोपियों के संबंध में दिया गया है।
  • भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 12 में संविदा करने हेतु स्वस्थ चित्त व्यक्ति को सक्षम होना माना गया है। अतः स्वस्थ चित्त नहीं है, वह संविदा करने में सक्षम नहीं है। ऐसा व्यक्ति जो स्वस्थ चित्त नहीं है, यदि किसी समय वह स्वस्थ चित्त हो जाता है, तो वह संविदा कर सकता है और स्वस्थ चित्त व्यक्ति किसी समय स्वस्थ चित्त नहीं रहता है, तब संविदा नहीं कर सकता है।
  • व्य.प्र.सं. में आदेश 32 नियम 01 से 14 के प्रावधान विकृत चित्त व्यक्तियों पर भी लागू होते हैं और विकृत चित्त व्यक्ति की जांच करने के संबंध में भी बताया गया है। विकृत चित्त व्यक्ति सोचने और समझने योग्य नहीं रहता है। अतः उसके विरूद्ध या उसके द्वारा कोई वाद उक्त कारणों से नहीं चल सकता है। इसी कारण आदेश 32 व्य.प्र.सं0 में ऐसे विकृत चित्त जबकि वह वादी है तो उसकी ओर से वाद मित्र द्वारा दावा लाने और जबकि विकृत चित्त व्यक्ति प्रतिवादी है तो उसकी प्रतिरक्षा हेतु वादार्थ संरक्षक की नियुक्ति किए जाने के प्रावधान दिए गए हैं। अतः विकृत चित्तता के कारण ऐसे व्यक्ति का अहित न हो, इसलिए विधि में उसे उपरोक्तानुसार संरक्षण दिया गया है।

जनहित याचिका

जनहित याचिका क्या है ?
जनहित याचिका वह याचिका है, जो कि उन (लोगों) के सामूहिक हितों के लिए न्यायालय में दायर की जाती है। कोई भी व्यक्ति जनहित में या फिर सार्वजनिक महत्व के किसी मामले के विरूद्ध, जिसमें किसी वर्ग या समुदाय के हित अथवा उसके मौलिक अधिकार प्रभावित हुए हों, जनहित याचिका के जरिए न्यायालय की शरण ले सकता है।
जनहित याचिका किस न्यायालय के समक्ष दायर की जा सकती है:-
1 भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय के समक्ष।
2 भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत उच्च न्यायालय के समक्ष।
जनहित याचिका कब दायर की जा सकती है ?
जनहित याचिका दायर करने के लिए यह जरूरी है कि लोगों के सामूहिक हितों जैसे सरकार के कोई फैसले या योजना जिसका बुरा असर लोगों पर पड़ा हो। किसी एक व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन होने पर भी जनहित याचिका दायर की जा सकती है।
जनहित याचिका कौन व्यक्ति दायर कर सकता है ?
कोई भाी व्यक्ति जो सामाजिक हितों के बारे में सोच रखता हो, वह जनहित याचिका दायर कर सकता है। इसके लिए यह जरूरी नहीं कि उसका व्यक्तिगत हित भी सम्मिलित हो।
जनहित याचिका किसके विरूद्ध दायर की जा सकती है ?
जनहित याचिका केंद्र सरकार, राज्य सरकार, नगर पालिका परिशद् और किसी भी सरकारी विभाग के विरूद्ध दायर की जा सकती है। यह याचिका किसी निजी पक्ष के विरूद्ध दायर नहीं की जा सकती। लेकिन अगर किसी निजी पक्ष या कंपनी के कारण जनहितों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा हो, तो उस पक्ष या कंपनी को सरकार के साथ प्रतिवादी के रूप में सम्मिलित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए बिलासपुर में स्थित किसी निजी कारखाने से वातावरण प्रदूषित हो रहा है, तब जनहित याचिका में निम्नलिखित प्रतिवादी होंगेः-
1. छततीसगढ़ राज्य 2. राज्य प्रदूशण नियंत्रण बोर्ड 3. निजी कारखाना 
जनहित याचिका दायर करने की प्रक्रिया क्या है ?
जनहित याचिका ठीक उसी प्रकार से दायर की जाती है, जिस प्रकार से रिट (आदेश) याचिका दायर की जाती है।
उच्च न्यायालय के समक्ष जनहित याचिका दायर करने की प्रक्रिया है ?
उच्च न्यायालय के समक्ष जनहित याचिका दायर करने के लिए निम्नलिखित बातों का होना जरूरी हैः-
प्रत्येक याचिका की एक छायाप्रति होती है। यह छायाप्रति अधिवक्ता के लिए बनायी गई छायाप्रति या अधिवक्ता की छायाप्रति होती है। एक छायाप्रति प्रतिवादी को देनी होती है, और उस छायाप्रति की देय रसीद लेनी होती है। दूसरे चरण में जनहित याचिका की दो छायाप्रति, प्रतिवादी द्वारा प्राप्त की गई देय रसीद के साथ न्यायालय में होती है।
उच्चतम न्यायालय के समक्ष जनहित याचिका दायर करने की प्रक्रिया क्या है ?
उच्चतम न्यायालय के समक्ष जनहित याचिका दायर करने के लिए याचिका की पांच छायाप्रति दाखिल करनी होती है। प्रतिवादी को याचिका की छायाप्रति सूचना आदेश के पारित होने के बाद से ही की जाती है।
क्या साधारण पत्र के जरिए भी जनहित याचिका दायर की जा सकती है ?
जनहित याचिका एक खत या पत्र के द्वारा भी दायर की जा सकती है, लेकिन यह याचिका तभी मान्य होगी, जब यह निम्नलिखित व्यक्ति या संस्था द्वारा दायर की गई हो।
  • व्यक्ति द्वारा - सामाजिक हित का भावना रखने वाले व्यक्ति द्वारा 
  • उन लोगों के अधिकार के लिए जो कि गरीबी या किसी और कारण से न्यायालय के समक्ष न्याय पाने के लिए नहीं आ सकते।

जनहित याचिका दायर होने के बाद का प्रारूप क्या होता है ?
जनहित याचिका में न्यायालय का प्रारूप प्रमुख रूप से दो प्रकार का होता है:-
  • सुनवाई के दौरान दिए गए आदेश, इनमें किसी औद्योगिक संस्था को बंद करने के आदेश, कैदी को जमानत पर छोड़ने के आदेश आदि होते हैं।
  • अंतिम आदेश जिसमें सुनवाई के दौरान दिए गए आदेशों एवं निर्देशों को लागू करने व समय सीमा जिसके अंदर लागू करना होता है।

क्या जनहित याचिका को दायर करने व उसकी सुनवाई के लिए वकील आवश्यक है ?
जनहित याचिका के लिए वकील जरूरी है और राष्ट्रीय राज्य या जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के अंतर्गत सरकार के द्वारा वकील की सेवाएं प्राप्त कराए जाने का भी प्रावधान है।
निम्नलिखित परिस्थितियों में भी जनहित याचिका दायर की सकती है -
  • जब गरीबों का न्यूनतम मानव अधिकारों का हनन हो रहा हो।
  • जब कोई सरकारी अधिकारी अपने कर्तव्यों एवं दायित्वों की पूर्ति न कर रहा हो।
  • जब धार्मिक अथवा संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा हो।
  • जब कोई कारखाना या औद्योगिक संस्थान वातावरण को प्रदूषित कर रहा हो।
  • जब सड़क में रोशनी (लाईट) की व्यवस्था न हो, जिससे आने-जाने वाले व्यक्तियों को तकलीफ हो।
  • जब कहीं रात में ऊंची आवाज में गाने बजाने के कारण ध्वनि प्रदूषण हो।
  • जहां निर्माण करने वाली कंपनी पेड़ों को काट रही हो और वातावरण प्रदूषित कर रही हो।
  • जब राज्य सरकार की अधिक कर लगाने की योजना से गरीब लोगों के जीवन पर बुरा प्रभाव पड़े
  • जेल अधिकारियों के खिलाफ जेल सुधार के लिए।
  • बाल श्रम एवं बंधुआ मजदूरी के खिलाफ।
  • लैंगिक शोषण में महिलाओं के बचाव के लिए
  • सड़क एवं नालियों के रख-रखाव के लिए।
  • साम्प्रदायिक एकता बनाए रखने के लिए।
  • व्यस्त सड़कों से विज्ञापन के बोर्ड हटाने के लिए, ताकि यातायात में कठिनाई न हो।

जनहित याचिका से संबंधित उच्चतम न्यायालय के कुछ महत्वपूर्ण निर्णयः-
  • रूरल लिटिगेशन एण्ड इंटाइटलमेंट केंद्र बनाम उत्तरप्रदेश राज्य और रामशरण बनाम भारत संघ में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जनहित याचिकाओं की सुनवाई के दौरान न्यायालय को प्रक्रिया से संबंधित औपचारिकताओं में नहीं पड़ना चाहिए।
  • शीला बनाम भारत संघ में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जनहित याचिका को एक बार दायर करने के बाद वापस नहीं लिया जा सकता।

बंदियों के वैधानिक कर्तव्य और कारागार अपराध

कारागार में रहने वाले बंदियों का यह वैधानिक कत्रव्य है कि वे कारागार अधिनियम 1894 की धारा 45 सहपठित धारा 52/59 एवं छ.ग. जेल नियमावली नियम 723 एवं 743 के तहत विशेष रूप से उल्लेखित किया गया है, उल्लेखित प्रावधानों का उल्लंघन करने पर बंदी पृथक से दंड के भागी होंगे।
धारा 45 कारागार अधिनियम 1894
धारा-45, कारागार-अपराध - निम्नलिखित कार्य, जब वे किसी बंदी द्वारा किए जाएं, तब कारागार-अपराध घोषित किए जाते हैं:-
(1) कारागार के किसी विनियम की जान-बूझकर ऐसी अवज्ञा, जिसे धारा 59 के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा कारागार-अपराध घोशित किया गया हैं।
(2) कोई हमला या आपराधिक बल का प्रयोग।
(3) अपमानजनक या धमकी भरी भाषा का प्रयोग।
(4) अनैतिक या अशिष्ट या अमर्यादित आचरण।
(5) श्रम करने से अपने को जान-बूझकर असमर्थ बना देना।
(6) काम करने से धृष्टतापूर्वक इंकार करना।
(7) हथकड़ियों, बेड़ियों या सलाखों को सम्यक्अधिकार के बिना रेंतना, काटना हेरफेर करना या उन्हें हटाना।
(8) किसी ऐसे बंदी द्वारा जिसे कठिन कारावास का दंड दिया गया है, काम पर जान-बूझकर आलस्य या उपेक्षा करना।
(9) किसी ऐसे बंदी द्वारा जिसे कठिन कारावास का दंड दिया गया है, जान-बूझकर काम का कुप्रबंध करना।
(10) कारागार संपत्ति को जान-बूझकर नुकसान पहुंचाना।
(11) वृत्त-पत्रों, अभिलेखों या दस्तावेजों को बिगाड़ना या विरूपित करना।
(12) कोई प्रतिषिद्ध वस्तु प्राप्त करना, अपने पास रखना या अंतरित करना।
(13) रूग्णता का ढोंग करना।
(14) किसी अधिकारी या बंदी के विरूद्ध जान-बूझकर कोई झूठा आरोप लगाना।
(15) आग लगाने का कुचक्र या षड़यंत्र रचने, भाग निकलने अथवा भाग निकलने के प्रयत्न या तैयारी की तथा किसी बंदी का कारागार पदाधिकारी पर किसी आक्रमण की तैयारी की जैसे ही उसकी जानकारी हो जाए, रिपोर्ट न करना और रिपोर्ट से इंकार करना।
(16) निकल भागने का षड़यंत्र रचना अथवा निकल भागने में सहायता करना अथवा पूर्वोक्त अपराधों से कोई अन्य अपराध करना।
छत्तीसगढ़ जेल नियमावली 723 निम्नलिखित कृत्य कारागार अधिनियम की धारा 45 की उपधारा (1) के अंतर्गत जेल अपराध होंगे -
(1) पंक्ति में एक-दूसरे के पीछे होने के ताला खुले होने के अथवा शौचालन में स्नान गृह में अथवा अन्य परेड के दौरान और अन्य किसी समय पर जब किसी अधिकारी ने आदेशित कर निरूद्ध किया हो, बोलना एवं गाना, जोर से हंसना एवं किसी भी समय जोर से बोलना।
(2) अन्य बंदियों के साथ लड़ाई-झगड़ा करना।
(3) किसी भी प्रकार की वस्तु को छुपाना।
(4) किसी जेल अधिकारी अथवा आगंतुक के प्रति असम्मान प्रदर्शित करना।
(5) आधारहीन शिकायत करना।
(6) किसी जेल के अधिकारी अथवा आगंतुक के प्रश्न का असत्य उत्तर देना।
(7) किसी बाहरी व्यक्ति, दूसरे लिंग के व्यक्ति, दीवानी अथवा विचाराधीन व्यक्ति या अन्य श्रेणी के बंदी के साथ जेल नियमावली का उल्लंघन करते हुए किसी भी प्रकार के विचारों का आदान-प्रदान (लिखित में, मुख से, शब्द द्वारा अथवा अन्यथा) करना।
(8) किसी जेल अपराध को करने के लिए प्रेरित करना।
(9) किसी जेल अपराध की सूचना देने, किसी अधिकारी को जब ऐसा करने के लिए कहा जाए, सहायता देने में चूक करना जो कि जेल अनुशासन के लिए आवश्यक हो।
(10) साथी बंदियों को चोट पहुंचाने और उन्हें हानि पहुंचाने वाला कृत्य करना अथवा ऐसी भाषा का प्रयोग करना।
(11) जेल के बंदियों अथवा अधिकारियों के मन में अनावश्यक शंका पैदा करने वाला कोई कृत्य करना।
(12) बिना जेल के अधिकारी की अनुमति के उस टोली की, जिससे सम्बंध हो, उसे छोड़ना अथवा जेल के जिस भाग में रखा गया हो, उसे छोड़ना।
(13) जेल के अधिकारी की आज्ञा के बिना वार्ड, यार्ड (खुला स्थान) अथवा पंक्ति के स्थान को, बैठने के अथवा शयन को छोड़ना।
(14) यार्ड (खुले स्थान) में धीरे-धीरे चलना (स्वपजमतपदह) विलम्ब से वार्ड में पहुंचना जब वह खुले हों।
(15) पंक्ति में कदम मिलाने में चूक करना अथवा इंकार करना, जब कारागार में चल रहे हों।
(16) शौचालय में जाना अथवा नहाने के प्लेटफार्म पर जाना, वर्णित घंटों के अलावा अथवा जेल के किसी अधिकारी की अनुमति के बिना, और अनावश्यक रूप से रात्रि में शौच निवृत्ति करना अथवा चूक करना या जेल नियमावली में निर्देशित ढंग से सूखी मिट्टी डालने मना करना।
(17) भोजन करने से अथवा जेल पैमाने में निश्चित भोजन खाने से इंकार करना।
(18) ऐसे भोजन की व्यवस्था करना अथवा खाना जो, उसके लिए निर्मित न हो अथवा अन्य बंदियों के लिए निर्मित भाग में से वहां भोजन लेना अथवा जोड़ना।
(19) रसोईघर से अथवा गोदाम से अथवा ऐसे स्थान से जहां भोजन परोसा जाता हो, जेल अधिकारी की आज्ञा के बिना, भोजन हटाना अथवा भोजन जारी करने और वितरित करने के संबंध में जारी किन्हीं आदेशों का उल्लंघन करना।
(20) जान-बूझकर भोजन को नष्ट करना अथवा बिना आदेशों के उसे फेंकना।
(21) भोजन में अथवा पेय पदार्थ में उसे अस्वास्थ्यकर अथवा बेस्वाद बनाने के लिए कोई वस्तु मिलाना।
(22) उसके लिए गये वस्त्रों को पहनने में चूक करना या इंकार करना अथवा अन्य बंदियों के कपड़े पहनने के लिए इनका कोई भाग विनिमय करना अथवा खोना अथवा अनुपयोगी बनाना अथवा खंडित करना अथवा इनके किसी भाग का बदल देना। 
(23) किसी व्यक्ति अथवा कपड़ों पर लगे किसी विशेष चिन्ह, संख्या अथवा बैज को हटाना, बदलना अथवा मिटाना।
(24) व्यक्ति को साफ-सुथरा रखने में चूक करना अथवा भूल करना अथवा बालों एव नाखूनों को काटने संबंधी किन्हीं आदेशों की अवमानना करना।
(25) कपड़ों, कम्बल, बिस्तरों, बेडों, ताम्बे के गिलास, कप अथवा प्लेट अथवा छाती का कार्ड अथवा अन्य पहचान टोकन को साफ करने में भूल अथवा चूक करना अथवा ऐसे सामानों के प्रति व्यवस्था करने के लिए जारी किन्हीं आदेशों का उल्लंघन करना।
(26) बल्ब अथवा रोशनियों अथवा अन्य संपत्तियों को जिनसे उसका कोई संबंध हो, छेड़छाड़ कर जेल वस्तु से अलग करना। 
(27) जेल वस्त्रों अथवा अन्य किसी बंदी की जेल किट को चुराना।
(28) जेल के किसी भाग में अव्यवस्था पैदा करना।
(29) थूकना अथवा जेल के किसी अन्य फर्श, दरवाजे दीवार अथवा जेल भवन के किसी भाग अथवा जेल के किसी अन्य वस्तु को मैला करना।
(30) जेल के किसी कुएं, शौचालय, धोने के अथवा नहाने के स्थान में बदबू पैदा करना।
(31) जेल के किसी बगीचे में लगे वृक्षों अथवा सब्जियों को हानि पहुंचाना अथवा जेल के पशुओं के साथ दुर्व्यवहार करना। 
(32) उसे सौंपी गई जेल संपत्ति की देखभाल करने में भूल अथवा चूक करना।
(33) काम के लिए दी गई वस्तुओं अथवा यंत्रों की आवश्यक देखभाल करने में भूल अथवा चूक करना अथवा उन्हें हानि पहुंचाना अथवा दुरूपयोग करना।
(34) किसी हानि रोग, अथवा चोट आदि जो कि उसने जेल संपत्ति अथवा यंत्र को दुर्घटनावश पहुंचायी हो, की सूचना देने में चूक करना।
(35) जेल अधिकारी के ज्ञान अथवा आज्ञा के बिना किसी वस्तु का निर्माण करना।
(36) किसी अन्य बंदी द्वारा किए गए किसी कार्य के किसी भाग को करना अथवा अपने स्वयं के कार्य के निर्वहन में अन्य किसी बंदी की सहायता लेना।
(37) किसी अन्य बंदी द्वारा किए गए किसी कार्य के किसी भाग का विनिमय करना। 
(38) कार्य के लिए जारी किए गए पदार्थों में किसी बाह्य वस्तु को मिलाना अथवा जोड़ना।
(39) स्वयं को बीमार करने वाले, चोट पहुंचाने वाले अथवा अक्षम कार्य करने वाले कार्य करना अथवा चूक करना।
(40) हिंसा अथवा अवमानना के कारण बनाना अथवा उसे दबाने में सहायता करने में चूक करना।
(41) किसी बंदी अथवा जेल के किसी अधिकारी पर हमले में भाग लेना।
(42) किसी जेल के अधिकारी को किसी भागने के प्रयास अथवा ऐसे अधिकारी पर हमले अथवा अन्य किसी बंदी पर हमले के संबंध में सहायता करने में चूक करना अथवा इंकार करना।
(43) किसी जेल अधिकारी के वैधानिक आदेश को न मानना अथवा निर्धारित प्रकार से कर्तव्य करने में चूक करना अथवा इंकार करना।
(44) दंगे अथवा विद्रोह में भाग लेना अथवा अन्य बंदी को दंगे अथवा विद्रोह भाग लेने के लिए प्रेरित करना।
(45) जातिगत अथवा धार्मिक पूर्वाग्रह के आधार पर विरोध प्रकट करना।
(46) अनाधिकृत रूप से भोजन पकाना।
भोजन खाने से किसी प्रकार से इंकार करना या भूख हड़ताल करना गंभीर जेल अपराध है। उपरोक्त अनुशासन भंग किए जाने की स्थिति में बंदी को धारा 46 एवं धारा 52 कारागार अधिनियम 1894 के प्रावधानों के तहत दंडित किया जा सकता है और दंड के रूप दोष सिद्ध होने की दशा में पृथक से एक वर्ष तक के कारावास की सजा दी जा सकती है।

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03 A Explosive Substances Act 149 IPC 295 (a) IPC 302 IPC 304 IPC 307 IPC 34 IPC 354 (3) IPC 399 IPC. 201 IPC 402 IPC 428 IPC 437 IPC 498 (a) IPC 66 IT Act Aanand Math Abhishek Vaishnav Ajay Sahu Ajeet Kumar Rajbhanu Anticipatory bail Arun Thakur Awdhesh Singh Bail CGPSC Chaman Lal Sinha Civil Appeal D.K.Vaidya Dallirajhara Durg H.K.Tiwari HIGH COURT OF CHHATTISGARH Kauhi Lalit Joshi Mandir Trust Motor accident claim News Patan Rajkumar Rastogi Ravi Sharma Ravindra Singh Ravishankar Singh Sarvarakar SC Shantanu Kumar Deshlahare Shayara Bano Smita Ratnavat Temporary injunction Varsha Dongre VHP अजीत कुमार राजभानू अनिल पिल्लई आदेश-41 नियम-01 आनंद प्रकाश दीक्षित आयुध अधिनियम ऋषि कुमार बर्मन एस.के.फरहान एस.के.शर्मा कु.संघपुष्पा भतपहरी छ.ग.टोनही प्रताड़ना निवारण अधिनियम छत्‍तीसगढ़ राज्‍य विधिक सेवा प्राधिकरण जितेन्द्र कुमार जैन डी.एस.राजपूत दंतेवाड़ा दिलीप सुखदेव दुर्ग न्‍यायालय देवा देवांगन नीलम चंद सांखला पंकज कुमार जैन पी. रविन्दर बाबू प्रफुल्ल सोनवानी प्रशान्त बाजपेयी बृजेन्द्र कुमार शास्त्री भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम मुकेश गुप्ता मोटर दुर्घटना दावा राजेश श्रीवास्तव रायपुर रेवा खरे श्री एम.के. खान संतोष वर्मा संतोष शर्मा सत्‍येन्‍द्र कुमार साहू सरल कानूनी शिक्षा सुदर्शन महलवार स्थायी निषेधाज्ञा स्मिता रत्नावत हरे कृष्ण तिवारी