Tuesday 1 November 2016

पैराविधिक स्वयं सेवक की भूमिका (पैरालीगल वालिंटियर्स के कार्य)

सामान्यः-
भारत की अधिकॉश जनसंख्या गॉवों में बसती है, जहां ज्यादातर लोग अशिक्षित ,गरीब, वंचित और अपने अधिकारों से अनभिज्ञ हैं। गॉवों तक पहुॅच के साधन आज भी सीमित है।
विधिक सेवा के परम उद्वेश्य ’’न्याय सबके लिए’’ की सफलता तभी है, जब देश के प्रत्येक व्यक्ति तक, चाहे वह दूरस्थ क्षेत्र में स्थित हो, उन तक विधिक सहायता पहुॅचें।
’’न्याय सबके लिए’’ अभियान के अन्तर्गत नालसा का उद्वेश्य विधिक सेवा प्राधिकरणों की सक्रियता इस स्तर तक बढ़ाना है कि समाज के अंतिम व्यक्ति को भी अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों की जानकारी हो तथा प्राधिकरण विधिक सहायता के लिये जरूरतमंदों तक स्वयं पहुॅचें, उन्हें अपने पास आने की प्रतिक्षा नहीं करें।
इन्हीं उद्वेश्यों की पूर्ति के लिये पैरा विधिक स्वयंसेवकों का संगठन तैयार करने हेतु नालसा ने वर्ष 2009-10 में एक स्कीम तैयार की जिसे वर्ष 2011 में और पुनः वर्ष 2013 में संशोधित किया। छत्तीसगढ़ के सभी जिलों में पैरा विधिक स्वयं सेवकों का चयन किया गया एवं प्रशिक्षण दिया गया है, जिनके द्वारा समाज के अंतिम व्यक्ति को विधिक सेवा प्रदान करने का प्रयास किया जा रहा है।
इस स्कीम का उद्वेश्य पैरा विधिक स्वयं सेवकों का कैडर तैयार करना है। पैरा लीगल वॉलिंटियर्स से यह अपेक्षा की जाती है कि वे ऐसा कार्य करें, जिससे आम जरूरतमंद ब्यक्ति और विधिक सेवा संस्था के मध्य की दूरी को मिटाकर सबके लिये न्याय के अभियान में आने वाली बाधाओं को हटा सके।
सामान्यतः पैरा विधिक स्वयं सेवक के रूप में ऐसे व्यक्तियों को चुना जाना है जिनका उद्वेश्य केवल पैरा विधिक स्वयं सेवक के रूप में कार्य कर मानदेय प्राप्त करना न हो बल्कि वह समाज के कमजोर, वंचित एवं जरूरतमंदों के उत्थान के लिये संवेदनशीलता, सहानुभूति एवं जुड़ाव के साथ कार्य कर सकें।
पारम्परिक रूप में पैरा विधिक ऐसे व्यक्ति है जो अधिवक्ताओं को उनके द्वारा दी जाने वाली विधिक सेवा में सहयोग करतें है। परन्तु नालसा की स्कीम के अन्तर्गत चयनित ’’पैरा विधिक स्वयं सेवक’’ का कार्य किसी व्यक्ति को विधिक राय देना नहीं है, बल्कि उसका कार्य जरूरतमंदों को विधिक सेवा प्राधिकरणों के माध्यम से विधिक सहायता प्राप्त करने में सहयोग प्रदान करना है। उसका कार्य जरूरतमंद एवं विभिन्न संस्थानों के बीच सेतु का कार्य करना है। 
पैरा विधिक स्वयंसेवक के रूप में शिक्षक (सेवानिवृत्त शिक्षकों सहित) सेवानिवृत्त सरकारी सेवक, वरिष्ठ नागरिक, सामाजिक कार्यकर्ता, विद्यार्थी, आगनबाड़ी कार्यकर्ता, डाक्टर, एन0जी0ओ0 विधि छात्र, गैर राजनीतिक दल के व्यक्ति, महिलायें, दंडित शिक्षित कैदी आदि को चुना जाना है।
पैरा लीगल स्व्यंसेवकों को विशेषज्ञ के रूप में योग्य अधिवक्ताओं, विधि महाविद्यालय के शिक्षकों एवं स्नातकोत्तर के छात्र, विधिक महाविद्यालय से सेवा निवृत्त शिक्षक, सेवा निवृत्त न्यायिक अधिकारी, राजस्व अधिकारी, समाज कल्याण विभाग के अधिकारी, लोक अभियोजक, वरिष्ठ पुलिस अधिकारी इत्यादि के द्वारा प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।
पैरा विधिक स्वयं सेवकों को कई चरणों में प्रशिक्षण दिया जाता है। इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों में आम नागरिकों के मौलिक अधिकार एवं कर्तव्य, परिवारिक विधियों, सम्पदा विधियॉ, श्रम विधियॉ उपभोक्ता कानून, औद्योगिक विधियॉ, बंदियों के अधिकार, राजस्व विधियॉ, बच्चों से संबंधित विधियॉ, सूचना का अधिकार अधिनियम, मोटरयान अधिनियम, शिक्षा का अधिकार अधिनियम, लोक अदालत , प्ली-बार्गेनिंग, अनुसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम, पर्यावरण संबंधी विधियॉ शासन की विभिन्न योजनाएॅ एवं जनहित से संबंधित कानूनी विषयों पर जानकारी प्रदान की जाती है।
अंतिम रूप से चयनित एवं प्रशिक्षित पैरा विधिक स्वयं सेवकों को परिचय पत्र जारी किया जायेगा, जो एक वर्ष के लिए वैद्य होगा। एक वर्ष पश्चात् पुनः उसका परिचय पत्र नवीनीकृत किया जायेगा यदि अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण उससे आगे पैरा विधिक स्वयं सेवक के रूप में कार्य लेने हेतु उसे पात्र पाते हैं।
पैरा विधिक स्वयंसेवकों को विभिन्न स्तरों पर भिन्न-भिन्न प्रकार की सेवायें प्रदान करनी है। अतः यह संभव है कि अपने कर्तव्यों के निर्वहन के दौरान उन्हें सलाह एवं सहयोग की आवश्यकता पड़े। पैरा विधिक स्वयंसेवकों की इन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये प्रत्येक प्राधिकरण /समिति सलाहकारों का पैनल तैयार करेगी। 10 पैरा विधिक स्वयं सेवक पर एक सलाहकार होगा जिसका संपर्क नंबर उसके ग्रुप के पैरा विधिक स्वयं सेवकों के पास होगा । पैरा विधिक स्वयं सेवक आवश्यकता होने पर सलाहकार से सलाह एवं सहयोग प्राप्त कर सकेगा।
पैरा विधिक स्वयंसेवकों के कार्य:-
पैरा विधिक स्वयंसेवक सामान्यतः निम्नलिखित कार्य करेंगेंः-
1. लोगों, विशेषतः समाज के कमजोर वर्ग के लोगों को मान-सम्मान के साथ रहने के अधिकार, संविधान एवं अन्य विधियों द्वारा प्रदत्त अधिकारों आदि के संबंध में जागरूक करना साथ ही उनके कर्तव्यों एवं दायित्वों के संबंध में भी जागरूक करना।
2. पैरा विधिक स्वयं सेवक अपने क्षेत्र में होने वाले कानून के उल्लंघन एवं अन्याय पर लगातार दृष्टि रखेंगें तथा उसे तत्काल फोन से या लिखित या व्यक्तिगत रूप से प्राधिकरण/समिति के संज्ञान में लायेगें ताकि प्राधिकरण/समिति प्रभावी उपचार के लिए कदम उठा सकें।
3. यदि पैरा विधिक स्वयं सेवक को क्षेत्र के किसी व्यक्ति के गिरफ्तार होने की सूचना मिलती है, तो वह थाना जायेगा तथा यदि आवश्यक हो तो यह सुनिश्चित करेगा कि वह नजदीक के प्राधिकरण/समिति से उसे विधिक सहायता पहुचायें।
4. पैरा विधिक स्वयं सेवक का यह भी दायित्व है कि वह देखे कि अपराध के पीड़ित को समुचित संरक्षण और सहयोग मिले। हत्या, बलात्कार, एसिड़ हमला, बालकों पर होने वाले लैंगिक अपराधों में पीड़ित को लैंगिक अपराधों से बालकों की सुरक्षा अधिनियम 2012, धारा 357-ए दं0प्र0सं0 एवं छत्तीसगढ़ पीड़ित क्षतिपूर्ति स्कीम 2011 के अन्तर्गत क्षतिपूर्ति दिलाने में भी सहयोग करेगा।
5. प्राधिकरण द्वारा प्राधिकृत किये जाने पर जेल, मनःचिकित्सालय, बाल सरंक्षण गृह जायेगा तथा उन स्थानों पर निरूद्व व्यक्तियों की विधिक आवश्यकताओं को सुनिश्चित करेगा तथा यदि वह पाता है कि निरूद्व व्यक्तियों की मूलभूत सुविधाओं में कोई कमी है तो उसे सक्षम प्राधिकरणी को सूचित करेगा।
6. पैरा विधिक स्वयं सेवक बच्चों के अधिकारों के उल्लंघन, बालश्रम, बच्चों की गुमशुदगी, लड़कियों के दुर्व्यापार के बारे में नजदीकी सक्षम प्राधिकरणी या बाल कल्याण समिति को सूचित करेगा।
7. पैरा विधिक स्वयं सेवक अपने क्षेत्र में विधिक जागरूकता शिविरों के आयोजन में प्राधिकरण/समिति की सहायता करेगा।
8. पैरा विधिक स्वयं सेवक अपने क्षेत्र के लोगों को विधिक सेवा प्राधिकरणों से प्राप्त होने वाली विधिक सहायता की जानकारी देगा तथा प्राधिकरणों /समितियों का पता बतायेगा ताकि लोग, प्राधिकरणों /समिति से प्राप्त होने वाले मुफ्त विधिक सहायता का लाभ उठा सकें।
9. पैरा विधिक स्वयं सेवक लोगों को पूर्व-विवाद स्तर पर मध्यस्थता, लोक अदालत, पंचाट या सुलह समझौते के माध्यम से विवादों के निपटारे के लिए जागरूकता पैदा करेगा तथा लाभ बतायेगा।
10. पैरा विधिक स्वयं सेवक लोगों को स्थायी लोक अदालात (लोकोपयोगी सेवाओं के लिये) के माध्यमों से निम्न विवादों को निपटारे की जानकारी देगाः-
  • वायु, सड़क या जल मार्ग द्वारा यात्रियों या माल के वहन के लिये यातायात सेवा.
  • डाक, तार या टेलीफोन सेवा.
  • किसी स्थापना द्वारा जनता को विद्युत, प्रकाश या जल का प्रदाय.
  • सार्वजनिक मल वहन या स्वच्छता प्रणाली.
  • अस्पताल या औषधालय सेवा.
  • बीमा सेवा.
  • बैंकिग तथा अन्य वित्तीय संस्थानों की सेवाएं.
  • किसी स्थापना द्वारा जनसामान्य को किसी भी प्रकार के ईधन का प्रदाय.

11. पैरा विधिक स्वयं सेवक नियत फार्मेट में उसके द्वारा किये गये कार्य की मासिक विवरणी प्राधिकरण/समिति को देगा।
12. प्रतिदिन की कार्यवाही को दर्ज करने हेतु प्रत्येक पैरा विधिक स्वयं सेवक एक डायरी रखेगा। यह डायरी प्राधिकरण द्वारा छपवायी और उपलब्ध करायी जायेगी तथा प्राधिकरण /समिति के सचिव / अध्यक्ष द्वारा अभिप्रमाणित की जायेगी।
13. पैरा विधिक स्वयं सेवक यह भी देखेगा कि विधिक सेवा से संबंधित प्रचार सामग्री उनके क्षेत्र के प्रमुख स्थानों पर प्रदर्शित किये जायें।
पैरा विधिक स्वयं सेवकों के प्रबंध कार्यालयों में कार्य:-
नालसा (मुफ्त एवं प्रभावी विधिक सहायता) विनियम 2010 के विनियम 4 के अन्तर्गत प्रबंध कार्यालय के कार्यालयीन समय के दौरान उपलब्ध पेनल अधिवक्ता के साथ एक या अधिक पैरा विधिक स्वयं सेवक को नियुक्त किया जा सकता है।
विधिक सहायता केन्द्र में पैरा विधिक स्वयं सेवक के कार्य :-
नालसा (विधिक सहायता क्लीनिक) विनियम 2011 विनियम 5 के अन्तर्गत विधिक सहायता क्लीनिक में कार्य समय के दौरान कम से कम दो पैरा विधिक स्वयं सेवक उपस्थित रहकर विधिक सहायता/सलाह प्रदान करेंगे।
नालसा (विधिक सहायता क्लीनिक) विनियम 2011 के विनियम 10 के अन्तर्गत पैरा विधिक स्वयंसेवक निम्नलिखित कार्य करेंगें:-
1. विधिक सहायता केन्द्र में प्रतिनियुक्त पैरा विधिक स्वयंसेवक विधिक सहायता चाहने वाले व्यक्ति को प्रारंभिक सलाह प्रदान करेगा।
2. विभिन्न सरकारी योजनाओं के अन्तर्गत लाभ प्राप्त करने हेतु सहायता चाहने वाले, विशेषतः अशिक्षित व्यक्तियों के लिये आवेदन, नोटिस आदि का मसौदा तैयार करेगा और फार्म भरने में सहायता प्रदान करेगा।
3. यदि आवश्यकता हो तो पैरा विधिक स्वयं सेवक विधिक सेवा चाहने वाले व्यक्ति के साथ सरकारी कार्यालय जायेगा तथा अधिकारी/कर्मचारी से मिलकर उक्त व्यक्ति की समस्या के निदान का प्रयास करेगा।
4. यदि विधिक सहायता केन्द्र में अधिवक्ता की सेवा की आवश्यकता है तो पैरा विधिक स्वयं सेवक बिना विलम्ब किये जिला विधिक सेवा प्राधिकरण/तालुक विधिक सेवा समिति से संपर्क कर अधिवक्ता की सेवा तत्काल उपलब्ध कराने का अनुरोध करेगा।
5. आकास्मिकता की स्थिति में विधिक सेवा चाहने वाले ब्यक्ति को पैरा विधिक स्वयं सेवक जिला विधिक सेवा प्राधिकरण / तालुका विधिक सेवा समिति में ले जायेगा।
6. विधिक सहायता चाहने वाले व्यक्तियों को जागरूक करने हेतु पैरा विधिक स्वयं सेवक पर्चे एवं अन्य सामग्री बॉटेगा।
7. पैरा विधिक स्वयं सेवक जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा आयोजित विधिक जागरूकता शिविर में सक्रिय भागीदारी करेगा।
8. इसके अतिरिक्त पैरा विधिक स्वयं सेवक जिला प्राधिकरण /समिति की सलाह से अपने क्षेत्र में श्रमिकों, महिलाओं, बच्चों, अनुसूचित जाति/ जनजाति एवं अन्य लोगों के छोटे-छोटे समूहों के बीच विभिन्न विषयों यथा उनके मूल अधिकारों, विधिक अधिकारों, संपत्ति संबंधी अधिकारों, सूचना के अधिकार, शिक्षा के अधिकार, सेवा के अधिकार, पुलिस के संबंध में उनके अधिकार, सरकार द्वारा उनके लिए संचालित विभिन्न लाभकारी स्कीमों एवं लाभकारी अधिनियमों आदि विषयों के बारे में विधिक जागरूकता एवं साक्षरता शिविरों
का आयोजन करेगा।
अनुकल्पी विवाद निपटारा(ए.डी.आर.)द्वारा स्थानीय विवादों का निपटारा करानाः- 
स्थानीय स्तर पर लोगों के बीच अक्सर छोटे-छोटे विवाद होते रहते हैं जिन्हें यदि समय से नहीं सुलझाया जाय तो बड़े विवादों और मुकदमें का रूप ले लेते हैं। पैरा विधिक स्वयं सेवकों का यह कर्तव्य है वे अपने क्षेत्र के ऐसे विवादों की पहचान करेगा तथा पक्षकारों को इस बात के लिए प्रेरित करेगा कि वे अपने विवादों को लोक अदालत, मध्यस्थता, या बातचीत के माध्यम से सुलझाये तथा इसके लिये उन्हें जिला विधिक सेवा प्राधिकरण / ए.डी.आर. केन्द्र में लाने का प्रयास करेगा।
जेल में पैरा विधिक स्वय सेवक:-
प्रत्येक जेल में विधिक सहायता केन्द्र स्थापित करने के अतिरिक्त लम्बी सजा भुगत रहे कैदियों में से कुछ कैदियों का चयन पैरा विधिक स्वयं सेवक के रूप में कर उन्हें प्रशिक्षित किया जाना है, ताकि वे अपने अन्य कैदियों को विधिक सहायता प्रदान कराने के लिए हमेशा उपलब्ध रहें।
पैरा विधिक स्वयं सेवकों की थाने में प्रतिनियुक्ति :-
बचपन बचाओं आन्दोलन बनाम भारत सरकार के मामलें में माननीय सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्देश है कि यदि किसी बच्चे के गायब होने की शिकायत की जाती है तो यह माना जायेगा कि उस बच्चे का अपहरण या दुर्व्यापार हुआ है और तत्काल प्राथमिकी दर्ज किया जायेगा ताकि अनुसंधान के क्रम में तत्काल उनकी खोज प्रारंभ की जा सके।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार प्रदेश के प्रत्येक थाने में पैरा विधिक स्वयं सेवक की प्रतिनियुक्ति की जाती है जो यह देखेगा कि गायब हुए किसी बच्चे से संबंधित शिकायत प्राथमिकी के रूप में दर्ज हो रहा है या नहीं एवं प्राथमिकी दर्ज होने के उपरान्त पुलिस बच्चे की तलाश में तत्पर है या नही।
यदि पुलिस ने बच्चे की गुमशुदगी को सिर्फ सान्हा के रूप में दर्ज किया है तो संबंधित पैरा विधिक स्वयं सेवक थाना प्रभारी को माननीय उच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए प्राथमिकी दर्ज कर बच्चे की तलाश किये जाने का अनुरोध करेगा।
यदि पैरा विधिक स्वयं सेवक यह पाता है कि प्राथमिकी दर्ज होने के उपरान्त पुलिस बच्चे की खोज में तत्पर नहीं है तो भी वह संबंधित अनुसंधानकर्ता एवं थाना प्रभारी को माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का उल्लेख करते हुए बच्चे की तलाश हेतु कदम उठाने का अनुरोध करेगा।
यदि थाना प्रभारी अथवा अनुसंधानकर्ता प्राथमिकी दर्ज करने अथवा बच्चे की तलाश में तत्परता के अनुरोध पर ध्यान नहीं देता है तो संबंधित पैरा विधिक स्वयं सेवक इसकी तत्काल लिखित सूचना संबंधित जिले के जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव को देगा ताकि प्राधिकरण के स्तर से उस संबंध में आवश्यक कदम उठाया जा सकें।
नोटः-उल्लेखनीय है कि थाने में प्रतिनियुक्त पैरा विधिक स्वयंसेवक किसी भी रूप में थाना कार्य का पर्यवेक्षक नहीं है, बल्कि वह जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के प्रतिनिधि के रूप में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के अनुपालन में बच्चों से संबंधित शिकायत पर निगाह रखने के लिए है।
पैरा विधिक स्वयं सेवकों के गुण :-
एक सफल पैरा विधिक स्वयंसेवक होने के लिये पैरा विधिक स्वयंसेवक में निम्नलिखित गुण होने चाहिए:-
1. लोगों के साथ मिलकर कार्य करने की क्षमता.
2. घटना को विस्तार से समझने की क्षमता.
3. कठिन परिस्थितियों में धैर्य के साथ कार्य करने की क्षमता.
4. गंभीरता.
5. ईमानदारी.
6. सुनियोजित रहना.
7. बहुआयामी.
8. टीम वर्क.
9. समझदारी.
10. बातचीत करने की क्षमता.
11. कठिन परिस्थितियों में भी विवेकशील रहना.
12. साफ-साफ बोलना और लिखना.
13. सतत् सीखते रहने की क्षमता.
याद रखें पैरा विधिक स्वयं सेवकों को क्या नहीं करना हैः-
पैरा विधिक स्वयंसेवकों के लिये जितना आवश्यक यह जानना है कि उसे क्या करना है, उतना ही आवश्यक यह भी जानना है कि उसे क्या नही करना है। पैरा विधिक स्वयं सेवकों को निम्नालिखित कार्य नही करना है-
1. पैरा विधिक स्वयं सेवक फीस नहीं ले सकता।
2. क्लाईंट के लिए कोर्ट में पेश नहीं होना।
3. न्याय का दलाल नही बनना है।
4. जाति, धर्म, लिंग आदि के आधार पर कोई भेद-भाव नहीं करना है।
5. सहानुभूति और समझदारी से निर्णय लेगा।
6. पैरा विधिक स्वयंसेवक अपनी नियुक्ति का किसी भी रूप में दुरूपयोग नही करेंगें।
7. पैरा विधिक स्वयं सेवक जरूरतमंद तथा संबंधित विभाग के बीच सेतु का कार्य करते समय ऐसा कोई कार्य नही करेगा जो अधिकार क्षेत्र से बाहर हो। यदि विभाग से उसे सहयोग नही मिलता है तो वह इसकी सूचना संबंधित जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को देगा।
8. झूठा आरोप लगाने वाला और अवमानकारक आवेदन नहीं लिखेगा।
9. आवेदन, नोटिस, जवाब, लिखने के समय गलत तथ्यों या आवेदक द्वारा बताये गये तथ्यों से अलग या अतिरिक्त तथ्य नहीं लिखेगा।
10.आवेदक की सहायता के लिए किसी कार्यालय में जाने के दौरान पैरवीकार के रूप में कार्य नही करेगा।
11. अधिकारों की उपलब्धता के संबंध में कोई विधिक राय नहीं देगा।
12.पैरा विधिक स्वयंसेवक की हैसियत से किसी कार्यालय या व्यक्ति को कोई पत्र नही लिखेगा।
13.पैरा विधिक स्वयंसेवक किसी का कार्य करा देने का वादा नहीं करेगा या काम कराने की गारण्टी नही लेगा। वह एजेन्ट की तरह कार्य नही करेगा। उदाहरण के लिये यदि कोई व्यक्ति वृद्वावस्था पेंशन पाने का हकदार है तो- पैरा विधिक स्वयं सेवक उसे यह बतायेगा कि व्यक्ति वृद्वावस्था पेंशन पाने का हकदार है। यदि वह व्यक्ति यह नहीं जानता है कि उसे पेंशन कैसे प्राप्त होगी तो पैरा विधिक स्वयंसेवक उसे आवेदन का फार्म उपलब्ध करायेगा तथा फार्म भरवाने में उसकी मदद करेगा। यदि आवेदक अशिक्षित है तो पैरा विधिक स्वयंसेवक स्वयं उसका फार्म भरेगा। फार्म भरने के पश्चात् पैरा विधिक स्वयंसेवक आवेदक को वह आफिस बतायेगा जहॉ फार्म जमा करना है, और यदि आवश्यक हो तो फार्म जमा कराने में सहायता करेगा।
पैरा विधिक स्वयंसेवक यह नही करेगा कि वह आवेदक से कहे कि आवेदन फार्म दो मैं वृद्वावस्था पेंशन दिलवा दूॅगा, या वह आवेदक के साथ जाकर कार्यालय में वृद्वावस्था पेंशन के लिए पैरवी करें।
14. पैरा विधिक स्वयंसेवक किसी कार्यालय जाकर पैरा विधिक स्वयंसेवक की हैसियत से किसी कार्य को करने के लिए दबाव नहीं बनायेगा।
15. यदि किसी पैरा विधिक स्वयंसेवक की ऐसी शिकायत मिलती है तो वह पैनल से हटाने का आधार हो सकेगा।
16. यदि पैरा विधिक स्वयंसेवक से कोई आवेदक यह शिकायत करता है कि किसी कार्यालय में उसका कोई कार्य नही हो रहा है, ऐसी स्थिति में पैरा विधिक स्वयं सेवक आवेदक को यह बतायेगा कि आवेदक किस प्रकार उसकी शिकायत उच्चाधिकारी से कर सकता है।
पैरा विधिक स्वयंसेवकों का निष्कासन:-
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के अध्यक्ष निम्नलिखित परिस्थितियों में किसी पैरा विधिक स्वयं सेवकों को पैरा विधिक स्वयंसेवकों की सूची से हटा सकते हैं:-
1. यदि पैरा विधिक स्वयंसेवक को स्कीम में अभिरूचि नहीं रह जाती है।
2. यदि वह दिवालिया घेषित हो जाता है।
3. यदि वह किसी अपराध का अभियुक्त हो जाता है।
4. यदि वह सक्रिय पैरा विधिक स्वयंसेवक के रूप में कार्य करने में शारीरिक या मानसिक रूप से अस्वस्थ्य हो जाता है।
5. यदि वह अपने नियुक्ति का इस प्रकार दुरूपयोग या भ्रष्टाचार करता है, कि किसी भी रूप् में उसका पैरा विधिक स्वयं सेवक रहना लोकहित को प्रभावित करेगा।
6. यदि वह किसी राजनीतिक दल से संबंध हो जाता है।
पैरा विधिक स्वयंसेवकों का मानदेय एवं अन्य खर्चे:-
  • पैरा विधिक स्वयंसेवक को जिस दिन विशेष कार्य पर लगाया जाता है उस दिन का मानदेय  दिया जायेगा।
  • पैरा विधिक स्वयंसेवक जिस दिन गॉव से विधिक सहायता का आवेदन लेकर जिला  प्राधिकरण या तालुका समिति आता है उस दिन का मानदेय भी वह पाने का हकदार होगा।
  • यदि कोई पैरा विधिक स्वयंसेवक किसी व्यक्ति की सहायता हेतु न्यायालय या अन्य कार्यालय  में जाता है तो वह उस दिन का मानदेय पाने का हकदार होगा परन्तु उसे इस प्रकार सहायता  दिये जाने का प्रमाण देना होगा।
  • विधिक सहायता प्रदान करने के क्रम में पैरा विधिक स्वयंसेवक द्वारा बस/ट्रेन का न्यूनतम  भाड़ा, फोन आदि पर जो खर्च किया जाता है वह भी खर्च का प्रमाण देने पर देय होगा।
  • पैरा विधिक स्वयंसेवक से जिस दिन प्रबंध कार्यालय और विधिक सहायता केन्द्र में कार्य  लिया जाता है उस दिन का मानदेय देय होगा।
  • विधिक जागरूकता शिविर के लिये कार्य करने वाले दिन का मानदेय देय होगा।
  • मानदेय के रूप में 250/-रूपये देय होगा।

पैरा विधिक स्वयंसेवकों का राष्ट्रीय स्तर सम्मेलन:-
’’न्याय सबके लिए ’’ उद्वेश्य की प्राप्ति हेतु समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति तक पहुॅच कर उसे विधिक सेवा उपलब्ध कराने के लिए पैरा विधिक स्वयंसेवक सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है। पैरा विधिक स्वयंसेवक की संवेदनशीलता, सक्रियता, क्षमता एवं दक्षता पर ही विधिक सेवा अभियान की सफलता निर्भर है।
अतः नालसा ने यह घोषित किया है कि समय-समय पर पैरा विधिक स्वयंसेवकों का राष्ट्रीय स्तर पर सम्मलेन किया जायेगा तथा राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों द्वारा चुन कर भेजे गये श्रेष्ठ पैरा विधिक स्वयंसेवकों में से राष्ट्रीय स्तर पर सर्वश्रेष्ठ पैरा विधिक स्वयंसेवक को पुरूस्कृत एवं सम्मानित किया जायेगा।
अतः पैरा विधिक स्वयंसेवक का कार्य राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रकट होगा। इसलिये समस्त पैरा विधिक स्वयंसेवकों से यह अपेक्षा है कि ’’ सबके लिये न्याय’’ अभियान में शुद्ध अतंःकरण से देश के अंतिम व्यक्ति तक विधिक सहायता/सलाह पहुंचाने में योगदान करें।

छत्तीसगढ़ शासन विरूद्ध एम.एल.श्रीवास्तव व अन्‍य

न्यायालय:-विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) एवं प्रथम अतिरिक्त सत्र
न्यायाधीश, रायपुर (छ0ग0)
 (पीठासीन न्यायाधीश - जितेन्द्र कुमार जैन)
विशेष दाण्डिक प्रकरण क्र0- 01/1999
सीआइएस नंबर 40/1999
संस्थित दिनांक-27.01.1999
छत्तीसगढ़ शासन,
द्वारा-आरक्षी केन्द्र, एंटी करपश्‍न ब्यूरो,
रायपुर (छ0ग0)                                                                     ---- अभियोजन।
 // वि रू ध्द //
1/एम0एल0श्रीवास्तव, उम्र 52 वर्ष, पिता देवीप्रसाद
श्रीवास्तव तत्का0 अनुविभागीय अधिकारी लोक निर्माण
विभाग, उप संभाग गरियाबंद, (छ0ग0)
2/अनिल कुमार शर्मा, उम्र 32 वर्ष, पिता ए0एन0शर्मा,
अ-1 श्रेणी ठेकेदार, निवासी संतोषी नगर टिकरापारा,
रायपुर, (छ0ग0)
3/जी0एस0सिंह, उम्र 50 वर्ष, पिता श्री एस0एल0सिंह,
उपयंत्री लोक निर्माण, विभाग, उप खण्ड-2, रायपुर,
स्थायी पता ग्राम सेमरी हरचंद, तहसील सोहागपुर,
जिला होशंगाबाद, (म0प्र0)                                                       ---- आरोपीगण।
--------------------------------------
अभियोजन व्दारा श्री योगेन्द्र ताम्रकार विशेष लोक अभियोजक।
आरोपी एम.एल.श्रीवास्तव द्वारा श्री एम0एस0राजपूत अधिवक्ता
आरोपी अनिल शर्मा द्वारा श्री एम0एस0राजपूत अधिवक्ता ।
आरोपी जी0एस0सिंह द्वारा श्री एस0के0शर्मा अधिवक्ता ।
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// निर्णय //
( आज दिनांक: 24.09.2016 को घोशित )
1. आरोपीगण एम.एल.श्रीवास्तव एवं जी0एस0सिंह के विरूद्ध भारतीय दण्ड विधान की धारा 120-बी, 420, 467, 468, 471, तथा भ्रश्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा- 13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) के अंतर्गत तथा आरोपी अनिल शर्मा विशेष दाण्डिक प्रकरण क्रमांक- 01/1999 के विरूद्ध विरूद्ध भारतीय दण्ड विधान की धारा 120-बी, 420, 467, 468, 471 के तहत यह आरोप है कि आरोपीगण ने वर्ष 1994-95 में या उसके लगभग रायपुर में परस्पर सहमति द्वारा एकराय होकर बिना किये गये कार्य के बिल बनवाकर फर्जी इंद्राज मेजरमेंट बुक में करवाकर भुगतान प्राप्त करने का अवैध कार्य, अवैध साधनों से कारित करने का करार किया, उक्त समयावधि के दौरान छल किया तथा अधीक्षण यंत्री एवं कार्यपालन यंत्री लोक निर्माण विभाग संभाग क्रमांक-1 को बेईमानी से उत्प्रेरित किया कि वे 1,81,452/-रूपये का चेक परिदत्त करें, आपराधिक षडयंत्र करते हुए मेजरमेंट बुक में गलत इंद्राज कर दिनांक में हेरफेर कर उसे सत्यापित करवाकर जेलर से गलत प्रमाण पत्र बनवाकर फर्जी बिल तैयार कर कूटरचित दस्तावेज की रचना की, छल करने में उसका उपयोग असली दस्तावेज के रूप में किया तथा लोकसेवक के रूप में पदस्थ रहते हुए लोकसेवक के पद का अनुचित लाभ उठाते हुए भ्रष्ट एवं अवैध तरीकों से अनिल कुमार से अनुचित लाभ प्राप्त कर आपराधिक कदाचरण किया ।
2. प्रकरण में यह तथ्य अविवादित है कि घटना के समय आरोपी एम0एल0श्रीवास्तव लोक निर्माण विभाग में अनुविभागीय अधिकारी तथा आरोपी जी0एस0सिंह उपयंत्री के पद पर पदस्थ थे तथा घटना के समय आरोपी अनिल कुमार शर्मा ठेकेदार के रूप में कार्य करता था। लोक निर्माण विभाग द्वारा शासकीय भवनों की मरम्मत हेतु भवनों का निरीक्षण कर प्राक्कलन (इस्टीमेट) बनाया जाता है, जिसे सेंक्शन करने वाले अधिकारी के पास भेजा जाता है, राशि स्वीकृत होने के पश्चात निविदा संबंधी कार्यवाही की जाती है, जो कि कार्यपालन यंत्री के द्वारा बुलायी जाती है, निविदा बुलाकर जिस ठेकेदार का न्यूनतम मूल्य होता है, उसकी निविदा सक्षम अधिकारी के द्वारा स्वीकृत की जाती है और ठेकेदार को कार्यादेश जारी किया जाता है, ठेकेदार द्वारा कार्य प्रारंभ करने के बाद संबंधित उपयंत्री के द्वारा उसके कार्य का निरीक्षण किया जाता है और कार्य मेजरमेंट के लायक होने पर उसका नाप कर मेजरमेंट बुक (माप पुस्तिका) में कार्य का इंद्राज किया जाता है और आवश्यकतानुसार कार्यपालन यंत्री के द्वारा भी कार्य की जांच की जाती है, उपयंत्री के द्वारा कार्य का देयक तैयार किया जाता है, और अनुविभागीय अधिकारी उसकी जांच कर कार्यपालन यंत्री के पास भेजते हैं, कार्य चलने के दौरान रनिंग बिल और कार्य समाप्ति के बाद अंतिम बिल बनाया जाता हैं।
3. प्रकरण में यह भी अविवादित है कि अंतिम बिल को आडिटर के पास भेजा जाता है, जिसके द्वारा टेक्निकल सेक्शन को बिल भेजा जाता है, ड्राफ्समेन द्वारा बिल की जांच तकनीकी रूप से की जाती है और अपने प्रतिवेदन के साथ आडिटर के पास भेजा जाता है जिसके द्वारा नोटशीट तैयार कर देयक लेखापाल के पास भेजा
जाता है और लेखापाल भी देयक की जांच करता है और अपनी टीप के साथ उसे कार्यपालन यंत्री के पास भेजता है, कार्यपालन यंत्री द्वारा देयक एवं उसके साथ संलग्न दस्तावेजों को देखकर यदि देयक पास किये जाने योग्य है तो उसमें तदनुसार टीप अंकित करता है तब बिल आडिटर के पास भेजता है तो वह मेमोरंडम आफ पेमेंट कहलाता है, आडिटर के द्वारा फिर देयक लेखापाल के पास भेजा जाता है तब लेखापाल के द्वारा कार्यपालन यंत्री को पास आर्डर के लिए ले जाता है और पास आर्डर में कार्यपालन यंत्री के हस्ताक्षर होने पर वह देयक लेखा शाखा आता है, तब वरिष्ठ लेखा लिपिक द्वारा चेक काटा जाता है ।
4. प्रकरण में यह भी अविवादित है कि मरम्मत का कार्य दो प्रकार से विशेष एवं साधारण होता है, विशेष मरम्मत विभाग के मजदूरों के द्वारा और बडा काम होने पर निविदा द्वारा ठेकेदारों से कराया जाता है, रखरखाव हेतु किये गये अलॉटमेंट से अधिक राशि का कार्य होने पर विशेष मरम्मत में आता है, जिसके लिये पृथक से राशि स्वीकृत होती है, जबकि रखरखाव हेतु आमंत्रित बजट से मरम्मत होती है, जेल की दीवार की मरम्मत हेतु दो प्राक्कलन 80-80 हजार रूपये के भेजे गये थे जो कार्यपालन यंत्री को सौंपे गये जहां से आवंटन हेतु संबंधित अधिकारी को भेजे गये, उक्त प्राक्कलन के आधार पर स्वीकृति आयी थी, स्वीकृति देने वाले अधिकारी के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह प्राक्कलन के अनुसार या मांग की गई राशि पूर्णतः स्वीकार कर, जो राशि स्वीकृत की जाती है, उसी से निविदा आमंत्रित की जाती है, आरोपीगण के कार्य के दौरान जेल की दीवार में प्लास्टर का और रिपेयर का कार्य चल रहा था, प्लास्टर में पूर्व दीवार में यदि क्रेक हो तो उसे भी भरा जाता था, क्योंकि प्लास्टर करने के बाद क्रेक भरने का कार्य नहीं होता है ।
5. प्रकरण में यह तथ्य भी अविवादित है कि सेंट्रल जेल रायपुर की कंपाउंड वाल की मरम्मत एवं छोटे-छोटे कार्य के लिए चक्रधारी प्रसाद सिन्हा द्वारा दिनांक 21.10.92 को दो कार्य हेतु निविदा बुलवायी गयी थी, उक्त निविदा आरोपी अनिल की स्वीकृत हुई थी, जिसके संबंध में उसे सूचना के माध्यम से दी गयी थी, जिसके संबंध में आरोपी अनिल से अनुबंध पत्र करवाया गया एवं दस्तावेज वगैरह तैयार किये गये थे, कंपाउंड वाल की मरम्मत हेतु 65,500/-रूपये एवं 52,900/-रूपये स्वीकृत किये गये थे, वर्ष 1994-95 में जेल में मरम्मत का काम चल रहा था, जिस हेतु प्राक्कलन वर्ष 1994-95 में आरोपी जी0एस0सिंह ने बनाया था तथा मौका निरीक्षण किया था, सीमेंट एवं रेत जेल के अंदर जाती थी, आरोपी एमएल श्रीवास्तव ने मेजरमेंट करने के उपरान्त कार्यपालन अभियंता के समक्ष प्रस्तुत किया, जिसके बाद आरोपी अनिल शर्मा को बिल का भुगतान किया गया था, जितनी राशि का बिल प्रस्तुत किया जाता है, उतनी ही राशि का भुगतान किया जाता है।
6. यह तथ्य भी अविवादित है कि दिनांक 15.12.94 को आम आदमी रजिस्टर में लोक निर्माण विभाग के रेजा कुली मजदूर मिस्त्री का जेल के अंदर जाना नहीं पाया गया, दिनांक 21.12.94 को लोक निर्माण विभाग के रामेश्वर 9.45 बजे, रामचंद एवं घनाराम को सुबह 9.10 बजे जेल के अंदर जाना पाया गया, घनाराम 9.20 बजे जेल से बाहर चला गया, रामचंद एवं रामेश्वर के 4.15 बजे जेल से बाहर आ गये, दिनांक 25.12.94 को लोक निर्माण विभाग के मोतीचंद, जोगी, एवं रामानंद के 2.20 बजे जेल के अंदर जाना पाया गया तथा वे 5.40 बजे जेल से बाहर चले गये, 4-5 मिनट बाद रामानंद भी बाहर चला गया, मोतीचंद और जोगी 4.10 बजे पुनः अंदर गये और 5.40 बजे बाहर चले गये, ठेकेदार पीडब्लूडी कनोई के 4.10 बजे अंदर गया और 5.40 बजे बाहर आया था ।
7. प्रकरण में यह तथ्य भी अविवादित है कि आरोपी अनिल शर्मा के द्वारा प्लास्टर की तराई का कार्य ठीक से न करने के संबंध में दिनांक 19.10.93 को पत्र तथा उसके द्वारा नियत समय पर कार्य पूरा न कर अतिरिक्त समय देने हेतु प्रार्थना पत्र भेजा गया था, जिसे उचित पाते हुए अतिरिक्त समय दिये जाने की अनुशंसा सहित कार्यपालन यंत्री को पत्र द्वारा भेजा गया था, प्रकरण में केन्द्रीय जेल रायपुर की बिल्डिंग 100 वर्षो से अधिक पुरानी होने के कारण दीवाल मरम्मत कार्य हेतु जेल अधीक्षक के पत्रों के आधार पर स्टीमेट बनाया गया तथा सक्षम अधिकारी की स्वीकृति एवं निविदा बुलाये जाने के उपरान्त मार्च 93 में अधीक्षण यंत्री द्वारा निविदा स्वीकृति पश्चात कार्यादेश जारी किया था, रनिंग देयक का भुगतान पूर्व कार्यपालन यंत्री ताम्रकार द्वारा किया गया और उन्हीं के कार्यकाल में अधिकांश कार्य जैसे पत्थर की दीवाल की चुनाई, मरम्मत आरसीसी कोपिंग इत्यादि संपन्न हुए थे, जो नियमानुसार थे, कार्य का प्रथम देय पूर्व कार्यपालन यंत्री श्री ताम्रकार के समय आरंभ हुआ था, कुछ कार्य का भुगतान रनिंग देयक के रूप में आरोपी जीएस सिंह के नाम चेक कर माप पुस्तिका में चढाये थे, जिसे आरोपी एमएल श्रीवास्तव द्वारा सौ प्रतिशत नाप चेक करने के आधार पर द्वितीय रनिंग बिल का भुगतान किया गया था।
8. प्रकरण में यह भी अविवादित है कि अशोक कुमार धासू लोक निर्माण विभाग, रायपुर में अगस्त 1994 से 4-5 माह तक अनुविभागीय अधिकारी के पद पर पदस्थ थे, रायपुर में हुये कार्य से संबंधित मेजरमेंट बुक प्र0पी0-34 चेक करने एवं बिल हेतु उसके समक्ष सितंबर 1994 में आरोपी जी0एस0सिंग द्वारा लाया गया था, उस समय जेल का मरम्मत का कार्य उसके समक्ष नही हुआ था, इसलिए उसने बुक चेक नही किया, जीएस सिंह ने उसे बताया था कि ठेकेदार अनिल शर्मा द्वारा केन्द्रीय जेल, रायपुर की कंपाउण्ड वाल का विशेष मरम्मत का कार्य ठेके में किया जा रहा है ओर उसका बिल भुगतान हेतु बनाकर भेजा जाना है, तब उसे मेजरमेंट बुक आरोपी जी0एस0सिंग ने दिखाया था, उसने मेजरमेंट बुक देखा था, जिसमें आरोपी अनिल शर्मा द्वारा कुछ अन्य कार्य भी दर्ज किये थे तथा मेजरमेंट बुक के अंतिम पृष्टि पर जेल की कंपाउण्ड वाल मे मेशनरी डिसमेंटलिंग एवं प्लास्टर किये जाने का कार्य का माप लिखा हुआ था,
9. प्रकरण में यह तथ्य भी अविवादित है कि सीमेंट एवं रेत जेल के अंदर आती थी, माल रजिस्टर में इंद्राज के अनुसार 15.12.94, 21.12.94, 25.12.94, 16.1.95 को जेल के अंदर गिट्टी, बोल्डर, सीमेंट, रेत नहीं ले जाया गया। फाईनल बिल आरोपी जी0एस0सिंह, एम0एल0श्रीवास्तव एवं अनिल शर्मा के हस्ताक्षर है, मेमोरेण्डम ऑफ पेमेंट पर चैक क्रमांक एवं दिनांक अंकित किये जाते है और लघु हस्ताक्षर किये जाते हैं, तत्कालीन लेखापाल आर0सी0गुप्ता के भी हस्ताक्षर है, अंतिम बिल मिलाकर रूपये 1,99,000/- का भुगतान आरोपी अनिल कुमार शर्मा को किया गया था, उसके द्वारा लेखा लिपिक के नाम से चैक काटा गया था, चेक के भुगतान बाबत बिल में आरोपी अनिल के हस्ताक्षर है।
10. अभियोजन का मामला संक्षेप में इस प्रकार है कि रायपुर जिले के केन्द्रीय कारागार का मरम्मत का कार्य कार्यपालन यंत्री लोक निर्माण विभाग संभाग-1 रायपुर के अधीन आता है, कार्यपालन यंत्री लोक निर्माण विभाग संभाग क्रमांक-1 द्वारा अधीक्षण यंत्री रायपुर मंडल के माध्यम से जनवरी 1992 में प्रेषित दो प्रस्तावों पर कार्यालय मुख्य अभियंता लोक निर्माण विभाग-पूर्व रायपुर ने दिनांक 06.02.1992 के ज्ञापन द्वारा केन्द्रीय कारागार रायपुर के अहाते का बांयी ओर की विशेष मरम्मत हेतु 65,500/-रूपये तथा दिनांक 10.03.1992 के ज्ञापन द्वारा जेल भवन में अहाता (पिछला हिस्सा) की विशेष मरम्मत हेतु 52,900/-रूपये की प्रशासकीय स्वीकृति दी, जिनकी प्रतियां अधीक्षण यंत्री रायपुर मण्डल एवं कार्यपालन यंत्री लोक निर्माण विभाग संभाग क्रमांक-1 को दी गयी, जिसके पश्चात कार्यपालन यंत्री लोक निर्माण विभाग संभाग क्रमांक-1 श्री सिन्हा ने प्राप्त स्वीकृति एवं पुनरीक्षत प्राक्कलन के आधार पर गणना करते हुए कार्यपालन यंत्री लोक निर्माण विभाग संभाग क्रमांक-1 को कार्य के ठेके के लिए निविदा बुलाने निवेदन किया, तत्कालीन कार्यपालन यंत्री श्री ताम्रकार ने पत्र दिनांक 12.11.1992 के द्वारा ई0ए0सी0 कालोनी रायपुर में ड्रेनेज की विशेष मरम्मत का कार्य और केन्द्रीय कारागार की कम्पाउंड वॉल की विशेष मरम्मत के साथ सम्मिलित बताते हुए 3,00,000/-रूपये की निविदा बुलवायी, कार्यालयीन प्रक्रिया के तहत उक्त कार्य का ठेका ग्रेड ए-1 श्रेणी ठेकेदार आरोपी अनिल शर्मा को स्वीकृत किया जाकर दिनांक 17.03.1993 के पत्र द्वारा कार्यपालन यंत्री ने तीन माह में कार्य पूरा किया जाना निर्धारित करते हुए कार्यादेश जारी किया एवं ठेकेदार से निविदा का अनुबंध भी किया, उक्त कार्य का अनुबंध था।
11. आरोपी ठेकेदार से ठेके के अलावा अन्य कार्य लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों के द्वारा प्रशासकीय स्वीकृति प्राप्त किये बिना कराये गये और ठेकेदार ने मूल कार्य की बजाय अन्य कार्य कर रनिंग बिल पेश किये, जिस पर डिवीजनल एकाउंटेंट एवं आडिटर ने आपत्ति लगायी तथा अधीक्षण यंत्री कार्यालय में भी उक्त प्रक्रिया अनुचित ठहरायी गयी।आरोपी अनिल शर्मा ने निर्धारित समय-सीमा में जेल कंपाउंड की दीवाल की विशेष मरम्मत कार्य नहीं किया, उसने कुछ कार्य अवश्य किया परंतु अनुविभागीय अधिकारी श्री सिन्हा द्वारा सुधार के निर्देश दिये जाने पर कार्य में सुधार लाने की बजाय कार्य बंद कर दिया, श्री सिन्हा के अनुसार मात्र प्लास्टर के अलावा अन्य कार्य ठेकेदार के द्वारा नहीं किया गया, पश्चातवर्ती अनुविभागीय अधिकारी श्री धाबू के कार्यकाल में भी कोई मरम्मत कार्य नहीं किया गया, आरोपीगण ने एक राय होकर आपस में षडयंत्र कर प्रशासकीय स्वीकृति से भिन्न मात्र दीवार के बाहर की बजाय भीतर की तरफ ही सीमेंट प्लास्टर किया गया, जबकि 168.40 घन मीटर रबल स्टोन से मरम्मत एवं पोताई करना दर्शाया गया, जिसे आरोपी श्री सिंह एवं आरोपी श्री श्रीवास्तव के द्वारा क्रमशः मेजरमेंट बुक में अंकित करना एवं जांचना प्रमाणित किया गया, उक्त रबल स्टोन 168.40 घन मीटर कार्य हेतु 25 ट्रक बोल्डर पत्थर आवश्यक होता, परंतु उक्तानुसार पत्थर न तो जेल के अंदर ले जाया गया, न ही इस्तेमाल किया गया।
12. आरोपी उपयंत्री जी0एस0सिंह द्वारा मेजरमेंट बुक में दिनांक 15.12.94, 21.12.94, 25.12.94 तथा 16.01.95 को कार्य कराया जाना लेख किया जिसे आरोपी एमएल श्रीवास्तव ने चेक करना बताया है, लेकिन उक्त अवधि में जेल के आम आदमी रजिस्टर एवं गेट रजिस्टर उक्त रबल स्टोन मेशनरी का मटेरियएल एवं उपकरण जेल के अंदर नहीं जाना पाया गया, मेजरमेंटर में कंपांउड वाल में 24 स्थानों पर गहरे रबल स्टोन तथा 137 स्थानों पर बोल्डर पत्थर निकालकर वहां जोडाई करना बताया गया, परंतु बिना विशेष उपकरण एवं सुरक्षा गार्ड लगाये जेल की दीवार में उक्त साइज की मरम्मत नहीं की जा सकती, मात्र प्लास्टर कार्य हुआ, जिससे संबंधित तसला, तगाडी, सीढी, रस्सी जेल में जाना गेट रजिस्टर में दर्ज होना पाया गया, जेल में तत्समय कार्यरत जेल अधिकारी एवं कर्मचारियों ने भी मात्र प्लास्टर होना बताया है, नाप सत्य लिखे जाने के संबंध में दोनों आरोपी अधिकारियों ने पदीय स्थिति का दुरूपयोग किया, इस तरह नीले-हरे रंग की पोताई, रबल स्टोन, मरम्मत, बोल्डर लगाने बाबत सभी माल असत्य लिखे गये जिनका सत्यापन भी असत्य रूप से किया गया और उसका फर्जी बिल बनाकर भुगतान प्राप्त कर लिया गया, मेजरमेंट बुक क्रमांक 31706 में कार्य का माप एक साथ अंकित कर दिया गया।
13. अभियेाजन के प्रकरण के अनुसार जैसे-जैसे कार्य होता है उसी क्रम में मेजरमेंट लिखा जाता है, आरोपी उपयंत्री जीएस सिंह के द्वारा माप अंकित करने की तिथियों में प्रायः सभी दिनांक को काटकर बदल दिया गया एवं अंतिम बिल में पूर्णतया फर्जी विवरण दर्ज कर दिया तथा आरोपी अनिल शर्मा को राशि का भुगतान किया गया, जिसमें 1,12,733/-रूपये का भुगतान अवैध रूप से प्राप्त किया गया, विवेचना से पाया गया कि ठकेदार अनिल शर्मा से षडयंत्र कर आरोपी 0एस0सिंह के द्वारा झूठे मेजरमेंट एवं उसे आरोपी एम0एल0श्रीवास्तव द्वारा असत्य रूप से सत्यापित करने दने के कारण मापर पर विश्वास कर कार्यपालन यंत्री ओ0पी0गुप्ता ने भुगतान आदेश दिया ।
14. दिनांक 16.06.1993 तक समयावधि में कार्य पूरा न करने पर भी कोई अतिरिक्त समय नहीं बढाया गया और डेड एग्रीमेंट पर ही दिनांक 21.12.94 को आरोपी जीएस सिंह उपयंत्री ने शासन की निर्धारित माप पुस्तिका क्रमांक 31706 में दर्ज किया, जिसे चेक करना आरोपी एमएल श्रीवास्तव ने लेख किया, बाद में उक्त कार्य को पूर्ण होना जीएस सिंह उपयंत्री ने लेख किया, जिसे आरोपी एमएल श्रीवास्तव ने चेक किया, उक्त कार्य को करने के लिए अधीक्षक केन्द्रीय कारागार से अनुमति भी नहीं ली गयी, जो सुरक्षा कारणों से आवश्यक थी, कार्य करने एवं मेजरमेंट के लिखने व चेक करने वाले उक्त आरोपी अधिकारियों को जेल में नहीं जाना पाया गया, जो नाप दर्शाया गया वह तकनीकी दृष्टि से होना संभव नहीं नहीं था, अपने फर्जी कार्य का औचित्य बताने के लिए लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों ने वरिष्ठ जेलर जे0एम0 निगम से एक फर्जी प्रमाण पत्र बनवा लिया, जबकि जेल अधीक्षक के उपस्थित रहते हुए जेलर कोई प्रमाण पत्र नहीं दे सकता था, इस प्रकार बिना कार्य हुए माप पुस्तिका में फर्जी कार्य की माप लिखकर फर्जी कार्य होने का प्रमाण पत्र बनवाकर फर्जी बिल के माध्यम से शासकीय राशि 1,81,452/-रूपये कार्यपालन यंत्री ओ0पी0गुप्ता ने न्यसित कोष से निकालकर बिल का भुगतान किया तथा शासन को अनुचित हानि पहुंचाते हुए आरोपीगण ने स्वयं को लाभान्वित किया ।
15. अन्वेषण के दौरान देहाती नालिसी दर्ज की गयी, जिसे ले जाकर पुलिस थाना आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो भोपाल में दिये जाने पर उक्त के आधार पर आरोपीगण के विरूध्द प्रथम सूचना पत्र दर्ज किया गया, पटवारी से घटनास्थल का नजरी-नक्शा तैयार करवाया गया, आरोपीगण के माध्यम से दस्तावेज जप्त किये गये तथा अन्य कार्यवाहियां की गयी, मामले की विवेचना के दौरान कार्यपालन यंत्री लोक निर्माण विभाग संभाग क्रमांक-1, अधीक्षण यंत्री एवं मुख्य अभियंता कार्यालय से एवं केन्द्रीय कारागार रायपुर से आवश्यक अभिलेख/दस्तावेज प्राप्त किये गये, संबंधितों के कथन दर्ज किये गये, विवेचना के दौरान साक्षियों के कथन लेखबद्ध किये गये, आरोपीगण को गिरफ्तार किया गया, शासकीय सेवक आरोपीगण के विरूध्द विधिवत् अभियोजन स्वीकृति प्राप्त की गयी, तदोपरांत संपूर्ण विवेचना पश्चात अभियोग-पत्र इस न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
16. आरोपी एम0एल0श्रीवास्ताव एवं जी0एस0सिंह को धारा 120-बी, 409, 420, 467, 468, 471, 477 भा0द0वि0 एवं भ्रश्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा- 13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) के अंतर्गत तथा आरोपी अनिल कुमार शर्मा को धारा 120-बी, 409, 420, 467, 468, 471, 477 भा0द0वि0 के तहत आरोप विरचित कर पढकर सुनाये, समझाये जाने पर आरोपीगण ने अपराध करना अस्वीकार किया तथा विचारण का दावा किया, अभियोजन की ओर से कुल 25 साक्षियों का कथन करवाया गया है, विचारण उपरांत धारा-313 दण्ड प्रक्रिया संहिता के तहत अभिलिखित किये गये अभियुक्त कथन में आरोपीगण ने स्वयं को निर्दोश होना तथा झूठा फंसाया जाना बताया है। बचाव में एक साक्षी का कथन करवाया गया है ।
17. इस प्रकरण में अवधारणीय प्रश्‍न निम्नानुसार है:-
(1) क्या आरोपीगण ने वर्ष 1994-95 में या उसके लगभग रायपुर में परस्पर सहमति द्वारा एकराय होकर बिना किये गये कार्य के बिल बनवाकर फर्जी इंद्राज मेजरमेंट बुक में करवाकर भुगतान प्राप्त करने का अवैध कार्य, अवैध साधनों से कारित करने का करार किया?
(2) क्या आरोपीगण ने उक्त समयावधि के दौरान छल किया तथा अधीक्षण यंत्री एवं कार्यपालन यंत्री लोक निर्माण विभाग संभाग क्रमांक-1 को बेईमानी से उत्प्रेरित किया कि वे 1,81,452/-रूपये का चेक परिदत्त करें?
(3) क्या आरोपीगण ने उक्त समयावधि के दौरान आपराधिक षडयंत्र करते हुए मेजरमेंट बुक में गलत इंद्राज कर दिनांक में हेरफेर कर उसे सत्यापित करवाकर जेलर से गलत प्रमाण पत्र बनवाकर फर्जी बिल तैयार कर कूटरचित दस्तावेज की रचना की?
(4) क्या आरोपीगण ने उक्त समयावधि के दौरान आपराधिक षडयंत्र करते हुए मेजरमेंट बुक में गलत इंद्राज कर दिनांक में हेरफेर कर उसे सत्यापित करवाकर जेलर से गलत प्रमाण पत्र बनवाकर फर्जी बिल तैयार कर कूटरचित दस्तावेज की रचना की तथा उसका उपयोग असली दस्तावेज के रूप में किया?
(5) क्या आरोपीगण ने उक्त समयावधि के दौरान लोकसेवक के रूप में पदस्थ रहते हुए लोकसेवक के पद का अनुचित लाभ उठाते हुए भ्रष्ट एवं अवैध तरीकों से अनिल कुमार से अनुचित लाभ प्राप्त कर आपराधिक कदाचरण किया?
// अवधारणीय प्रश्न पर निश्कर्श एवं निष्कर्ष के कारण//
18. अवधारणीय प्रश्न क्रमांक-(1) से (5) पर निष्कर्ष एवं निष्कर्ष के कारण ः- सभी अवधारणीय प्रश्न एक दूसरे से संबंधित होने के कारण उन पर एक साथ विचार किया जा रहा है । सेंट्रल जेल रायपुर के मुख्य प्रहरी हूबलाल दुबे अ0सा01, प्रहरी पुनीत राम साहू अ0सा02, मुख्य प्रहरी छेदीलाल अ0सा04, मुख्य प्रहरी जगमोहन अ0सा05 का कथन है कि वर्ष 1994-95 में जेल के अंदर प्लास्टर और पोताई का काम हुआ था, जेल में बोल्डर पत्थर का काम नहीं हुआ था, पोताई चूने से हुई थी, रंग से पोताई नहीं हुई थी, सीमेंट रेत जेल के अंदर जाता था, उक्त साक्षियों ने अपने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है र्कि इंट की जुड़ाई के बाद प्लास्टर का काम होता था तथा जहां का प्लास्टर खराब हो गया था उसे खुरचकर निकलवाया गया था और नया प्लास्टर किया गया था, प्लास्टर खुरचने लगाने के लिए सीढ़ियों का भी उपयोग किया जाता था।
19. हूबलाल ने प्रतिपरीक्षण में बताया है कि उसने जेल के बाहर की दीवार में प्लास्टर होते नहीं देखा था, वहां केवल जुड़ाई थी तथा जेल के अंदर दीवार में सफेद चूना पोता गया था, पुनीतराम ने प्रतिपरीक्षण में यह भी बताया है कि बाहरी दीवार में प्लास्टर वगैरह और पोताई हुई हो तो उसकी जानकारी उसे नहीं है, छेदीलाल ने प्रतिपरीक्षण में इस कथन से इंकार किया है कि कभी-कभी खुला सामान जैसे रेत, सीमेंट आदि का इंद्राज सामान रजिस्टर में नही करते थे, जगमोहन ने प्रतिपरीक्षण में बताया है कि जेल के अंदर ठेले में भरकर रेत सीमेंट रेजा कुली जब ले जाते थे तब उस समय उसका इंद्राज माल रजिस्टर में नही करते थे, क्योंकि वे बाद में इंद्राज करवाने कहते थे, जेल के कंपाउंड में ही रेत की ट्रक खडी की जाती थी उसमें कोई पत्थर बोल्डर नहीं होता था, इस तरह उक्त साक्षियों के कथनों से यह प्रमाणित हुआ है कि जेल के अंदर रेल एवं सीमेंट ले जाया जाता था, परंतु बोल्डर कभी नहीं ले जाया गया और जेल के अंदर की दीवार का प्लास्टर किया गया एवं
चूने की पोताई की गयी थी ।
20. जगमोहन, छेदीलाल, जनकलाल पुरैना का यह भी कथन है कि जेल की मुख्य दीवार में आम आदमी रजिस्टर और माल रजिस्टर दो प्रकार के रजिस्टररखे जाते हैं, आम आदमी रजिस्टर में जेल के अंदर प्रवेश करने और बाहर निकलने वाले व्यक्तियों का इंद्राज एवं माल रजिस्टर में जेल के अंदर सामान ले जाने एवं बाहर सामान लाने काइंद्राज किया जाता है, छेदीलाल का यह भी कथन है कि दिनांक 15.12.94, 21.12.94, 25.12.94 तथा 06.01.95 को जेल के अंदर गिट्टी, सीमेंट, बोल्डर का ट्रक नहीं गया था और दिनांक 16.01.95 को किसी भी प्रकार का सामान नहीं गया था, मुख्य दीवार में अलग-अलग समय में अलग-अलग प्रहरियों की ड्यूटी रहती है, बलदाउ प्रसाद शुक्ला भी प्रहरी थे और आम आदमी रजिस्टर में इंद्राज करते थे, इस साक्षी ने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि दिनांक 03.01.95 को तीन तगारी, बांस की सीढी जेल के अंदर पी0डब्लू0डी0 के मजदूर ले गये थे और उसी दिन बांस की सीढी वापस आने का उल्लेख रजिस्टर में है, दिनांक 15.12.94, 21.12.94, 25.12.94 तथा 06.01.95 को रजिस्टर के इंद्राज के संबध्ंा में उसके द्वारा रजिस्टर देखकर बताया गया है, इस तरह उक्त साक्षियों के कथन से यह प्रमाणित होता है कि दिनांक 15.12.94, 21.12.94, 25.12.94 तथा 06.01.95 को जेल के अंदर गिट्टी, बोल्डर, रेती, सीमेंट आदि नहीं ले जाया गया था ।
21. मुख्य प्रहरी जगमोहन का कथन है कि दिनांक 15.12.94 को आम आदमी रजिस्टर में लोक निर्माण विभाग के रेजा कुली मजदूर मिस्त्री का जेल के अंदर जाना नहीं पाया, दिनांक 21.12.94 को लोक निर्माण विभाग के रामेश्वर, रामचंद, घनाराम को सुबह 9.10 बजे जेल के अंदर जाने, रामचंद के 9.45 बजे बाहर आने एवं रामेश्वर के 4.15 बजे जेल से बाहर आने तथा घनाराम के 9.20 बजे जेल से बाहर आने का उल्लेख है, दिनांक 25.12.94 को लोक निर्माण विभाग के मोतीचंद, जोगी, एवं रामानंद के 2.20 बजे जेल के अंदर जाने और 5.40 बजे जेल से बाहर निकलने का उल्लेख है, मोती, जोगी 4.10 बजे पुनः अंदर जाने और 5.40 बजे बाहर आने ठेकेदार तथा पीडब्लूडी कनोई के 4.00 बजे अंदर जाने तथा 5.40 बजे बाहर आने का उल्लेख है, दिनांक 16.01.95 को पीडब्लूडी का कोई कर्मचारी या मजदूर जेल के अंदर नहीं गया।
22. जगमोहन ने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि दिनांक 21.12.94 से दिनांक 16.05.95 के बीच प्लास्टर मरम्मत का काम हुआ था तथा उसने अनभिज्ञता प्रकट की है कि वर्ष 1993 से काम चल रहा था, इस साक्षी ने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि पीडब्लूडी के अधिकारी भी जेल के अंदर जाते थे तो अपने हाथ से अपना इंद्राज करते थे और वापस आने पर अपने हाथ से इंद्राज करते थे, इस तरह उक्त साक्षियों के कथनों सें यह प्रमाणित पाया जाता है कि दिनांक 15.12.94 एवं दिनांक 16.01.95 को पीडब्लूडी का कोई कर्मचारी या अधिकारी जेल के अंदर नहीं गया तथा दिनांक 21.12.94 एवं दिनांक 25.12.94 को उक्तानुसार कुछ कर्मचारी व अधिकारी जेल के अंदर गये फिर वहां से बाहर आ गये । 
23. सहायक जेलर जनकलाल पुरेना अ0सा07 का कथन है कि जब्ती पत्र प्र0पी01 के माध्यम से आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो वाले उससे माल रजिस्टर , आम आदमी रजिस्टर तथा अन्य दस्तावेज जब्त किये थे, उक्त जब्ती पत्र पर लखनलाल कोसरिया मुख्य प्रहरी अ0सा03 द्वारा भी अपने हस्ताक्षर होना बताया है तथा प्रतिपरीक्षण में यह भी बताया है कि जहां पुरैना साहब बैठते थे वही पर उसने दस्तखत किया था, उसने यह भी बताया है कि चाहे कोई मंत्री या कोई भी आदमी आये या जाये उसे आने और जाने के संबंध में इंद्राज करना आवश्यक होता है।
24. पुलिस अधीक्षक के.के.अग्रवाल अ0सा025 का कथन है कि दिनांक 12.03.96 को सहायक जेलर केन्द्रीय जेल रायपुर जनकलाल पुरैना के पेश करने पर जब्ती पत्र प्र0पी01 के माध्यम से आम आदमी रजिस्टर दिनांक 24.12.94 से दिनांक 02.01.95 प्र0पी039, आम आदमी रजिस्टर दिनांक 02.01.95 से दिनांक 22.01.95 प्र0पी039, माल रजिस्टर प्र0पी041, माल का फाटक रजिस्टर प्र0पी042, केन्द्रीय जेल रायपुर की स्थापना से जावक पंजी प्र0पी043, दिनांक 21.12.1993 से 16.01.1995 तक लोक निर्माण विभाग द्वारा तैनात कर्मचारियों की सूची प्र0पी012, दिनांक 21.12.1994 से 16.01.1995 तक मुख्य दीवार पर लगाये गये मुख्य प्रहरी एवं प्रहरियों की सूची प्र0पी013 जब्त किया था।
25. जेल अधीक्षक जे0पी0चौहान अ0सा010 का कथन है कि आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो द्वारा मांग किये जाने पर उसने रजिस्टर के अनुसार प्रहरियों की सूची प्र0पी012 एवं प्र0पी013, जेल के मेन गेट पर जेल के अंदर प्रवेश करने का समय एवं बाहर निकलने वाले व्यक्तियों की सूची प्र0पी014 एवं प्र0पी015 भेजी थी, जब्ती पत्र प्र0पी01 के माध्यम से दस्तावेज प्र0पी039, 40, 41, 42, 12, 13, 14, 15 की जब्ती के संबंध में उक्त साक्षियों के कथन उनके प्रतिपरीक्षण में अखंडित रहे हैं जो यह प्रमाणित करता है कि उक्त जब्ती पत्र प्र0पी01 के माध्यम से सहायक जेलर पुरैना से उक्त आम आदमी रजिस्टर, माल रजिस्टर, जावक पंजी एवं सूची पुलिस अधीक्षक अग्रवाल द्वारा जब्त होना प्रमाणित होता है ।
26. जेल अधीक्षक जे0पी0चौहान अ0सा010 का यह भी कथन है कि वह अप्रेल 1993 से 1996 तक जेल अधीक्षक केन्द्रीय जेल रायपुर के पद पर पदस्थ था, जेल भवन काफी बडा होने से वहां कुछ न कुछ मरम्मत का काम होता था, मरम्मत कार्य हेतु पैसा उनके पास नहीं आता था, बल्कि पी.डब्लू.डी. के माध्यम से राशि आती थी और उन्हीं के द्वारा निर्माण किया जाता था, साधारण कार्य के लिए विशेष गार्ड अलग से नहीं लगाया जाता था, बल्कि ऑन ड्यूटी गार्ड ही उसका निरीक्षण करते थे, विशेष कार्य या बडी मरम्मत होने पर जहां सीढी वगैरह की जरूरत पडती है, वहां विशेष सुरक्षा गार्ड तैनात किये जाते हैं, जो मेटेरियल बोल्डर पत्थर आता था, उसे बाहर रखते थे और छोटी ठेला गाडी से जेल के अंदर ले जाया जाता था, उसके संबंध में रजिस्टर में इंद्राज करना संभव नहीं था, उसकी जेल में पदस्थापना के दौरान जनरल रिपेयर तो होते रहे, किंतु कोई विशेष कार्य उसकी जानकारी में नहीं हुआ, कंपाउंड वॉल में बडा कार्य कराना हो, बोल्डर लगाना हो, तोडफोड़ करना हो, तो विशेष सुरक्षा गार्ड लगाना पडता है, उसकी पदस्थापना के दौरान दीवार तोडकर खराब पत्थर निकालकर नये पत्थर लगाने का कोई कार्य नहीं हुआ था, उक्त साक्षी का यह भी कथन है कि आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो वाले उससे जेल भवन में हुए सुधारात्मक कार्य के संबंध में क्वेरी किये थे तथा दस्तावेज भी उसके द्वारा क्वेरी के जवाब प्र0पी011 के साथ भेजा गया था ।
27. इस साक्षी ने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि दिनांक 21.06.1994 को उसके द्वारा अनुविभागीय अधिकारी लोक निर्माण विभाग को जेल की मुख्य दीवार में दरार आने और उसका कार्य युद्ध स्तर पर किये जाने के संबंध में पत्र लिखा गया था, मेंटेनेंस का कार्य काफी समय से नहीं हुआ था, इसलिए उसने लोक निर्माण विभाग को पत्र लिखा था, उसे जानकारी नहीं है कि लोक निर्माण विभाग के द्वारा बुलाये गये टेण्डर के आधार पर 1993 में जेल में कार्य हुआ, इस बाबत कोई जानकारी लोक निर्माण विभाग द्वारा नहीं दी गयी, इस साक्षी ने यह भी बताया है कि दिनांक 20.03.93 से दिनांक 05.09.93 के मध्य मरम्मत का कार्य होने के संबंध में लोक निर्माण विभाग ने उसे कोई जानकारी नहीं दी, दिनांक 24.09.93 को जेल के अंदर मटेरियल जाने का उल्लेख तो है, परंतु कोई मजदूर गया हो इसका उल्लेख नहीं है, उसने लोक निर्माण विभाग के कार्यो के संबंध में किया गया इंद्राज भी ए0सी0बी0 को भेजा था तथा प्रतिपरीक्षण में यह भी स्वीकार किया है कि गिट्टी, बोल्डर, पत्थरों को ट्रक से जेल के बाहर दीवार से लगकर सुरक्षा की दृष्टि से खाली कराया जाना उचित नहीं था, मरम्मत की जोड़ाई के बाद प्लास्टर किया जाता है, गर्मी के दिनों में पानी की कमी अवश्य रहती है, वह लोक निर्माण विभाग के अधिकारी के साथ कभी भी नहीं गया, विशेष कार्य के लिए स्पेशल राइफल गार्ड लगाना पडता है, और साधारण कार्य के लिए स्पेशल राइफल गार्ड नहीं लगाया गया, इसलिए वह विशेष या बडा कार्य नहीं होना कहा है।
28. जे0पी0चौहान ने इस कथन से इंकार किया है कि विभाग द्वारा गलती से कार्य में स्पेशल सुरक्षा गार्ड नहीं लगाया गया तथा यह स्वीकार किया है कि मुख्य दीवार और कैदियों की बैरक के बीच सुरक्षा की दृष्टि से एक दीवार और है जिसमें गार्ड तैनात होते हैं, दीवार की उंचाई 18 से 22 फिट के लगभग है, उसके देखने में ऐसा नहीं आया कि एक दीवार में कितने बोल्डर लगे हैं क्योंकि प्लास्टर काफी मोटा होता है तथा स्वीकार किया है कि उसके अधीनस्थ अधिकारी निर्माण कार्य की चेकिंग करते थे, उक्त साक्षी के प्रतिपरीक्षण में ऐसा कोई तथ्य प्रमाणित नहीं हुआ है, जिससे उसके कथनों पर संदेह किया जा सके, इसलिए उक्त साक्षी के कथन से यह प्रमाणित होता है कि वह केन्द्रीय जेल रायपुर में अधीक्षक के पद पर वर्ष 1993 से 1996 तक पदस्थ था, उसे जेल में विशेष कार्य के संबंध में लोक निर्माण विभाग द्वारा कोई जानकारी नहीं दी गयी, विशेष कार्य करने के लिए स्पेशल राइफल गार्ड लगाया जाता है, परंतु वह लोक निर्माण विभाग द्वारा ठेकेदार के माध्यम से कराये जा रहे काम के दौरान नहीं लगाया गया, जेल में साधारण या विशेष मरम्मत का काम लोक निर्माण विभाग द्वारा ही किया जाता है तथा जेल में ऐसा कोई काम नहीं हुआ, जिसमें दीवार से पत्थर निकालकर नये पत्थर लगाये गये हों तथा जे0पी0चौहान के द्वारा एंटी करप्शन ब्यूरो द्वारा मांगी गयी जानकारी के आधार पर उसका जवाब प्र0पी011 मय दस्तावेजों के, एंटी करप्शन ब्यूरो वालों को दिया था।
29. जे0पी0चौहान का यह भी कथन है कि जब वह जेल अधीक्षक के पद पर रायपुर जेल में पदस्थ था, तब जे0एल0निगम वरिष्ठ जेलर के पद पर पदस्थ थे, जेल में होने वाली मरम्मत या निर्माण कार्य के संबध में लोक निर्माण विभाग द्वारा प्रमाण पत्र की मांग की जाती है तो ऐसा प्रमाण पत्र जेल अधीक्षक के हस्ताक्षर से दिया जाता था तथा जेल अधीक्षक के हस्ताक्षर से उक्त मरम्मत या निर्माण के निरीक्षण पश्चात ही प्रमाण पत्र प्रदान किया जाता था, वरिष्ठ जेलर श्री निगम को ऐसा प्रमाण पत्र देने का अधिकार नहीं था, उसकी पदस्थापना के दौरान जेल में कोई इलेक्ट्रॉनिक टाइपराइटर नहीं था, लोक निर्माण विभाग द्वारा प्रमाण पत्र के लिए लिखित आवेदन प्रस्तुत किये जाने के पश्चात ही प्रमाण पत्र दिया जाता था।
30. जे0पी0चौहान का यह भी कथन है कि आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो द्वारा उसे पत्र लिखकर और फोन से यह पूछा गया कि क्या श्री निगम को कार्य पूर्ण होने का प्रमाण पत्र देने का अधिकार था तथा क्या उनके द्वारा कोई प्रमाण पत्र दिया गया था, इस पर उसने श्री निगम से इस संबंध में पूछताछ कर स्पष्टीकरण मांगा था तब श्री निगम ने स्पष्टीकरण दिया था कि उन्हें भूख लगी थी घर जाना था तथा सहायक यंत्री द्वारा एक प्रमाण पत्र बाहर से टाइप करवाकर दस्तखत करवाने के लिए लाया था और उन्होंने इस विश्वास पर कि काम किया गया है उसी से संबंधित होगा, अपने हस्ताक्षर कर दिये जिसे उसने अपने स्पष्टीकरण के साथ एंटी करप्शन ब्यूरो को भेजा था, श्री निगम का प्रमाण पत्र बाबत स्पष्टीकरण देखने के बाद उसके द्वारा उस प्रमाण पत्र में जो कार्य होना बताया था, वह देखने के बाद यह पाया था कि काफी कार्य हुआ है परंतु कुछ कार्य नहीं हुआ है, प्रमाण पत्र में कार्य जिस स्तर का होना बताया गया था अर्थात दीवार तोडकर खराब पत्थर निकालकर दूसरा लगाने का उल्लेख था, ऐसा कार्य नहीं हुआ है ।
31. जे0पी0चौहान ने अपने प्रतिपरीक्षण में बताया है कि श्री निगम द्वारा किसी ठेकेदार को प्रमाण पत्र दिये जाने की उसे जानकारी नहीं थी, इसलिए उसने श्री निगम से कोई जानकारी नहीं ली, जब आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो द्वारा श्री निगम द्वारा दिये गये प्रमाण पत्र की जानकारी दी गयी तब जानकारी हुई, उसके पूर्व नहीं थी इसलिए उसने श्री निगम से स्पष्टीकरण नहीं लिया और जानकारी होने पर उसका स्पष्टीकरण लिया था, ठेकेदार को प्रमाण पत्र दिये जाने का उल्लेख श्री निगम ने अपने स्पष्टीकरण में नहीं किया था, साक्षी के अनुसार उसके बाद श्री निगम जेल के वरिष्ठ अधिकारी थे, श्री खरे और उसके द्वारा जिन मरम्मत कार्यों के लिए लोक निर्माण विभाग को लिखा था, उन कार्यो में उसने जेल की बाहरी दीवार पर बाहर की तरफ कोई कार्य होते नहीं देखा, इस तरह उक्त साक्षी जे0पी0चौहान के कथन से यह प्रमाणित होता है कि आरोपी जी0एस0सिंह द्वारा प्रमाण पत्र बाहर से टाइप करवाकर निगम के समक्ष प्रस्तुत किया, जिसमें वे जल्दबाजी में हस्ताक्षर कर दिये तथा प्रमाण पत्र में उल्लेखित पुराने पत्थर निकालकर नये पत्थर लगाने का कार्य भी नहीं हुआ और बाहरी दीवार में भी कोई कार्य नहीं हुआ, जिसकी पुष्टि जेल अधीक्षक जेपी चौहान द्वारा के0के0अग्रवाल पुलिस उप अधीक्षक को दिये गये जवाब प्र0पी011 से भी होती है, इस तरह श्री निगम द्वारा दिये गये प्रमाण पत्र से जेल में हुए कार्य के संबंध में कोई उपधारणा नहीं की जा सकती।
32. लोक निर्माण विभाग के अनुविभागीय अधिकारी अशोक कुमार धासू अ0सा023 का कथन है कि वह अगस्त 1994 से चार-पांच माह तक लोक निर्माण विभाग रायपुर में अनुविभागीय अधिकारी के पद पर पदस्थ थे, मेजरमेंट बुक प्र0पी034 रायपुर जेल में हुए कार्य से संबंधित है जिसके बारे में वे इसलिए जानते हैं, क्योंकि वह मेजरमेंट बुक चेक करने और बिल पूर्ण करवाने के लिए उसके पास आरोपी जी0एस0सिंह द्वारा उसकी पदस्थापना रायपुर में होने के दौरान लाया गया था, उसे उक्त कार्य की जानकारी नहीं थी क्योंकि वह उसके कार्यकाल का नहीं था, उसने मेजरमेंट बुक को चेक नहीं किया था, उसने पुलिस को बयान देते समय बताया था कि सितंबर 1994 में आरोपी जी0एस0सिंह द्वारा माप पुस्तिका लाकर उसके समक्ष उपस्थित होने और आरोपी ठेकेदार अनिल शर्मा द्वारा केन्द्रीय जेल रायपुर की कंपाउंड वॉल की विशेष मरम्मत का कार्य ठेके में लेकर करने, उसके भुगतान हेतु बिल बनाकर भेजने हेतु मेजरमेंट बुक दिखाया था जिसमें कुछ अन्य कार्य भी हुए थे, मेजरमेंट बुक के अंतिम पृष्ठों में जेल के कंपाउंड में मेशनरी डिस्मेण्टल और प्लास्टर किये जाने की माप लिखी थी, जिसे आरोपियों ने अपने अभियुक्त कथन में स्वीकार किया है, इसलिए उक्त तथ्य अखंडित रूप से प्रमाणित हुआ है।
33. अनुविभागीय अधिकारी धासू का यह भी कथन है कि उसमें वर्ष 1993 में दर्ज माप को लिखा गया था, उसने इस संबंध में उपयंत्री आरोपी जी0एस0सिंह से पूछा तो उसने बताया था कि उसकी सी0पी0सिंह से नहीं बनती थी, इसलिए उनके समक्ष प्रस्तुत नहीं किया, आरोपी जी0एस0सिंह उससे 1993 की मापों के हस्ताक्षर लेना चाहता था, चूंकि काम उसके सामने नहीं हुआ था, इसलिए उसने मेजरमेंट बुक पर हस्ताक्षर करने के अनुचित कार्य से मना कर दिया, मेजरमेंट बुक क्रमांक 31706 प्र0पी034 के पेज 197 से 200 में पहले वर्ष 1993 की तिथि थी, जिसे काट-पीटकर 94-95 बना दिया गया, जब उसके समक्ष मेजरमेंट बुक प्रस्तुत की गयी तो उसमें 1993 लिखा था, वह कार्य एग्रीमेंट 54 डीएल 92-93 से संबंधित था, जिसमें तीन महीने का समय कार्य किये जाने हेतु दिया गया था, माप पुस्तिका में तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी के भी हस्ताक्षर नहीं थे, यदि कोई समय बढाया गया हो तो उसके कार्यकाल में आवेदन नहीं देने के कारण उसे जानकारी नहीं है। 
34. धापू का यह भी कथन है कि जेलों में मरम्मत कार्य का विशेष प्रावधान है, मरम्मत कार्य करने मजदूर, मिस्त्री, ठेकेदार व लोक निर्माण विभाग के अधिकारी तगाडी, सीढ़ी, सामानों को लेकर जेल के गेट में रखे रजिस्टर में इंद्राज किया जाता है तथा डिस्मेंटल के लिए सीढ़ी लगाये जाने के लिए जेल में सुरक्षा गार्ड की ड्यूटी लगायी जाती है, केन्द्रीय जेल रायपुर में पोस्ट रबल मेशनरी का कार्य होना था, जिसमें प्लास्टर नहीं होना था बल्कि प्वाइंटिंग की जाती है, जेल के कार्य में प्लास्टर क्यों करना पडा इसकी जानकारी उसे नहीं है, जेल में मरम्मत की प्रक्रिया यह होती है कि पहले दीवार में जहां लूज पत्थर है उस एक स्थान के पत्थर को निकालकर उस स्थान की मरम्मत करा ली जाये, उसके बाद अगले स्थान की मरम्मत की जायेगी, डिस्मेंटल और स्टोन मशीन को और उसके साथ-साथ रिकार्ड किया जाये क्योंकि सुरक्षा का विशेष ध्यान रखना पडता है ।
35. अशोक कुमार धाबू का यह भी कथन है कि एक घनमीटर कार्य होने पर 100 से 110 पत्थर आते हैं, इस तरह जेल के निर्माण कार्य के लिए 168.4 घनमीटर मेशनरी का काम होना बताया है, जिसके अनुसार उसमें लगभग 1,85,000 पत्थर लगेंगे, एक ट्रक में 400 से 450 पत्थर आते हैं अर्थात इतनी मात्रा के पत्थर जेल के भीतर गये हों, तो वे माल रजिस्टर जेल गेट में जरूर लिखे गये होंगे, मेजरमेंट बुक क्रमांक 31706 प्र0पी034 के पेज 199 में जो पत्थर के संबंध में लिखा है, वह कायदे का न होने से विश्वसनीय नहीं है, क्योंकि जब डिस्मेंटल का काम हो तब मेजरमेंट बुक रिकार्ड होना चाहिए, न कि एक साथ रिकार्ड किया जाना चाहिए, उक्त कार्य को एस.डी.ओ. पी.डब्लू.डी. द्वारा चेक करना चाहिए, जिसके सामने या जिसके कार्यकाल में डिस्मेंटल हुआ हो उसे चेक करना चाहिए और मेजरमेंट बुक लिखा जाना चाहिए, ओव्हर राइटिंग कर 1993 को 94-95 सुधारना उचित नहीं है, दिनांक वही होना चाहिए जब माप चढायी गयी हो उसके कार्यकाल में केन्द्रीय जेल रायपुर में किसी तरह की कोई मरम्मत नहीं करायी गयी, मेजरमेंट बुक के अनुसार अल्प समय में इतना कार्य संभव नहीं है, यह बातें मेजरमेंट बुक प्र0पी034 देखकर बताया है । 
36. धाबू ने प्रतिपरीक्षण में बताया है कि जेल मरम्मत का काम कब से कब तक चला जानकारी नहीं है परंतु उस समय श्री सिन्हा वहां पदस्थ थे, जेल के मरम्मत कार्य के लिए सामानों एवं कार्य करने वाले व्यक्तियों के जेल परिसर के अंदर प्रवेश के संबंध में इंद्राज जेल के दस्तावेजों में किया जाता है और मरम्मत कार्य को जेल अधिकारी देखते हैं, बिल के भुगतान के पहले अनुविभागीय अधिकारी के द्वारा किये गये कार्य की जांच की जाती है और सही होने पर भुगतान किया जाता है तथा इस कथन से इंकार किया है कि उपरी तौर पर जांच की जाती है, प्रतिपरीक्षण में यह भी स्वीकार किया है कि दिनांक 14.06.96 को पुलिस वालों ने उसे मेजरमेंट बुक प्र0पी034 दिखायी थी, आरोपी जी.एस.सिंह द्वारा उसे मेजरमेंट बुक सितंबर 1994 में बतायी गयी थी, उसके बाद उसने दिनांक 14.06.96 को ही उक्त मेजरमेंट बुक को देखा था जिसमें ओवर राइटिंग होना पाया था, वह नहीं बता सकता कि ओवर राइटिंग किसने की थी, आरोपी जी.एस.सिंह एवं अनिल शर्मा के विरूद्ध उसकी रायपुर पदस्थापना के दौरान कोई शिकायत नहीं हुई थी, प्र0पी034 में 18535 पत्थर का उल्लेख किया गया है, वे पत्थर कहां रखे गये एवं कहा लगाये गये यह जेल अधिकारी ही बता सकते हैं, लोक निर्माण विभाग संभाग क्रमांक-1 रायपुर बडा और व्यस्त संभाग है, रोज का कार्य मेजरमेंट बुक में लिखना संभव नहीं है तथा प्रक्रिया के संबंध में अनियमितता होना बताया है कि एक दिन में इतना सारा मेजरमेंट बुक रिकार्ड नहीं किया जाना चाहिए, फाइनल पेमेंट कार्य चेक करने के बाद दिया जाता है।
37. अशोक कुमार घाबू के साक्ष्य से यह प्रमाणित हुआ है कि सितंबर 1994 में उसकी पदस्थापना लोक निर्माण विभाग रायपुर में अनु0 अधि0 के पद पर थी, सितंबर 1994 में उपयंत्री आरोपी जी.एस.सिंह ने उसके समक्ष मेजरमेंट बुक प्र0पी034 प्रस्तुत किया था, जिसके पृष्ठ क्रमांक 197 से 200 में केन्द्रीय जेल रायपुर में हुए कार्य का विवरण था, सितंबर 94 में जब उसके समक्ष मेजरमेंट बुक प्र0पी034 प्रस्तुत की गयी, तो उसमें वर्ष 1993 में कार्य किया जाना उल्लेख करते हुए उक्त वर्ष की तिथि डली थी, परंतु मेजरमेंट बुक प्र0पी034 उसके समक्ष दिनांक 14.06.1996 को प्रस्तुत की गयी, तो उसमें वर्ष 1993 के स्थान पर 94-95 का वर्ष डला होना भी इस साक्षी ने उक्त मेजरमेंट बुक के अवलोकन में देखना पाया था, मेजरमेंट बुक प्र0पी034 आरोपी जीएस सिंह के पास थी, उसकी जिम्मेदारी थी कि वह यह बताये कि 1993 से 1994-95 कैसे हो गया, मेजरमेंट बुक प्र0पी034 के पृष्ठ क्रमांक 198 से 200 को खुली आंख के अवलोकन से ही दर्शित होता है कि उसमें वर्ष 1993 को 1994-95 किया गया है, इस साक्षी के कथन से यह भी प्रमाणित हुआ है कि एक घनमीटर में 100 से 110 पत्थर आते हैं, जेल में 168.4 घनमीटर मेशनरी (पत्थर) का काम होना बताया गया है जिसमें 1,85,000 पत्थर लगेंगे, एक टक में 400 से 450 पत्थर आते हैं, इस हिसाब से लगभग चार सौ से अधिक ट्रक पत्थर लगाये जाने का टेंडर किया गया है, इस साक्षी के कथन से यह भी प्रमाणित हुआ है कि मेजरमेंट बुक प्र0पी034 में 18535 पत्थर लगाये जाने का उल्लेख है, इसी तरह इस साक्षी के कथन से यह भी प्रमाणित हुआ है कि जितने पत्थर लगाये जाने का उल्लेख किया गया है, वह मेजरमेंट बुक प्र0पी034 में दर्ज समय में लगाया जाना संभव ही नहीं है।
38. शत्रुघन लाल मानिकपुरी अ0सा09 का कथन है कि लोक निर्माण विभाग के डिवीजनल एकाउंटेंट गुप्ता से जब्ती पत्र प्र0पी010 के माध्यम से कागजात जब्त किया गया था, रमेशचंद गुप्ता अ0सा024 का कथन है कि वह लोक निर्माण विभाग संभाग-1 में संभागीय लेखाधिकारी के पद पर पदस्थ था, केन्द्रीय जेल की बाउंड्री वाल की मरम्मत के दो प्रस्ताव स्वीकृति हेतु भेजे गये थे, केन्द्रीय जेल की बाउंड्री वाल की मरम्मत का बिल सेंक्शन हुआ था, दिनांक 08.12.95 को राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो के द्वारा गवाहों के समक्ष उससे जब्ती पत्र प्र0पी010 के माध्यम से ठेकेदार अनिल शर्मा से किये गये अनुबंध की फाईल, टेण्डर की फाइल एवं अनुबंध की नस्ती जब्त किये थे, जब्तशुदा माप पुस्तिका प्र0पी034, एग्रीमेंट की फाइल प्र0पी038 और जब्त निविदा की फाईल प्र0पी037 है, पुलिस अधीक्षक के0के0अग्रवाल अ0सा025 का कथन है कि उन्होंने जब्ती पत्र प्र0पी010 के माध्यम से रमेश चंद गुप्ता से गवाहों के समक्ष आरोपीगण द्वारा जेल में कराये गये मरम्मत कार्य के संबंध में किये गये मेजरमेंट बुक प्र0पी034 को जब्त किया था, उक्त जब्ती पत्र के संबंध में उक्त साक्षियों के कथन अखंडित रहे हैं।
39. जब्ती पत्र प्र0पी010 के माध्यम से के0के0अग्रवाल द्वारा रमेश चंद गुप्ता से लोक निर्माण विभाग संभाग क्रमांक-1 रायपुर के 54 डी.एल. 92-93 का अनुबंध कैश फाइल क्रमांक 1 से 55 प्र0पी010ए, टेंडर फाइल प्र0पी037 एवं मूल अनुबंध नस्ती प्र0पी036 को जब्त करना प्रमाणित हुआ है, जिसमें लोक निर्माण विभाग द्वारा केन्द्रीय जेल रायपुर की आंतरिक एवं बाहरी दीवार का टेंडर आरोपी ठेकेदार अनिल शर्मा को दिये जाने का उल्लेख है।
40. मनहरण लाल वर्मा अ0सा011 एवं पेशराम अ0सा012 का कथन है कि गवाहों के समक्ष ई0ओ0डब्लू0 कार्यालय में जब्ती पत्र प्र0पी016 के माध्यम से उसमें दर्शाये अनुसार क्रमांक-1 से 8 के दस्तावेज जब्त किये गये थे, शंकर राव धावरे अ0सा016 का कथन है कि वह लोक निर्माण विभाग में 1993 से वरिष्ठ लिपिक लेखापाल के पद पर पदस्थ था, जब्ती पत्र प्र0पी016 के माध्यम से उससे आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो के द्वारा कागजात जब्त किये गये थे, के0के0अग्रवाल अ0सा025 का कथन है कि उसने जब्ती पत्र प्र0पी016 के माध्यम से लोक निर्माण विभाग से चेक बुक एवं केश बुक जब्त किया था, केश बुक प्र0पी016ए एवं चेक बुक प्र0पी016बी है, उक्त जब्ती पत्र के संबंध में उक्त साक्षियों के कथन अखंडित रहे हैं, जिससे यह प्रमाणित पाया जाता है कि जब्ती पत्र प्र0पी016 के माध्यम से शंकर राव धावरे से गवाहों के समक्ष के0के0अग्रवाल ने केश बुक एवं चेक बुक, काउंटर ओपनिंग रजिस्टर, टेंडर फार्म बिक्री रजिस्टर, दो छपे फार्म, डिस्पेच रजिस्टर, क्रय समिति कार्यवाही रजिस्टर एवं जावक रजिस्टर जब्त किया था ।
41. शंकर राव धावरे अ0सा015 का यह भी कथन है कि जब्ती पत्र प्र0पी021 के माध्यम से ए.सी.बी. वालों ने उससे मेजरमेंट बुक क्रमांक 31706 प्र0पी020 को जब्त किया था, जिसमें जेल निर्माण से संबंधित रनिंग बिल एवं फाइनल बिल के वाउचर हैं, जिसका समर्थन के0के0अग्रवाल अ0सा025 द्वारा किया गया है, उक्त जब्ती पत्र के संबंध में उक्त साक्षियों के कथन अखंडित रहे हैं, जिससे यह प्रमाणित पाया जाता है कि जब्ती पत्र प्र0पी021 के माध्यम से शंकरलाल धावरे से के0के0अग्रवाल ने मेजरमेंट बुक क्रमांक 31706 प्र0पी020 को जब्त किया था ।
42. एस0के0मेहता कार्यपालन यंत्री अ0सा017 का कथन है कि वर्ष 1996 में वह अनुविभागीय अधिकारी संभाग क्रमांक-1 रायपुर के पद पर पदस्थ था, दिनांक 12.08.96 को सहायक पुलिस महानिरीक्षक आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो के द्वारा मांग किये जाने पर केश बुक, चेक बुक, मेजरमेंट बुक, मूल वाउचर एवं ठेकेदार आरोपी अनिल शर्मा के पंजीयन प्रमाण पत्र की फाइल, स्थानांतरण, स्थापना आदेश तत्कालीन कार्यपालन यंत्री संभाग क्रमांक-1 रायपुर को पत्र प्र0पी023 के माध्यम से भेजा गया था, चेक बुक क्रमांक 3466 आर्टिकल ए, चेक बुक क्रमांक 3523 आर्टिकल बी है, मेजरमेंट बुक की इंट्री आर्टिकल सी, केश बुक प्र0पी022ए एवं प्र0पी022बी है ।
43. निरीक्षक नरेन्द्र शुक्ला अ0सा013 का कथन है कि उसने राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो भोपाल में प्रथ म सूचना पत्र प्र0पी017 दर्ज किया था, उक्त संबंध मेंउक्तसाक्ष के कथन अख्यांडित रहे हैं । पुलिस अधीक्षक के0के0अग्रवाल का यह भी कथन है कि लोक निर्माण विभाग संभाग 1 के अधिकारियों एवं ठेकेदार द्वारा बिना काम कराये शासकीय राशि भुगतान करने के संबंध में शिकायत प्राप्त होने पर अपराध क्रमांक 49/15 दर्ज की गयी थी, उसने अधीक्षक केन्द्रीय जेल रायपुंर को दिनांक 24.02.97 को पत्र भेजकर जानकारी मांगी थी जिसके आधार पर जेल अधीक्षक द्वारा जानकारी प्र0पी044 दी गयी थी तथा जेल अधीक्षक को दिनांक 22.06.96 को पत्र भेजकर जानकारी मांगी थी, जिसका जवाब पत्र प्र0पी047 के द्वारा दस्तावेज प्र0पी046से 49 जेल अधीक्षक ने भेजा था, उसके द्वारा अधीक्षण यंत्री लोक निर्माण को पत्र भेजकर जानकारी चाही थी, जिसका जवाब प्र0पी050 दस्तावेज प्र0पी052 एवे 53 के माध्यम से दिया गया था, उसने मुख्य कार्यपालन अभियंता को पत्र प्र0पी054 भेजकर केन्द्रीय जेल रायपुर के कंपाउंड वाल की जानकारी चाही थी जिसका जवाब प्र0पी055 भेजा गया, उसने किशोर शर्मा, पुनीत साहू, जेएल निगम, रमेशचंद, चक्रधारी प्रसाद सिन्हा, शंकर राव धावरे, ए0के0धाबू, जेपी चौहान, पीएल सेमुअल, पी.शंकर राव नायडू, जगमोहन, बलदाउ शुक्ला, छेदीलाल, जीवराखन, हूबलाल का कथन लिया था।
44. पुलिस अधीक्षक अग्रवाल का यह भी कथन भी कि उसने विवेचना में प्राप्त दस्तावेजों के अध्ययन एवं गवाहों से पूछताछ के आधार पर पाया था कि आरोपियों द्वारा 168.40 घनमीटर बोल्डर को जेल के 137 स्थानों से निकालकर वहां नया बोल्डर लगाना दस्तावेजों में दिखाया है, परंतु न तो न तो वहां से बोल्डर निकाले गये, न ही बोल्डर लगाये गये दीवाल में नीले हरे रंग की पोताई करना बताया गया है परंतु नीले हरे रंग की पोताई नहीं मिल, सफेद चूने की पोताई मिली इसलिए उक्त कार्य का पैसा बिना कार्य किये ले लिया गया, इस साक्षी ने इस कथन से इंकार किया है कि उसने 1,12,737/-रूपये का अवैध भुगतान निराधार होना बताया है, इस साक्षी ने इस कथन से अनभिज्ञता प्रकट की है कि सत्यनारायण शर्मा तत्का0 विधायक द्वारा शिकायत की गयी और गंगूराम बघेल द्वारा जांच की गयी थी तथा स्वीकार किया है कि जेल मेनुअल के अनुसार प्रावधानों को देखा था, जिन मजदूरों की सूची पेश की है उनका बयान नहीं लिया इस कथन से भी इंकार किया है कि आरोपीगण को जान-बूझकर फंसा दिया एवं इस कथन से भी इंकार किया है कि आरोपीगण की निर्दोषिता के संबंध में दस्तावेज नहीं मांगा तथा स्वीकार किया है कि तीन महीने बाद अतिरिक्त समय हेतु आरोपी द्वारा आवेदन दिया गया था तथा इस कथन से इंकार किया है कि कार्यपालन यंत्री श्री गुप्ता द्वारा जांच कर संतुष्ट होने पर भुगतान किया गया, परंतु इस साक्षी के प्रतिपरीक्षण में ऐसा कोई तथ्य प्रमाणित नहीं किया गया है, जिससे उसके द्वारा की गयी कार्यवाही पर संदेह किया जा सके । 
45. शंकरलाल धावरे ने कथन किया है कि जब्ती पत्र प्र0पी022 के माध्यम से के0के0अग्रवाल डीएसपी के द्वारा उससे दो केश बुक प्र0पी022ए एवं प्र0पी022बी क्रमशः दिनांक 23.12.92 से 28.09.93 तथा दिनांक 29.09.93 से 04.08.94, चेक काउंटर बुक 346501 से 346600, 352201 से 352300 तक जब्त किया गया था, शंकरलाल धावरे का यह भी कथन है कि चेक क्रमांक 346521 आरोपी अनिल शर्मा को 69993/-रूपये का एवं चेक क्रमांक 352200 प्र0पी022डी 86864/-रूपये का भुगतान किया गया था तथा चेक मेजरमेंट रजिस्टर के पेज-21 प्र0पी022ई में उक्त देयक की प्रविष्टि है, उक्त संबंध में उक्त साक्षियों के कथन अखंडित रहे हैं, जिसका समर्थन पुलिस अधीक्षक के0के0अग्रवाल के द्वारा भी किया गया है, जो उक्त जब्ती को प्रमाणित करता है ।
46. आरोपीगण की ओर से बचाव साक्षी के रूप में जी0पी0तिवारी ब.सा.1 का कथन कराया गया है, जिसमें कथन किया है कि वह वर्ष 1993 से शासकीय ठेकेदार आरोपी अनिल शर्मा के साथ काम सीख रहा था, वह केन्द्रीय जेल रायपुर में अनिल शर्मा के द्वारा लगाये गये ठेके के कार्य की देखरेख करता था, केन्द्रीय जेल की मुख्य दीवार में पत्थर निकालकर उसकी जुड़ाई करने, नये पत्थर लगाने और प्लास्टर के काम का ठेका अनिल शर्मा को मिला था, उक्त काम मई-जून से प्रारंभ होकर  दिसम्बर तक उसकी देखरेख में किया गया था, जेल के अंदर जाने वाले मजदूरों के संबंध में कभी जेल रजिस्टर में इंद्राज किया जाता था और कभी इंद्राज नहीं करते थे, मजदूर साढे दस बजे आते थे, उस समय जेल में कैदियों के बाहर निकलने का समय रहता था, मजदूरों को जेल के कर्मचारी पहचान गये थे इसलिए वैसे भी जेल के अंदर जाने देते थे, जेल के बाहर सामानों को खाली किया जाता था और वहां से जेल के अंदर ठेलों में ले जाते थे, उक्त सामानों को जेल के अंदर ले जाने का इंद्राज नहीं होता था, पत्थर को निकालते समय जो मलमा निकलता था, उसे जेलर एवं जेल अधिकारी के द्वारा पहले जेल के अंदर स्थान देखकर रखवाया जाता था और गड्ढों में डाल दिया जाता था, इस साक्षी ने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि आरोपी अनिल शर्मा से उसके अच्छे संबंध हैं, किंतु इस कथन से इंकार किया है कि वह झूठी गवाही दे रहा है ।
47. इस बचाव साक्षी तिवारी के द्वारा जेल के अंदर जाकर मई-जून से दिसम्बर तक आरोपी ठेकेदार अनिल शर्मा द्वारा किये गये कार्य को देखने और इसके द्वारा जेल में प्रवेश करने के संबंध में कोई दस्तावेज जेल विभाग का प्रस्तुत नहीं किया गया है, किसी भी अभियोजन साक्षी से इस संबंध में कोई प्रतिपरीक्षण नहीं किया गया है कि उक्त जी0पी0तिवारी द्वारा ठेकेदार अनिल शर्मा के माध्यम से उसके कार्य को देखता था, आरोपी अनिल शर्मा ने भी अपने बचाव कथन में उसकी तरफ से जी0पी0तिवारी द्वारा कार्य को देखने के संबंध में कोई तथ्य नहीं बताया है जो यही दर्शित करता है कि उक्त साक्षी के द्वारा आरोपी अनिल शर्मा की तरफ से जेल का काम देखने के संबंध में जो कथन किया जाता रहा है, वह विश्वास योग्य नहीं है इसलिए इस साक्षी के कथन का कोई लाभ आरोपीगण को प्राप्त नहीं होता ।
48. आरोपी एम0एल0श्रीवास्तव ने अपने अभियुक्त कथन में यह बचाव लिया है कि उसके द्वारा अलग-अलग पत्रों, वाउचर, आकलन, प्रपत्रों की जांच कर, साइड में उपस्थित पेटी कांटेक्टर मिस्त्री समयपाल से पूछकर रेत, पत्थर, सीमेंट के सप्लायरों से व्यक्तिगत जानकारी लेकर स्वयं कार्यस्थल पर जाकर प्लस्तर निकलवाकर नये पत्थरों को देखा, उपर की कोटिंग चेक करने पर सही पाया, निकाले गये पत्थरों को जेल के गडढे में फैेलाये जाना पाकर अपने दायित्वों का पालन कर प्रकरण में कार्यवाही किया है, वर्तमान प्रकरण में आरोपी एमएल श्रीवास्तव ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि प्रकरण में किस पेटी कांटेक्टर मिस्त्री एवं समयपाल से उन्होंने पूछताछ कर जानकारी ली तथा किन सप्लायरों से जानकारी प्राप्त की, एमएल श्रीवास्तव द्वारा जेल में जाकर काम की जानकारी भी लेना बताया है परंतु प्रकरण में संलग्न दस्तावेजों से यह दर्शित होता है कि वे कभी जेल गये ही नहीं, उनके द्वारा कब जेल जाकर जांच की गयी इस संबंध में भी उन्होंने कोई दस्तावेज पेश नहीं किया है जहां तक प्रपत्रों, प्राक्कलन, वाउचर का प्रश्न है प्रकरण में मेजरमेंट बुक पेश की गयी है उसमें दर्शित ही नहीं होता कि किस तारीख को काम किया गया है इसलिए एमएल श्रीवास्तव द्वारा लिये बचाव का कोई लाभ उन्हें प्राप्त नहीं होता।
49. आरोपी जीएस सिंह द्वारा यह बचाव लिया गया है कि तत्कालीन कार्यपालन यंत्री द्वारा संतुष्ट होकर बिल आदि की जांच करने के बाद कोई अवैधानिकता नहीं पायी गयी परंतु मेजरमेंट बुक प्र0पी020 एवं प्र0पी010बी के अवलोकन से दर्शित होता है कि उसमें कई जगह कांट-छांट की गयी है और इतनी कम अवधि में 168.4 घनमीटर पत्थर लगाना संभव नहीं था, इसलिए उक्त आधार का कोई लाभ आरोपी जीएस सिंह को प्राप्त नहीं होता।
50. आरोपी अनिल शर्मा ने यह बचाव लिया है कि दिसंबर 1993 तक कार्य पूर्ण हो गया था जबकि अपराध 1994-95 में बनाया गया है, जीएस सिंह द्वारा अंतिम देयक तैयार कर सिन्हा साहब के सामने पेश किया गया था, परंतु उन्होंने कोई कार्यवाही नहीं की, उसके बाद श्रीवास्तव साहब के समक्ष पेश किया जिन्होंने जांच कर सही होना पाया, परंतु श्री धासू के कथन से यह प्रमाणित हुआ है कि जीएस सिंह ने श्री सिन्हा के समक्ष अंतिम बिल प्रस्तुत ही नहीं किया इसलिए श्री सिन्हा के समक्ष अंतिम बिल प्रस्तुत किये जाने का आरोपी अनिल शर्मा का कथन विश्वास योग्य नहीं है, नवंबर 1993 में पानी की तराई हेतु श्री सिन्हा ने नाराजगी जाहिर की थी इसके अतिरिक्त वे संतुष्ट थे, इसके अतिरिक्त जेल विभाग से कोई शिकायत नहीं थी, परंतु पानी की तराई का काम उचित रूप से नहीं किया गया, जेल अधीक्षक चौहान के द्वारा उन्हें विशेष निर्माण की कोई जानकारी नहीं दिया जाना बताया गया है, इसलिए उनसे शिकायत की अपेक्षा नहीं की जा सकती, जेल अधीक्षक के कहने पर पीला रंग दीवारों में किये जाने का भी आधार लिया गया है परंतु टेंडर हरे और नीले रंग से पोतने का हुआ था और मेजरमेंट बुक प्र0पी034 एवं 10बी में भी हरे एवं नीले रंग जेल में लगाये जाने व उसकी राशि का भुगतान करने का उल्लेख है, जबकि वह लगाया ही नहीं गया, इसलिए उक्त आधार का कोई लाभ आरोपी अनिल शर्मा को प्राप्त नहीं होता ।
51. आरोपीगण की ओर से यह भी तर्क किया गया है कि श्री पाठक ने जांच की एवं सभी कार्याे को सही पाया था तथा प्रकरण में संलग्न रिपोर्ट प्रडी-2 से उसकी पुष्टि होती है, आरोपी एमएल श्रीवास्तव एवं अनिल की ओर से प्रस्तुत लिखित तर्क एवं अभियुक्त कथन में यह भी बचाव लिया गया है कि लोक निर्माण विभाग के अंतर्गत आने वाले अन्य विभागों ने भी जांच की है और केन्द्रीय जेल रायपुर में सही कार्य होने से संतुष्ट होने के बाद ही राशि का भुगतान ठेकेदार को किया गया, प्रकरण में मेजरमेंट बुक प्र0पी034 के पृष्ठ क्रमांक 198 से 200 में केन्द्रीय जेल रायपुर में किये गये कार्य के संबंध में इंद्राज किये गये हैं, श्री धासू ने बताया है कि जब उसके समक्ष जीपी सिंह मेजरमेंट बुक लेकर आये तो उसमें 1993 का वर्ष डला था परंतु उसे जब एसीबी वालों ने उसे उक्त बुक 1996 में दिखायी तो वह 1994-95 हो गया, मेजरमेंट बुक प्र0पी034 से भी दर्शित होता है कि दिनांक 15.12.94, 21.12.94, 25.12.94, 16.01.95 को जीपी सिंह द्वारा कार्य के संबंध में इंद्राज करने का उल्लेख मेजरमेंट बुक में है तथा मेजरमेंट बुक प्र0पी034 में दिनांक 1.1.95 एवं 16.01.95 को अनुविभागीय अधिकारी आरोपी एम0एल0 श्रीवास्तव द्वारा उसे जांच करने का उल्लेख है, जिस आधार पर उनके द्वारा जांच करना बताया गया है वह भी विश्वास योग्य नहीं है, लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों द्वारा बिना कार्य को देखे दस्तावेजों के आधार पर ही कार्य की जांच कर उसका भुगतान कर दिया, इसलिए लोक निर्माण विभाग के अधिकारी श्री पाठक द्वारा कार्य की जांच एवं दी गयी रिपोर्ट प्रडी-2 पर उसे सही पाने के संबंध में जो आधार आरोपियों ने लिया है वह विश्वास योग्य नहीं है। 
52. रणविजय ज्ञानी अ0सा022 का कथन है कि वह विधि एवं विधायी कार्य विभाग में सहायक ग्रेड-3 के पद पर पदस्थ है, एमएल श्रीवास्तव की अभियोजन स्वीकृति प्र0पी026 एवं जीएस सिंह की अभियोजन स्वीकृति प्र0पी027 तत्कालीन अतिरिक्त सचिव श्री टी.पी.शर्मा द्वारा दी गयी थी, इस साक्षी ने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि श्री शर्मा ने किन आधारों पर अभियोजन स्वीकृति दी उसे जानकारी नहीं है, प्र0पी027 पर उसके हस्ताक्षर नहीं हैं और री शर्मा ने कब हस्ताक्षर किये उसे नहीं पता, अभियोजन स्वीकृति आदेश प्र0पी026 एवं 27 के अवलोकन से दर्शित होता है कि उसमें विस्तृत रूप से उन आधारों का विवरण दिया गया है, जिसके आधार पर तत्कालीन अतिरिक्त सचिव श्री शर्मा द्वारा अभियोजन स्वीकृति प्रदान की गयी है, इसलिए अभियोजन स्वीकृति उचित रूप से दिया जाना दर्शित होता है और यह प्रमाणित पाया जाता है कि आरोपी एमएल श्रीवास्तव के विरूद्ध अभियोजन स्वीकृति प्र0पी026 एवं जीएस सिंह के विरूद्ध  अभियोजन स्वीकृति प्र0पी027  शासन के विधि एवं विधायी  कार्य विभाग  द्वारा प्रदान की गयी थी ।
53. आरोपीगण की ओर से 2010 क्रिमि0लॉ0ज0 1436 पंजाब राज्य वगैरह विरूद्ध एम0इकबाल भारानी का न्यायदृष्टांत प्रस्तुत किया गया है, उक्त न्यायदृष्टांत अभियोजन स्वीकृति के संबंध में है, परंतु वर्तमान प्रकरण में उचित रूप से अभियोजन स्वीकृति दी गयी है, इसलिए उसका कोई लाभ आरोपीगण को प्राप्त नहीं होता है ।
आरोपीगण की ओर से माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ओमप्रकाश विरूद्ध हरियाणा राज्य में दिनांक 27 जनवरी 2016, 17 जून 2006 एवं 2010(1) सी.जी.एल.जे. 384-एस.सी., महाराष्ट्र राज्य विरूद्ध ध्यान शंकर लक्ष्मणराव 2015(4) क्राइम्स-167 एस.सी. आंध्रप्रदेश राज्य विरूद्ध के0नरसिंहाचेरी का न्यायदृष्टांत भी प्रस्तुत किया गया है, उक्त न्यायदृष्टांत रिश्वत लेते समय आरोपी को पकडने के संबंध में है, परंतु वर्तमान प्रकरण की परिस्थितियां उक्त प्रकरणों से भिन्न हैं, इसलिए उनका कोई लाभ आरोपीगण को प्राप्त नहीं होता है।
54. शंकर नायडू (अ0सा08), शंकर राव धावरे (अ0सा015) तथा पी0एस0सेमुअल (अ0सा021) के साक्ष्य और आरोपीगण की स्वीकारोक्ति से प्रकरण में यह तथ्य भी अविवादित है कि लोक निर्माण विभाग द्वारा शासकीय भवनों की मरम्मत हेतु भवनों का निरीक्षण कर प्राक्कलन (इस्टीमेट) बनाया जाता है, जिसे सेंक्शन करने वाले अधिकारी के पास भेजा जाता है, राशि स्वीकृत होने के पश्चात निविदा संबंधी कार्यवाही की जाती है, जो कि कार्यपालन यंत्री के द्वारा बुलायी जाती है, निविदा बुलाकर जिस ठेकेदार का न्यूनतम मूल्य होता है, उसकी निविदा सक्षम अधिकारी के द्वारा स्वीकृत की जाती है और ठेकेदार को कार्यादेश जारी किया जाता है, ठेकेदार द्वारा कार्य प्रारंभ करने के बाद संबंधित उपयंत्री के द्वारा उसके कार्य का निरीक्षण किया जाता है और कार्य मेजरमेंट के लायक होने पर उसका नाप कर मेजरमेंट बुक (माप पुस्तिका) में कार्य का इंद्राज किया जाता है और आवश्यकतानुसार कार्यपालन यंत्री के द्वारा भी कार्य की जांच की जाती है, उपयंत्री के द्वारा कार्य का देयक तैयार किया जाता है, और अनुविभागीय अधिकारी उसकी जांच कर कार्यपालन यंत्री के पास भेजते हैं, कार्य चलने के दौरान रनिंग बिल और कार्य समाप्ति के बाद अंतिम बिल बनाया जाता हैं।
55. प्रकरण में यह भी अविवादित है कि अंतिम बिल को आडिटर के पास भेजा जाता है, जिसके द्वारा टेक्निकल सेक्शन को बिल भेजा जाता है, ड्राफ्समेन द्वारा बिल की जांच तकनीकी रूप से की जाती है और अपने प्रतिवेदन के साथ आडिटर के पास भेजा जाता है जिसके द्वारा नोटशीट तैयार कर देयक लेखापाल के पास भेजा जाता है और लेखापाल भी देयक की जांच करता है और अपनी टीप के साथ उसे कार्यपालन यंत्री के पास भेजता है, कार्यपालन यंत्री द्वारा देयक एवं उसके साथ संलग्न दस्तावेजों को देखकर यदि देयक पास किये जाने योग्य है तो उसमें तदनुसार टीप अंकित करता है तब बिल आडिटर के पास भेजता है तो वह मेमोरंडम आफ पेमेंट कहलाता है, आडिटर के द्वारा फिर देयक लेखापाल के पास भेजा जाता है तब लेखापाल के द्वारा कार्यपालन यंत्री को पास आर्डर के लिए ले जाता है और पास आर्डर में कार्यपालन यंत्री के हस्ताक्षर होने पर वह देयक लेखा शाखा आता है, तब वरिष्ठ लेखा लिपिक द्वारा चेक काटा जाता है ।
56. प्रकरण में यह भी अविवादित है कि मरम्मत का कार्य दो प्रकार से विशेष एवं साधारण होता है, विशेष मरम्मत विभाग के मजदूरों के द्वारा और बडा काम होने पर निविदा द्वारा ठेकेदारों से कराया जाता है, रखरखाव हेतु किये गये अलॉटमेंट से अधिक राशि का कार्य होने पर विशेष मरम्मत में आता है, जिसके लिये पृथक से राशि स्वीकृत होती है, जबकि रखरखाव हेतु आमंत्रित बजट से मरम्मत होती है, जेल की दीवार की मरम्मत हेतु दो प्राक्कलन 80-80 हजार रूपये के भेजे गये थे जो कार्यपालन यंत्री को सौंपे गये जहां से आवंटन हेतु संबंधित अधिकारी को भेजे गये, उक्त प्राक्कलन के आधार पर स्वीकृति आयी थी, स्वीकृति देने वाले अधिकारी के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह प्राक्कलन के अनुसार या मांग की गई राशि पूर्णतः स्वीकार कर, जो राशि स्वीकृत की जाती है, उसी से निविदा आमंत्रित की जाती है, आरोपीगण के कार्य के दौरान जेल की दीवार में प्लास्टर का और रिपेयर का कार्य चल रहा था, प्लास्टर में पूर्व दीवार में यदि क्रेक हो तो उसे भी भरा जाता था, क्योंकि प्लास्टर करने के बाद क्रेक भरने का कार्य नहीं होता है ।
57. प्रकरण में शंकर राव धावरे (अ0सा015) ओमप्रकाश गुप्ता (अ0सा018) के साक्ष्य और आरोपीगण की स्वीकारोक्ति से प्रकरण में यह तथ्य भी अविवादित है कि सेंट्रल जेल रायपुर की कंपाउंड वाल की मरम्मत एवं छोटे-छोटे कार्य के लिए चक्रधारी प्रसाद सिन्हा द्वारा दिनांक 21.10.92 को दो कार्य हेतु निविदा बुलवायी गयी थी, उक्त निविदा आरोपी अनिल की (प्र0पी08) स्वीकृत हुई थी, जिसके संबंध में उसे सूचना (प्र0पी024) के माध्यम से दी गयी थी, जिसके संबंध में आरोपी अनिल से अनुबंध पत्र करवाया गया एवं दस्तावेज वगैरह तैयार किये गये थे, कंपाउंड वाल की मरम्मत हेतु 65,500/-रूपये एवं 52,900/-रूपये स्वीकृत किये गये थे, वर्ष 1994-95 में जेल में मरम्मत का काम चल रहा था, जिस हेतु प्राक्कलन वर्ष 1994-95 में आरोपी जी0एस0सिंह ने बनाया था तथा मौका निरीक्षण किया था, सीमेंट एवं रेत जेल के अंदर जाती थी, आरोपी एमएल श्रीवास्तव ने मेजरमेंट करने के उपरान्त कार्यपालन अभियंता के समक्ष प्रस्तुत किया, जिसके बाद आरोपी अनिल शर्मा को बिल का भुगतान किया गया था, जितनी राशि का बिल प्रस्तुत किया जाता है, उतनी ही राशि का भुगतान किया जाता है,
58. जगमोहन के कथन एवं आरोपीगण की स्वीकारोक्ति से प्रकरण में यह तथ्य भी अविवादित है कि दिनांक 15.12.94 को आम आदमी रजिस्टर में लोक निर्माण विभाग के रेजा कुली मजदूर मिस्त्री का जेल के अंदर जाना नहीं पाया गया, दिनांक 21.12.94 को लोक निर्माण विभाग के रामेश्वर 9.45 बजे, रामचंद एवं घनाराम को सुबह 9.10 बजे जेल के अंदर जाना पाया गया, घनाराम 9.20 बजे जेल से बाहर चला गया, रामचंद एवं रामेश्वर के 4.15 बजे जेल से बाहर आ गये, दिनांक 25.12.94 को लोक निर्माण विभाग के मोतीचंद, जोगी, एवं रामानंद के 2.20 बजे जेल के अंदर जाना पाया गया तथा वे 5.40 बजे जेल से बाहर चले गये, 4-5 मिनट बाद रामानंद भी बाहर चला गया, मोतीचंद और जोगी 4.10 बजे पुनः अंदर गये और 5.40  बजे बाहर चले गये,  ठेकेदार पीडब्लूडी कनोई के 4.10  बजे अंदर  गया  और 5.40 बजे  बाहर आया था ।
59. प्रकरण में यह तथ्य भी अविवादित है कि आरोपी अनिल शर्मा के द्वारा प्लास्टर की तराई का कार्य ठीक से न करने के संबंध में दिनांक 19.10.93 को पत्र प्रपी-5 तथा उसके द्वारा नियत समय पर कार्य पूरा न कर अतिरिक्त समय देने हेतु प्रार्थना पत्र प्र0पी06 भेजा गया था, जिसे उचित पाते हुए अतिरिक्त समय दिये जाने की अनुशंसा सहित कार्यपालन यंत्री को प्र0पी07 के पत्र द्वारा भेजा गया था, कार्यपालन यंत्री ओमप्रकाश गुप्ता अ0सा018 के साक्ष्य एवं आरोपीगण द्वारा की गयी स्वीकृति के आधार पर प्रकरण में यह अविवादित है कि केन्द्रीय जेल रायपुर की बिल्डिंग 100 वर्षो से अधिक पुरानी होने के कारण दीवाल मरम्मत कार्य हेतु जेल अधीक्षक के पत्रों के आधार पर स्टीमेट बनाया गया तथा सक्षम अधिकारी की स्वीकृति एवं निविदा बुलाये जाने के उपरान्त मार्च 93 में अधीक्षण यंत्री द्वारा निविदा स्वीकृति पश्चात कार्यादेश जारी किया था, रनिंग देयक का भुगतान पूर्व कार्यपालन यंत्री ताम्रकार द्वारा किया गया और उन्हीं के कार्यकाल में अधिकांश कार्य जैसे पत्थर की दीवाल की चुनाई, मरम्मत आरसीसी कोपिंग इत्यादि संपन्न हुए थे, जो नियमानुसार थे, कार्य का प्रथम देय पूर्व कार्यपालन यंत्री श्री ताम्रकार के समय आरंभ हुआ था, कुछ कार्य का भुगतान रनिंग देय के रूप में आरोपी जीएस सिंह के नाम चेक कर माप पुस्तिका में चढाये थे, जिसे आरोपी एमएल श्रीवास्तव द्वारा सौ प्रतिशत नाप चेक करने के आधार पर द्वितीय रनिंग बिल का भुगतान किया गया था।
60. बी0शंकर राव नायडू अ0सा08 के साक्ष्य एवं आरोपीगण द्वारा की गई स्वीकृति के आधार पर प्रकरण में यह अविवादित है कि केन्द्रीय जेल रायपुर में हुए कार्य का अंतिम बिल 1995 में उनके कार्यालय में प्रस्तुत हुआ था, जो 2,07,595/-रूपये का था, जिसमें जेल की दीवाल का बिल 1,99,123/-रूपये का था जिसे उसने नोटशीट प्र0पी09 तैयार कर संभागीय लेखाधिकारी को भेजा था, जिसे अनुविभागीय अधिकारी एमएल श्रीवास्तव एवं श्री सिंग को नोट कराया था, उनके द्वारा उसी आर्डर शीट पर अपना स्पष्टीकरण दर्ज किया था, उसके पश्चात को संभागीय लेखाधिकारी के समक्ष पुनः प्रस्तुत किया गया था, उसके पास बिल फार पेमेंट का काउंटर साइन मेजरमेंट बुक प्र0पी010 में किया गया था ।
61. शंकरलाल धावरे अ0सा015 के साक्ष्य एवं आरोपीगण की स्वीकारोक्ति के आधार पर प्रकरण में यह तथ्य भी अविवादित है कि फाईनल बिल प्र0पी0-20 में आरोपी जी0एस0सिंह, एम0एल0श्रीवास्तव एवं अनिल शर्मा के हस्ताक्षर है, मेमोरेण्डम ऑफ पेमेंट पर चैक क्रमांक एवं दिनांक अंकित किये जाते है और लघु हस्ताक्षर किये जाते हैं, तत्कालीन लेखापाल आर0सी0गुप्ता के भी हस्ताक्षर है, अंतिम बिल मिलाकर रूपये 1,99,000/- का भुगतान आरोपी अनिल कुमार शर्मा को किया गया था, उसके द्वारा लेखा लिपिक के नाम से चैक काटा गया था, चेक के भुगतान बाबत बिल में आरोपी अनिल के हस्ताक्षर है।
62. प्रकरण में आये साक्ष्य से यह प्रमाणित पाया जाता है कि लोक निर्माण विभाग संभाग क्रमांक-1 रायपुर द्वारा केन्द्रीय जेल रायपुर में बाउंड्री वॉल की विशेष मरम्मत एवं अन्य कार्य हेतु निविदा क्रमांक 54 डीएल/92-93 प्र0पी037 जारी की गयी थी, जिसमें जेल की बाउंड्री वॉल में लगे खराब पत्थरों को निकालकर उनकी जगह नये पत्थर लगाना, प्लास्टर करना, हरे एवं नीले रंग से पोताई एवं अन्य कार्य किये जाने का था, उक्त निविदा आरोपी अनिल शर्मा के पक्ष में जारी की गयी थी और उक्त निविदा जारी करते समय जेल के अंदर की दीवार के लिए 65,500/-रूपये, बाहर की दीवार के लिए 52,900/-रूपये की राशि निविदा में स्वीकृत की गयी तथा निर्माण कार्य हेतु तीन महीने का समय दिया गया था, तत्पश्चात आरोपी अनिल द्वारा पांच माह का समय बढाये जाने हेतु आवेदन दिया गया था, जिसके संबंध में कार्यवाही की गयी थी, निविदा के संबंध में बिल प्र0पी09 के माध्यम से कार्यवाही की गयी थी, बाद में निविदा की राशि बढाकर 99,700/-रूपये और 99,700/-रूपये की गयी थी।
63. उक्त निविदा के प्रथम रनिंग बिल चेक क्रमांक 346521 द्वारा 69,993/-रूपये एवं द्वितीय रनिंग बिल चेक क्रमांक 352230 द्वारा 86864/-रूपये का भुगतान आरोपी अनिल को किया गया तथा अंतिम बिल का भुगतान मेजरमेंट बुक क्रमांक 31706 प्र0पी034 के पृष्ठ 198 से 200 में किया गया, जिसमें दिनांक 15.12.1993, 21.12.1993, 25.12.1993 एवं 16.01.1995 को किये गये कार्य के संबंध में इंद्राज किया गया, उक्त मेजरमेंट बुक में कार्य के मेजरमेंट का इंद्राज उपयंत्री आरोपी जीएस सिंह द्वारा किया गया, जिसे दिनांक 01.01.95 एवं  01.1995 को अनुविभागीय अधिकारी आरोपी एमएल श्रीवास्तव द्वारा सत्यापित किया गया तथा मेजरमेंट बुक प्र0पी010बी के पृष्ठ 198, 199 एवं 200 में मुख्यतः केन्द्रीय जेल की दीवारों में लगाये गये पत्थर एवं हरे तथा नीले रंग से पेंट की राशि का उल्लेख किया गया तथा कुल 1,81,452/-रूपये का अंतिम बिल बनाया गया, जिसका चेक क्रमांक 118793 प्र0पी016बी आरोपी अनिल शर्मा के नाम से बनाया गया, जिसे केश बुक प्र0पी016ए के पेज नंबर 75 में दिनांक 23.02.1995 को अनिल शर्मा के नाम से चेक दिये जाने का इंद्राज किया गया, अंतिम बिल प्र0पी020 में जीएस सिंह, एमएल श्रीवास्तव एवं अनिल शर्मा के द्वारा हस्ताक्षर किये गये एवं उसके आधार पर अनिल शर्मा को अंतिम बिल की राशि का भुगतान किया गया।
64. प्रकरण में यह भी प्रमाणित हुआ है कि जेल की विशेष मरम्मत के रूप में बाउंड्री वाल में पत्थर लगाये ही नहीं गये और न ही उसमें हरे एवं नीले रंग से पोताई की गयी, दिनांक 15.12.94, 21.12.94, 25.12.94, 16.01.95 को मेजरमेंट बुक क्रमांक 31706 में जेल परिसर में में हुए निर्माण के मेजरमेंट की एंट्री की गयी, परंतु उक्त दिनांक को आरोपीगण जेल परिसर में गये ही नहीं, इस तरह उनके द्वारा बिना निर्माण स्थल पर गये, फर्जी तौर से उक्त इंद्राज कर लिया गया, मेजरमेंट बुक प्र0पी034 से यह स्पष्ट प्रमाणित होता है कि उसके पृष्ठ 198 में दिनांक 15.12.93 को 15.12.94, दिनांक 21.12.93, 21.12.94, दिनांक 25.12.93 को 25.12.94 किया गया है, उक्त स्थिति क्यों निर्मित हुई यह आरोपीगण ने स्पष्ट नहीं किया है, आरोपीगण ने निर्माण कार्य वर्ष 1993 में पूर्ण होना बताया है, इस तरह प्र0पी010बी के पृष्ठ 198 से 200 तक के इंद्राज वर्ष 94-95 का फर्जी तौर से किया जाना प्रमाणित होता है एवं उक्त इंद्राज के आधार पर मेजरमेंट बुक प्र0पी010बी एवं प्र0पी034 तथा अंतिम बिल प्र0पी020 में फर्जी इंद्राज करके अंतिम बिल की राशि 1,81,452/-रूपये अनिल शर्मा को दी गयी, मेजरमेंट बुक प्र0पी010बी, वाउचर एवं बिल प्र0पी020 के अवलोकन से दर्शित होता है कि उनमें अत्यधिक कांट-छांट की गयी है, यह स्थिति क्यों उत्पन्न हुई यह भी आरोपीगण ने स्पष्ट नहीं किया है।
65. इस तरह प्रकरण में आये उक्त साक्ष्य से यह प्रमाणित पाया जाता है कि आरोपीगण द्वारा परस्पर सहमति से मेजरमेंट बुक क्रमांक 31706 एवं रनिंग बिल व अंतिम बिल के दस्तावेजों में फर्जी इंद्राज अवैध साधनों से प्राप्त करने के लिए उसमें हेरफेर एवं कूट रचना कर तथा लोक निर्माण विभाग संभाग क्रमांक-1 रायपुर से बेईमानी से 1,81,452/-रूपये का चेक प्राप्त किया गया तथा जेलर से उक्त प्रमाण पत्र बनवाया तथा आरोपी एमएल श्रीवास्तव तथा जीएस सिंह ने लोकसेवक के पद पर पदस्थ होते हुए पद का अनुचित लाभ उठाते हुए भ्रष्ट एवं अवैध साधनों से अनिल कुमार शर्मा को अनुचित लाभ पहुंचाया।
66. उक्त कारणों से अभियोजन यह संदेह से परे प्रमाणित करने में सफल रहा है कि आरोपी एम.एल.श्रीवास्तव लोक निर्माण विभाग संभाग-1 रायपुर में अनुविभागीय अधिकारी के पदपर पदस्थ होते हुए एवं आरोपी जी.एस.सिंह उक्त विभाग में उपयंत्री के पद पर पदस्थ होते हुए वर्ष 1994-95 में या उसके लगभग रायपुर में परस्पर सहमति द्वारा एकराय होकर आरोपी अनिल के साथ आपराधिक षडयंत्र कर बिना किये गये कार्य के बिल बनवाकर फर्जी इंद्राज मेजरमेंट बुक में करवाकर भुगतान प्राप्त करने का अवैध कार्य, अवैध साधनों से कारित करने का करार किया, उक्त समयावधि के दौरान छल किया तथा अधीक्षण यंत्री एवं कार्यपालन यंत्री लोक निर्माण विभाग संभाग क्रमांक-1 को बेईमानी से उत्प्रेरित किया कि वे 1,81,452/-रूपये का चेक परिदत्त करें, आपराधिक षडयंत्र करते हुए मेजरमेंट बुक में गलत इंद्राज कर दिनांक में हेरफेर कर उसे सत्यापित करवाकर जेलर से गलत प्रमाण पत्र बनवाकर फर्जी बिल तैयार कर कूटरचित दस्तावेज की रचना की, छल करने में उसका उपयोग असली दस्तावेज के रूप में किया तथा लोकसेवक के रूप में पदस्थ रहते हुए लोकसेवक के पद का अनुचित लाभ उठाते हुए भ्रष्ट एवं अवैध तरीकों से अनिल कुमार से अनुचित लाभ प्राप्त कर आपराधिक कदाचरण किया, इसलिए आरोपी एम0एल0श्रीवास्तव एवं जी0एस0सिंह को धारा 467, 468, 420/120-बी, 471/120-बी, भा0द0वि0 तथा भ्रश्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा-13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) के अपराध में एवं आरोपी अनिल शर्मा को धारा 420/120-बी, 467/120-बी, 468/120-बी, 471/120-बी, भा0द0वि0 के अपराध में दोषी पाकर दोषसिद्ध ठहराया जाता है।
67. प्रकरण की परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए आरोपियों को परिवीक्षा अधिनियम के प्रावधानो का लाभ दिया जाना उचित नहीं है, दंड के प्रश्न पर सुनने के लिए निर्णय कुछ देर के लिए स्थगित किया गया।
 सही/-
 (जितेन्द्र कुमार जैन)
 विशेष न्यायाधीश(भ्रष्टा0निवा0अधि0)
 एवं प्रथम अपर सत्र न्यायाधीष,
 रायपुर, छ0ग0
68. दंड के प्रश्न पर विशेष लोक अभियोजक एवं आरोपीगण एवं उनके अधिवक्ता श्री एस0क0ेशर्मा एवं श्री राजपूत के तर्क सुने गये, उन्होंने निवेदन किया कि आरोपीगण बीस वर्षों से प्रकरण में उपस्थित होते रहे हैं, आरोपी एमएल श्रीवास्तव एवं जीएस सिंह शासकीय नौकरी में हैं तथा आरोपी अनिल शर्मा ए-1 श्रेणी का ठेकेदार है, इसलिए उन्हें कम से कम दंड से दंडित किया जाये।
69. दंड के प्रश्न पर विचार किया गया, आरोपीगण द्वारा जेल की दीवारों में बिना पत्थर लगाये और बिना हरे एवं नीले रंग की पोताई किये उसका बिल बनाकर उसकी राशि का भुगतान ठेकेदार को कर शासन को लाखों की क्षति पहुंचाये हैं, इसलिए आरोपी एम.एल. श्रीवास्तव, जी.एस. सिंह एवं अनिल शर्मा को निम्नलिखित दंडादेश दिया जाता है:-

आरोपीगण को दी गयी कारावास की सभी सजाएं साथ-साथ चलेंगीं। 
70. प्रकरण में जेल विभाग से जब्तशुदा आम आदमी रजिस्टर एवं माल रजिस्टर, स्थापना शाखा का रजिस्टर, लोक निर्माण विभाग से जब्त तीन चेक बुक, विशेष दाण्डिक प्रकरण क्रमांक- 01/1999 52 तीन केश बुक रजिस्टर, ई.ई.चेक मेजरमेंट बुक, माल सूची संख्या क्रमांक-6, मेजरमेंट बुक, मेजरमेंट बुक क्र031706, लोक निर्माण विभाग की फाईल अपील न होने की दशा में अपील अवधि पश्चात केन्द्रीय जेल रायपुर एवं लोक निर्माण विभाग संभाग-1 रायपुर को वापस की जावे, अपील होने की दशा में माननीय अपील न्यायालय के आदेश का पालन किया जावे । 
71. प्रकरण में आरोपीगण जमानत मुचलके पर हैं, उनके जमानत-मुचलके धारा 437अ द0प्र0सं0 के तहत छह माह के लिए विस्तारित किये जाते हैं, जो उक्त अवधि पश्चात स्वमेव समाप्त माने जाएंगे। 
निर्णय खुले न्यायालय में पारित 
निर्णय मेरे निर्देश में टंकित किया गया। 
सही/- 
(जितेन्द्र कुमार जैन)
विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टा0निवा0अधि0) एवं प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश, रायपुर (छ0ग0)

’’प्ली बारगेनिंग’’ अभिवाक चर्चा : दांडिक न्याय की सरल प्रक्रिया

भारतीय संसद ने दंड प्रक्रिया संहिता में संशोधन अधिनियम 2/2006 द्वारा एक नया अध्याय 21 (ए) (धारा 265-ए से 265-एल) ’’प्ली बारगेनिंग’’ नामक शीर्षक जोड़कर दांडिक प्रकरणों को शीघ्रता से निपटाने का एक सराहनीय कदम उठाया है।
’’प्ली बोरगेनिंग’’ अवधारणा के अंतर्गत अभियुक्त, अभियोजन व पीड़ित पक्ष आपसी सामंजस्य पूर्ण तरीके से प्रकरण के निपटारे हेतु न्यायालय के अनुमोदन से एक रास्ता निकालते हैं। इसके अंतर्गत अभियुक्त द्वारा अपराध स्वीकृति पर उसे हल्के दंड से दंडित किया जाता है, जो अन्यथा कठोर भारी हो सकता है।
भारत में ’’प्ली बोरगेनिंग’’ का लाभ गंभीर अपराधों में नहीं उठाया जा सकता है। 
ऐसे अपराधों में ’’प्ली बोरगेनिंग’’ लागू नहीं होता, जो मृत्यु दंड, आजीवन कारावास सात वर्ष से अधिक कारावास से दंडनीय होते हैं। इसके अतिरिक्त निम्नलिखित श्रेणियों के अपराधों को भी ’’प्ली बोरगेनिंग’’ की परिधि से बाहर रखा गया है:-
1. ऐसे अपराध जो देश की सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करते हैं। केंद्रीय सरकार ने अधिसूचना दिनांक 11 जुलाई 2006 द्वारा 19 अधिनियमों में वर्णित अपराधों को ’’प्ली बारगेनिंग’’ से अपवर्जित किया है।
2. महिलाओं के विरूद्ध अपराध।
3. 14 वर्ष से कम उम्र के बालक के विरूद्ध।
सौदा अभिवाक् (’’प्ली बारगेनिंग’’) के आवेदन देने के लिए प्रक्रिया -
पुलिस द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट (चालान) अथवा परिवाद प्रकरण में अभियुक्त ’’प्ली बारगेनिंग’’ हेतु आवेदन प्रस्तुत कर सकता है। यह आवेदन शपथ पत्र द्वारा समर्थित होना चाहिए। अभियुक्त के आवेदन में यह वर्णित होना चाहिए कि उसने अपराध की प्रकृति को एवं दंड की सीमा को समझ लिया है और स्वेच्छा से आवेदन पेश कर रहा है। यदि अभियुक्त उसी अपराध में पूर्व में दोषसिद्ध हुआ हो तो वह ’’प्ली बारगेनिंग’’ के लिए अयोग्य होगा।
आवेदन प्राप्त होने के पश्चात् सूचना:-
आवेदन प्राप्त होने के पश्चात् न्यायालय लोक अभियोजक, परिवादी/पीड़ित एवं अनुसंधानकर्ता अधिकारी को न्यायालय में उपस्थित रहने के लिए नोटिस जारी करेगा। न्यायालय उक्त पक्षों को आपसी संतोषजनक हल निकालने के लिए समय देगा। 

छत्‍तीसगढ़ पीड़ित क्षतिपूर्ति योजना- 2011

’’पीड़ित का आशय’’ ऐसे व्यक्ति से है जिसे किसी अपराध के कारण नुकसान या क्षति हुई हो तथा इसके अंतर्गत उसके आश्रित परिवारजन भी शामिल है।
स्वयं कोई नुकसान या क्षति सहा हो अथवा किसी अपराध के फलस्वरूप जिसे चोट आई हो एवं जिसे पुनर्वास की आवश्यकता हो, इसके अंतर्गत पीड़ित के आश्रित परिवारजन भी शामिल है।
क्षतिपूर्ति के लिए अर्हताएं:- निम्नलिखित अर्हताएं पूर्ण करने वाला पीड़ित व्यक्ति या उसका आश्रित इस योजना के अंतर्गत क्षतिपूर्ति के पात्र होंगे।
पीड़ित को चोट अथवा क्षति के कारण उसके परिवार की आय में पर्याप्त कमी हो गयी हो, जिसके कारण आर्थिक सहायता के बिना परिवार का जीवन यापन कठिन हो गया हो अथवा मानसिक/शारीरिक चोट के उपचार में उसे उसके सामर्थ्य से ज्यादा व्यय करना पड़ता हो।
पीड़ित अथवा उसके परिजन द्वारा अपराध की रिपोर्ट संबंधित क्षेत्र के थाना प्रभारी/कार्यपालिक दण्डाधिकारी/न्यायिक दण्डाधिकारी को बिना अनुचित विलम्ब के किया गया हो।
पीड़ित/आश्रित व्यक्ति अपराध की विवेचना एवं अभियोजन कार्यवाही में क्रमशः पुलिस एवं अभियोजन पक्ष का सहयोग करता हो।
क्षतिपूर्ति की स्वीकृति की प्रक्रिया:- अधिनियम की धारा 357 के अंतर्गत जब किसी सक्षम न्यायालय के द्वारा क्षतिपूर्ति की अनुशंसा की जाती है अथवा धारा 357 ए की उपधारा 4 के अंतर्गत किसी पीड़ित व्यक्ति अथवा उसके आश्रित के द्वारा जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को आवेदन पत्र प्रस्तुत किया जाता है तब उक्त प्राधिकरण संबंधित पुलिस अधीक्षक से परामर्श तथा समुचित जांच पश्चात तथ्य एवं दावे की पुष्टि करेगा तथा 02 माह के अंदर जांच पूर्ण कर योजना के प्रावधानों के अनुरूप पर्याप्त क्षतिपूर्ति की घोषणा करेगा।
इस योजना के अंतर्गत क्षतिपूर्ति का भुगतान इस शर्त पर किया जायेगा कि यदि बाद में निर्णय पारित करते हुए विचारण न्यायालय आरोपित व्यक्तियों द्वारा अधिनियम की धारा 357 के उप नियम 3 के अंतर्गत क्षतिपूर्ति दिये जाने हेतु आदेशित करता है तो जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा पूर्व में घोषित क्षतिपूर्ति को उसमें समायोजित किया जावेगा। इस आशय का एक वचन पत्र पीड़ित/दावेदार द्वारा क्षतिपूर्ति के भुगतान के पूर्व दिया जायेगा।
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा पीड़ित या उसके आश्रित के लिए क्षतिपूर्ति की राशि निर्धारित करने में पीड़ित को हुए नुकसान, उपचार खर्च, पुनर्वास हेतु आवश्यक न्यूनतम निर्वाह राशि तत्समय लागू न्यूनतम मजदूरी एवं अन्य प्रासंगिक व्यय जैसे अंत्येष्ठि व्यय इत्यादि को ध्यान में रखा जायेगा। तथ्यों के आधार पर क्षतिपूर्ति की राशि में प्रकरण दर प्रकरण भिन्नता हो सकती है।
पीड़ित व्यक्ति द्वारा प्रश्नाधीन अपराध के संबंध में किसी अन्य स्त्रोत जैसे बीमा राशि, अनुग्रह राशि अथवा केन्द्र/राज्य सरकार के किसी अधिनियम/योजनान्तर्गत भुगतान से प्राप्त क्षतिपूर्ति को इस योजना अंतर्गत क्षतिपूर्ति के अंश के रूप में माना जायेगा तथा इस योजनान्तर्गत घोषित क्षतिपूर्ति के विरूद्ध समायोजित किया जायेगा।
पीड़ित अथवा उसके आश्रितों को दी जाने वाली क्षतिपूर्ति की अधिकतम सीमा अनुसूची में दी गयी राशि से अधिक नहीं होगी।
मोटर यान अधिनियम 1988 (1988 का अधिनियम क्रमांक 59) के अंतर्गत शामिल प्रकरणों को जिनमें मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण द्वारा क्षतिपूर्ति का आदेश दिया जाना है, इस योजना में शामिल नहीं किया जायेगा।
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, पीड़ित व्यक्ति के कष्ट को कम करने के लिए, संबंधित थाना प्रभारी अथवा क्षेत्र के कार्यकारी मजिस्ट्रेट के प्रमाण पत्र के आधार पर पीड़ित व्यक्ति को तत्काल प्राथमिक चिकित्सा सुविधा अथवा निःशुल्क चिकित्सा लाभ अथवा अन्य अंतरिम सहायता जैसा भी उचित हो, उपलब्ध कराने हेतु आदेशित कर सकता है।
परिसीमन:- अधिनियम की धारा 357 ए की उपधारा 4 के अंतर्गत पीड़ित अथवा उसके आश्रितों के द्वारा प्रस्तुत कोई आवेदन चोट/क्षति कारित किये जाने की एक एक वर्ष की समयावधि के पश्चात ग्राह्य नहीं होगा।
अपील:- जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के द्वारा किसी पीड़ित अथवा उसके परिवारजन को क्षतिपूर्ति देने से इंकार करने की दशा में वह व्यक्ति 90 दिनों के भीतर राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में अपील प्रस्तुत कर सकता है।
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को यदि संतुष्टि हो तो तत्संबंधी कारणों का उल्लेख करते हुए अपील प्रस्तुत करने में हुए विलम्ब की अवधि को माफ कर सकता है।
अनुसूची-
क्षतिपूर्ति की अधिकतम सीमा 
1.जीवन की क्षति - रूपये 1,00,000/-
2.एसीड अटैक के कारण शरीर के अंग या भाग के 80 प्रतिशत या इससे अधिक विकलांगता या गंभीर क्षति - रूपये 50,000/-
3.शरीर के अंग या भाग की क्षति परिणामस्वरूप 40 प्रतिशत से अधिक एवं 80 प्रतिशत से कम विकलांगता - रूपये 25,000/- 4.अवयस्क का बलात्कार - रूपये 50,000/-
5.बलात्कार - रूपये 25,000/- 6.पुनर्वास - रूपये 20,000/-
7.शरीर के अंग या भाग की क्षति परिणामस्वरूप 40 प्रतिशत से कम विकलांगता- रू.10,000/-
8. महिलाओं एवं बच्चों के मानव तस्करी जैसे मामलों में गंभीर मानसिक पीड़ा के कारण क्षति - रूपये 20,000/-
9 साधारण क्षति या चोट से पीड़ित बच्चे - रूपये 10,000/-

Category

03 A Explosive Substances Act 149 IPC 295 (a) IPC 302 IPC 304 IPC 307 IPC 34 IPC 354 (3) IPC 399 IPC. 201 IPC 402 IPC 428 IPC 437 IPC 498 (a) IPC 66 IT Act Aanand Math Abhishek Vaishnav Ajay Sahu Ajeet Kumar Rajbhanu Anticipatory bail Arun Thakur Awdhesh Singh Bail CGPSC Chaman Lal Sinha Civil Appeal D.K.Vaidya Dallirajhara Durg H.K.Tiwari HIGH COURT OF CHHATTISGARH Kauhi Lalit Joshi Mandir Trust Motor accident claim News Patan Rajkumar Rastogi Ravi Sharma Ravindra Singh Ravishankar Singh Sarvarakar SC Shantanu Kumar Deshlahare Shayara Bano Smita Ratnavat Temporary injunction Varsha Dongre VHP अजीत कुमार राजभानू अनिल पिल्लई आदेश-41 नियम-01 आनंद प्रकाश दीक्षित आयुध अधिनियम ऋषि कुमार बर्मन एस.के.फरहान एस.के.शर्मा कु.संघपुष्पा भतपहरी छ.ग.टोनही प्रताड़ना निवारण अधिनियम छत्‍तीसगढ़ राज्‍य विधिक सेवा प्राधिकरण जितेन्द्र कुमार जैन डी.एस.राजपूत दंतेवाड़ा दिलीप सुखदेव दुर्ग न्‍यायालय देवा देवांगन नीलम चंद सांखला पंकज कुमार जैन पी. रविन्दर बाबू प्रफुल्ल सोनवानी प्रशान्त बाजपेयी बृजेन्द्र कुमार शास्त्री भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम मुकेश गुप्ता मोटर दुर्घटना दावा राजेश श्रीवास्तव रायपुर रेवा खरे श्री एम.के. खान संतोष वर्मा संतोष शर्मा सत्‍येन्‍द्र कुमार साहू सरल कानूनी शिक्षा सुदर्शन महलवार स्थायी निषेधाज्ञा स्मिता रत्नावत हरे कृष्ण तिवारी