Wednesday 8 February 2017

छत्तीसगढ़ शासन विरूद्ध शिवप्रसाद धृतलहरे (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम)

 


अभियोजन यह संदेह से प्रमाणित करने में असफल रहा है कि आरोपी शिवप्रसाद धृतलहरे ने दिनांक 03.09.2008 को तथा उसके पूर्व छात्रावास अधीक्षक, अनुसूचित जाति बालक छात्रावास, सिद्धार्थ चौक, टिकरापारा रायपुर में लोक सेवक के पद पर पदस्थ रहते है, प्रार्थी संजय कुमार बांधे से उसका छात्रावास में चयन करवाने हेतु उससे रूपये 1500/- रिश्वत की मांग की और 600/- रूपये प्राप्त किया, जो वैध पारिश्रमिक से भिन्न था और ऐसा करके आरोपी ने अपने पद का दुरूपयोग कर अपराधिक अवचार/कदाचार किया, इसलिए आरोपी शिवप्रसाद धृतलहरे को धारा 7 एवं 13(1)(डी), 13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अपराध से दोषमुक्त किया जाता है।
न्यायालय :- विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) 
एवं प्रथम अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, रायपुर (छ0ग0) 
(पीठासीन न्यायाधीश - जितेन्द्र कुमार जैन) 
विशेष दाण्डिक प्रकरण क्रमांक- 07/2010 
सी.आई.एस. नंबर करप्शन केस/89/2010 
संस्थित दिनांक-06.09.2010 
छत्तीसगढ़ शासन,
द्वारा-आरक्षी केन्द्र, एंटी करप्‍शन ब्यूरो, रायपुर (छ0ग0)                                   -- अभियोजन
 // वि रू द्ध // 
शिवप्रसाद धृतलहरे उम्र 61 वर्ष
पिता स्व0 श्री जुड़ावन धृतलहरे
पेशा छात्रावास अधीक्षक, मूल पद शिक्षक
 साकिन-ग्राम व पोस्ट अमेरा, थाना पलारी,
जिला बलौदाबाजार (छ0ग0)                                                                               -- आरोपी
 ----------------------------------------------- 
अभियोजन व्दारा श्री योगेन्द्र ताम्रकार विशेष लोक अभियोजक। 
आरोपी व्दारा श्री एस0के0फरहान अधिवक्ता ।
 ----------------------------------------------- 
// निर्णय // 
( आज दिनांक-31, माह-जनवरी, सन् 2017 ई0 को घोषित )
1. आरोपी के विरूध्द धारा-7 एवं 13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) भ्रष्‍टाचार निवारण अधिनियम 1988 के अंतर्गत यह आरोप है कि उसने दिनांक 06.09. 2008 को आरोपी शिवप्रसाद धृतलहरे अनुसूचित जाति बालक छात्रावास रायपुर में छात्रावास अधीक्षक के पद पर लोक सेवक के रूप में पदस्थ रहते हुए प्रार्थी संजय कुमार बांधे (जिसे आगे प्रार्थी से संबोधित किया गया है) से छात्रावास हेतु चयन कराने के लिए रूपये 1500/- की मांग की तथा रूपये 600/- प्राप्त किये, जो वैध पारिश्रमिक से भिन्न राशि थी, इस प्रकार आरोपी ने अपने पद का दुरूपयोग कर, आपराधिक कदाचरण/अवचार किया। 
2. प्रकरण में यह अविवादित है कि आरोपी शिवप्रसाद धृतलहरे अनुसूचित जाति बालक छात्रावास, सिद्धार्थ चौक, टिकरापारा, रायपुर में छात्रावास अधीक्षक के पद पर पदस्थ था तथा प्रार्थी संजय बांधे ने वर्ष 2009 में छ0ग0महाविद्यालय, रायपुर में बीए प्रथम वर्ष के लिए एडमिशन लिया था और छात्रावास में रहना चाहता था, प्रार्थी अस्थायी रूप से आरोपी की अनुमति से अनुसूचित जाति छात्रावास टिकरापारा, रायपुर में रह रहा था, प्रार्थी से संबंधित दस्तावेजो को जप्ती पत्र प्र0पी0-17 एवं 18 के माध्यम से एसीबी ने जप्त किया था। 
3. अभियोजन का मामला संक्षेप में इस प्रकार है कि आरोपी शिवप्रसाद धृतलहरे अनुसूचित जाति बालक छात्रावास, सिद्धार्थ चौक, टिकरापारा, रायपुर में छात्रावास अधीक्षक के पद पर पदस्थ था, प्रार्थी संजय कुमार बांधे अनुसूचित जाति बालक छात्रावास, सिद्धार्थ चौक, टिकरापारा, रायपुर में रहने के लिए समस्त दस्तावेज मय आवेदन पत्र जमा किया था, आरोपी शिवप्रसाद धृतलहरे जो की उक्त छात्रावास का अधीक्षक था, ने प्रार्थी को कहा कि छात्रावास में रहने के लिए आपका चयन करा दूंगा कहकर 1500/- रूपये रिश्वत की मांग की, प्रार्थी रिश्वत नही देना चाहता था, इसलिए उसने ए0सी0बी0 कार्यालय रायपुर में लिखित शिकायत की, तब माइक्रो कैसेट एवं टेपरिकार्डर के माध्यम से शिकायत का सत्यापन करवाया गया, जिसमें प्रार्थी द्वारा दिनांक 04.09.2008 को आरोपी के कार्यालय में जाकर बातचीत किया, जहां प्रार्थी के निवेदन पर आरोपी रूपये 1500/- के स्थान पर रूपये 600/- रिश्वत की बात किया और दिनांक 06.09.2008 को आरोपी ने प्रार्थी को अपने कार्यालय में रिश्वत रकम रूपये 600/- लेकर बुलाया था, इस संबंध में प्रार्थी ने एसीबी को सूचना दी, और प्रार्थी की शिकायत के आधार पर बिना नंबरी प्रथम सूचना दर्ज की गयी। 

 4. पंच साक्षियों को आहूत किये जाने हेतु जिला दण्डाधिकारी को पत्र भेजा गया, वे दिनांक 05.05.2008 को एसीबी कार्यालय में उपस्थित हुये, उन्हे दिनांक 06.09. 2008 को एसीबी कार्यालय में उपस्थित होने का निर्देश दिया गया, एसीबी कार्यालय के अधिकारियों को ट्रैप कार्यवाही में सम्मिलित किये जाने हेतु आहूत किया गया, प्रार्थी को एसीबी कार्यालय में दिनांक 06.09.2008 को बुलाकर उसका परिचय पंच साक्षी एवं ट्रेप दल के अन्य सदस्यों से करवाया गया, पंच साक्षियों ने प्रार्थी से पूछताछ कर शिकायत से संतुष्ट होने पर टीप अंकित की, ए0सी0बी0 वालों के द्वारा टेपरिकार्डर को चालू कर रिश्वत के संबंध में प्रार्थी तथा आरोपी शिवप्रसाद धृतलहरे के मध्य हुई बातचीत को सुनकर उसका लिप्यांतरण तैयार किया गया, शिकायत का सत्यापन हो जाने के उपरांत् प्रार्थी द्वारा रिश्वत में दी जाने वाली रकम रूपये 600/- दिया, जो रूपये पांच सौ के एक एवं रूपये सौ के एक नोट थे, नोटो के नम्बरो को प्रारंभिक पंचनामा में दर्ज करवाया गया, नोटो में फिनाफ्थलीन पावडर लगाने हेतु आरक्षक को दिया गया, उसके द्वारा नोटो के दोनो तरफ फिनाफ्थलीन पावडर लगाया गया, पाउडर लगाने वाले आरक्षक को छोड़कर शेष का हाथ घोल में डुबाया गया, तो घोल का रंग अपरिवर्तित रहा, पंच साक्षी ने प्रार्थी की जामा तलाशी ली और उसके पास कोई सामान नहीं रहने दिया गया, प्रार्थी का जामा तलाशी पंचनामा तैयार किया गया, पंच साक्षी के द्वारा प्रार्थी द्वारा पहने गये शर्ट की जेब में रिश्वती रकम सावधानीपूर्वक रखवायी गयी, 
5. नोटो में पाउडर लगाने वाले आरक्षक के हाथ की उंगलियों को घोल में डुबाया गया, तो उसका हाथ गुलाबी हो गया, इस संबंध में उपस्थित ट्रैप दल के सदस्यों को बताया गया, और प्रार्थी को समझाइश दी गयी कि आरोपी के द्वारा रिश्वत मांगने पर ही आरोपी के हाथ में रिश्वत दे, रिश्वत देने के पूर्व एवं बाद में आरोपी से हाथ न मिलाये, रिश्वती नोट देने के पूर्व वह नोट को न छुये और यह भी देखने का प्रयास करे कि आरोपी शिवप्रसाद धृतलहरे रिश्वत लेने के बाद रिश्वती रकम कहां रखता है, प्रार्थी को यह भी बताया कि वह रिश्वत देने के बाद आरोपी शिवप्रसाद धृतलहरे के कमरे से बाहर आकर अपने सिर में हाथ फेरकर इशारा करे, उसके द्वारा सोडियम कार्बोनेट पाउडर की नमूना पुडिया तैयार कर सीलबंद की गई, सील का नमूना तैयार कर सीलबंद किया गया, प्रार्थी को रिश्वत देने के समय बातचीत रिकार्ड करने हेतु माइक्रो कैसेट टेपरिकार्डर दिया गया, जिसका भी पंचनामा बनाया गया, प्रारंभिक पंचनामा की कार्यवाही की लिखा-पढ़ी की गयी। 
6. ट्रेप दल का गठन किया गया, ट्रेप की योजना अनुसार ट्रेप दल शासकीय वाहन से घटनास्थल के लिए रवाना हुआ, वहां पहुंचकर पहले प्रार्थी एवं पंच साक्षी आरोपी शिवप्रसाद धृतलहरे के कार्यालय के अंदर गये और ट्रेप दल के अन्य सदस्य वहीं आसपास प्रार्थी पर नजरी लगाव रखे खडे रहे, थोडी देर बाद प्रार्थी ने आरोपी शिवप्रसाद धृतलहरे के कमरे से निकलकर रिश्वत दे देने का पूर्व निधारित इशारा किया, तब ट्रेप दल के सभी सदस्य आरोपी शिवप्रसाद धृतलहरे के कार्यालय पहुंचे और आरोपी का परिचय प्राप्त कर ट्रेप दल के सदस्यों ने अपना परिचय दिये। 

7. घटना स्थल पर सोडियम कार्बोनेट का जलीय घोल तैयार कर घोल की कार्यवाही की गयी, जिसमें आरोपी शिवप्रसाद धृतलहरे को छोड़ कर ट्रेप दल के सदस्यों के हाथों की उंगलियों को डुबा कर धुलायी गयी तो घोल के रंग में कोई परिवर्तन नहीं हुआ, फिर सोडियम कार्बोनेट के अन्य जलीय घोल में आरोपी शिवप्रसाद धृतलहरे के हाथों को डुबाया गया तो घोल का रंग गुलाबी हो गया, जिसे कांच की साफ शीशी में भर कर रखा गया, रिश्वती रकम कुल 600/-रूपये जब्त किया गया, उसे पूर्व लिखे गये नंबरों से मिलान किया गया, जो सही होना पाया गया, नोटों को घोल में डुबाया गया तो उसका रंग गुलाबी हो गया, उसे सुखाया गया, जिसे शीशी में बंद कर रखा गया, जिन्हें जब्त किया गया, जिस स्थान पर नोट मिले थे, उस स्थान को कागज में पोंछकर कागज को भी घोल में धुलाया गया तो घोल का रंग परिवर्तित नही हुआ, प्रार्थी का हाथ घोल में धुलाने पर घोल रंगहीन रहा, समस्त शीशीयों, पाउडर, रिश्वती रकम एवं कागज को जप्त किया गया, 
8. टेपरिकार्ड को चालू कर आरोपी को रिश्वत देते समय हुई बातचीत को सुना गया, साक्षियों के कथन लेखबद्ध किये गये, फिर रिश्वती रकम, सीलबंद घोल एवं टेपरिकार्ड आदि को जप्त किया गया, पटवारी को घटनास्थल पर बुलाकर नजरी-नक्शा तैयार करवाया गया, कागजात जप्त किये गये तथा अन्य कार्यवाहियां की गयी, घटनास्थल पर हुई समस्त कार्यवाहियों का पंचनामा बनाया गया, अन्वेषण में देहाती नालिसी दर्ज की गयी, जिसे लाकर पुलिस थाना ए0 सी0बी0, रायपुर में दिये जाने पर उक्त के आधार पर आरोपी के विरूध्द धारा-7 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत प्रथम सूचना पत्र दर्ज किया गया,, फिर सीलबंद कर रखे गये घोल की षीषियों को रासायनिक परीक्षण हेतु राज्य न्यायालयिक विज्ञान प्रयोगशाला, रायपुर भेज कर रिपोर्ट प्राप्त की गयी, विवेचना के दौरान साक्षियों के कथन लेखबद्ध किये गये, आरोपी को गिरफ्तार किया गया, टेपों का लिप्यांतरण किया गया, आरोपी की सेवा पुस्तिका एवं अन्य दस्तावेज जब्त किये गये, तथा आरोपी के विरूध्द विधिवत् अभियोजन स्वीकृति प्राप्त की गयी, तदोपरांत संपूर्ण विवेचना पश्चात अभियोग-पत्र इस न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया। 
9. आरोपी शिवप्रसाद धृतलहरे को धारा-7 एवं 13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) भ्रश्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के अंतर्गत आरोप विरचित कर आरोपी को पढकर सुनाये, समझाये जाने पर आरोपी ने अपराध करना अस्वीकार किया तथा विचारण का दावा किया, विचारण के दौरान अभियोजन की ओर से कुल 10 साक्षियों का कथन करवाया गया है, विचारण उपरांत धारा-313 दण्ड प्रक्रिया संहिता के तहत अभिलिखित किये गये अभियुक्त कथन में आरापी ने स्वयं को निर्दोश होना तथा झूठा फंसाया जाना बताया है तथा बचाव में पांच साक्षियों का कथन करवाया गया। 

10. इस प्रकरण में अवधारणीय प्रश्‍न निम्नानुसार है :- (1) क्या दिनांक 03.09.2008 को तथा उसके पूर्व आरोपी छात्रावास अधीक्षक, अनुसूचित जाति बालक छात्रावास, सिद्धार्थ चौक, टिकरापारा रायपुर में लोक सेवक के पद पर पदस्थ रहते है, प्रार्थी संजय कुमार बांधे से उसका छात्रावास में चयन करवाने हेतु उससे रूपये 1500/- रिश्वत की मांग की और 600/- रूपये प्राप्त किया, जो वैध पारिश्रमिक से भिन्न था और ऐसा करके आरोपी ने अपने पद का दुरूपयोग कर अपराधिक अवचार/कदाचार किया ? 
// अवधारणीय प्रश्न पर निष्कर्ष एवं निष्कर्ष के कारण /
11. अवधारणीय प्रश्न पर निष्‍कर्ष एवं निष्कर्ष के कारण :- आरोपी की ओर से 2009 (3) एमपीजेआर 221 भागवानदास वि0 मध्यप्रदेश राज्य एवं 2016 (4) एमपीजेआर 22 कु0अर्चना नागर वि0 मध्यप्रदेश राज्य का न्यायदृष्टांत प्रस्तुत किया गया है, जिसमें यह सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है कि धारा 7 एवं 13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) भ्रश्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तीन महत्वपूर्ण घटक बताये गये है, 1. शासकीय कर्मचारी/अधिकारी आरोपी द्वारा प्रार्थी से वैध राशि के अन्यथा अन्य राशि (रिश्वत) की मांग करना, 2. प्रार्थी द्वारा आरोपी को रिश्वत की राशि देना, 3. आरोपी द्वारा रिश्वत की राशि प्राप्त करना। वर्तमान प्रकरण में यह अविवादित है कि आरोपी घटना के समय अनुसूचित जाति छात्रावास में अधीक्षक के पद पर पदस्थ था, उसी संबंध में अभियोजन की ओर से सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग तारकेश्वर देवांगन अ.सा. 7 का कथन कराया है, जिसमें उसके द्वारा आरोपी की सेवा पुस्तिका प्र0पी023 एवं पदस्थापना आदेश प्र0पी024 को प्रमाणित किया है, जो भी आरोपी के शासकीय अधिकारी होने और घटना के समय शासकीय सेवा में छात्रावास अधीक्षक के रूप में पदस्थापना की पुष्टि करता है। 
12. संजय बांधे का कथन है कि वर्ष 2009 में वह छ0ग0 महाविद्यालय रायपुर में वह बी.ए. प्रथम वर्ष के लिये एडमिशन लिया था और वह छात्रावास में रहना चाहता था तब उसके भाई सत्तू बंजारे ने अनुसूचित जाति छात्रावास टिकरापारा में एडमिशन हेतु आवेदन जमा किया था, वह आरोपी की अनुमति से अनुसूचित जाति छात्रावास टिकरापारा में अस्थाई रूप से निवास करता था, उसने आरोपी के विरूद्ध दिनांक 03.09.2008 को रूपये 1500/- रिश्वत मांगने की शिकायत प्रदर्श पी 2 ए.सीबी. में किया था तब ए.सी.बी. वाले उसे टेप रिकार्ड नया केसेट लगाकर दिये थे और बोले थे कि आरोपी से बात कर बातों को टेप करना इस बाबत् पंचनामा प्र.पी. 3 बनाये थे। निरीक्षक एस0एस0भगत का कथन है कि दिनांक 03.09.2008 को संजय बांधे एसीबी कार्यालय में उपस्थित होकर लिखित शिकायत प्र0पी02 पुलिस अधीक्षक को दिया था, जिसे उन्होने कार्यवाही करने हेतु उसे दिया था, उसने प्रार्थी की शिकायत के सत्यापन हेतु उसे माइक्रो टेप रिकार्डर में नया कैसेट लगाकर दिया था और प्रार्थी को आरोपी से बातचीत कर टेप रिकार्ड करने हेतु निर्देश दिया था, इस संबंध में पंचनामा प्र0पी03 बनाया था। 
13. प्राथी संजय का कथन है कि वह टेप रिकार्डर लेकर छात्रावास आया था, जहां सिनियर छात्रो ने उससे टेप रिकार्डर छीन लिये और टेप रिकार्ड कर उसे दे दिये, इस साक्षी द्वारा लिप्यांतरण प्र0पी04, पंचनामा प्र0पी05, टेप देने का पंचनामा प्र0पी06, प्रारंभिक पंचनामा प्र0पी07, लिप्यांतरण प्र0पी08, जप्ती पत्र प्र0पी09 में अपना हस्ताक्षर होना स्वीकार किया है, लिप्यांतरण प्र0पी04 को चालू कर उसकी बात सुने जाने बताया है, परंतु उसे प्रतिकूल साक्षी घोषित कर सूचक प्रश्न पूछने पर उसने उसके द्वारा द्वितीय शिकायत प्रस्तुत करने, दिनांक 06.09.2008 को एसीबी कार्यालय में पंच साक्षियों द्वारा शिकायत पर पूछताछ कर लिखा पढ़ी करने, जप्ती पत्र प्र0पी010 की कार्यवाही होने, उसके द्वारा रिश्वती रकम छः सौ रूपये देने, घोल की कार्यवाही होने, पंचनामा प्र0पी05 की कार्यवाही करने एवं प्रारंभिक पंचनामा प्र0पी07 की कार्यवाही होने से इंकार किया है। 

14. प्रार्थी संजय बांधे ने उसे प्रतिकूल साक्षी घोषित किये जाने के बावजूद भी इस कथन से इंकार किया है कि वह छात्रावास अधीक्षक के पास जाकर उसे छः सौ रूपये दिया, जिसे आरोपी ने गिनकर उसे अपनी शर्ट की जेब में रख लिया, परंतु स्वीकार किया है कि वह बाहर आकर रिश्वत दिये जाने का ईशारा किया था, परंतु इस कथन से इंकार किया है कि एसीबी वाले आरोपी के कार्यालय में आकर उसे पकड़े थे और परिचय लिये थे, प्रार्थी ने घोल की कार्यवाही से इंकार किया है तथा आरोपी के कार्यालय में हुई संपूर्ण कार्यवाही से इंकार किया है, लिखित आवेदन प्र0पी02 दिया था, आरोपी ने उसे कभी भी 1500/- रूपये रिश्वत नही मांगी, एसीबी वालो के कहने पर उसने हस्ताक्षर किया था, इस तरह प्रार्थी के कथन से आरोपी द्वारा उसे रिश्वत मांगने, प्रार्थी द्वारा आरोपी को रिश्वत देने और आरोपी द्वारा रिश्वत स्वीकार किया जाना प्रमाणित नही हुआ है। 
15. निरीक्षक एस0एस0भगत का यह भी कथन है कि दिनांक 04.09.2008 को प्रार्थी कार्यालय में उपस्थित होकर बातचीत रिकार्ड करने और आरोपी द्वारा 1500/- रूपय के स्थान पर 600/- रूपये रिश्वत मांगना बताया था, तब उसने दिनांक 06.09.2008 को रिश्वत लाने प्रार्थी को कहा था, उसने पंच साक्षियों को आहूत किये जाने हेतु जिला दण्डाधिकारी को पत्र भेजा था, तब दिनांक 05.09.2008 को डॉ0ए0के0पटेल एवं डॉ0नरोत्तम चन्द्राकर उनके कार्यालय में आये थे, तब उन्हे दिनांक 06.09.2008 को उनके कार्यालय उपस्थित होने के लिए कहा था, डॉ0नरोत्तम चन्द्राकर अ0सा03, आरक्षक पवन पाठक अ0सा06, आरक्षक धनीराम अ0सा09 एवं निरीक्षक एस0के0सेन अ0सा08 का भी कथन है कि उन्हे दिनांक 06.09.2008 को एसीबी कार्यालय में उपस्थित होने का निर्देश दिया था, तब वे उक्त दिनांक को वहां उपस्थित हुये थे, उक्त संबंध में उक्त साक्षियों के कथन उनके प्रतिपरीक्षण में अखण्डित रहे है, जो उक्त कार्यवाहियों को किये जाने को प्रमाणित करते है। 
 16. प्रार्थी संजय का कथन है कि उसे एसीबी वालो ने दिनांक 06.09.2008 को टेप लेकर वहां आने के लिए कहे थे, टेप रिकार्डर में बात रिकार्ड होने पर उसे अधिकारी लोग सुने थे और लिप्यांतरण प्र0पी04 बनाये थे, निरीक्षक एस0एस0भगत, निरीक्षक एस0के0सेन, डॉ0नरोत्तम चन्द्राकर, पवन पाठक, धनीराम भगत का कथन है कि एसीबी कार्यालय में एक दूसरे का परिचय करवाया गया, प्रार्थी द्वारा दूसरी शिकायत एवं टेप रिकार्डर प्र0पी012 दी गयी, जिसे पंच साक्षियों को पढ़ने दिया गया, वे पढ़कर संतुष्ट होकर उसमें अपनी टीप अंकित किये, उक्त साक्षी का यह भी कथन है कि उसने बयान देते समय बताया था कि उसने पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार कक्ष से बाहर निकलकर अपने सिर पर हाथ फेरकर रिश्वत् देने का ईशारा किया था, उक्त साक्षी का यह भी कथन है कि वह 12वीं तक पढ़ा है, उक्त साक्षी का यह भी कथन है कि तलाशी पंचनामा प्र.पी. 5, टेप देने का पंचनामा प्र.पी. 6, प्रारंभिक कार्यवाही पंचनामा प्र.पी. 7, लिपियान्तरण प्र.पी. 8, जप्ती पत्र प्र.पी. 9 पर उसके हस्ताक्षर हैं।

17. डॉ0नरोत्तम चन्द्राकर, निरीक्षक एस. के. सेन, आरक्षक पवन पाठक, वरिष्ठ आरक्षक धनीराम अ.सा. 9, निरीक्षक भगत का कथन है कि दिनांक 06.09.2008 को सुबह ए.सी.बी. कार्यालय में उपस्थित हुए जहां निरीक्षक भगत ने कर्मचारी एवं अधिकारियों से उनका परिचय कराया थोड़ी देर बाद प्रार्थी संजय बांधे उपस्थित हुआ जिनसे भी उसका परिचय करवाया गया प्रार्थी द्वारा एक लिखित शिकायत एवं टेप रिकार्ड दिया गया, टेप को चालू करके उसकी बातों को सुना गया और उसका लिपियान्तरण प्र.पी. 4 बनाया गया, टेप से कैसेट निकालकर उसे जप्ती पत्र प्र.पी. 10 11 के माध्यम से जप्त किया गया, प्रार्थी द्वारा दी गई शिकायत को पंचसाक्षियों को पढ़ने को दिया गया जिसे उनके द्वारा पढ़ने के बाद प्रार्थी से पूछताछ कर संतुष्ट होने पर लिखित शिकायत प्र.पी. 12 में अपनी टीप अंकित किये। 
18. उक्त साक्षियों का यह भी कथन है कि निरीक्षक भगत द्वारा संजय बांधे से रिश्वत् की रकम मांगने पर उसने रूपये 500/- और 100/- का एक-एक नोट कुछ 600/- रू निकाल कर दिया जिसे आरक्षक धनीराम को फिनाफथीलीन पाउडर लगाने दिया गया तब आरक्षक ने नोटो में पाउडर की परत लगाया उसने प्रार्थी की जामा तलाशी लिया उसके जेब में कुछ रहने नहीं दिया तब जामा तलाशी पंचनामा प्रपी. 5 बनाया गया, नोटों को प्रार्थी के जेब में रखा गया और प्रार्थी को बताया गया कि नोंटों को आरोपी को देने के पूर्व नहीं छुना न ही आरोपी से हाथ मिलाना और रिश्वत् देने के बाद कक्ष से बाहर आकर सिर में हाथ फेरकर रिश्वत् दिये जाने का ईशारा करना। 
19. उक्त साक्षियों का यह भी कथन है कि निरीक्षक भगत के निर्देश पर एक आरक्षक ने कांच के गिलास में सोडियम कार्बोनेट का जलीय घोल तैयार किया जिसमें पाउडर लगाने वाले आरक्षक को छोड़कर शेष सभी का हाथ धुलवाया गया जो घोल का रंग अपरिवर्तित रहा जिसे फेंक दिया गया, पुनः घोल तैयार करवाकर पाउडर लगाने वाले आरक्षक धनीराम के हाथ की उंगली डुबाया गया, तो घ् ाल का रंग गुलाबी हो गया, जिसे कांच की शिशि में सीलबंद कर रखा गया, जिस पर निरीक्षक भगत ने बताया कि जो भी नोट को हाथ में लेगा उसके हाथ में पाउडर लगा जायेगा और घोल में धुलाने पर घोल गुलाबी हो जायेगा, आरक्षक से फिनाफथीलीन पाउडर को जप्त कर जप्ती पत्र प्र.पी. 13 बनाया गया। 
20. उक्त साक्षियों का यह भी कथन है कि प्रार्थी को टेप रिकार्ड में नया कैसेट लगाकर दिया गया और उसे चालू बंद करने की विधि बताई गई और उसका पंचनामा प्र.पी. 6 बनाया गया और प्रार्थी को बताया गया कि जब आरेपी को रिश्वत् देंने जाओगे तो आरोपी से जो बातचीत होगी उसे रिकार्ड कर लाना, ए.सी.बीकार्यालय में हुई समस्त कार्यवाहियों का प्रारंभिक पंचनामा प्र.पी. 7 बनाया गया। निरीक्षक भगत का यह भी कथन है कि उसने एसीबी कार्यालय में आरोपी के विरूद्ध धारा 7 भ्र.नि.अधि. के अंतर्गत देहाती नालशी प्र.पी. 25 दर्ज किया था। 
21. पंच साक्षी नरोत्तम चन्द्राकर, पवन पाठक, एस0के0सेन, धनीराम भगत एवं एस0एस0भगत ने अपने प्रतिपरीक्षण में उक्त कार्यवाही नही होने से इंकार किया है, उनके प्रतिपरीक्षण में ऐसा कोई तथ्य प्रमाणित नही हुआ है, जिससे दिनांक 06.09.2008 को एसीबी कार्यालय में उनके द्वारा की गयी कार्यवाही के संबंध में उनके कथनो पर संदेह किया जा सके, इसलिए यह प्रमाणित पाया जाता है कि पंच साक्षी नरोत्तम चन्द्राकर, पवन पाठक, एस0के0सेन, धनीराम भगत एवं निरीक्षक एस0एस0भगत द्वारा एसीबी मे कार्यवाही करने के उपरांत प्रारंभिक पंचनामा तैयार किया गया। 
22. डॉ. नरोत्तम चंद्राकर, पवन पाठक, एस. के. सेन, निरीक्षक भगत का यह भी कथन है कि योजना बनाकर पाउडर लगाने वाले आरक्षक एवं फिनाफथीलीन पाउडर के डब्बे को छोड़कर शासकीय वाहन से पचपेढ़ी नाका स्थित छात्रावास रवाना हुए, छात्रावास के आगे पहुंचकर गाड़ी रोककर प्रार्थी को छात्रावास में जाने के लिये बोले और बाकी दल के सदस्य प्रार्थी पर नजरी लगाव रखते हुए आसपास खडे़ हो गये, उक्त साक्षियों का यह भी कथन है कि प्रार्थी छात्रावास के अंदर गया और कुछ देर बाद वापस आकर पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार सिर पर हाथ फेरकर रिश्वत् दिये जाने का ईशारा किया, ईशारा पाकर ट्रेप दल के सभी सदस्य आरोपी के कार्यालय में प्रवेश किये और आरोपी के हाथ की कलाई को पकड़ लिये और आरोपी को बाले की आपको ट्रेप किया जा रहा है, ट्रेप दल के सदस्य आरोपी को अपना परिचय दिये और आरोपी से परिचय लिये, उक्त साक्षियों का यह भी कथन है कि आरोपी से रिश्वत् के संबंध में पूछने पर आपने 600/- रू रिश्वत् लेना स्वीकार किया और आरेपी से रिश्वत् नोट के बारे में पूछने पर नोटों को टेबल के दराज में रखना बताया। 

23. उक्त साक्षियों का यह भी कथन है कि सोडियम कार्बोनेट का घोल तैयार कर आरोपी और प्रार्थी को छोड़कर शेष दल के सभी सदस्यों का घोल में हाथ धुलवाया गया तो घोल का रंग अपरिवर्तित रहा जिसे सीलबंद कर शीशी में रखा गया, उसके बाद आरोपी के हाथों की उंगलियों को डुबाने पर घोल का रंग गुलाबी हो गया जिसे कांच की शीशी में सीलबंद कर रखा गया, आरोपी द्वारा रिश्वत रकम को टेबल के दराज में रखना बताया गया तो पंचसाक्षी पटेल की आरोपी से जामा तलाशी लिवायी गई और पटेल के जेब में कोई सामग्री रहने नहीं दिया गया इस संबंध में तलाशी पंचनामा प्र.पी. 14 बनाया गया था, दराज से नोट निकालने के पश्चात् प्रारंभिक पंचनामा में लिखे नोटों के नंबर से मिलान किया गया तो नोटों का नंबर वही होना पाया गया, तब पंचसाक्षी पटेल ने टेबल के दराज से नोट निकाल कर उसे सोडियम कार्बोनेट के घोल में डुबोया गया तो घोल का रंग गुलाबी हो गया, जबकि पवन पाठक एवं निरीक्षक भगत का कथन है कि घोल का रंग अपरिवर्तित रहा। 
24. नरोत्तम चन्द्राकर एवं पवन पाठक का कथन है कि प्रार्थी के हांथों की उंगलियों को घोल में धुलाने पर घोल का रंग गुलाबी हो गया जिसे भी कांच की साफ शीशी में रखा गया, निरीक्षक लकड़ा का कथन है कि प्रार्थी का हाथ धुलाने पर घोल का रंग नही बदला था, नोटों को सुखा कर उन्हे जप्त कर जप्ती पत्र प्र.पी. 15 बनाया गया तथा सीलबंद शीशीयों को ए.सी.बी. वाले जप्त कर जप्ती पत्र प्र.पी. 16 बनाये थे, आरोपी से प्रार्थी के दस्तावेज के संबंध में पूछे जाने पर दस्तावेजों को दराज में होना बताया और एसीबी वालों को निकालकर दिया जिसे एसीबीवालों ने जप्ती पत्र प्र.पी. 17, एवं प्र.पी. 18 के माध्यम से जप्त किये थे। 
25. उक्त साक्षियों का यह भी कथन है कि प्रार्थी से टेप की मांग की गई तब उसने टेप रिकार्ड दिया जिसे उसके समक्ष चलाकर सुना गया तथा उसका लिपियान्तरण प्र.पी. 8 तैयार किया गया, टेप रिकार्ड से कैसेट निकालकर उसे जप्त कर जप्ती पत्र प्र.पी. 9 बनाया गया था, आरोपी को गिरफ्तार कर गिरफ्तारी पंचनामा प्र.पी. 19 तैयार किया गया था एवं वहां हुए समस्त कार्यावाहियों का कार्यवाही पंचनामा प्र.पी. 20 तैयार किया गया था। आरक्षक पवन पाठक एवं निरीक्षक एस. एस. भगत का यह भी कथन है कि मौके पर पटवारी को बुलावाकर नक्शा बनवाया गया था, सोडियम कार्बोनेट का नमूना तैयार कर समस्त शीशीयों और नमूना पुड़िया को उससे जप्त कर जप्ती पत्र प्र.पी. 16 बनाया गया था, उससे पूछताछ कर उसका बयान लिया गया था, निरीक्षक एस. एस. भगत का यह भी कथन है कि उसने आरोपी से रिश्वत् रकम बरामद होने के पश्चात् आरोपी के विरूद्ध धारा 13(1)(डी) सहपठित धारा 13(2) भ्र.निअधि. के अंतर्गत धारा जोड़ा था तथा आपके गिरफ्तारी की सूचना आपके पुत्र को दिया था। 
26. पटवारी नीरज प्रताप सिंह अ.सा.1 का कथन है कि दिनांक 06.09.2008 को तहसीलदार रायपुर से घटना स्थल अनुसूचित जाति छात्रावास टिकरापारा जाकर घ् ाटना स्थल का नक्शा बनाये जाने का निर्देश प्राप्त हुआ था तब वह वहां जाकर घटना स्थल का नजरी नक्शा प्र.पी. 1 बनाया था जिसे एसीबी वालों को सौंपा था, इस साक्षी ने अपने प्रतिपरीक्षण में प्रार्थी से नक्शा बनाते समय कुछ नही पूछा था, बल्कि गवाह ए 0के0पटेल और नरोत्तम चन्द्राकर से पूछा था, नक्शा बनाये जाने के संबंध में उक्त साक्षियों के कथन अखण्डित रहे है, जो पटवारी द्वारा नक्शा बनाये जाने को प्रमाणित करता है। निरीक्षक जोगेन्दर सिंह गंभीर अ.सा.4 का कथन है कि दिनांक 09.09.2008 को पुलिस अधीक्षक एंटी करप्शन ब्यूरो रायपुर के पत्र क्रमांक 2926 दिनांक 08.09. 2008 के साथ आरोपी के विरूद्ध नंबरी अपराध पंजीबद्ध करने हेतु देहाती नालिशी प्राप्त होने पर उसने अपराध क्रमांक 18/2018 प्र0पी019 पंजीबद्ध किया था, उक्त संबंध में उक्त साक्षी के कथन अखण्डित रहे है, जो उसके द्वारा प्रथम सूचना पत्र दर्ज करना प्रमाणित करता है। 
27. निरीक्षक एस.एस. भगत का यह भी कथन है कि उसने जप्तशुदा संपत्तियों को पुलिस अधीक्षक के पत्र प्र.पी. 27 के माध्यम से राज्य विज्ञान प्रयोगशाला रायपुर भेजा था जिसकी रसीद प्र.पी. 28 है, एफएसएल रिपोर्ट प्र.पी. 30, कवरिंग मेमो प्र.पी. 29 के माध्यम से प्राप्त हुई थी जिसकी वापसी रसीद प्र.पी. 31 है, निरीक्षक एस.एस. भगत का यह भी कथन है कि दिनांक 05.02.2009 को संचालक राज्य विधिक विज्ञान प्रयोगशाला रायपुर को पत्र भेजकर क्यूरी की थी जो दिनांक 19.02.2009 को कवरिंग मेमो प्र.पी. 33 के द्वारा जानकारी प्र.पी. 34 प्राप्त हुई थी उसमें संजय बांधे, नरोत्तम चंद्राकर, एस.के. पटेल, मनोज खिलारी, एस.के. सेन, जेरोम लकड़ा, धनीराम भगत, पवन पाठक, ए.आर.ठाकुर, टिकेश्वर सिंह का बयान उनके बताये अनुसार लिया था तथा पुलिस अधीक्षक के माध्यम से अभियोजन स्वीकृति विधि एवं विधाय कार्य विभाग को अभियोग पत्र की प्रति भेजकर अभियोजन स्वीकृति की मांग की थी तथा अभियोजन स्वीकृति प्राप्त होने पर आरोपी के विरूद्ध अभियोग पत्र प्रस्तुत किया था, उक्त कार्यवाही के संबंध में उक्त साक्षी के कथन उसके प्रतिपरीक्षण में अखण्डित रहे है, जो उक्त कार्यवाही को किये जाने को प्रमाणित करता है। 

28. सहायक ग्रेड-2 अरूण कुमार मिश्रा का कथन है कि पुलिस अधीक्षक एंटी करप्शन ब्यूरो रायपुर के द्वारा आरोपी के विरूद्ध अभियोजन स्वीकृति हेतु दिनांक 22.05.2009 को पत्र प्र0पी020 भेजा गया, जिसके आधार पर तत्का0अतिरिक्त सचिव श्री रविशंकर शर्मा द्वारा दिनांक 16.07.2010 को अभियोजन स्वीकृति प्र.पी. 21 प्रदान की गयी, जिसे कवरिंग मेमो प्र0पी020 के माध्यम से पुलिस अधीक्षक एंटी करप्शन ब्यूरो रायपुर को भेजा गया था, इस साक्षी ने अपने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि अभियोजन स्वीकृति देते समय किन दस्तावेजो को देखा गया, वह नही बता सकता, परंतु प्रकरण में अभियोजन स्वीकृति प्र0पी021 विस्तृत रूप से दी गयी है, जिसमें इस बात का उल्लेख किया गया है कि किन दस्तावेजो के आधार पर उसे प्रदान की गयी है, इसलिए यह प्रमाणित पाया जाता है कि उचित रूप से अभियोजन स्वीकृति दी गयी है। 
29. प्रार्थी संजय ने अपने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि कुछ सिनियर छात्रो ने उसे छिपाकर छात्रावास में रखा था, जिसकी जानकारी अधिक्षक को नही दी गयी थी और सिनियर छात्रो के दबाव में उसने प्र0पी02 की शिकायत की थी, आरोपी ने अपने अभियुक्त कथन में यह बचाव लिया है कि वर्ष 2006 में छात्रावास की क्षमता 100 सीट की थी तथा 50 छात्र अतिरिक्त रह रहे थे, उन्हे हटाने के लिए सहायक आयुक्त, जिला दण्डाधिकारी एवं पुलिस को शिकायत भेजी गयी थी, जिससे चिढ़कर अवैध रूप से रहने वाले छात्रो ने उन्हे फसा दिया। 
30. आरोपी की ओर से अपने बचाव में उमेश पाटले ब0सा04 का कथन करवाया गया है, जिसने कथन किया है कि वह वर्ष 2007-08 में अनुसूचित जाति बालक छात्रावास टिकरापारा, रायपुर में छात्रसंघ का अध्यक्ष था, छात्रावास में आने वाले नये लड़को को वहां अवैधानिक रूप से रहने वाले लड़को द्वारा तंग किया जाता था, उन अवैधानिक रूप से रहने वाले लड़को को भगाने के लिए कार्यवाही किया था, जिस संबंध में हम लोग विभिन्न शासकीय विभागो में पत्र प्र0डी0-10 भेजा था, सहायक आयुक्त आदिवासी विकास, रायपुर को छात्रावास में अवैधानिक रूप से रहने वाले छात्रो व व्यक्तियों को हटाने बाबत नाम संबंधी जानकारी प्र0डी0-11 दी गयी थी, मैने छात्रावास के सभी छात्रो के तरफ से गैर छात्रावासी लोगो को छात्रावास से हटाने के लिए पत्र प्र0डी0-08 जिला कलेक्टर रायपुर को एवं पत्र लिखा था जिसकी पावती प्र0पी0-12 है, इसी प्रकार उसने छात्रसंघ के अध्यक्ष की हैसियत से सहायक आयुक्त आदिम जाति विकास कार्यालय रायपुर को छात्रावाश में रैंकिग गलत व्यवहार छात्रो से किये गये अभद्रता कें संबंध में पत्र दिनांक 17.09.2007 लिखा था जिसकी छायाप्रति संलग्न है, इसी प्रकार छात्रावास में रहने वाले बाहरी लोगो को बाहर निकालने के लिये छात्रसंघ की एक बैठक हुई थी जिसमे बाहरी लोगो को बाहर निकालने के लिये सहमति हुई थी उक्त बैठक की कार्यवाही का विवरण पत्रक दिनांक 15.09.2007 प्रकरण में सलग्न है। 

31. रीडर कलेक्टर कार्यालय, रायपुर श्रीमती सुषमा शाह ब0सा02 पत्र प्र0डी0-08 कलेक्टर कार्यालय के आवक जावक शाखा में दिनांक 17.09.2007 को पत्र प्र0डी09 प्राप्त हुआ था, जिसके अनुसार पृष्ट क्रमांक 157 के इन्द्राज संख्या 639/17. 09.2007 के अनुसार शासकीय आदर्श पोस्ट मैट्रिक अनुसूचित जाति बालक छात्रावास, रायपुर के छात्रगण एवं अध्यक्ष की ओर से गैर छात्रावास लोगो को छात्रावास से तत्काल हटाने बाबत प्राप्त हुआ था, उक्त इन्द्राज प्र0डी0-09 है, जिसकी छायाप्रति प्र0डी0-09-सी है। छात्रावास अधीक्षक बी0एल0कुर्रे ब0सा01 का कथन है कि वर्ष 2002-03 से 2008-09 में सहायक आयुक्त आदिवासी विकास रायपुर को भेजा गया पत्र प्र0डी02 से 07 है। लेखापाल आदिवासी विकास, रायपुर रमेश चंद साहू ब0सा05 का कथन है कि पत्र प्र0डी010, 12 से 16 उनके कार्यालय को सहायक आयुक्त से संबंधित पत्र प्राप्त हुआ था। 
32. बचाव साक्षी उमेश ने अपने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि आरोपी से उसका संबंध अच्छा है, परंतु इस कथन से इनकार किया है कि आरोपी को बचान के लिए सही बात नही बता रहा है, अन्य बचाव साक्षियों के कथन उनके प्रतिपरीक्षण में अखण्डित रहे है, उक्त साक्षियों के कथनो और दस्तावेजो से यह प्रमाणित पाया जाता है कि वर्ष 2007-08 में अनुसूचित जाति बालक छात्रावास में अवैध रूप से बहुत सारे छात्र रहते थे, जिन्हे निकालने के लिए आरोपी एवं छात्रावास के छात्रों ने कार्यवाही की थी, जो आरोपी द्वारा लिये गये इस बचाव का समर्थन करता है कि जिन छात्रों को उनके द्वारा निकाला गया, वे उसे चिढ़ते थे तथा प्रार्थी के कथन से भी यह प्रमाणित हुआ है कि छात्रावास में अवैध रूप से रहने वाले छात्र उसे अनेको दिन तक छात्रावास में रखकर मारपीट कर आरोपी के विरूद्ध कार्यवाही करने के लिए दबाव बनाते थे। 
33. बचाव साक्षी उमेश ने कथन किया है कि 2008-09 में पुलिस ने हॉस्टल में रहने वाले 28 से 30 लोगो के विरूद्ध कार्यवाही की थी, उसके बाद जिन लोगो के विरूद्ध कार्यवाही की थी, वे आरोपी से मिलने आये थे, उस समय आरोपी अपने कमरे में था, वह भी आरोपी के कार्यालय में जाकर बैठा था, उसे आरोपी को बुलाने के लिए कहे तो वह आरोपी को बुलाने के लिए चला गया, उसके बाद टेबल में किसी ने पैसा रख दिया, तब आरोपी ने पूछा की पैसा किसका है, इस बीच सादी वर्दी में पुलिस वाले आ गये और आरोपी को पकड़ कर अपने आफिस में ले जाने की बात कह रहे थे, उसने घटना की सूचना आदिम जाति विभाग को दिया था। 
34. कमल टण्डन ब0सा03 का कथन है कि वह 2008 में टिकरापारा छात्रावास में था, दिनांक 09.09.2008 को हॉस्टल के बाहर के लोग आये थे और अधीक्षक के चेम्बर के पास गये थे और उनके चेम्बर में दराज में पैसा रखा था, जिसे उसने देखा था और उसने उन लोगो को पूछा था कि तुम ऐसा क्यो कर रहे हो, तो उन्होने मुझे चलो भागो कहकर वहां से भगा दिया, उसके बाद पुलिस आयी थी और कुछ कार्यवाही हुई थी, इस साक्षी ने अपने प्रतिपरीक्षण में इस कथन से इंकार किया है कि आरोपी को बचाने के लिए सही बात नही कह रहा है, वर्तमान प्रकरण में कार्यवाही दिनांक 06.09. 2008 को की है, जबकि इस साक्षी द्वारा दिनांक 09.09.2008 के संबंध में बताया जा रहा है, इसलिए इस साक्षी का कोई लाभ आरोपी को प्राप्त नही होता। 

35. निरीक्षक भगत का कथन है कि प्रार्थी के साथ छाया साक्षी के रूप में निरीक्षक एस0के0सेन एवं निरीक्षक जेरोल लकड़ा को भेजा गया था, परंतु निरीक्षक एस0के0सेन द्वारा छाया साक्षी के रूप में प्रार्थी के साथ जाने के संबंध में कोई कथन नही किया है, निरीक्षक लकड़ा का कथन नही करवाया गया है, पंच साक्षी नरोत्तम ने बताया है कि एसीबी कार्यालय में प्रार्थी के साथ छाया साक्षी भेजने की कोई बात नही हुई थी, इस तरह छाया साक्षी भेजने संबंधी निरीक्षक का कथन विश्वास योग्य नही है। 
36. पंच साक्षी नरोत्तम चन्द्राकर ने अपने प्रतिपरीक्षण में बताया है कि आरोपी का हाथ धुलाने पर रंग गुलाबी हुआ था या नही, वह निश्चित तौर पर नही बता सकता तथा यह भी बताया है कि आरोपी का हाथ धुलाने पर रंग अपरिवर्तित रहा था, इस साक्षी ने अपने प्रतिपरीक्षण में यह भी बताया है कि प्रार्थी का हाथ धुलाने पर रंग अपरिवर्तित रहा है, जप्ती पत्र प्र0पी016, कार्यवाही पंचनामा प्र0पी020 में प्रार्थी का हाथ धुलाने पर रंग नही बदलने का उल्लेख है, अन्वेषण अधिकारी निरीक्षक भगत ने भी प्रार्थी का हाथ धुलाने पर घोल का रंग अपरिवर्तित रहना बताया है, पवन पाठक एवं निरीक्षक भगत ने अपने प्रतिपरीक्षण में यह भी बताया है कि दराज के जिस स्थान पर रिश्वती नोट रखा था, उस स्थान को कागज से पोंछकर घोल में डालने पर घोल का रंग अपरिवर्तित रहा था, इस तरह पंच साक्षी नरोत्तम चन्द्राकर, पवन पाठक एवं निरीक्षक भगत के द्वारा प्रार्थी, आरोपी का हाथ धुलाने पर घोल का रंग नही बदलना प्रमाणित हुआ है, घोल का रंग क्यो नही बदला यह अभियोजन ने स्पष्ट नही किया है, जो कि अभियोजन की कार्यवाही को दूषित करता है। 
37. पवन पाठक ने अपने प्रतिपरीक्षण में बताया है कि जहां पर वह खड़ा था, वह से घटना स्थल नही दिख रहा था, पंच साक्षी नरोत्तम चन्द्राकर ने अपने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि उसने प्रार्थी से आरोपी को पैसा मांगते, प्रार्थी द्वारा आरोपी को पैसा देते और आरोपी द्वारा पैसे स्वीकार करते नही देखा, नरोत्ततम चन्द्राकर एवं पवन पाठक ने अपने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि दराज में पैसा किसने रखा वह नही बता सकता, निरीक्षक भगत ने अपने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि आरोपी के कमरे की तलाशी में रिश्वत नही मिला था, वह दराज में था, निरीक्षक एस0के0सेन ने अपने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि पैसा लेते देते नही देखा, पैसा किसने रखा वह नही बता सकता। 
38. साक्षी नरोत्तम चन्द्राकर ने लिप्यांतरण प्र0पी08 मे छः सौ रूपयें मांगने की बात नही होना बताया है, इस तरह किसी भी अभियोजन साक्षी ने आरोपी द्वारा प्रार्थी से रिश्वत मांगते, प्रार्थी द्वारा आरोपी को रिश्वत देते एवं आरोपी द्वारा रिश्वत स्वीकार किये जाने के संबंध में कोई कथन नही किया है, इस तरह उपरोक्तानुसार कुमारी अर्चना नागर एवं भगवानदास वाले प्रकरण में पारित न्याय सिद्धांतो के अनुसार अभियोजन आरोपी द्वारा प्रार्थी से रिश्वत मांगने, प्रार्थी द्वारा आरोपी को रिश्वत देने एवं आरोपी द्वारा उसे स्वीकार करना प्रमाणित करने में असफल रहा है, जो आरोपी की अपराध में संलग्नता पर संदेह उत्पन्न करता है। 
 39. उक्त कारणवश अभियोजन यह संदेह से प्रमाणित करने में असफल रहा है कि आरोपी शिवप्रसाद धृतलहरे ने दिनांक 03.09.2008 को तथा उसके पूर्व छात्रावास अधीक्षक, अनुसूचित जाति बालक छात्रावास, सिद्धार्थ चौक, टिकरापारा रायपुर में लोक सेवक के पद पर पदस्थ रहते है, प्रार्थी संजय कुमार बांधे से उसका छात्रावास में चयन करवाने हेतु उससे रूपये 1500/- रिश्वत की मांग की और 600/- रूपये प्राप्त किया, जो वैध पारिश्रमिक से भिन्न था और ऐसा करके आरोपी ने अपने पद का दुरूपयोग कर अपराधिक अवचार/कदाचार किया, इसलिए आरोपी शिवप्रसाद धृतलहरे को धारा 7 एवं 13(1)(डी), 13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अपराध से दोषमुक्त किया जाता है। 
40. प्रकरण में जप्तशुदा रूपये 600/- अपील न होने की दशा में अपील अवधि बाद राजसात किया जाता है, अपील होने की दशा में माननीय अपीलीय न्यायालय के आदेश का पालन किया जावे, प्रकरण में जप्तशुदा शीशीयां, पाउडर, कैसेट, कागज अपील न होने की दशा मे अपील अवधि बाद मूल्यहीन होने से नष्ट किया जावे, अपील होने की दशा में माननीय अपीलीय न्यायालय के आदेश का पालन किया जावे। 41. प्रकरण में आरोपी जमानत मुचलके पर है, उसके जमानत मुचलके धारा 437-ए दप्रसं के अंतर्गत छः माह के लिए विस्तारित किये जाते है, जो उक्त अवधि पश्चात स्वयमेव समाप्त माने जायेंगे। 
 निर्णय मेरे निर्देश में टंकित निर्णय खुले न्यायालय में पारित किया गया। 
सही/-
 (जितेन्द्र कुमार जैन)
विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टा0निवा0अधि0) एवं प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश
रायपुर(छ0ग0) रायपुर(छ0ग0)

No comments:
Write comments

महत्वपूर्ण सूचना- इस ब्लॉग में उपलब्ध जिला न्यायालयों के न्याय निर्णय https://services.ecourts.gov.in से ली गई है। पीडीएफ रूप में उपलब्ध निर्णयों को रूपांतरित कर टेक्स्ट डेटा बनाने में पूरी सावधानी बरती गई है, फिर भी ब्लॉग मॉडरेटर पाठकों से यह अनुरोध करता है कि इस ब्लॉग में प्रकाशित न्याय निर्णयों की मूल प्रति को ही संदर्भ के रूप में स्वीकार करें। यहां उपलब्ध समस्त सामग्री बहुजन हिताय के उद्देश्य से ज्ञान के प्रसार हेतु प्रकाशित किया गया है जिसका कोई व्यावसायिक उद्देश्य नहीं है।
इस ब्लॉग की सामग्री का किसी भी कानूनी उद्देश्यों के लिए उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। हमने सामग्री की सटीकता, पूर्णता, उपयोगिता या अन्यथा के संबंध में कोई ज़िम्मेदारी स्वीकार नहीं की है। उपयोगकर्ताओं को सलाह दी जाती है कि वे इस वेबसाइट पर दी गई जानकारी पर कार्य करने से पहले किसी भी जानकारी को सत्यापित / जांचें और किसी भी उचित पेशेवर से सलाह प्राप्त करें।

Category

03 A Explosive Substances Act 149 IPC 295 (a) IPC 302 IPC 304 IPC 307 IPC 34 IPC 354 (3) IPC 399 IPC. 201 IPC 402 IPC 428 IPC 437 IPC 498 (a) IPC 66 IT Act Aanand Math Abhishek Vaishnav Ajay Sahu Ajeet Kumar Rajbhanu Anticipatory bail Arun Thakur Awdhesh Singh Bail CGPSC Chaman Lal Sinha Civil Appeal D.K.Vaidya Dallirajhara Durg H.K.Tiwari HIGH COURT OF CHHATTISGARH Kauhi Lalit Joshi Mandir Trust Motor accident claim News Patan Rajkumar Rastogi Ravi Sharma Ravindra Singh Ravishankar Singh Sarvarakar SC Shantanu Kumar Deshlahare Shayara Bano Smita Ratnavat Temporary injunction Varsha Dongre VHP अजीत कुमार राजभानू अनिल पिल्लई आदेश-41 नियम-01 आनंद प्रकाश दीक्षित आयुध अधिनियम ऋषि कुमार बर्मन एस.के.फरहान एस.के.शर्मा कु.संघपुष्पा भतपहरी छ.ग.टोनही प्रताड़ना निवारण अधिनियम छत्‍तीसगढ़ राज्‍य विधिक सेवा प्राधिकरण जितेन्द्र कुमार जैन डी.एस.राजपूत दंतेवाड़ा दिलीप सुखदेव दुर्ग न्‍यायालय देवा देवांगन नीलम चंद सांखला पंकज कुमार जैन पी. रविन्दर बाबू प्रफुल्ल सोनवानी प्रशान्त बाजपेयी बृजेन्द्र कुमार शास्त्री भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम मुकेश गुप्ता मोटर दुर्घटना दावा राजेश श्रीवास्तव रायपुर रेवा खरे श्री एम.के. खान संतोष वर्मा संतोष शर्मा सत्‍येन्‍द्र कुमार साहू सरल कानूनी शिक्षा सुदर्शन महलवार स्थायी निषेधाज्ञा स्मिता रत्नावत हरे कृष्ण तिवारी